बागी स्त्रियाँ - भाग सत्रह Ranjana Jaiswal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

बागी स्त्रियाँ - भाग सत्रह

अपूर्वा जितनी खुशी से दिल्ली पहुँची ,उतनी ही निराश हुई ,जब उसे पता चला कि किसी कारण से वह फ्लाइट कैसिल हो गई है ,जिससे दिल्ली के साहित्यकार शिमला जाने वाले थे |अब तो एसी बस ही शिमला जाने का एक मात्र विकल्प बची थी |फ्लाइट कैंसिल होते ही दिल्ली के नामी साहित्यकारों ने यह कह दिया कि वे कार्यक्रम में नहीं जाएंगे पर वह तो छुट्टियाँ लेकर इतनी दूर से आई थी |सत्येश कार्यक्रम के अहम हिस्सा थे ,इसलिए उन्हें जाना ही था |उसने भी जाने के लिए हामी भर दी |अब वह एक लंबी यात्रा में उनके साथ थी |तब तक उन्होंने उसके साथ कुछ भी ऐसा नहीं किया था कि वह उनसे डरती |उसने सोचा कि वह उनके सानिध्य में सुरक्षित रहेगी |पर बस में उनके भीतर के छिछोरे से वह परेशान हो गई |उसने उस छिछोरे पर प्रतिबन्ध लगा दिया तो सत्येश ऊपर से तो पहले की ही तरह व्यवहार करते रहे पर वे उससे आँखें चुरा रहे थे । वे अपनी हरकत पर शर्मिंदा होने के कारण आँख नहीं चुरा रहे थे बल्कि अपनी नाराजगी जताने के लिए छुपा रहे थे |लंबी उबाऊ यात्रा के कारण उसकी हालत खराब हो गई थी |शिमला की चक्करदार सड़कों ने उसके सिर को इतना चकरा दिया था कि वह बैठ भी नहीं पा रही थी |सत्येश ने उसे बहुत सहारा दिया |वह कभी लेट जाती ,कभी बेचैन होकर बैठ जाती |फिर उसे उल्टियाँ आने लगीं |कई सारे लिफाफे पहले ही बस वालों ने मुहैया करा दी थीं |एक -एक कर उसने कई लिफाफे भर दिए |सत्येश ही उन लिफाफों को बाहर फेंकते रहे क्योंकि वे ही उसके साथ थे |उसे ऐसा लग रहा था कि उसके सिर पर कोई हथौड़ा चला रहा हो|हे भगवान,वह कैसे शिमला तक पहुंचेगी और फिर वापसी में भी तो यही सब होगा |फ्लाइट से आती तो इतनी परेशानी नहीं होती|सत्येश वयोवृद्ध होकर भी सामान्य थे |वे पहाड़ों की यात्राओं के अभ्यस्त थे |दिल-दिमाग से मजबूत भी ,तभी तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था |देर रात को वे दोनों शिमला पहुंचे थे |तीन सितारे होटल में उनके ठहरने का प्रबंध था। उसके लिए अलग कमरा था ,जिसमें सारी आधुनिक सुविधाएं थीं | उसने उस रात कुछ नहीं खाया सिर्फ नीबू पानी पीकर अपने कमरे में जाकर सो गईं |सुबह दस बजे से ही कार्यक्र्म था |
सुबह जब वह सोकर उठी तो राहत महसूस कर रही थी |दूसरे दिन दोनों साथ ही कार्यक्रम स्थल पर गए |सुबह का सूरज पहाड़ों पर अपनी स्वर्णिम आभा बिखेर रहा था |पहाड़ खूब धुले, निखरे और ताजा थे | शीतल हवा बह रही थी |शिमला पहुँचते ही वह ठंड से काँपने लगी थी ,जबकि दिल्ली में ख़ासी गर्मी थी |वह अपने साथ गरम कपड़े भी लेकर गई थी पर सुबह गरम कपड़ों की जरूरत नहीं थी |फिर भी उसने एक शाल साथ ले लिया |पहाड़ों पर एक जगह गर्मी लगती है तो थोड़ी ही दूर पर सर्दी |जितनी ऊंचाई पर जाती,उतनी ही ठंड |कभी कहीं पर भी बारिश हो जाती थी तो कहीं पर बिलकुल सूखा |शिमला साहित्य अकादमी की गाड़ी उनके लिए होटल के दरवाजे पर खड़ी थी |दिन भर कार्यक्रम हुआ |शिमला के जिलाधिकारी ही मुख्य अतिथि थे |वहाँ के लोकल लेखकों और साहित्य प्रेमियों से सभागार भरा हुआ था |आस-पास के गांवों से भी साहित्य-प्रेमी आए थे ,उनमें लड़कियां और स्त्रियाँ भी थीं |उसे यह देखकर अच्छा लगा कि शिमला में अच्छे लेखक है और वहाँ के साहित्य-प्रेमी बाहर के साहित्यकारों का बड़ा सम्मान करते हैं |कार्यक्रम बहुत ही अच्छा रहा |उसकी रचनाओं को खूब सराहा गया |जिलाधिकारी ने सत्येश को वहाँ की स्थानीय टोपी और उसे शाल भेंट की |मंच पर उसे भी बैठाया गया था |वह बहुत खुश थी |
शिमला में तीन दिन रूकना था |कार्यक्रम के साथ घुमाने का काम भी संस्था करती है |दूसे दिन से उन्हें शिमला और आसपास के दर्शनीय स्थलों को देखना था |डिनर सबका साथ था ।उसके बाद स्थानीय साहित्यकार लौट गए और बाहर के साहित्यकार अपने -अपने कमरों में चले गए |सत्येश का कमरा नम्बरर 9 था और उसका छह|वे एक साथ ही अपने कमरों की तरफ चले |रास्ते में सत्येश ने कहा कि वह रात को या तो उसके कमरे में आ जाए या फिर वही उसके कमरे में आ जाएगा क्योंकि ऐसा मौका फिर शायद ही मिले |
वह कुछ बोली नहीं ।उसका कमरा पहले पड़ा था |वह अपने कमरे में चली गई |रूम पूरी तरह सज्जित था|डबल बेड,दूधिया बिस्तर सब कुछ वी आई पी |वह किसी थ्री स्टार होटल के बेहतरीन कक्ष में पहली बार रूकी थी |बाथरूम में बाथ टब देखकर वह खुशी से उछल पड़ी |गरम पानी की भी व्यवस्था थी |सब कुछ उसे सपना -सा लग रहा था |वह इन सबके लिए सत्येश की शुक्रगुजार थी |योग्यता के बावजूद यह अवसर उन्हीं के प्रयास से उसे मिला था ।वरना छोटी जगहों के साहित्यकारों को ऐसे विशिष्ट कार्यक्रमों में कम ही बुलाया जाता है |दिल्ली के साहित्यकार ही हर जगह छाए रहते हैं |
पर सत्येश की 'मौके' वाली बात उसे अच्छी नहीं लगी थी |क्या वे मौका पाने के लिए उसे यहाँ लाए थे |एक -दो रात उसके साथ बिताने का मौका ही उनकी चाहत थी |वह जिसे मित्रता समझ रही थी ,वह कुछ और था |तो...क्या वह उन्हें यह मौका देगी ...|कदापि नहीं |
वह उनके कमरे में नहीं जाएगी पर वे उसके कमरे में आ गए तो ....|क्या उन्हें अपनी प्रतिष्ठा का ध्यान नहीं |आस-पास के कमरों में विभिन्न प्रदेशों से आए साहित्यकार ठहरे हुए हैं |किसी ने उन्हें देख लिया तो....|वे दरवाजा नहीं खटखटाएंगे फोन करके दरवाजा खोलने को कहेंगे |वह फोन का स्वीच आफ कर लेती है |सुबह कोई बहाना बना देगी |उसे बुद्धिमानी से अपनी सुरक्षा करनी होगी |अभी उनके साथ ही दिल्ली लौटना है |साथ धूमने के वक्त तो शिमला साहित्य अकादमी के सचिव साथ होंगे |कोई दिक्कत नहीं होगी |वे उसके साथ जबर्दस्ती नहीं करेंगे |वे सफेदपोश अय्याश हैं |अपने नाम,पहचान का मान रखेंगे ही |वह उन्हें एकांत का मौका ही नहीं देगी |दिल्ली लौटते वक्त भी रात नहीं होने पाएगी |वे सुबह निकलेंगे और देर शाम तक दिल्ली पहुँच जाएंगे |इसके बाद वह कभी इनके साथ कहीं नहीं जाएगी |
वह सोचने लगी कि कितना मुश्किल है स्त्री का बाहर निकलना शायद इसीलिए उस पर इतनी पाबन्दियाँ लगाईं जाती रही हैं |हर जगह औरतखोर मौजूद हैं |शराफत का नकाब लगाए औरतखोर !सत्येश ने अब तक जाने कितनी नवोदित लेखिकाओं के साथ वन-टू नाइट स्टे किया होगा |जाने कितनों ने नाम -पहचान के लिए समझौते किए होंगे |लेखिका कहलाने की महत्वाकांक्षा ने उनका कितना और कहाँ-कहाँ शोषण किया होगा |
पर वह इतने कमजोर मिट्टी की नहीं बनी है |देह की कीमत पर उसे कुछ नहीं चाहिए |वह बिना सत्येश के सहयोग के उनसे बड़ा साहित्यकार बनकर दिखाएगी |
उसने दरवाजा अच्छी तरह लाक किया और लाइट और मोबाइल दोनों आफ कर मुंह तक चादर खींच लिया।