अस्मिता --
"क्या यह नजरे इकरार नही करतीं,
क्या इश्क़ को हर लम्हा मुकरार नही करती
माना हमेशा आपसे दिललगी की बातें हम करते नहीं
आरजू है हमारी दिल के इजहार को सुनिये जनाब
क्योकि इश्क़ मे इजहार लबो से जरुरी है ही नही।"
अस्मिता की बात सुन आदित्य एकदम खामोश हो जाता है। अचानक ही आदित्य अपनी पॉकेट से कुछ निकालने लगता है।
अस्मिता उसको ऐसे कुछ खोजता देख इशारे से पूछती है की क्या खोज रहे हो। आदित्य बस मुस्कुरा कर अपने पॉकेट मे से एक पतली सी सोने की कमरबंद निकालता है और अस्मिता को अपनी तरफ खीज उसके कमर मे पहनाने लगता है।
अस्मिता अचानक से अपने कमर पर उसकी उँगलियो की गर्म स्पर्श महसूस कर अपनी आँखे बंद कर लेती है। धडकनें समान्य से तेज चलने लगीं थी।
आदित्य अचानक से उसे ऐसे बेचैन देख उसके कान मे बोलता है -" अभी से इतनी बेचैन हो कोई नही तुम्हारी सभी इच्छाएं शादी के बात पूरी कर दूंगा।'
इतना बोल वो तेज तेज हसने लगता है।
अस्मिता उसकी बात का मतलब समझ गुस्से से उसे पीछे धक्का दे कर -" चलना नही है क्या ? या हम अकेले चले जाये।"
आदित्य आराम से अपनी हंटर की सीट पर पीछे सिर रख दोनो हाथो को सिर के पीछे लगा -" जाईये जैसी आपकी मर्जी ,,,,, आप पैदल जाना चाहे या अकेले जाना चाहे जा सकती है लेकिन याद रखिये शाम का समय है जंगल भी बहुत घना है । कोई शेर आ गया या समझो किसी सांप ने ही दौड़ा लिया तो क्या करेंगी।"
अस्मिता को भी घना जंगल देख डर लग रहा था जो आदित्य की बातों से और लगने लगा।
अस्मिता नकली तरीके से हसते हुये -" व,,, व,,, वो तो हम ऐसे ही बोल रहे थे । चलिये जल्दी देर हो जायेगी।"
आदित्य मुस्कुराते हुये -" उसके लिये हमे कुछ चाहिये।"
अस्मिता घबरा कर -" क्या?
आदित्य -" वो।"
अस्मिता -" क्या वो।"
आदित्य -" वो,,, खैर छोड़ो चलते है।
अस्मिता उसकी बात सुनकर धीरे से फुसफुसाते हुये -" इट मिल जाये तो मन कर रहा है यहीं सिर फोड दूं इनका।"
आदित्य उसकी बात सुन लेता है -" क्या बोला आपने ।"
अस्मिता मुस्कुराते हुये -" क ,,,, कुछ भी तो नही।"
दोनो फिर ऐसे ही लड़ते मुस्कुराते निकल जाते है अपनी सफर पर।"
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दुसरी तरफ रेत के एक टीले पर सार्थक बैठा एक आदमी को पकड उसके कनपट्टी पर बन्दूक लगाए था। उसके चारो तरफ बन्दूक ताने उसके बॉडीगार्ड खड़े थे
सार्थक उस आदमी से -" तुम्हारे नजर रखते हुये भी साहिबा कैसे बैलगाड़ी से गायब हो गयी।"
आदमी -" मालिक हमको नही पता की कैसे वो किधर चली गयी और बैलगाड़ी वाला बोला की उसने साहिबा को मौसी के गाँव किसी दुसरे गाड़ी से पहुचवा दिया है ,,,, फिर वो शहर की तरफ चला गया।"
सार्थक गुस्से से अपना हाथ पटकते हुये -" तुम लोगो को बोला है साहिबा पर हमेशा नजर रखा करो ,,,, और हर बार साहिबा बिना जाने ही तुम लोगो को चकमा दे देती हैं ,,, एक बात बता दे की अगर हमारी साहिबा को कुछ भी हुआ ना तो तुम सब के घर मे आग लगा देंगे।"
इधर सार्थक अभी उस आदमी से बात कर ही रहा था की एक बेकाबू हंटर गाड़ी आती है जिससे सभी बॉडीगार्ड्स में अफरा तफरी का माहौल हो जाता है।
हंटर इधर से उधर दौड़ रही थी और उसके साथ साथ सभी बॉडीगार्ड भी ।
सार्थक को यह देख बहुत गुस्सा आ रहा था। वो अपनी बन्दूक से हंटर के सारे टायरो पर फ़ायर कर देता है। एक के बाद एक चारो टायर फट जाते है और आखिरकार हंटर रुकती है।
अब जाकर जब सभी हंटर चलाने वाले को देखते है तो आश्चर्यचकित थे क्योकि यह एक 22 साल लड़की थी और उनके नजरों मे कोई भी लड़की ऐसा नही कर सकती थी।
वो लड़की हंटर रुकते ही खुशी से हाँफते हुये उतरती है।
बदामि कांच सी आँखे और चेहरे पर मुस्कान के साथ वो किसी परी की तरह लग रही थी।
जहाँ उसको देख सारे बॉडीगार्ड खुसर फुसुर करने लगे वहीं सार्थक गुस्से से उसे घुर रहा था क्योकि मौका देख वो आदमी जिसे वो अभी धमका रहा था वो फरार हो गया।
वो लड़की चहकते हुये आती है और सार्थक से -" आपका बहुत बहुत धन्यवाद ,,,, अगर आज आप ने यह गाड़ी न रोका होता तो मै तो सीधे स्वर्ग ही सीधारने वाली थी।"
इत्ना बोल वो अपना हाथ आगे करते हुये -" मेरा नाम पन्कुडी ,,,,, मुझसे दोस्ती करोगे मै यहां अभी नयी नई आई हूँ।"
सार्थक उसे पहले से ही गुस्से से देख रहा था। वह उसे अनदेखा कर रामू से बोलता है जो की सिर झुकाये वही मंड मंद मुस्कुरा रहा था -" रामू उस आदमी को पकड के लाना नही पता कहाँ कहाँ से पगाल आ जाते हैं काम बिगाड़ने।"
पन्कुडी उसकी बात न समझते हुये -" सही बोला बिल्कुल मेरे साथ भी ऐसा ही होता है हमेशा।"
सार्थक उसकी बात पर उसे घुरते हुये आगे निकल जाता है।
पन्कुडी खूद को अनदेखा होता देख सार्थक के पीछे जाते हुये -" अरे रुको रुको मैने तुमसे दोस्ती करने को बोला तुम ऐसे कैसे बिना कुछ बोले जा सकते हो।"
सार्थक रुकते हुये -" मै फालतू के लोगो से बात भी नही करता दोस्ती तो दूर की बात है।
पन्कुडी उसके सामने आकर -" हें आपने मुझे पन्कुडी को फालतू बोला।"
सार्थक को अब बहुत गुस्सा आ रहा था वह रामू से गुस्से मे बोलता है -' अरे यार कोई इस पगाल लड़की को मेरे सामने से हटाओ तब से दिमाग खराब कर रही है।"
सार्थक को इतने गुस्से मे देख पन्कुडी -" मै आपसे दोस्ती करने के सोच रही हू और आप मुझे पगाल लड़की बोल रहें है।"
अभी बेचारी इतना बोल ही रही थी की रामू बोलता है -" बहनजी आप कृपा कर के यहां से चले जाईये हमारे मालिक गुस्से से मे है बहुत ।"
पन्कुडी रामू पर गुस्सा होते हुये -" तुमने पन्कुडी को बहनजी बोला ,,, किस दिशा कोण से मै बहनजी जैसी लगती हुं।"
सार्थक अपने बॉडीगार्ड को इशारा करता है जो पन्कूड़ी को वहाँ से कुछ दूर ले जाने लगते हैं।
पन्कुडी चिल्लाते हुये -" ओए श्री मान गुस्सैल जी आपको भी देख लुंगी ,,,, अपने इशारों पर नही नचाया तो हमारा नाम भी पन्कुडी नही।"
उसकी बात को अनसुना कर सार्थक अपने सभी बॉडीगार्ड्स के साथ जीप से चला जाता है।
इधर पन्कुडी वापस अपने हंटर के पास आती है जिसके सारे पहिये फट चुकी थीं।
पन्कुडी को अब भूख लगने लगी थी उपर से रेत की वजह से शाम को उमस भी बहुत हो रही थी।
पन्कुडी वहीं मुह बिचका रोने लगी तभी उसको अपने कंधे पर किसीका हाथ महसूस हुआ।
उसने सिर उठा कर देखा तो और कोई नही सार्थक था।
सार्थक -" चलो तुम्हारे घर छोड दूं ,,,, यहां रेत के टीले पर क्या करोगी,,,, शाम हो ही चुकी है कुछ देर मे रात भी हो जायेगी ,,,,, और लडकियों का रात मे ऐसे रहना ठीक नही।'
पन्कुडी उसकी बात सुन सुबकते हुये -" मुझे ऐसी वैसी लड़की ना समझना ब्रिटिश टीचर से कर्राटा सिखा है मार दूं तो शेर गिर जाये वो अलग बात है कमरे मे छिपकली आ जाती है तो मेरी हिम्मत नही होती कमरे मे जाने की।"
उसकी बात सुन सार्थक के चेहरे पर पहली बार मुस्कराहट तैर गयी जिसे उसने छिपा लिया।
सार्थक कडक आवाज मे -" फालतू की बात नही अगर चलना है तो चलो वर्ना रात मे कोई 2 छिपकली आकर तुम्हारे अगल बगल छोड देगा।"
बेचारी पन्कुडी ! छिपकली की बात सुन झट से तैयार हो जाती है जाने के लिये और सार्थक से पहले ही उसकी जीप में बैठ जाती है।
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क्रमश :