बसंती की बसंत पंचमी - 15 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बसंती की बसंत पंचमी - 15

श्रीमती कुनकुनवाला अब बेटे की बात सुनने के लिए उसे एक कुर्सी पर बैठा कर ख़ुद उसके सामने आ बैठी। लेकिन अभी बेटे ने मुंह खोला भी न था कि दरवाज़े की घंटी बजी और देखते देखते धड़धड़ाते हुए एक के बाद एक जॉन के सब मित्र चले आए। जिस पार्टी के लिए कुर्सियां जमा कर जॉन इंतजार कर रहा था उसकी गहमा गहमी शुरू हो गई। उसकी मम्मी, श्रीमती कुनकुनवाला उन सब के अभिवादन का जवाब देती हुई रसोई में चली गईं।
वैसे रसोई में उनके करने के लिए कोई ख़ास काम नहीं था क्योंकि जॉन ने पार्टी के लिए सभी चीज़ें ऑनलाइन ऑर्डर करके ही मंगा रखी थीं।
श्रीमती कुनकुनवाला को ये देख कर अचंभा ज़रूर हो रहा था कि पार्टी में जॉन के दोस्तों में लड़कियां ज़्यादा थीं। सब बच्चे बेतहाशा हंसे जा रहे थे। उनसे न रहा गया, वे भी बच्चों के पास ही आ बैठी।
श्रीमती कुनकुनवाला ने बच्चों की पूरी कहानी सुन कर तो जैसे दांतों तले अंगुली ही दबा ली।
अविश्वसनीय! कोई यकीन नहीं करेगा इस बात पर, लेकिन ये पूरी कहानी जॉन की एक फ्रेंड उस लड़की ने ही उन्हें सुनाई जो खुद ये सब करामात कर के आई थी। और अब जाकर श्रीमती कुनकुनवाला को भी उन रुपयों का रहस्य पता चला जो उनका बेटा जॉन उन्हें दिखाता हुआ लिए घूम रहा था।
असल में जॉन के एक दोस्त के पापा शहर के एडीएम थे। अर्थात अतिरिक्त जिला कलक्टर।
पिछले साल मार्च महीने में शहर में लॉकडाउन लगने की बात उन्हीं से बच्चों को पहले से मालूम पड़ गई। उन्हें दो सप्ताह पहले ही ये भी पता चल गया कि शहर में कर्फ्यू लगने वाला है फ़िर सभी काम करने वाले लोग, अख़बार वाला, दूध वाला, घरेलू नौकर,बाई आदि भी आसानी से आ जा नहीं सकेंगे। उधर मचे हड़कंप के कारण घरेलू बाई नौकर आदि काम छोड़ कर गांवों में पलायन करने लगे।
जॉन और उसके दोस्तों को ऐसे में एक शरारत सूझी!

ओह! इस दुख की घड़ी में जब सारी दुनिया डरी हुई थी, न जाने हमारे मन में ये शरारत क्यों आ गई? क्या हम लोगों के भय और कष्ट को समझ नहीं पा रहे थे?
हां, शायद ऐसा ही हुआ।
हम जानते थे कि कुछ दिन बाद ही कर्फ़्यू और धारा 144 आदि लग जाएगी तथा सड़क पर आने- जाने वालों से सख़्ती शुरू हो जाएगी। इस कॉलेज में पढ़ने वाली चंचल- शरारती लड़की ने एक ऐसे घर में प्रवेश किया जहां से घरेलू बाई कुछ ही दिन पहले काम छोड़ कर चली गई थी। इसने किसी को भी ये पता नहीं लगने दिया कि ये एक पढ़ी लिखी संपन्न घर की लड़की है। ये अपनी स्कूटी लेकर जाती पर अपनी वेशभूषा एकदम मेहरियों वाली रखती।
ये जिस घर में काम करने लगी उसी की मालकिन से इसे ये जानकारी मिली कि कई घरों में बाईयों की ज़रूरत है। ये अपनी परिचित और मित्र कई सहेलियों को एक एक कर ऐसे घरों में भेज कर काम पर लगाने लगी।
ये पहले से जानती थी कि एक- दो सप्ताह में कर्फ्यू लग जाएगा और सबको काम से मुक्ति मिल जाएगी। ऐसा ही हुआ। शहर के शहर बंद हो गए। सब घर में बैठ गए। कई लोग घर बैठे- बैठे ही काम करने को मजबूर हुए।
ये लड़की और इसकी सब सहेलियां भी घर बैठ गईं।
लेकिन जब इन्होंने नेताओं व सरकारी बड़े अधिकारियों के ऐसे बयान सुने कि लोग घरेलू कामगारों की पगार न काटें तो इनके मन में लड्डू फ़ूटने लगे। मज़ा आ गया।
और अब?
इन सबने अनलॉक होने के बाद जाकर अपनी- अपनी मालकिनों को असलियत बताए बिना उनसे पांच- छः महीने की पगार ले ली। और जब पैसे हाथ में आ गए तो आगे काम छोड़ दिया। उन्हें "बाय" कह दिया!
क्या करतीं? इन्हें कॉलेज भी तो जाना था। और ज़्यादा दिनों तक घरों में झाड़ू लगाना इनके बस का था भी कहां? वो भी भेस बदल कर।
- बदमाश, शैतान, नालायक... तुझे बेवकूफ़ बनाने के लिए क्या मेरी ही सब सहेलियां मिलीं? कहती हुई श्रीमती कुनकुनवाला एक डंडा उठा कर जॉन के पीछे दौड़ने लगीं। और वो अपने सब फ्रेंड्स के चारों ओर भागता हुआ ऐसे चक्कर काट रहा था मानो म्यूज़िकल चेयर खेल चल रहा हो! सब हंस रहे थे।