हारा हुआ आदमी (भाग 47) Kishanlal Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हारा हुआ आदमी (भाग 47)

"अरे नही।एक ही दिन की बात है।फिर काम से जा रहे हो,"निशा बोली,"मैं तो मजाक कर रही थी।
"अच्छा तो मैं चलूं।"देवेन चलने को तैयार हुआ तो निशा बोली,"एक चीज भूल रहे हो।"निशा ने पति का हाथ पकड़ लिया था।
"क्या?"देवेन सोचते हुए बोला,"भुला तो कुछ भी नही।"
"अब यह भी याद नही क्या भूल रहे हो।"
निशा फिर बोली तो उसने दिमाग पर जोर डाला लेकिन उसे याद नही आया था,"भुला तो मैं कुछ भी नहीं हूं।"
"मुझे दोष देते हो कि मैं पहले जैसी नही रही।लेकिन तुम भी पहले जैसे कहाँ रहे हो?"
पत्नी की बात सुनकर देवेन चोंकते हुए बोला,"वो कैसे?"
"क्या तुम पहले घर से ऐसे ही चले जाते थे?"निशा ने पति को प्रश्नसूचक नज़रो से देखा था।
"ऐसे नही तो फिर कैसे जाता था?"देवेन ने पत्नी के प्रश्न का उत्तर प्रश्न में ही दिया था।
"कुछ भूल जाते थे तो तुम लेने वापस लौट आते थे।"निशा ने पति को याद दिलाया था।लेकिन देवेन को याद नही आया,"मैं समझा नही कौनसी चीज भूल जाता था तो लेने वापस आता था।'
"तो अब मुझे ही बताना पड़ेगा,"निशा ने अपना गाल दिखाते हुए उस पर उंगली रखी थी,"यह भूल जाते थे तो वापस आते थे और अब"
"सॉरी,"देवेन को अपनी गलती का एहसास हुआ था।
पहले घर से बाहर जाते समय देवेन, निशा के होठो को चूमता था।अगर भूल जाता तो वापस आता।पर अब ऐसा नही करता था।बेटे के जन्म के बाद यह सिलसिला टूट से गया था।आज पत्नी ने याद दिलाया तो वह निहाल हो गया।निशा का प्रेम देखकर उसने पत्नी को बाहों में भर लिया।कितना पवित्र था पति पत्नी का यह मिलन।देवेन ने अपने अधर निशा के होठों पर रख दिये।और वह निशा को बाहों में भरकर खड़ा रहा।
"अब ऐसे ही खड़े रहोगे?जाना नहीं है क्या?"तुम कहो तो न जाऊं"।देवेन उसे बाहों में लिए बोला।
देवेन का मन पत्नी को छोड़ने का नही कर रहा था।वह दुविधा में था।उसे जाते हुए न देखकर निशा धक्का देते हुए बोली,"ट्रेन भी पकड़नी है।"
"अच्छा तुम कहती हो तो।"और देवेन घर से निकल पड़ा।निशा दरवाजे पर खड़ी पति को जाते हुए देखती रही।
और देवेन ने स्टेशन जाने के लिए सिटी बस पकड़ ली थी।और वह नई दिल्ली स्टेशन पहुंचा था।टिकेट लेकर वह प्लेटफार्म पर आ गया।जी टी एक्सप्रेस जाने के लिए तैयार खड़ी थी।वह ट्रेन में चढ़ गया।
आगरा कैंट स्टेशन पर उतर कर उसने ऑटो किया और अपनी ससुराल पहुंचा था।उसने दरवाजे पर दस्तक दी थी।
"कौन?अभी आयी'।माया की आवाज सुनायी पड़ी थी।
"अरे तुम?"दरवाजा खोलते ही माया की नज़र देवेन पर पड़ी तो वह चोंकते हुए बोली,"माया और राहुल कहां है?'
"दिल्ली।"
"दिल्ली,"माया बोली,"अकेले आये हो?'
"हां।अकेला आया हूँ।"
"अरे आये हो तो उन्हें भी ले आते।'
" मै बैंक के काम से आया हूं।मैने तो निशा से कहा था।लेकिन ठंड ज्यादा है इसलिए वह नही आयी।,'
माया दरवाजा खोल कर एक तरफ खड़ी हो गयी।देवेन अंदर चला आया।माया ने दरवाजा बंद किया और वह भी आ गयी।
माया पूरी तरह सामान्य थी।उस रात की कोई प्रतिक्रिया या किसी तरह के भाव उसके चेहरे पर नही थे।देवेन सींच रहा था।क्या यह उस रात वाली ही माया है?
"तुम बैठो मै खाना बनाती हूं।"
"नही।मै खाना खाकर आया हूं।"देवेन ने उसे बताया था"
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