फूल बना हथियार - 6 S Bhagyam Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फूल बना हथियार - 6

अध्याय 6

गिंडी के प्रधान रोड से एक किलोमीटर आगे दूर घने अमलतास के पेड़ों के बीच में 'इदम् चैरिटेबल ट्रस्ट' एक पुरानी बिल्डिंग के रूप में दिखा।

'एक साल पहले ट्रस्ट के चेयरमैन परशुराम जी का इंटरव्यू लेने के लिए आई थी तब पूरी जगह वाहन और लोगों की भीड़ से भरी हुई थी। परंतु अब वही जगह बिल्कुल सुनसान कोई वाहन भी नहीं, ना कोई आदमी | एकदम सुनसान जगह को देखकर यामिनी के मन में एक ड़र समा गया।

"क्या हो गया इस संस्था को....?”

फिक्र करती, सोचते हुए अंदर गई।

एक गुलाबी रंग के यूनिफॉर्म में एक लंबा सिक्योरिटी गार्ड दिखा। भारी सा चेहरा बड़ी-बड़ी मूछें जल्दी से दौड़कर आया होगा क्योंकि उसकी सांस फूल रही थी।

"माता जी आप कौन हो...?"

"मेरा नाम यामिनी है... परशुराम जी सर से मिलने आई हूँ।"

"वे यहां पर नहीं है अम्मा..... वे विदेश गए हुए हैं। उनके वापस आने में छ: महीने लग सकते हैं....!"

"ठीक है, अंदर और कौन हैं ?"

"कोई भी नहीं है...." सिक्योरिटी वाले के बोलते समय ही बिल्डिंग के अंदर से आवाज आई।

किसी के जोर से छिंकने की आवाज आई।

यामिनी गुस्से से सिक्योरिटी गार्ड की तरफ देखा।" अंदर कोई भी नहीं है बोला....?"

"अभी भी बोल रहा हूं.... अंदर कोई नहीं है। तुम पहले इस जगह को खाली करो अम्मा...."

"आप बहुत डर रहे हो ऐसा सोचती हूं। आप के मालिक परशुराम जी मुझे अच्छी तरह जानते हैं। वे मुझे देखकर बड़े खुश होते हैं... मुझे उनसे एक जरूरी विषय पर बात करनी है।"

सिक्योरिटी की आवाज तेज हो गई।

"क्यों अम्मा समस्या खड़ी करने के लिए आई हो क्या ?"

“मैं समस्या नहीं खड़ी कर रही हूं....

“आप ही..." यामिनी कह ही रही थी उसी समय सिक्योरिटी के कमर पर जो वॉकी-टॉकी लाल रंग का था उसमें से रिंगटोन बाहर आया। उसे बड़ी श्रद्धा से उठाकर कानों में लगाया और थोड़ी दूर जाकर बात करने लगा।

"साहब...!"

"नरसिम्मन ! वहां क्या समस्या है...."

"मुझे बिना बताए एक लड़की अंदर आ गई..... आपसे मिलकर बात करना चाहती है।"

"कौन है वह लड़की ?"

"नाम यामिनी बता रही है।"

"बेवकूफ ! उसके अंदर आने तक तुम क्या कर रहे थे....?"

"साहब ! पता नहीं कैसे एक मिनट में धोखा खा गया।"

"ठीक है ! उस लड़की को नीचे मेरे कमरे में बैठा दो। क्या बात है पूछ कर उसे तुरंत बाहर भेज दूंगा। अब तो तुम होशियारी से रहो!"

"ठीक है सर...!” सिर हिला कर सिक्योरिटी वाले ने वॉकी-टॉकी को अपने कमर में खोसा और यामिनी की तरफ आया।

"तुम मेरे पीछे-पीछे आओ..." कहकर सिक्योरिटी वाला पास में जो कमरा था उसे खोल कर अंदर जा रहा था उसके पीछे-पीछे यामिनी गई।

"थोड़ा बड़ा कमरा। बीच में अर्ध गोलाकार ढंग से सोफा रखा था। काले रंग का ग्रेनाइट से बना एक टीपा चमचमा रहा था जो उसे दिखा।

"बैठ जा अम्मा...! साहब अभी आ जाएंगे" कहकर सिक्योरिटी वाला बाहर चला गया। यामिनी चारों तरफ देखते हुए सोफे पर आराम से पीठ लगा कर बैठ गई।

एक मिनट के शांति के बाद चलने की आवाज सुनकर यामिनी सिर को ऊंचा करके देखा। परशुराम आ रहे थे। पैजामा और झीब्बा पहना कंधे पर गरम शॉल डाला हुआ था। पिछली बार देखा उससे भी ज्यादा सिर के बाल घने थे। आंखों पर रिमलेंस चश्मा लगाया हुआ था। माथे पर सुबह लगाई हुई भभूति कुछ फैल गई थी।

यामिनी खड़ी होकर हाथ जोड़कर "नमस्कार सर।"

परशुराम जी बड़े खुश हुए। "अरे तुम हो क्या...? तुम किसी पत्रिका में काम करती हो ना...?"

"हां सर।"

"कौन सी पत्रिका है वह ?"

"नीलकमल।"

"बोलो अम्मा.... क्या बात है ?" पूछते हुए सामने के सोफे पर पसरे।

यामिनी संकोच के साथ बात करना शुरू की। "कुछ नहीं सर...! पिछले साल मैं आपसे साक्षात्कार लेने आई थी उस समय 'अपनापन' संस्था के लिए बुजुर्ग और गरीबों की संस्था के लिए पैसों की जरूरत पड़ रही है मैंने आपसे कहा था। आपने भी बिना किसी संकोच के हर महीना-महीना बीस हजार रुपये भेजने की बात बोले थे । वैसे ही आप भेजते रहे। परंतु पिछले तीन महीने से पैसे नहीं आए मैंने सुना। यह सच है क्या सर.....?"

परशुराम जी एक दीर्घ श्वास छोड़ा।

"बिल्कुल सही बात है अम्मा....! इस समय ट्रस्ट की कुछ समस्या है। इसके संबंध में ट्रस्ट के तीन जन जो डायरेक्टर थे उनमें से दो लोगों ने  रिजाइन कर दिया। उसमें एक जने ने कोर्ट में केस कर दिया। जिसके कारण बैंक डिपॉजिट्स सब कुछ कोर्ट ने बंद करवा दिया... एक ही शब्द में कहूं तो ट्रस्ट अभी काम नहीं कर रहा है।"

"देखने से ही पता चल रहा है सर.... मैं पिछली बार जब आपको देखने आई थी इस जगह बहुत ही लाइव भीड़ लगी हुई थी। अब मन को दुख हो रहा है।"

"कोर्ट का कुछ समय का आदेश है अगले महीने दस तारीख को रद्द हो जाएगा। उसके बाद यह ट्रस्ट पुराने स्थिति में आ जाएगा। कोर्ट में केस होने पर भी रुपयों की कोई समस्या नहीं होगी।"

"सॉरी.... सॉरी... स्थिति को ना मालूम होने के कारण मैं आ गई।" उसके बोलते समय ही यामिनी के हैंडबैग से सेलफोन की रिंगटोन बजने लगी । बाहर निकाल कर देखा।

नकुल।

यामिनी संकोच के साथ परशुराम जी को देखा। “एक्सक्यूज मी... सर"

"कोई बात नहीं है बात करो...."

यामिनी संकोच से साथ सेलफोन को बाएं कान पर लगाया।

"बोलो... नकुल... तुम क्या बोल रहे हो ठीक से सुनाई नहीं दे रहा... कोई टावर प्रॉब्लम है लग रहा है.... अभी मैं किसी मीटिंग में हूं। दस मिनट के बाद बात करूं?" यामिनी बोल रही थी तब ही बीच में परशुराम जी बोले।

"यहां बैठ कर बात करो तो ठीक से टावर नहीं लेगा। थोड़ा उठ कर जाओ उस खिड़की के पास जाकर बात करो। फिर वॉइस क्लियर सुनाई देगा।"

यामिनी ने सिर हिलाकर सोफा पर से उठकर पास के खिड़की के सामने जाकर खड़ी हुई।

"क्या है नकुल ! मदुरैय रोड पहुंच गए।"

"हां... पहुंच गया। मेरे फ्रेंड गुरु को देख लिया। यहां आने के बाद ही उसने एक बम उठा कर फेंका।"

"बम... कौन सा बम ?"

"नौकरी चेन्नई में नहीं है... नॉर्थ इंडिया में पोस्टिंग होगी। पुणे, मुंबई, कोल्हापुर ऐसी कोई जगह होगी।"

"तो.... उससे क्या ?"

"उससे क्या...? तुम्हें एक दिन देखे बिना मैं रह सकता हूं? मैं नहीं रह सकता.... अभी हॉट में सीटी सी बज रही है।"

"नकुल !" यामिनी आवाज को नीची करके बोली "अपनी बकवास को थोड़ा बंद करोगे ?"

"क्या ! मैं बकवास कर रहा हूं?"

"फिर क्या.... तुम और मैं इसी चेन्नई में रोजाना तीन बार एक दूसरे को देखेंगे तो ही तुम्हें नौकरी मिलेगी ऐसे किसी ने बोला क्या ?"

"नहीं... नहीं..."

"फिर क्या रवाना हो....! तुम्हें उत्तर प्रदेश में भी काम मिले तो ठीक, युगांडा में नौकरी मिले तो ठीक, मुझे तो खुशी है।"

"क्या ऐसे कह रही हो ?"

"अपना प्रेम शादी में जाकर समाप्त होना है कि नहीं ?"

"होना है।"

"तो फिर.... कहीं भी नौकरी मिले तो जाओ ! प्रेम बोले तो एक विदाई होनी चाहिए। तभी उसकी उम्र ज्यादा होती है। तुम्हें एक प्रेम का मतलब बताऊं क्या?"

"क्या?"

"प्रेम का मतलब तितली जैसे। उसे हल्के से पकड़ो तो उड़ जाएगा। वह उड जाएगी ऐसा सोच जोर से दबा कर पकड़ो तो वह मर जाएगी। इसलिए....."

"बस करो यामिनी....! मुझे सहारा मरुस्थल में ऊंट चराने का काम मिले तो मैं चला जाऊंगा। ठीक है? मेरा फ्रेंड गुरु बुला रहा है। मैं फिर बात करता हूं।"

यामिनी मोबाइल को बंद करके पर्स के अंदर रखकर मुड़ती है तो अचानक उसकी निगाहें खिड़की के बाहर चली जाती है, तो बिल्डिंग के कंपाउंड के अंदर एक बड़े पेड़ के नीचे कोई खड़ा दिखाई दिया। वेन में से उतरने वाला एक आदमी अपने बिखरे बालों को बाएं हाथ से फेरता हुआ किसी को देखकर कुछ इशारे से कह रहा था उसे यामिनी ने देखा। यामिनी सचेत हो गई।

यामिनी खिड़की के नजदीक जाकर उसने जहां इशारा किया था उधर देखा।

उसको दिखाई देने के पहले ही एक सामान स्लो मोशन में जा रहा जैसे महसूस हुआ।

उस बिल्डिंग के कंपाउंड में ही, बंधा हुआ चद्दर में लपेटा हुआ एक मनुष्य का शरीर दिखाई दिया। उस पर खून के दाग थे। दो लोग उसे उठाकर वेन की तरफ बढ़ रहे थे।

यामिनी पसीने से नहा गई। उसे सांस लेने में दिक्कत होने लगी। उसके पूरे शरीर में खून बड़ी तेजी से दौड़ने लगा। 'हे भगवान! यहां क्या हो रहा है?' इसके देखते समय ही हवा के कारण वह खून से सना कपड़ा हवा में उड़ा तो एक लड़की के पायजेब पहना हुआ पैर कुछ देर दिखाई दे कर फिर छुप गया। पैरों में खून की लकीरें। फिर से वह पसीने से नहा गई। डर के मारे यामिनी सोफा पर बैठी तो परशुराम को धीरे देखने लगी।

वे अपने मोबाइल के बटन को दबा-दबा कर कुछ पैनी नजर से देख रहे थे। उनके चेगुलाबी पर कोई भाव नहीं था।

'मैंने जो देखा उसे इनको बोलना चाहिए कि नहीं ?'

'नहीं!' उसके अंदर का मन नहीं बोला। 'परशुराम ठीक नहीं है। उनके पास कोई रहस्य है। इस बिल्डिंग में इनके जानकारी के बिना कुछ भी होना संभव नहीं !'

'कुछ भी नहीं देखा जैसे सामान्य रह जाती हूं। बाहर जाकर और क्या करना है उसके बारे में सोचेंगे।'

"क्यों मां.... टावर मिल गया...

"बात कर ली ?" परशुराम जी आवाज को सुनकर उसके चेगुलाबी पर पानी के छींटे पड़े जैसे ध्यान में से अलग हुई यामिनी।

"बा... बा... बात कर ली सर.... मेरी एक फ्रेंड की तबीयत खराब होकर हॉस्पिटल में एडमिट हुई है। मुझे तुरंत रवाना होना है सर....!"

"तुम रवाना हो बेटी ! अगले महीने से उस 'अपनापन' संस्था में इस ट्रस्ट से रुपए ठीक से पहुंच जाएंगे।"

"थैंक यू सर !"

"तुम्हें इतना पसीना क्यों आ रहा है ?"

"इस समर में..…हमेशा ही ऐसे ही पसीना आता है सर" यामिनी कहते हुए कमरे से बाहर आई। अब पूरे बिल्डिंग के ब्लॉक में नजर दौड़ाई। उसका ह्रदय रेस के घोड़े जैसे बदल कर धड़क रहा था। सीढ़ियों से तेज-तेज उतरी। वह वेन कहीं दिखाई दे रहा है क्या उसने अपने निगाहों को दौड़ाया।

दिखाई नहीं दिया।

उसकी स्कूटी जहां खड़ी थी उसके पास गई यामिनी दंग रह गई।

'कहां?'

'इसी जगह पर ही तो खड़ा किया था।'

पीछे की तरफ से आवाज आई।

"क्या ढूंढ रही हो ?"

यमिनी हड़बड़ा कर मुड़कर देखा। परशुराम अपने हाथों को सामने बांधे हुए खड़े थे।

यामिनी सूखे हुए मुंह से बोली "मेरा स्कूटर मैंने यहां रखा था सर। वह नहीं मिल रहा....!"

"वह स्कूटी है क्या देखो !" परशुराम ने जहां इशारा किया वहां उसने मुड़कर देखा।

उसकी हल्के गुलाबी रंग की स्कूटी पार्ट-पार्ट अलग करके दीवार के कोने में पटक रखा था।

यामिनी का ह्रदय है तड़पा कुछ क्षण स्तंभित रह गई फिर अपने स्वयं के स्थिति में आई। दिमाग के जरूरी भाग में एक छोटा सा अलार्म बजा।

'यह जगह ठीक नहीं; परशुराम कोई गलत काम करता है !' यामिनी पसीने से तरबतर हुई। यामिनी सोच रही थी तभी परशुराम बड़ा भोला सा मुंह बनाकर पास में आकर खड़े हुए।

"क्या बात है मां ! यह स्कूटी तुम्हारी ही है ना?

"हां... हां.. हां जी...!"

"फिर क्यों संकोच...? गाड़ी को लेकर जाओ। तुम एक प्रेस रिपोर्टर हो। तुम्हें बहुत काम होगा।"

यामिनी ने गले में थूंक को मुश्किल से निगला।

"स.... स... सर! आप ठीक नहीं हो.... आपकी बातें सही नहीं है, मेरी स्कूटी के सभी पार्टों को खोल कर पटक दिया है, 'गाड़ी को लेकर जाओ' बोले तो क्या मतलब?"

"तुम इस जगह से नहीं जाओगी यही अर्थ है" यामिनी के चेहरे पर दहशत फैल गई। उसका हृदय एक युद्ध स्थल में बदला उसने अपनी चारों तरफ देखा। परशुराम के होठों पर एक कपट मुस्कान दिखाई दी।

"कोई नहीं है सिक्योरिटी ने जब बोला तो उस पर विश्वास करके तुम्हें बाहर जाना था। तुम नहीं गई। उसी समय देख कर अंदर से मुझे खांसी आ गई। मैं जो खांसा उसे तुम्हें नहीं सुनना था। तुम्हारे सुनने से मेरी बाहर आकर तुमसे बात करने की नौबत पैदा हुई। ठीक, कुछ बात करके बाहर भेज देंगे सोचा। बात की। ऐसे हम बात कर ही रहे थे तभी बाहर से मोबाइल की घंटी नहीं बजनी थी। फोन पर बात करते समय सिग्नल ठीक से नहीं मिला कहकर उठ कर खिड़की के पास बाहर जो हुआ उसे तुम्हें देखना नहीं चाहिए था। देखते हुए कोई एक गलती करें तो मुझे पसंद नहीं। तुम जब आई तब से कितनी गलतियां की है! क्या वह मुझे पसंद आएगा बोलों तो...!"

परशुराम के उतार-चढ़ाव से धीरे से बात करते, यामिनी का ह्रदय एक भारी लोहे के गोले में बदल गया। उसके पेट में कुछ-कुछ होने लगा।

इस संकट के समय डरना नहीं चाहिए। निडर है ऐसा दिखाना चाहिए ऐसा नकुल हमेशा बोलता है वह अभी यामिनी के दिमाग में एक आग की चिंगारी जैसे चमकी। वह दो कदम पीछे हुई। थोड़ी देर पहले तक परशुराम को जो सम्मान दे रही थी उसे पैरों के नीचे डाल कर दबाकर अपने आवाज़ को ऊंची की।

"यह देखो ! मैं यहां से बाहर नहीं गई तो तुम्हारे लिए आफत है। क्योंकि... मैं यहां आकर तुमसे बात करने वाली बात 'अपनापन' के संस्था प्रधान मंगई अर्शी को पता है।"

परशुराम का चेहरा थोड़ा सा क्षणिक सफेद पड़ा। उनके बाएं हाथ के हथेली में रखा हुआ मोबाइल का रिंगटोन बजा। उठाकर देखा।

दूसरी तरफ से सिक्योरिटी नरसिम्मन उसकी आवाज में कंपन "साहब!"

"क्या ?"

*****