अस्मिता का कमरा --
अस्मिता अपने घर मे बैठी थी मुँह फुलाए की उसके बाबा आते है।
घनश्याम जी-" अरे बिटिया क्यू गुस्सा हो रही हो हमसे आप तो जानती हो वो हवेली वाले है हम जितना उनसे दूर रहे हमारे लिये उतना ही अच्छा है ।"
अस्मिता-" तो बाबा हमेशा हम उनसे डरते रहे और उनसे दब कर रहे क्या।"
घनश्याम जी-" बेटा यह तो सालो से होता हुआ आ रहा है और वो हवेली के लोग हम दक्षिणी टोले वालों को अपने पैरो की जुती ही समझते है ।" फिर कुछ देर बाद-" अच्छा तो आप जाओ अपने कमरे मे पढ़ाई कर लो।" अस्मिता-" जी बाबा।"
अस्मिता अपने कमरे मे जा जैसे ही किताब के पन्ने उलतती है उसे आदित्य की वही नशीली आँखे और गरूर से भरा चेहरा याद आता है। वो अपने ही दुनिया मे खोई जा रही थी और खुद से ही बोलती है-" अजीब सा आकर्षण है आपके चेहरे मे ना चाहते हुये भी आपकी तरफ खींचे चले आ रहें है। "
फिर जब होश आता है तो अपना सर झटकटी है और बोलती है-" मेरे नसीबों मे वो कहा। कहाँ वो हवेली के छोटे मालिक और कहा मैं एक मलिन टोले की साधरण सी लड़की।" लेकिन इतना समझाने के बाद भी दिल है की मानता नही वाली कस्मकस चल रही थी इसी उधेड बून में वो सो जाती है।
आदित्य का कमरा----
अपने आलिशान बैड पर लेटे आदित्य दोनो हाथो को सिर के नीचे रख छत पर लगे झूमर को देख रहा था। उसके जहन में भी एक ही बाते घूम रही थी वो अन्जानी सी लड़की। चमकीली आँखे शरारती जुल्फे पतली होठ और गुस्से से चमकता चेहरा। वो मन में खुद से ही बोलता है-" काश अगर उस समय तुम्हे हँसते हुये देखता तो ये दिल के हाल सम्हाल न पता तुमसे।" दोनो की धड़कने एक दुसरे के लिये धड़कने लगी थी।
" पता भी ना चला क्या से क्या हो गया
ना जाने किस दुनिया मे ये दिल खो गया।
आशिक़ी भी तुमसे बेसुमार हो गया
दिल तो दिल मेरा रूह भी तेरा दिलदार हो गया।"
सच इश्क़ एक खुबसूरत सपने जैसा होता है पता नही होता मुक्क्मल भी होगा या नही लेकिन सुकून जरुर देता है।
अगले दिन सुबह अभी आदित्य अपने कमरे मे सोया ही था की राजेस्वरी आती है और उठाते हुये बोलती हैं -" ये बाबू उठ देख कौन मिलने आया है।"
आदित्य-" कौन है अम्मा।"
राजेस्वरी-" पूजा बिटिया आई है।"
आदित्य पूजा का नाम सुन उठ जाता है। पूजा आदित्य की बचपन की दोस्त थी।तब तक पूजा उसके कमरे में आ जाती है।
दोनो इधर-उधर की बाते करने लगते है। राजेस्वरी जी को तो इन दोनो में राम सीता की जोड़ी नजर आ रही थी। कुछ देर बाद पूजा जाने लगती है तो उसके पीछे पीछे आदित्य और राजेस्वरी जी भी बाहर हवेली के बरान्दे में आ जाते है। आदित्य जैसे ही सोफे के पास पहुचता है पाता है की उसका दोस्त रौनक भी उससे मिलने आया है।
रौनक आदित्य को देखते ही -" अरे यार तू आ गया और कितना बदला बदला है मेरे दोस्त एकदम मसक कली लग रहा है। " इतना सुनते ही आदित्य उसको मारने को दौडता है। और इन सब को देख सब ठहाके लगा हस रहे थे। सबको आपस में लगा देख पूजा कुछ सोचते हुये धीरे से उठ कर जाने लगती है। अभी वो हवेली के दरवाजे के बाहर पैर रखने ही वाली थी की भान प्रताप जी बोल पडते है-" पूजा बेटा बोलिए तो हम आपको आपके हवेली छोडवा दें।"
पूजा हकलाते हुये -" न न नही चाचा जी हम खूद ही चले जायेंगे।"
इतना कह वो जल्दी से बाहर निकल जाती है। जल्दी जल्दी वो हवेली के बाहर आकर फव्वारे से गुजरते हुये पश्चिमी टोले की ओर मुड़ जाती है जहाँ समान्य वर्गीय लोग जैसे की साहुकार रहा करते थे।
हालांकि उसकी हवेली इसके ठीक उल्टा पूर्वी तरफ थी। वो मन मे ही बोलती है-" हमें माफ कर दीजियेगा आदित्य आपसे मिलने का बहाना करके हम यहाँ इनसे मिलने के लिये आये थे ..........हम भी क्या करे यह मोहब्बत नाचीज है ही ऐसी दुनिया के हर बन्दिशो को पार करने की इजाजत दे देती है।"
वो एक घर के बाहर मुँह छिपाये आकर रुकती है घर एक बड़ी सी झोपड़ी थी। अच्छी खासी लग रही थी गोबर सी लिपि पुती एकदम साफ सुथरा। वो जैसे ही दरवाजा खटखटाती है एक 23-24 साल का लड़का उसके सामने प्रकट होता है।
पूजा-" अनुराग हमें अंदर आने देंगे बाहर कोई देख लेगा।"
अनुराग-" जी आईये।
पूजा अंदर आती है। अंदर पूरा घर सुनसान था। यह था अनुराग का घर जहाँ वो अकेले रहता था माँ बाप बचपन मे ही चल बसे थे मामा मामी ने पाला पोसा था लेकिन जमीन विवाद मे उन्हे भी भान प्रताप के आदमियों ने मार दिया था जिसके मुआवजे के तौर पर भान प्रताप ने उसे अपने पास नौकरी पर रख दिया था या यूँ कहिये नौकर बना रखा था।
अनुराग-" पूजा यहाँ क्यू आईं है आप।"
पूजा -" आपको नही पता क्या ।"
अनुराग पीछे मुड़कर -" हमने पहले भी कहा था की हम आपसे प्यार नही करते है।"
पूजा वापस से उसे पलटते हुये-" यही बात हमारी आँखो मे देख कर बोलिए आप।"
अनुराग -" आप समझिये बात को आपके पिताजी को पता चलेगा तो क्या होगा समझती है ना आप ।"
पूजा-" हमे कुछ नही समझना बस हमे आप चाहिये नही तो ....।"
अनुराग-" नही तो क्या बोलिए।"
पूजा-" हम अपनी जान भी दे देंगे।"
अनुराग इतना सुन गुस्से मे हाथ उठा देता है लेकिन उसके गाल पर लगने के पहले ही वापस खींच लेता है और बोलता है-" पागल हो गयीं है आप आप चली जायेंगी तो हमारा क्या होगा।"
पूजा उसकी आँखो मे देखते हुये-" तो जनाब कबूल किजीये की आपको भी हमसे मोहब्बत है।"
अनुराग इधर उधर देखने लगता है फिर बोलता है-" हाँ है।"
इतना सुन पूजा उसके गले लग जाती है। अनुराग उसके सर पर हाथ फेरते हुये-" मोहब्बत तो आपसे बेसुमार है लेकिन क्या यह सामाज हमें कभी एक होने भी देगा।"
पूजा-" अगर मोहब्बत एक होने के लिये की जाती तो राधा कृष्ण भी कभी अलग होते क्या ? वो तो ईश्वर थे और हम फिर भी इन्सान हैं।"
दूसरी तरफ आदित्य रौनक के साथ हवेली के बाहर अपने हंटर गाड़ी में बैठ नदी की ओर निकल जाता है। नदी पर पहुचते ही दोनो गाड़ी से उतर आराम से किनारे बैठ अपने पैरो को पानी मे डुबोये उसमे पत्थर मारने लगते हैं।
आदित्य एक पत्थर को उठाते हुये बगल मे बैठे रौनक से पूछता है-" यार तू मेरा एक काम कर देगा।"
रौनक -" बोल तो सही अपनी जान का काम नही करूंगा भला।"
आदित्य पत्थर पानी मे फेकते हुये-" यार मजाक नही सिरिअस हुं मै।"
रौनक -" अच्छा बोल।"
आदित्य थोडा मुस्कुराकर -" एक लड़की के बारे में पता करना है।"
रौनक उसकी तरफ शरारत से देखते हुये-" लगता है मेरी जान अब किसी दूसरे की जान बनने वाली है और ऐसी कौनसी खुशनसीब लड़की है जिसने मेरी हीर को उसके राँझा से अलग कर रही है।"
आदित्य अस्मिता के चेहरे को याद करते हुये-
"जो इस दिल मे मनादे सावन मे दिवाली।
शराबी होठ और कातिल नजरोवाली
मेरा दिल भी ले गयी वो जिसकी थी
नसीली आंखे और चाल मतवाली।"
क्रमश: