मुझे कौन बचाएगा Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मुझे कौन बचाएगा

वंदना अपने माता पिता संजना और विजय की इकलौती संतान थी। वह बहुत ही मेहनती और महत्त्वाकांक्षी लड़की थी। बड़े-बड़े सपने लेकर अपने छोटे से घर में रहती थी। अपने माता-पिता को कैसे ख़ुशियाँ दूं, उसकी ज़िंदगी का ये ही बहुत बड़ा सपना था। वंदना की पढ़ाई का अंतिम वर्ष चल रहा था।


देर रात तक उसे पढ़ते देख उसकी माँ ने कहा, "अरे वंदना बेटा अब बस भी करो, सो जाओ, बीमार हो जाओगी बाक़ी की पढ़ाई कल कर लेना।"


"मुझे बहुत आगे जाना है सफ़र बहुत लंबा और मुश्किल भी है जो समय पर पूरा करना है और फिर मुझे अपनी माँ और पापा को बहुत कुछ कर दिखाना है जब मैं बड़ी अफसर बन जाऊंगी तब सबसे ज़्यादा कौन ख़ुश होगा बोलो माँ?" वंदना ने कहा।


"हाँ बच्चों की सफ़लता पर सबसे ज़्यादा तो मां-बाप ही ख़ुश होते हैं। हम भी बहुत ख़ुश होंगे, वह दिन हमारी ज़िंदगी का सबसे बड़ा और गर्व करने का दिन होगा बेटा।"


फ़िर वंदना की परीक्षा शुरु हो गई, उस के सारे पेपर बहुत अच्छे हो रहे थे और आज उसका अंतिम पेपर था। सुबह से ही काफ़ी जोश में तैयार होकर वंदना पेपर देने गई। बहुत ख़ुशी-ख़ुशी पेपर देकर वह बाहर आई किंतु घर न पहुँच पाई। घर पर माता-पिता राह देखते रहे, बहुत देर राह देखने के बाद वह घबरा गए और उन्होंने खोज बीन शुरु कर दी पर वंदना का पता ना चल सका। पुलिस में शिकायत भी दर्ज़ करवा दी, सुबह से रात हो गई। संजना और विजय का रो-रो कर बुरा हाल हो रहा था। पड़ोसी कानाफूसी कर रहे थे, लगता है आख़िरी पेपर देकर किसी लड़के के साथ भाग गई होगी। जितने मुंह उतनी बातें हो रही थीं। सामने सांत्वना देने वाले लोग पीठ पीछे क्या-क्या बातें करते हैं, ऐसे वक़्त पर ही पता चलता है।


रात काफ़ी बीत गई, संजना और विजय अपने कमरे में बैठे किसी अनहोनी के अंजाम से डर रहे थे। तभी दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी, तुरंत ही संजना ने दरवाज़ा खोला। सामने खड़ी वंदना की हालत देखकर संजना की चीख निकल पड़ी, "क्या हुआ बेटा?"


वंदना अपनी माँ से लिपट कर बेहोश हो गई, विजय ने तुरंत ही वंदना को उठा कर अस्पताल ले जाना ही ठीक समझा। अस्पताल में डॉक्टर ने वंदना का इलाज़ तुरंत ही शुरु कर दिया। उसके शरीर पर मार के निशान थे, ब्लड प्रेशर काफ़ी कम हो चुका था। विजय ने डॉक्टर से पूछा, "क्या हुआ है हमारी बेटी को? वह ठीक तो हो जाएगी ना?"


डॉक्टर ने कहा, "आपकी बेटी का किसी के साथ बुरी तरह से झगड़ा हुआ है, मार पीट हुई है, किंतु डरने की कोई बात नहीं। आपकी बेटी ख़तरे से बाहर है, सुबह तक उसे होश भी आ जाएगा। लगता है किसी ने उसके साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की है।"


पूरी रात बेचैनी में निकालने के बाद सुबह वंदना को होश आया। तब अपनी माँ से लिपट कर वह रोने लगी और कहा, "माँ आपकी बहादुर बेटी ने आज अपने आपको एक हैवान से बचा लिया।"
वंदना की बात पूरी भी ना हो पाई कि पुलिस वहाँ आ गई और वंदना से कहा, "तुम्हें हमारे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा।"


"क्या हुआ साहब, आप मेरी बेटी को इस तरह क्यों ले जा रहे हैं?” विजय ने सवाल किया।


"कल एक लड़का बेहोशी की हालत में मिला है, वह बचेगा या नहीं, वक़्त बताएगा। लेकिन उसे आपकी बेटी ने मारा है, मशहूर उद्योगपति का बेटा है वह, आपकी बेटी ने पंगा ले लिया है। अब आप लोगों का भगवान ही मालिक है।"


जाते-जाते वंदना ने अपने पापा से कहा, "पापा आज मैंने एक बड़े बाप के, बलात्कारी बेटे से तो स्वयं को बचा लिया, किंतु अब कानून से मुझे कौन बचाएगा?"



रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक