तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग-9) - काली माता की मंदिर म Priya Maurya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तेरे मेरे दरमियां यह रिश्ता अंजाना - (भाग-9) - काली माता की मंदिर म

अस्मिता और सारंगी दोनो की मुँह बाँध कर अपने घर से निकल जाती है अब ईश्वर ही जाने की आगे क्या हो सकता था। जल्द ही वो दोनो भी काली माता के मंदिर पहुच गयी।

दुसरी तरफ मंदिर में --

पूजा सम्पन्न होने के बाद सभी लोग प्रसाद लेते है और वापस सीढियों से उतर कर अपने अपने हवेली के लिये निकल जाते हैं।
ठाकुर रत्न सिंह का परिवार के लोग भी गाड़ियों मे बैठ चुके थे। पूजा हस हस कर आदित्य से कुछ बाते कर रही थी। किसी बात पर आदित्य भी जोर से हस दिया।

वही थोडी दर खड़ी अस्मिता सब कुछ देख रही थी।
अचानक जब उसकी नजर पूजा और आदित्य पर पडी तो अजीब सी कसक उसके दिल मे हो उठी या फिर कहिये जलन उमड़ने लगी।

अस्मिता मन मे -" वाह कितना हस हस कर बातें कर रहे है जैसे लग रहा है की यह इनकी ..... अरे नही नही इन दोनो के बिच कुछ नही होगा .... पागल हो गयी है क्या अस्मिता क्या क्या सोच रही है वो कुछ भी करे तुझसे क्या मतलब ...... लेकिन वो लड़की है कौन कितना दांत फाड रही है हमारे आदित्य बाबू के सामने .... धत पागल कही की यह तेरे आदित्य बाबू कब से हो गयें।"

तभी उसे सारंगी की आवाज सुनाई देती है - अस्मिता अस्मिता।"
अस्मिता -" क्या हूआ।"
सारंगी मुह बना कर -" क्या हूआ ... तब से बुला रही हू लेकिन तुम तो अपने ही खयाल मे व्यस्त हो।"
अस्मिता -" अब होश मे आ गयी ना तो जो बोलना है बोलो।"

सारंगी -" अरे हम जिस लिये आये है वो तो ले ले फिर जल्दी से यहाँ से निकलो सब ठाकुर आये पडे हैं।"
अस्मिता -" हा चलो ।"

दोनो अभी चली ही थी की कुछ गाडियाँ पलक झपकते आईं और ताबड़तोड़ गोलेबारी शुरु हो गयी और एक गोली धाय की आवाज के साथ वीर को छुते हुये चली गयी।

जल्दी जल्दी मे अफरा तफरी मच गयी । इतनी धक्का मुक्की में अस्मिता और सारंगी दोनो ही आदित्य के पास ही आ चुकी थी।
तभी किसीसे धक्का लगते ही अस्मिता बहुत जोरों से जा टकराई।

अस्मिता -" आऊच कौन मारा है हमको धक्का।"
उसकी आवाज सुन आदित्य पीछे देखता है।
अस्मिता उसे देख कर कही खो सी जाती है और आदित्य अस्मिता को।

अस्मिता को लगता है की उसके मुह पर साल की वजह से आदित्य उसे नही पहचान पाया होगा लेकिन आदित्य ने तो उसकी आँखो से ही उसे पहचान लिया था।
अभी दोनो खोये ही थे कि तभी एक गोली अस्मिता के ऊपर चली लेकिन पलक झपकते आदित्य ने उसे खिच लिया और गोली बगल से हो कर गुज़र गयी।

आदित्य भीड़ के शोर मे थोड़ा तेज बोलते हुये -" अस्मिता आप ठीक तो हैं ना।"
अस्मिता समझ नहीं पा रही थी की उसके आदित्य बाबू को उसका नाम कैसे पता चला और उससे भी बड़ी बात उन्होने उसे पहचाना कैसे।
अचानक ही उसके मुह से आवाज निकली -" इन्होने हमको पहचान कैसे लिया।"
उसने यह बोला तो धीरे से था लेकिन आदित्य ने सुन लिया।
आदित्य उसके कान के पास आया और धीरे से बोला -"

आपकी आहत ही काफी है

आपकी मौजूदगी बताने के लिये

आपकी नजरे ही काफी है

किसीका दिल धड़काने के लिये।

अस्मिता तो जैसे कुछ समझ ही नही पायी की तभी आदित्य हसते हुये उसका हाथ पकड खीचते हुये एक पेड के पीछे ले गया जहाँ पर सारंगी पहले से छुपी थी।
अस्मिता का दिमाग बस इन शब्दों पर घूम रहा था -" किसीका दिल धडकानें के लिये .... इससे उनका क्या मतलब था आखिर ।"

इसी उधेड बून मे वो सारंगी के पास पहुच गयी।
उसकी आँखे आदित्य- अस्मिता को देखकर फ़ैल गयी।
आदित्य उन दोनो को डांटते हुये धीरे से बोला -" आप लोग यहां क्या कर रहीं हैं अभी कोई देखेगा तो पता है ना की क्या होगा दक्षिणी टोले के लोगों का यहां आना वर्जित है ... अब जाईये दोनो यहां से जल्दी।"

इतना बोल वो चला गया । हवेली के बॉडीगार्डस ने भी पूरा माहोल सम्भाल लिया था । हमलावर भी भाग गये थें लेकिन आदित्य के जहन मे यह था की आखिर यह लोग थे कौन।

उसकी बात सुनकर ही अस्मिता तुनक गयी थी और सारंगी के साथ चलते चलते बोली -" पता नही यह समझते क्या है अपने आप को ऐसे डांट रहे थे जैसे यहां आकर गुनाह कर दिया है हमने कोई अरे दक्षिणी टोले वाले है तो क्या हूआ।'

सारंगी उसकी बात सुनकर -" अरे बुद्धू उनकी बात का मतलब यह था की हम लोगो को वहाँ कोई देख लेता तो पक्का सजा मिलती हर कोई तुम्हारे आदित्य बाबू नही है यहां जो चुपके से जाने देता।

अस्मिता उसकी बात सुन -" तू तो मत लो पक्ष उनका।"
सारंगी -" तो इतना तुनक काहे रही हो जाकर अपने आदित्य बाबू को बोलो यह सब उनके सामने तो मुह मे दही जम जाती है ।"
अस्मिता -" नही पता उनके सामने हम बोल क्यू नही पाते हैं।"
सारंगी-" वैसे कुछ चल तो नही न रहा है तुम दौनो के बिच।"
अस्मिता -" पगला गयी हो । हम और वो ...... कुछ समझ भी आता है।"
दोनो अभी जा ही रही थी सारंगी को कुछ याद आता है वो अस्मिता का हाथ पकड कर चलते हुये -" अस्मिता एक बात बोलें।"
अस्मिता -" हम बोलेंगे की मत बोलो तो नही बोलोगी क्या ।"
सारंगी दांत दिखा कर हँसते हुये -" ऐसा तो कभी नही होगा की हम ना बोले।"
अस्मिता -" तो बोलो।"

सारंगी दांत दिखाते हुये -" वो का बोल रहे थे ठाकुर भान प्रताप का जो नहर के पास वाला आम का बगीचा है ना उसमे बहुत मस्त आम है का बोले एकदम मुह मे पानी आ जता है .... तुम कहो तो चले का काहे की चुरमुरा तो मिला नही।"

अस्मिता हँसते हुये -" हम कब मना किये है चलो चलते है हम डरते तो वैसे भी नही है किसीसे।"
दोनो मुह छिपाये नहर के पास वाले बगीचे की ओर चली गयी।

दुसरी ओर आदित्य सबको हवेली छोड कर खूद अस्मिता के ख्यालों में खोया अपनी हंटर निकाल चला जाता है।
रास्ते मे रौनक भी मिल गया।
रौनक गाड़ी पर बैठते हुये -" कहाँ चली सवारी ।"
आदित्य हसते हुये -" तारों के शहर में।"
रौनक -" अबे पागल तारों के शहर मे चलते चलते किसी नाले में मत गिर जाना जब देखो न जाने कहाँ खोया रहता है।"

आदित्य -

"भीग कर आँखो से जो बही रात भर वो ग़ज़ल हमारे दिलों पर असर कर गयी

लोग पत्थर का दिल हमको कहते थे पर एक मुस्कान पत्थर मे घर कर गयी

थे बड़े चैन से हम कोई गम न था, कट रही थी जवानी सुकूँ से बहुत

वो नजर कुछ मिला कर के ऐसे गयी जिन्दगी को इधर का उधर कर गयी।।❤❤❤❤"


क्रमश: