तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग -17) - इश्क़ - ए - इजहार Priya Maurya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग -17) - इश्क़ - ए - इजहार









आदित्य और ममता अभी बात ही कर रहे थे की उनकी बातें सुन राजेस्वरी वहाँ आ जातीं है जिनको देख दोनों एकदम खामोश हो जाते हैं।
राजेस्वरी -" का हुआ चुप काहे हो गये तुम लोग ,,,, और तू यहां बैठ पटर पटर कर रही है जा देख रसोई मे क्या क्या हुआ है।"
अभी ममता उठ कर जाने वाली ही थी की रौनक आ जाता है उसके हाथ मे एक लिफाफा था।
रौनक आदित्य से -" यह ,,,,।"
तभी बीच मे राजेस्वरी बोलतीं है -" इमे का है बबुआ।"
रौनक -" चाची शहर से आदित्य के दफ्तर से कोई लेटर आया है कोर्ट मे कोई काम है उसी के सिलसिले मे आदित्य को बुलाया गया है।"
आदित्य रौनक को सक भारी निगाह से देख रहा था।
राजेस्वरी -" अच्छा फिर तो जाना पड़ेगा न।"
आदित्य -" हाँ अम्मा ।"
राजेस्वरी ममता की तरफ इशारा कर के -" ठीक है बाबू तुम समान बाँध लो हम कुछ मिठाई तुम्हरे लिये बाँध दे रहे है ,,,, और तुम चलो जल्दी।"
राजेस्वरी और ममता दोनो चली जाती हैं।
उनके जाते ही आदित्य दरवाजा बंद कर के रौनक से बोलता है जो की पैर फैलाये बैड पर बैठा था -" अब बताओ यह कौन सा लोचा किये हो।"
रौनक दांत दिखाते हुये -" जाओ अपने अस्मिता जी को छोड आओ।"
आदित्य -" कहाँ ,,,,, और अस्मिता कहाँ जा रही है।"
रौनक -" अपने मौसी के घर जा रही है।"
आदित्य -" अकेले ।"
रौनक -" वो जंगली नारी बता तो रही थी की अस्मिता अकेले ही जायेगी।"
आदित्य -" अब यह जंगली नारी कौन है?"
रौनक हसते हुये -" वो अस्मिता जी की चुडैल दोस्त।"
आदित्य हसते हुये -" बच के रहना कही वो चुडैल तुम्हारे ही गले न बध जाये।"
रौनक मुह बनाते हुये -" सात जन्म मे भी नही।"
आदित्य -" सात जन्म के लिये।"
रौनक मुह बना कर -" छोड उस भूतनी को ,,, पहले बता जा रहा है ना अस्मिता को छोड़ने।"
आदित्य मुस्कुराते हुये -" अब मना कैसे कर सकता हुं।"
रौनक उसके सर पर मारते हुये -" साले ,,, तू भी ठरकी ही है।"
आदित्य तैयार होकर नीचे सबको बता की वो शहर जा रहा है अपनी हंटर उठा निकल जाता है।
इधर अस्मिता अभी अपने घर से निकल चुकी थी। उसके बाबा ने उसे बैलगाड़ी पर बिठा दिया था।
जंगल के रास्ते से गुजरते हुये आधा जंगल पार कर चुकी थी तभी आदित्य अपनी हंटर उसके सामने रोकता है।
बैलगाड़ी वाला भी सामने छोटे मालिक को देख अपनी गाड़ी रोक देता है और नीचे उतर दूर से ही सर झुका प्रणाम करता है लेकिन आदित्य उसपर ज्यादा ध्यान न देकर सीधे अस्मिता के पास आता है और बोलता है -" अस्मिता आप दुसरे गाँव जा रही है क्या हमारे साथ चलेंगी।"

अब अस्मिता को भी पता चल गया था की उसके आदित्य बाबू के दिल मे उसके लिये कुछ है और ऊपर से हर रात को आकर उसके कानों मे चुपके से कुछ न कुछ कह कर चले जाना। उसके बाबा की चेतावनी की आदित्य से और हवेली वोलों से दूर रहे सब याद आ रहा था।

वो मुह फेरते हुये -" जी नही,,, हम ठीक है ,,, ऐसे ही चले जायेंगे।"
फिर बैलगाड़ी वाले से बोलती है -" काका चलिये अब हमे लेट भी हो रहा है और वहाँ पहुचते पहुचते ही दो तीन दिन लग जायेंगे।"
बेचारे बैलगाड़ी वाले की हिम्मत नही हो रही थी की वो वापस बैठ गाड़ी फिर से ले जाये क्योकि आदित्य ने पहले ही उसे आँखे दिखा दी थी।
बैलगाड़ी वाला -" बिटिया हमारा बैल भूखा लग रहा है और पैर में चोट भी लगी है तो अब हम आगे नही जा सकते।"
अस्मिता बैलगाड़ी वाले से कहते हुये आदित्य को देखती है जो की खतरनाक तरीके से उसे देख मुस्करा रहा था मानो बोल रहा हो अब तो आना ही पड़ेगा -" काका आप बैल को चारा डाल दिजीये हम थोड़ी देर रुक जायेंगे।"

इस बार अस्मिता आदित्य को देखकर उसी तरीके से मुस्कराने लगी।
बेचारा बैलगाड़ी वाला इन दोनो की ना खत्म होने वाली लड़ाई का शिकार हो रहा था।
आदित्य एक बार फिर उसे घुर कर देखता है। बैलगाड़ी वाला हडबडी से -" वो वो चारा लेने तो वापस गाँव जाना पड़ेगा।"
लो इस बार फिर आदित्य का पलडा भारी हो गया।
अस्मिता -" क्या ,,,, फिर उतना दूर।"
आदित्य मुस्कराहट के साथ -"अब तो चलिये हमारे साथ।'
अस्मिता -" हम वापस गाँव चले जायेंगे लेकिन आप्ले साथ नही जाने वाले।"
इस बार आदित्य थोड़ा सख्ती से अस्मिता के करीब आता है जिसे देख अस्मिता डर से आँखे बंद कर लेती है लेकिन उसे महसूस होता है की उसे कोई उठा रहा है ,, झट से आँखे खोलते ही देखती है आदित्य उसे अपनी दोनो बाहों मे उठाये किसी हल्के से समान की तरह अपनी गाड़ी पर आगे की सीट पर बैठा देता है फिर सारा सामान भी वही रख बैलगाड़ी वाले को अपनी अंगूठी देते हुये धीरे से -" बहुत बहुत बहुत धन्यवाद काका ,,, यह छोटा सा तोफा हमारी तरफ से ,,, और हाँ इसके बारे मे आप किसी को मत बताना की अस्मिता हमारे साथ गयी है ।"
वो बैलगाड़ी वाला भी गरीब इन्शान सोने की अंगूठी पा एकदम खुशी से दुआ देते हुये -" भगवान करे रामगढ़ का भविष्य आप ही हो ठाकुर साहब।"
आदित्य जब उसको अंगूठी दे रहा था तो अस्मिता उसे हंटर मे से देख लेती है और मन मे ही -" अपनी रईसी झाड़ रहे हैं ,,,, हननन।"

आदित्य वापस आ अपनी गाड़ी में बैठते हुये एकबार अस्मिता को देखता है जिसे देख अस्मिता अपना मुँह फेर लेती हैं।
कुछ देर गाड़ी चलाते हुये दोनो और भी अंदर जंगल मे आ चुके थे । इतने देर के शान्ति के बाद आखिर कार आदित्य बोलता है -" वैसे इतना गुस्सा क्यू है हमसे।"
इस बात का जवाब तो अस्मिता के पास भी नही था की वो क्यू गुस्सा है। वैसे अस्मिता बोलती बहुत थी इसी वजह से जल्दी जल्दी मे बोलने लगी -" कहावत नही सुनी है पत्नियों का काम ही होता है पतियों पर बेवजह गुस्सा होना,,,,,,,,,,।"
अचानक उसे लगा की उसने कुछ गलत बोल दिया है वो जल्दी से अपने मुँह पर हाथ रख लेती है और चुप हो जाती है।

इधर आदित्य जैसे ही यह सुनता है जोर से गाड़ी का ब्रेअक लगाता है और खासते हुये -" क्या बोला ,,,,, अभी।"
अस्मिता -" कुछ भी तो नही ,,,, मैने कहाँ कुछ बोला।"

आदित्य ने भी बात सुन ही ली थी इसलिये मुस्कराते हुये -" वैसे हमे माफ कर दो आपको इस तरह उठा कर जबर्दस्ती अपने साथ ले आये।"

ऐसा बोल वो उसके सामने हाथ जोड़ लेता है।
अस्मिता झट से उसका हाथ पकडते हुये -" यह क्या कर रहे है पत्नी के सामने पति कभी हाथ नही जोडते।"
अस्मिता ने फिर गड्बड़ कर दिया जल्दी जल्दी मे। इस बार आदित्य अपनी आँखे उचकाते हुये -" हम्म मेरी पत्नी।"
अस्मिता उसका हाथ छोड इधर उधर देखने लगती है। आदित्य उसके चेहरे के एकदम पास आते हुये -" अब बोल भी दो ना की मुझसे प्यार करती हो।"
अस्मिता उसकी आवाज सुन होश मे आते हुये उसे धक्का देकर -" आपने बोला कभी की हम बोलें।"
आदित्य हसते हुये -" यह बात है तो ठीक है अभी बोल देते हैं ---

"जो कभी ना बोला

आज वो बात कहता हूँ,

आज मैं इकरार करता हूँ,

मैं तुमसे प्यार करता हूँ।"


अस्मिता तो देखती रह गयी की आदित्य ने क्या बोल दिया उसे ऐसे भौचक्का देख आदित्य -" अब तुम भी बोल दो ना की हमसे प्यार है।"
अस्मिता को भी थोड़ा तो नौटंकी दिखाना बनता था - हम नही करते।"
आदित्य -" वाह जी वाह ,,,,, हमने बोल दिया तो आप हमसे प्यार नही करती ना।"

इतना बोल आदित्य उसके एकदम करीब आते हुये कमर मे हाथ डाल खूद की तरफ खिच लेता है।
उनके चेहरे में बस कुछ इन्च का फासला था जिससे अस्मिता की नजरे खूद ब खूद नीचे हो जाती हैं।
आदित्य अस्मिता का सर वापस ऊपर कर देता है जिससे उनकी नजरे मिल जाती हैं।
आदित्य अस्मिता की आँखों में देखते हुये --

"तेरी आवाज़ से हमें प्यार है ,

जिन्दा है तब तक जब तक तेरा दीदार है

फना कर गये अपनी जिन्दगी तुम्हारे लिये

कबूल करो ना यह मोहब्बत ए इजहार हमारे लिये।"


अस्मिता --

"क्या यह नजरे इकरार नही करतीं,

क्या इश्क़ को हर लम्हा मुकरार नही करती

माना हमेशा आपसे दिललगी की बातें हम करते नहीं

आरजू है हमारी दिल के इजहार को सुनिये जनाब

क्योकि इश्क़ मे इजहार लबो से जरुरी है ही नही।"


क्रमश: