सबिता, एक लंबा दिन, साइट पर बिता कर घर लौटी थी। सुबह से ही देव ने एक के बाद एक मैनेजमेंट के लिए ट्रेनिंग रखी थी। ये सब होते होते काफी देर हो गई थी और अब सब थकने लगे थे। ऐसा लगभग दो हफ्तों से चल रहा था। देव सिंघम तो अभी भी साइट पर ही था नाइट शिफ्ट की देखरेख के लिए, ऐसा वो हमेशा ज्यादा तर हो करता था जबसे उसने काम शुरू किया था। देव या तो अपने आपको मार रहा था या अपने आस पास वालों को। इतना काम आखिर कौन करता है।
सबिता को घर पहुंच के अब ज़ोर की भूख लगी थी, वोह खाना खाने जा ही रही थी की उसे सामने अपनी बुआ नज़र आई। नीलांबरी डाइनिंग टेबल के पास ही बड़े से लिविंग रूम में सोफे पर बैठी मैगजीन पढ़ रही थी।
ये उनकी तीस साल पुरानी आदत थी, उन्हे अपने कमरे से ज्यादा लिविंग रूम में बैठना पसंद था। साबित जानती थी कुछ तो चल रहा है उनके दिमाग में।
"सबी," नीलांबरी ने प्यार से पुकारा।
"तुम बहुत थकी हुई लग रही हो, तुम्हारी हालत कुछ ठीक नही लग रही मुझे।" जैसे ही नीलांबरी ने ये कहा सबिता अपने आप को और थका हुआ महसूस करने लगी। उसे लगने लगा की अब उसे उनसे आगे बात करनी पड़ेगी उनके प्रवचन सुनने पड़ेंगे की प्रजापति लड़कियों को कायदे से रहना चाहिए बन सवर कर रहना चाहिए, बला! बला!
"तुम्हे मुझसे क्या चाहिए, नीला? में बहुत थकी हुई भी हूं और जल्दी में भी।" सबिता ने जवाब दिया।
जब से उसने प्रजापति के बिज़नेस की भागदौड़ संभाली थी, तब भी से नीलंबरी न उसे कहा था की उन्हे "नीला" बुलाई ना की "बुआ" ताकि वो बूढ़ा महसूस न करे।
सबिता को उनकी कोई परवाह नहीं थी ना उनकी किसी भी बात से उसे फर्क पड़ता था इसलिए उसने चुपचाप उनकी बात मान कर उन्हे "नीला" बुलाना शुरू कर दिया था।
नीलांबरी को साफ लग रहा था की सबिता उनसे बात करने में बिलकुल भी इच्छुक नहीं है और वोह उन्हे इग्नोर कर के वहां से जाना चाहती है ये समझते ही उनकी भौंहे सिकुड़ गई लेकिन उन्होंने जल्दी वापिस अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी।
"मैने सुना है की अभय सिंघम अपनी पत्नी के साथ दो दिनों में इंडिया वापिस आ रहा है। मुझे जानना है की क्या तुम्हे इस बारे में कुछ पता है।"
सबिता आश्चरित सी भौंहे सिकोड़ नीला को घूरने लगी जब उसने उन्हे अनिका को अभय की पत्नी के रूप में कहते सुना जबकि अनिका पहले इस घर की बेटी है बाद में 'अभय की पत्नी'।
कुछ महीने पहले, जब नीलांबरी सिंघम मैंशन गई थी, तब नीलांबरी अनिका के बारे में बात कर कर के नही थक रही थी, आखिर अनिका उनकी प्यारी सबसे चहीती भतीजी थी। शुरू से ही उन्होंने अनिका पर खूब प्यार लुटाया था। और आज उसे अनिका ना कह कर अभय की पत्नी के रूप में संबोधित कर रहीं थी। वैसे सबिता ये जानती थी की उसकी बुआ और अनिका के बीच में कोई बात या बहस हुई थी जिसमे अनिका उस बहस में नीलांबरी पर हावी हो गई थी। सबिता ने कभी जानने की कोशिश नही की थी की उनके बीच क्या बात हुई थी और ना ही उसे फर्क पड़ता था जानने में।
"नही। मैंने ऐसा कुछ नही सुना।" सबिता ने जवाब दिया।
"मुझे हैरानी हो रही है ये सुन कर की अभी तक तुम्हे इसकी खबर क्यों नही लगी।" नीलांबरी ने अपनी थोडी को थोड़ा ऊपर उठाते हुए कहा।
"मैने अभय सिंघम से वादा किया था की उसकी बीवी और उसकी फैमिली पर नज़र नही रख वाऊंगी। जैसा की उसके पिता ने किया था मैं अपना वादा नही तोड़ूंगी।"
सबिता ने अपनी भौंहे ऊपर उच्चका के कहा, "तो आप को कैस पता चला की अभय सिंघम और अनिका दो दिनों में वापिस आ रहें हैं?"
"मुझे इसलिए पता चला क्योंकि देव ने सिंघम मंदिर में अपने भाई और उसकी पत्नी के लिए विशेष प्रबंध कराया है।" नीलांबरी ने जवाब दिया।
"तो आप देव सिंघम पर नज़रे रखे हुए हो?" सबिता न मुंह सिकोड़ कर कहा।
"नही मुझे ऐसा करने की जरूरत ही नही पड़ी। जब किसी इंसान की अंदर की खबरे मैगज़ीन पर ही पढ़ने को मिल जाए तो नज़र रख कर क्या फायदा।"
सबिता को बिलकुल भी विश्वास नहीं हो रहा था की देव सिंघम ने जो सिंघम मंदिर में प्रबंध कराए थे वो मैगजीन में छपा होगा। सबिता वैसे भी बहुत थकी हुई थी तो उसे ज्यादा रुचि नहीं हो रही थी जानने में।
"दिस बॉय," नीलांबरी ने देव सिंघम की मैगज़ीन में छपी तस्वीर की तरफ उंगली उठाते हुए कहा, "वैसे तो ये अपने पिता जैसा ज्यादा नही दिखता है लेकिन, कुछ तो बात है इसमें कुछ जादू है इसमें जो ये विजय जैसे ही लड़कियों को अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। सिर्फ लंदन ही नही बल्कि सिंघम, सेनानी और प्रजापति हर जगह लड़कियां विजय सिंघम की दीवानी थी आखिर उसका आकर्षण ही ऐसा था। लेकिन विजय ने कभी भी मुझे धोखे में नही रखा था।"
सबिता को बात करने में बिलकुल भी रुचि नहीं हो रही थी। उसे ये सब बातें बेतुकी लग रही थी। आज पहली बार नही उसकी बुआ इस बारे में बात कर रही थी बल्कि तीस साल पहले जब विजय सिंघम ने उसकी बुआ नीलांबरी से अपनी सगाई तोड़ी थी उसके बाद से ही उसकी बुआ हमेशा ही विजय की बातें सब से करती रहती थी। नीलांबरी पुरानी यादों को याद करते हुए अपने ही खयालों में खो गई। सबिता ने उन पर ज्यादा ध्यान न देते हुए डाइनिंग टेबल की तरफ बड़ने लगी। सबिता को पता था की उसकी बुआ नीलांबरी कैसी हो जाती है जब वो अपने बीते दिनों में खो जाती है। सबिता खाना खाने डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठी और प्रजापति एस्टेट के मैनेजर को बुलवाया।
हमेशा की तरह आज भी वोह इतने बड़े डाइनिंग टेबल पर अकेली बैठी थी। उसके दादाजी सिर्फ उसके साथ नाश्ते के वक्त ही बैठते थे और नीलम्बरी सिर्फ अपने कमरे में ही खाना खाती थी। सबिता को इन सब की आदत पड़ चुकी थी। बचपन में भी सबिता इस बड़े से डाइनिंग टेबल पर ही खाना खाती थी ताकि वो ये महसूस कर सके की वोह भी प्रजापति परिवार का हिस्सा है।
"मैडम," ये संजय था जो टेबल से थोड़ी दूर खड़ा था और अपनी मैडम सबिता प्रजापति को आसपास की घटनाओं के बारे में अवगत कराने आया था।
"दो और टीचर्स छोड़ कर जा चुके हैं, मैडम," उसने कहा।
"वोह अपने साथ अपना समान लेकर नही भागे। वोह ये जताना चाहते हैं की वोह छुट्टी पर गए हैं।"
"कितने दिन हो गए हैं उन्हें गए?" सबिता ने पूछा।
"सात दिन। शायद कल सुबह आने की खबर है उनकी।"
"हम्मम!"
"हमने दूसरा विज्ञापन डाल दिया है और शिक्षक के लिए।" संजय ने जल्दी से कहा।
"क्या विज्ञापन विदेश में भी पोस्ट किया है?" सबिता ने पूछा।
"जी मैडम।"
"उनको दो गुना ज्यादा सैलरी ऑफर करो जितना हम अभी दे रहे थे।"
"पर मैडम सैलरी तो हम पहले से ही ज्यादा दे रहे थे। अगर हम और बढ़ा................." संजय बोलते बोलते रुक गया जब उसने देखा सबिता उसे पलट कर देखने लगी है।
"में इश्तिहार में डबल सैलरी करवा देता हूं, मैडम।"
सबिता ने उस सर्वेंट को रुकने और यहां से जाने का इशारा किया जो उसकी प्लेट में खाना डाल रही थी। वोह सर्वेंट चुपचाप चली गई थी। सबिता ने महसूस किया की अब वो जो खाती है उससे उसे ज्यादा फर्क नही पड़ता लेकिन जब वो छोटी थी तो हमेशा खाने के वक्त पूछती थी आज क्या क्या बना है खाने में। उसे बचपन से खाना बनाना और खाना पसंद था लेकिन अब की बात और थी। अब खाना बस उसके लिए अपने आपको जिंदा रखने की चीज़ थी।
"क्या शिपिंग कंपनी अपने ऑफर के साथ वापिस आईं?" सबिता ने खाना खाते हुए पूछा।
"अभी तक नही, मैडम। मैने आज ही सुबह उन्हे कॉल किया था। उनका कहना है की वोह अभी सोच रहें हैं उन्हें यहां आने में अभी भी खतरा लग रहा है।"
"पर हमने तो इन तीनो प्रांतों के बाहर एक जगह पर मिलने के लिए पहले ही बातचीत कर ली थी।"
"मैने भी उन्हे यही कहा, मैडम। पर उन्हे लगता है ये अभी भी रिस्की है क्योंकि सेनानी बीच में दखल देने की कोशिश करेंगे और हमारे समान का नुकसान भी कर सकते हैं।"
एक महत्वपूर्ण आय प्रजापति प्राप्त करते थे कुछ विशेष सामान बना कर और फिर उन्हें ऑनलाइन बेच कर। एक शिपमेंट कंपनी आती थी है हफ्ते समान लेने ताकि फिर उसे पूरे वर्ल्ड में निर्यात कर सके। सबिता ने ये बिजनेस मॉडल पांच साल पहले शुरू किया था। और इस से अच्छा खासा कमाई होती थी प्रजापति की। पहले तो सिंघम उनके बनाए गए समान को नष्ट कर देते थे लेकिन जब बाद में सिंघम और प्रजापति की बीच अभय और अनिका की शादी का समझौता हो गया तो उन्होंने ऐसा करना बंद कर दिया। उसके बाद ये भागदौड़ सेनानी ने संभाल ली अब वो नष्ट करने लगे थे प्रजापति के बनाए गए समान को।
"ठीक है में खुद ही कल बात करती हूं उस शिपमेंट कंपनी के ओनर से।"
सबिता अब तक खाना खा चुकी थी। उसने कुर्सी खींची और उठ खड़ी हुई।
"अब तुम जा सकते हो," उसने संजय को आदेश दिया।
अपना सिर हिला के संजय वहां से चला गया। सबिता कुछ पल उसे देखती रही। वोह याद करने लगी इन छह सालों में उसके और संजय के बीच कितना कुछ बदल गया था। छह साल पहले तक वो संजय को एक पिता के रूप में देखती थी, जो कभी कभी उसे और अपने बेटे को साथ में लेकर घूमने ले जाता था प्रजापति प्रांत के अंदर ही। ध्रुव संजय का ही बेटा था। बचपन में ध्रुव उसका बहुत अच्छा दोस्त था जिसके साथ वोह खेला करती थी। पर जब से वो बड़ी हुई थी और प्रजापति की भागदौड़ संभाली थी तब से उसने अपने आसपास के लोगों के दायरे ही बदल दिए थे। उसकी इज्जत करने के साथ ही वो चाहती थी सब उससे डरे भी। तभी उसके दुश्मन जो प्रजापति पर हावी हो गए थे वो पीछे हटेंगे। लेकिन कभी कभी उसे लगता था इन सब को संभालते संभालते उसने अपने आप को भी बदल दिया है, अब उसे अपने अंदर किसी के लिए भी कोई भावनाएं महसूस नही होती। अब उसने अपने दिल को पत्थर का बना लिया था जिसमे कोई जज़्बात नही।
खाना खाने के बाद जब वो वापिस अपने कमरे की तरफ बढ़ी तो उसने देखा कि लिविंग रूम में अब कोई नही है जहां थोड़ी देर पहले उसकी बुआ नीलांबरी बैठी थी। उसकी नज़र उस मैगज़ीन पर पड़ी जो थोड़ी देर पहले उसकी बुआ पढ़ रही थी। उसे पता ही न चला की कब और क्यों वोह उस मैगज़ीन को उठा कर अपने कमरे में ले आई थी। कमरे में पहुंच कर सबसे पहले उसने शावर🚿 लिया और फिर बिस्तर पर लेट गई। थकान से अब उसके शरीर में दर्द होने लगा था। वोह ज्यादा तर एक ऑडियो बुक सुनती थी सोने से पहले। जब उसे पता चला था की ऑडियो बुक भी कुछ होता है तो वोह अपने आप को रोक नहीं पाई थी रोज़ उसे सुनने से। बल्कि जब वो छोटी थी तब उसे कपड़े खरीदने के लिए जो पैसे मिलते थे उसमे से बचा कर वोह अक्सर ऑडियो बुक्स खरीदती थी। वोह बुक्स उसे अलग ही दुनिया में ले जाती थी। इन्ही बुक्स की वजह से तो वो साइंस, हिस्ट्री, जियोग्राफी और कई दूसरे विषयों के बार में जान पाई थी उन्हे सिख पाई थी क्योंकि अपनी ना पढ़ने और लिखने की कमज़ोरी या कहो बीमारी की वजह से तो वो पढ़ नही पाई थी। उसने कई फाइनेंशियल और बिज़नेस कोर्सेज को सुन कर ही सीखा था। कई टॉप बिजनेस मैन और वूमेन के स्पीचेज भी सुने थे जो उसे मोटिवेट किए थे। उच्च शिक्षा प्राप्त किए लोगों जैसे की संजय, ध्रुव और कई दूसरे लोगों की मदद से वोह आसानी से प्रजापति एस्टेट चला पा रही थी।
उसने एक उबासी ली। उसे पता ही नही चला की सुबह के चार बज गए थे और उसे अगले दिन जल्दी उठना था। उसे पता था की अब अगर जैसे ही वो सोएगी तो गहरी नींद में चली जायेगी और फिर जल्दी नही उठ पाएगी। उसकी नज़र उस मैगज़ीन पर पड़ी जो वोह रात को लिविंग रूम से लाई थी। उसने उस मैगज़ीन को कुछ देर घूर कर देखा। उसे पता था की अगर वो उस मैगज़ीन को उठाएगी और पढ़ेगी तो उसे कुछ समझ नही आयेगा। और अगर कुछ कुछ समझ आ भी गया तो भी उसे कोई इंटरेस्ट नहीं था वो बकवास गॉसिप पढ़ने में, उसकी नज़र तो बार बार उस मैगज़ीन के कवर फोटो पर जा रही थी जिसमे देव सिंघम की तस्वीर थी। हमेशा की तरह वो अच्छे से कपड़े पहने हुए था। उसने थ्री पीस सूट पहना हुआ था। उसने अपना चेहरा कैमरे की तरह नही कर रखा था बल्कि उसके बगल में खड़े दूसरे व्यक्ति से बात करते हुए उसी तरफ कर रखा था। और साथ ही उसका एक हाथ एक लड़की की कमर पर रखा हुआ था उसकी कमर को चारो तरफ से पकड़ने के लिए। वोह लड़की जो उसी की बगल में खड़ी थी जो देव को पकड़े हुए कैमरे की तरफ सीधा देख रही थी अपने चेहरे पर पाउट बनाते हुए। सबिता कुछ देर उस मैगज़ीन पर बनी उस लड़की को घूरती रही। वोह लड़की बहुत सुंदर थी, आकर्षक तरीके से जूड़ा बना रखा था और बहुत ही महंगे कपड़े और जूते पहन रखे थे। उस लड़की ने अपने साफ सुथरे सुंदर हाथ देव के कंधे पर रखा हुआ था। उसकी उंगली के नाखूनों में लाल रंग की नेल पेंट 💅 लगा रखी थी जो उसकी लिपस्टिक💄 और जूतों के साथ परफेक्ट मैच कर रही थी। सबिता की नज़र सहसा ही अपनी उंगलियों पर चली गई, उसने उंगलियों के नाखूनों पर कोई नेल पेंट नही लगा रखा था और तो और नाखून टेड़े मेड़े कटे हुए थे। वोह अपनी उंगलियों को कुछ देर घूरती रही। और फिर झटके से उसने उस मैगज़ीन को साइड टेबल पर रखा और लाइट ऑफ करदी।
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