फूल बना हथियार - 5 S Bhagyam Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फूल बना हथियार - 5

अध्याय 5

'मैडम.... फिर मैं चलूं....?"

आवाज सुनकर 'अपनापन' संस्था के निर्वाही मंगई अर्शी जिस फाइल को देख रही थी उससे सर ऊपर किया। कंधे पर एक हैंडबैग को टांगे हुए यामिनी एक बड़ी मुस्कान लिए हुए खड़ी थी।

"क्या यामिनी इतनी जल्दी ?"

"आई एम ऑलरेडी लेट मैडम.... पत्रिका के ऑफिस में मुझे कुछ काम है। आज सुबह ही जो साक्षात्कार लिया था उसके मैटर को कंपोजिंग सेक्शन में देकर लेआउट्स करना है। अभी निकलूं तो ही ठीक रहेगा। मैं और नकुल आज साथ में बैठकर सबके साथ लंच लेंगे सोचा। वैसे ही हमने खाना खाया। मेरे और उसके यहां आने पर ही उनको नौकरी मिलेगी ऐसा लग रहा है।"

"बहुत खुशी की बात है यामिनी। तुम्हारे अच्छे मन के लिए सब कुछ अच्छा ही होगा।" कहकर आवाज को धीमी करके, एक मिनट अंदर आओ। तुमसे कुछ बातें करनी है....!"

यामिनी असमंजस के स्थिति में अंदर गई।" क्या है मैडम?"

"बैठो।"

"अपने 'अपनापन' संस्था के लिए दस से ज्यादा प्रेस्टीज ट्रस्टी हर महीने रुपए से हमारी मदद करते हैं यह बात तुम्हें पता है। उसमें से एक ट्रस्टी जो गिन्डी में रहते हैं 'यह चेरिटेबल ट्रस्ट' हर महीने बीस हजार रुपये देते थे। यह तुमने ही पहचान कराई थी 'इदम चेरिटेबल ट्रस्ट' हमारे संस्था के लिए एक मजबूत बल के रूप में थे। परंतु पिछले तीन महीने से वे रुपए नहीं भेज रहे हैं।"

यामिनी स्तंभित हुई, "क्या? रुपए नहीं भेज रहे?"

"हां..."

"हो सकता है भूल गए हो। आप फोन करके पूछ सकते थे ना ?" उन्होंने एक फोन नंबर दिया था। उस पर फोन करो तो फोन नॉट यूज़ ऐसी आवाज आती है। वे भेज ही देंगे ऐसा मैं सोचती रही। फिर भी रुपयों के ना आने से मुझे तुम्हें कहना पड़ा।"

"क्या है मैडम आप...? पहले महीने में ही रुपए न आने से मुझे फोन करना चाहिए था ना?"

"वे खुश होकर देने वाले रुपयों के लिए हम फोर्स तो नहीं कर सकते ना ?"

"मैडम! 'ईदम चेरिटेबल ट्रस्ट' एक बड़ी संस्था है। उसके चेयरमैन परशुराम एक बहुत अच्छे आदमी हैं। मंदिर बनाने के लिए, मंन्दिर के कुंभाभिषेक के लिए चाहिए मांगे तो....एक रुपये भी नहीं देंगे। परंतु.... अपने जैसे समाज सेवी संस्थाओं के लिए ढूंढकर रुपयों की मदद करते हैं। उनसे एक बार साक्षात्कार लेने नीलकमल पत्रिका की तरफ से ही मैं गई थी। उस समय मैंने 'अपनापन' अपने संस्था के बारे में बताया। तुरंत उन्होंने अपने सहायक को बुलाकर 'अब हर महीने 'अपनापन' संस्था को भी रुपए भेजो बोला। ऐसे अपने आप बोलने वाले मदद के लिए रुपए नहीं भेजेंगे क्या?"

"मुझे भी आश्चर्य हो रहा है...!" अभी मैं गिन्डी के रास्ते ही जाऊंगी। रास्ते मे ही ट्रस्ट के चेयरमैन परशुराम जी को देखती हुई जाऊंगी।"

"अभी तुरंत उन्हें जाकर देखने की जरुरत नहीं है। दस दिन बाद भी जाकर देख सकती हो।"

"नहीं मैडम......! तीन महीनों से उन्होंने रुपए नहीं भेजे। उसे हमें लापरवाही से नहीं लेना चाहिए। मैं जाकर कारण मालूम करके आपको फोन करती हूं...."

यामिनी उठ गई।