प्यार किया नही जाता - 3 - ना बोले तुम ना मैने कुछ कहा Manish Sidana द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्यार किया नही जाता - 3 - ना बोले तुम ना मैने कुछ कहा

भाग -3
ना बोले तुम ना मैने कुछ कहा

गाड़ी भागे जा रही थी।डिब्बे में घनघोर अंधेरा था।कदमों की आहट पास आकर रुक गई थी।खुशी की आंखे अब अंधेरे में थोड़ा थोड़ा देख पा रही थी।एक साया सीट के पास आकर रुक गया।खुशी ने चाकू खोल लिया और अटैकिंग पोज में बैठ गईं।

"मैम, आप ठीक हो?"

कोई रिप्लाइ नहीं मिला।साया अंधेरे में देखता रहा ।फिर उसकी सीट पर बैठ गया।फिर उसके हैंड बैग की चेन खोलने लगा।खुशी को कुछ नहीं सूझा तो उसने पूरी ताक़त से साए के पैर पर चाकू से आक्रमण कर दिया।

एक चीख कि आवाज़ कोच में गूंजी।खुशी के चेहरे पर एक बूंद गिरी।खुशी की चीख निकल गई।
साए ने झुक कर सीट के नीचे झांका।

"ये...ये क्या किया मैम।"युवक दर्द से कराह रहा था।" मैने आपका क्या बिगाड़ा है? मै तो केवल ये देखने आया था कि आप अंधेरे में डर तो नहीं रही...और आपने... आपने मुझे ही चाकू मार दिया।"

खुशी सीट के नीचे से निकली।उसने अपने मोबाइल
की टॉर्च जलाई।युवक के पैर से खून बह रहा था।
खुशी के माथे पर पसीने की बूंदे सा गई।

"आई...आई...एम सॉरी...मुझे लगा आप...आप" खुशी का स्वर बुरी तरह लड़खड़ा रहा था।

"क्या लगा...क्या लगा आपको..".युवक के स्वर के झल्लाहट थी।

"मैं आपको गुंडा मवाली लगता हूं?क्या ये लाइट्स मैंने बंद की है? मैं ही बेवकूफ़ हूं जो आपकी मदद करने आ गया"

"आई एम सॉरी, मै आपको पट्टी बांध देती हूं...मेरे पास फर्स्ट एड बॉक्स है। खुशी ने मोबाइल की टॉर्च की रोशनी में बैग से फर्स्ट एड बॉक्स निकाला और डेटॉल से घाव साफ करके पट्टी बांध दी।"

"धन्यवाद..".युवक ने कहा

खुशी ने कोई जवाब नहीं दिया,केवल थोड़ा मुस्कुरा दी।

युवक जाने के लिए उठा तो पैर लड़खड़ा गया और उसके मुंह से हल्की सी चीख निकली।खुशी ने फौरन उसे सहारा देकर बैठा दिया।

"आप यही बैठ जाइए।"

"नहीं ,मै अपनी सीट पर ही बैठूंगा..."युवक बोल "कोई भरोसा नहीं।इस बार तो बच गया,अगली बार कहीं आपने सीने में चाकू मार दिया तो मेरा राम नाम सत्य हो जाएगा..".युवक ने उठने का प्रयास किया।
"मै अपने किए पर शर्मिंदा हूं।आप प्लीज़ यही बैठिए।आपको आपके सामान मै से कुछ चाहिए तो मैं उठा लती हूं"...खुशी के स्वर में शर्मिंदगी थी।

युवक ने कोई उत्तर नहीं दिया।

गाड़ी अपनी गति से चले जा रही थी।खुशी ने मोबाइल की टॉर्च बंद कर दी थी पर अब उनकी आंखे अंधेरे की आदी हो गई थी,इसलिए वो एक दूसरे को देख पा रहे थे।

"आप बहुत अच्छा गाते है"...खुशी ने खामोशी को तोड़ा।

"धन्यवाद"

"आप घर पहुंच कर टिटनस का इंजेक्शन जरूर लगवा लेना।"

"इंजेक्शन भी लगवाना पड़ेगा...ना बाबा ना...मै इंजेक्शन नहीं लगवाऊंगा।"युवक ने इंकार में सिर हिलाया।

"आप इंजेक्शन से डरते है"...खुशी मुस्कराई।

"आप नहीं डरती?"युवक ने सवाल किया।

"नहीं"...खुशी बोली

"आप अपने घर फोन करके किसी को स्टेशन बुला लो।आपके पास सामान भी बहुत है।इस हालत में आप सामान कैसे उठाओगे?" खुशी ने विषय बदला।
"हां,बुलाना तो पड़ेगा।पर मुझे आपके मोबाइल से कॉल करने होगी।वो क्या है कि मेरी टैक्सी ट्रैफिक मै फंस गई थी,इस वजह से platform पर पहुंचा तो गाड़ी चल चुकी थी।जल्दी जल्दी सामान फेंका तो लगता है एक बैग प्लेटफॉर्म पे ही रह गया।मेरा मोबाइल ,खाना पर्स सब उसी में था।"

"ओह,थोड़ी देर पहले आप सीट के नीचे बैग ढूंढ रहे थे।"

'"हां"

"पर आप मेरा हैंडबैग क्यों खोल रहे थे?"

"क्या बताऊं,मुझे भूख लगी थी,मै खाने के लिए कुछ ढूंढ रहा था।"

"ओह, मै आपको पराठे देती हूं।"

खुशी ने बैग से पराठे निकालकर युवक को दिए।युवक ने सकुचाते हुए पराठे ले लिए।

"मेरा नाम राहुल है,युवक ने पराठे खाने के बाद कहा।युवक प्रस्नसुचक निगाहों से खुशी को देख रहा था।कुछ सेकंड तो खुशी चुप रही फिर बोली - मेरा नाम खुशी है।"

"धन्यवाद ,खुशी जी, आपने मेरी मदद की,वरना मुझे कल रात तक भूखा रहना पड़ता।"

"अब आप मुझे शर्मिंदा कर रहे है।"खुशी बोली।

"आपको कहा तक जाना है।"खुशी ने पूछा।

"मै सहारनपुर तक जाऊंगा।आज रात 11बजे पहुंचूंगा।"राहुल ने उत्तर दिया"आप कहां तक जाएंगी?"

"मुझे अमृतसर जाना है।कल सुबह तक पहुंचेंगे"।खुशी ने उत्तर दिया।

"थोड़ी देर में दिन हो जायेगा तो शायद कुछ और यात्री भी आ जाए।"राहुल ने बात को आगे बढ़ाया।

"देखते है,अभी तक तो टी टी भी नहीं आया।"खुशी ने उत्तर दिया।

थोड़ी देर दोनों के बीच शांति रही।

राहुल को लगा खुशी सो गई है,तो वो उठकर जाने लगा।पर उठते ही उसके मुंह से हल्की सी चीख निकल गई।खुशी ने फौरन मोबाइल की लाइट जलाई।

"आप यही बैठे रहिए.".खुशी ने राहुल को सहारा देकर बैठाते हुए कहा।

"मैम,कुछ काम ऐसे है, जो यहां बैठे बैठे नहीं हो सकते।उसके लिए मुझे जाना ही होगा।"राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा।

"ओह, मै समझ गई। मै आपको सहारा देकर टॉयलेट तक ले चलती हूं।"खुशी बोलते हुए उठ कर खड़ी हो गई।

"नहीं,आप तकलीफ़ मत कीजिए। मै चला जाऊंगा।"राहुल उठते हुए बोला।पर पैर पर दबाव पड़ते ही लड़खड़ा कर गिरने लगा तो खुशी ने उसको सहारा दिया।

"आप मेरी वजह से ही इस हालत में है।चलिए , मै आपको टॉयलेट तक ले चलती हूं।"खुशी ने एक हाथ से मोबाइल से रोशनी कर रखी थी और दूसरे से राहुल को सहारा दे रखा था।

खुशी राहुल को सहारा देकर टॉयलेट तक ले गई और वापिस भी लेकर आई।

"धन्यवाद",राहुल ने बैठते हुए कहा।

खुशी केवल मुस्कुरा दी।

"आप क्या करते है",खुशी ने पूछा?

"हमारा पुश्तैनी खेती बाड़ी का काम है।बाप दादा बहुत जमीन छोड़ गए है। सहारनपुर के पास ननोता में हमारी जमीन है। मेरे पिताजी गांव के प्रधान है"।राहुल ने बताया।

खुशी के चेहरे पर ऐसे भाव आए,जैसे उसे सुनकर अच्छा ना लगा हो।

ट्रेन अपनी गति से भागी जा रही थी।राहुल को नींद आ गई थी।वो बैठे बैठे सो गया।खुशी फिर से अपनी नॉवेल पढ़ने लग गई।
दिन निकलने लग गया था।कोच में हल्की सी रोशनी हो गई।खुशी का ध्यान राहुल की ओर गया।उसके चेहरे पर मासूम सी मुस्कान थी।खुशी राहुल की ओर एक अजीब सा आकर्षण महसूस कर रही थी।
दिन निकल आया था।गाड़ी किसी स्टेशन पर रुकी।एक नवदंपति उनके कोच में सवार हुए और उनसे पहले वाले केबिन में बैठ गए।तभी एक वेंडर आया तो खुशी ने दो चाय और दो सैंडविच खरीद लिए।
राहुल अभी भी सोया हुआ था।खुशी ने राहुल को आवाज़ दी पर वो नहीं उठा।खुशी ने राहुल को हल्का सा हिलाया।

"ओह,सुबह हो गई।"राहुल ने आंखे खोलते हुए कहा।
"गुड मॉर्निंग " खुशी बोली और चाय और सैंडविच उसकी ओर बढ़ाए।

"गुड मॉ्निंग,आज मेरा बहुत बड़ा सपना पूरा हो गया।"राहुल ने चाय और सैंडविच लेते हुए कहा।

"कौन सा सपना?"खुशी ने हैरानी से पूछा।

"मेरा कितने दिनों से सपना था कि सुबह सुबह कोई लड़की चाय का कप हाथ में लेकर मुझे जगाए।आज ये सपना पूरा हो गया।"राहुल के चेहरे पर शरारत थी।

खुशी कोई उत्तर देती,उस से पहले ही टी टी आ गया।

"उसे देखते ही खुशी उस पर बरस गई....कहा थे आप रात भर।अब आए हो।पूरी रात कोच में लाइट नहीं थी।हम कितने परेशान थे।"

"सॉरी मैम,आज कल ट्रेन में भीड़ भाड़ तो है नहीं।इसलिए हम लोग भी चैकिंग के लिए नहीं आते।
अगर कोई प्रॉब्लम थी तो आप 139पर शिकायत दर्ज करा सकते थे।मै अब complain कर देता हूं।अगले स्टेशन पर मैकेनिक लाइट ठीक कर देगा।"
"प्लीज़,ध्यान रखा कीजिए।"खुशी बोली

तभी टी टी का ध्यान फर्श पर पड़ी खून की बूंदों की ओर गया।

"ये खून कैसा है", टी टी ने पूछा

पहली बार उन दोनों का ध्यान भी फर्श पर पड़े खून की ओर गया।रात में अंधेरे की वजह से दोनों का ध्यान ही नहीं गया था।

खुशी के चेहरे पर घबराहट थी।

"रात को अंधेरे की वजह से सीट का नुकीला कोना मेरे पैर में लग गया।"" राहुल ने बात संभाली।

"ओह,आप लोगो को बहुत तकलीफ हुई।मै कॉल करके अगले स्टेशन पर डॉक्टर को बुला देता हूं।वो आपको प्रॉपर ट्रीटमेंट दे देगा।"

"उसकी कोई जरूरत नहीं है"राहुल बोला।

"जरूरत है।आप डॉक्टर बुला कीजिए।इन्हे टिटनस का इंजेक्शन लगना जरूरी है।"खुशी ने टी टी को कहा।

"इंजेक्शन नहीं नहीं।थोड़ी सी चोट है,इसके लिए इंजेक्शन नहीं चाहिए।"

"मै डॉक्टर बुला लेता हूं,वो decide करेगा कि आपको क्या मेडिसिन देनी है।"टी टी कहकर चला गया।

""थैंक्स, आपने मुझे बचा लिया।"खुशी बोली।

"आपने भी तो मुझे बचाया है,भूखे मरने से।"सैंडविच खाते हुए राहुल बोला।

खुशी मुस्कुरा दी।

अगले स्टेशन पर डॉक्टर ने राहुल को दवाई और इंजेक्शन दे दिया।राहुल इंजेक्शन नहीं लगवाना चाहता था पर खुशी ने उसे डांटकर इंजेक्शन लगवा दिया।

गाड़ी चलती जा रहीं थीं।राहुल ने खुशी के मोबाइल से अपने घर फोन कर दिया।सहारनपुर आ गया था।राहुल को लेने के लिए दो लड़के आए।राहुल जाने लगा तो खुशी को बहुत बैचैनी हुई।ऐसे लगा जैसे कोई अपना छोड़ कर जा रहा हो।राहुल ने भी जाते जाते मुड़कर देखा।उसकी आंखे नम थी।

"धन्यवाद, आपने मेरी बहुत मदद की।कभी समय मिले तो नानोता आइए।हमे भी मेहमाननवाजी का मौका दीजिए।"राहुल के स्वर में नमी थी।

"ध्यान से जाना और मुझे माफ कर देना"...कहकर खुशी ने मुंह घुमाकर खिड़की की तरफ कर लिया।वो राहुल से निगाह नहीं मिलाना चाहती थी।

राहुल platform पर तब तक खड़ा रहा जब तक गाड़ी निगाहों से ओझल नहीं हो गई।

खुशी को भी ऐसा लग रहा था,जैसे कोई अपना खास बहुत ख़ास हमेशा के लिए बिछड़ गया है।
पूरी रात खुशी कल की घटनाओं के बारे में सोचती रही।कुछ घंटों की मुलाक़ात में ही राहुल से अपनापन क्यों महसूस हुआ?क्या है तेरे मेरे बीच में?
यही सब सोचते सोचते सुबह हो गई और अमृतसर आ गया।

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क्या इस प्रेम कहानी का यही दुखद अंत हो गया या राहुल और खुशी की दोबारा मुलाक़ात हुई और ये प्रेम कहानी किसी सुखद अंजाम तक पहुंच सकी।जानने के लिए अगला भाग पढ़े।

कहानी के बारे में अपनी अमूल्य राय अवश्य दे।

लेखक - मनीष सिडाना
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