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संजीव के मकान के बाहर पुलिस की जीप आकर रुकी। उसमें गुरुनूर, सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और हेड कांस्टेबल ललित के साथ जगत भी था। जगत ने कहा,
"संजीव यहीं रहता है। मैंने अपना काम कर दिया है। मुझे अब अपने घर जाना है। आप लोग मुझे वापस छोड़कर आइए।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"हम अपनी कार्यवाही कर लें फिर तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देंगे।"
जगत ने डरते हुए कहा,
"आप लोगों ने कहा था कि संजीव का घर दिखा दो। इसलिए चला आया था। अब अगर आप लोगों की कार्यवाही में मुझे कुछ हो गया तो ?"
गुरुनूर ने कहा,
"तुम बस चुपचाप जीप में बैठे रहो। तुम्हें कुछ नहीं होगा।"
उसने सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे से कहा,
"वैसे तो अंदर नज़ीर के अलावा गगन और संजीव ही होंगे। फिर भी सावधानी से काम लेना।"
यह कहकर वह जीप से नीचे उतरी। उसके साथ सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और हेड कांस्टेबल ललित भी उतरे। वह सधे हुए कदमों से मकान के आहते में पहुँचे। चार सीढ़ियां चढ़कर मुख्य दरवाज़ा था। गुरुनूर ने कहा,
"मैं दरवाज़ा खटखटाती हूँ। तुम लोग तैयार रहना।"
वह सीढियां चढ़कर मुख्य दरवाज़े पर पहुँची। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और हेड कांस्टेबल ललित भी उसके पीछे जाकर खड़े हो गए। गुरुनूर ने दरवाज़ा खटखटाया। अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। उसने दोबारा दरवाज़ा खटखटाते हुए कहा,
"दरवाज़ा खोलो.... पुलिस है.... होशियारी मत करना.... नहीं तो जान से जाओगे...."
इस बार भी अंदर कोई हलचल नहीं हुई। गुरुनूर ने आश्चर्य से अपने साथियों की तरफ देखा।
नज़ीर को गुरुनूर की आवाज़ सुनाई पड़ी। उसने बोलने की कोशिश की। किंतु उसके मुंह से ऊं...ऊं... के अलावा कुछ नहीं निकल पाया। वह आवाज़ भी इतनी धीमी थी कि बाहर सुन पाना कठिन था। नज़ीर जानता था कि वो लोग उसकी मदद के लिए आए हैं। उसके लिए अपनी उपस्थिति की सूचना देना ज़रुरी था। वह बड़ी मुश्किल से उठकर बैठा। अंधेरे में उसे एक प्लास्टिक की कुर्सी दिखी। वह खिसकते हुए उसके पास आया। पूरी कोशिश करके उसे दोनों पैरों से मारा। वह गिर गई। उस पर स्टील का गिलास रखा था। उसके गिरने से खन खन की आवाज़ आई।
अंदर से आई आवाज़ से स्पष्ट था कि अंदर कोई है। गुरुनूर ने ज़ोर से दस्तक देते हुए कहा,
"दरवाज़ा खोलो.... तुम अब बच नहीं सकते हो।"
दरवाज़ा ना खुलने पर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने उसे अलग करके दरवाज़े को तोड़ने के लिए धक्का देना शुरू किया। अंदर नज़ीर समझ गया था कि उसका संकेत उन्हें मिल गया है। वह मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा कर रहा था।
दरवाज़ा तोड़कर तीनों अंदर दाखिल हुए। गुरुनूर की निगाह फर्श पर पड़े नज़ीर पर पड़ी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने बत्ती जला दी थी। गुरुनूर ने सबसे पहले नज़ीर के बंधन खोले। उसके कुछ सामान्य होने पर गुरुनूर ने पूछा,
"वो दोनों कहाँ हैं ?"
नज़ीर ने कहा,
"मुझे कुछ नहीं पता। मैं तो बेहोश था। जब होश में आया तो खुद को इस अंधेरे कमरे में बंधा हुआ पाया। तबसे खुदा से मदद के लिए दुआ कर रहा था।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"लगता है इसे यहाँ बंद करके कहीं और भाग गए।"
गुरुनूर ने कहा,
"इसे छोड़कर कहीं नहीं भागेंगे। किसी काम से गए होंगे। लौटकर ज़रूर आएंगे।"
उसने कुछ देर सोचकर कहा,
"आकाश तुम और ललित नज़ीर को लेकर पालमगढ़ पुलिस स्टेशन जाओ। वहांँ से और मदद ले आना। तब तक मैं यहाँ रहकर उनका इंतज़ार करती हूँ।"
हेड कांस्टेबल ललित ने कहा,
"मैडम आपको यहाँ अकेले कैसे छोड़ दें।"
गुरुनूर ने कड़क आवाज़ में कहा,
"मैं पुलिस अधिकारी हूँ।"
हेड कांस्टेबल ललित चुप हो गया। गुरुनूर ने कहा,
"किसी को तो रुकना होगा। मैं रुकती हूँ। तुम लोग जल्दी जाओ और मदद लेकर आ जाओ। जगत का घर रास्ते में पड़ेगा। उसे उसके घर छोड़ देना।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने हेड कांस्टेबल ललित की मदद से नज़ीर को सहारा देकर जीप तक पहुँचाया और वहाँ से चले गए। गुरुनूर उस कमरे में बैठकर संजीव और गगन का इंतज़ार करने लगी। उसने दरवाज़ा भेड़ दिया था और बत्ती बुझा दी थी। वह सोच रही थी कि अच्छा हुआ कि उन लोगों ने फुर्ती दिखाई, नहीं तो नज़ीर के साथ कुछ अनहोनी हो सकती थी।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे सर्वेश से मिला। उससे गगन के बारे में पूछताछ की। सर्वेश ने बताया कि गगन अभी तक पालमगढ़ में रह रहा था। वहाँ कोई नौकरी करता था जो छूट गई। इसलिए बसरपुर वापस आ गया। सर्वेश को यह नहीं पता था कि गगन कहाँ काम करता था। उसने कहा कि हो सकता है गगन का पड़ोसी रामबन जानता हो। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे उसके साथ रामबन से मिला। रामबन ने उस रेस्टोरेंट का नाम बता दिया जहाँ गगन काम करता था।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने सारी सूचना गुरुनूर को दी। गुरुनूर ने अंदाज़ा लगाया कि गगन पालमगढ़ ही गया होगा। उसने फौरन पालमगढ़ चलने को कहा। यहाँ आकर उन्होंने रेस्टोरेंट का पता किया। उसके मालिक से मिले। मालिक ने बताया कि उसके छुट्टी ना देने के बावजूद भी गगन छुट्टी पर चला गया था। इसलिए उसे नौकरी से निकाल दिया था। उसने बताया कि गगन इधर ना जाने किन खयालों में रहता था। कोई काम मन लगाकर नहीं करता था। उसने उस जगह का पता बताया जहाँ गगन रहता था। वहाँ उन्हें गगन का पड़ोसी रह चुका जगत मिला। उसने भी गगन के बारे में बताया कि वह अपने में ही खोया हुआ रहता था। उसके अधिक दोस्त नहीं थे। उसने बताया कि सिर्फ एक दोस्त था जिसका नाम संजीव था। वह अक्सर उससे मिलने आता था। वह पास में ही रहता है। गुरुनूर को लगा कि अगर गगन पालमगढ़ में होगा तो संजीव के घर आया होगा। वह जगत को लेकर यहाँ आ गई थी।
गुरुनूर गगन और संजीव का इंतज़ार कर रही थी। वह सोच रही थी कि गगन और उसका दोस्त संजीव ज़रूर उस गिरोह से संबंधित हैं। उनके पकड़े जाने पर केस को सॉल्व करने में बहुत मदद मिलेगी। नज़ीर को खोजने के लिए वह पालमगढ़ आ गई थी। राजेंद्र से कोई पूछताछ नहीं कर पाई थी। पर वह विलायत खान को निर्देश देकर आई थी कि उसकी सुरक्षा का पूरा खयाल रखे। वह खुश थी कि अब केस को सुलझाने की राह आसान हो रही है।
बसरपुर पुलिस स्टेशन में शांति छाई हुई थी। विलायत खान आज अपने घर नहीं गया था। वह पुलिस स्टेशन में ही ठहरा हुआ था। अंदर लॉकअप में बैठा राजेंद्र सोच रहा था कि वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया। अब पुलिस उससे सब उगलवाने की कोशिश करेगी। वैसे तो उसे ट्रेनिंग मिली थी कि वह जल्दी टूटे ना। पर वह जानता था कि गुरुनूर भी उसे तोड़ने की पूरी कोशिश करेगी। ऐसे में वह अपने आप को कैसे संभाल पाएगा। उसके मन में डर था कि वह सबकुछ उगल ना दे। ऐसा हुआ तो उसके साथियों की सारी मेहनत बेकार चली जाएगी। वह अपने आप को समझा रहा था कि अगर वह टूटे ना तो जांबूर अनुष्ठान संभाल लेगा। तब उसके पास उसे पुलिस से बचाने की ताकत होगी।
वह पछता रहा था कि वह पुलिस के हाथ लगा ही क्यों। अगर वह नागेश की तरह फुर्तीला होता तो वहाँ से भाग लिया होता। वह नागेश की तरह नहीं था। वह सोच रहा था कि नागेश उससे कहीं अधिक फुर्तीला ही नहीं बुद्धिमान भी है। उसकी बात सुनते ही वह जान गया था कि पुलिस का खतरा सर पर मंडरा रहा है। जबकी वह यह सोचकर निश्चिंत था कि कुछ ना मिलने पर पुलिस चुपचाप चली गई है। अगर उसे पहले ही खतरे का एहसास हो जाता तो वह शायद पुलिस की गिरफ्त में ना होता। उसे एक बात की तसल्ली थी कि गुरुनूर ने अभी तक उससे कोई पूछताछ नहीं की थी।
इस समय पुलिस स्टेशन में विलायत खान के अलावा कांस्टेबल हरीश, इंस्पेक्टर मोहन और एक होम गार्ड था। विलायत खान और इंस्पेक्टर मोहन आपस में बात कर रहे थे। इंस्पेक्टर मोहन ने कहा,
"एसपी मैडम इस आदमी से पूछताछ करने की जगह पालमगढ़ चली गईं। अब हमें रात भर सावधान रहना पड़ेगा।"
विलायत खान ने कहा,
"केस के चक्कर में मैडम बहुत परेशान हैं। उनका मुखबिर किसी मुसीबत में पड़ गया है। इसलिए उनका जाना ज़रूरी था। पर तुम ठीक कह रहे हो। हमारे ऊपर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है।"
इंस्पेक्टर मोहन ने कांस्टेबल हरीश से कहा,
"उसके लिए खाना भिजवा दिया था ?"
कांस्टेबल हरीश ने कहा,
"हाँ पर अभी तक खाया नहीं है उसने।"
"एकबार जाकर झांक लो कि क्या कर रहा है। कह देना कि खाना खा ले।"
कांस्टेबल हरीश उठकर लॉकअप तक गया। राजेंद्र बैठा कुछ सोच रहा था। अभी तक उसने खाना नहीं खाया था। कांस्टेबल हरीश ने कहा,
"खाना क्यों नहीं खाया अभी तक ? चुपचाप खाओ और सो जाओ।"
कांस्टेबल हरीश वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गया। राजेंद्र को अब भूख लगने लगी थी। उसने अपनी थाली उठाई और खाने लगा। कुछ ही देर बाद उसने खून की उल्टी की और गिर पड़ा। पुलिस स्टेशन में दहशत फैल गई। विलायत खान समझ नहीं पा रहा था कि यह सब कैसे हो गया ? वह अब गुरुनूर को क्या जवाब देगा ?
खाना उस रेस्टोरेंट से मंगाया गया था जहाँ से अक्सर पुलिस स्टेशन में खाना आता था। राजेंद्र ने कहा था कि उसे पनीर से एलर्जी है। इसलिए उसकी थाली में दाल, आलू की सब्ज़ी और रोटियां थीं।
जिस आदमी ने खाना पहुँचाया था वह पुलिस स्टेशन से कुछ आगे एक गली में मृत पड़ा था।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और हेड कांस्टेबल ललित पालमगढ़ पुलिस स्टेशन से मदद लेकर वापस संजीव के घर पहुँचे थे। उन्हें वहाँ गुरुनूर नहीं मिली। सब लोग परेशान हो गए। गुरुनूर का इस तरह गायब हो जाना छोटी बात नहीं थी। इसका केस पर बहुत बुरा असर पड़ने वाला था।