(35)
मदद का इंतज़ार करते हुए सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने नज़ीर का मैसेज पढ़ा। उसने लिखा था,
'गगन के पीछे जा रहा हूँ....सही मौका मिलने पर फोन करूँगा....."
मैसेज पढ़ने के बाद सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे सोच में पड़ गया। सिर्फ इतना स्पष्ट था कि नज़ीर गगन के पीछे कहीं जा रहा है। कहाँ जा रहा है ? कैसे उसका पीछा कर रहा है कुछ स्पष्ट नहीं था। वह झल्लाया कि कम से कम पूरी बात बतानी चाहिए थी। लेकिन फिर उसके मन में आया कि हो सकता है कि उसके पास इतना समय ही ना रहा हो। उसने जल्दी में केवल यह सूचना दे दी कि वह गगन के पीछे है। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के मन में खयाल आया कि एकबार नज़ीर को फोन करके पूछे। पर अपने इस खयाल को उसने यह सोचकर दबा दिया कि पता नहीं नज़ीर इस समय बात करने की स्थिति में हो या नहीं। उसने खुद लिखा था कि वह सही मौका मिलने पर फोन करेगा। वह गुरुनूर की राह देखने लगा। कुछ ही देर में गुरुनूर अपनी टीम के साथ सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के पास पहुँच गई।
पुलिस के जाने के कुछ समय के बाद नागेश मकान में पहुँचा। बैकयार्ड की दीवार के बाहर से उसने चिड़िया की आवाज़ निकाली। यह एक संकेत था कि वह आ गया है। राजेंद्र को यकीन था कि पुलिस वाले चले गए हैं। उसने भी चिड़िया की आवाज़ निकाल कर सब ठीक होने का संकेत दिया। उसके बाद कमरे से बाहर आया। नीचे जाने के लिए सीढ़ियां थीं। सीढ़ियां उतर कर नीचे आया। यह एक छोटा सा आंगन था। वह दरवाज़े के पास आकर खड़ा हो गया।
नागेश बैकयार्ड की दीवार फांदकर अंदर आया। दरवाज़े पर दो बार दस्तक दी। राजेंद्र ने दरवाज़ा खोल दिया। नागेश अंदर आ गया। उसके अंदर आते ही राजेंद्र ने कहा,
"बहुत बड़ी गड़बड़ होते होते रह गई।"
उसकी बात सुनकर नागेश के कान खड़े हो गए। उसने कहा,
"क्या हुआ ?"
राजेंद्र ने सारी बात बताने के बाद कहा,
"अच्छा हुआ कि पुलिस को कोई शक नहीं हुआ। वो लोग चुपचाप लौट गए।"
सारी बात सुनते ही नागेश सोच में पड़ गया था। उसने कहा,
"खतरा टला नहीं है। फौरन यहाँ से भागो।"
यह कहकर वह दरवाज़े की तरफ भागा। राजेंद्र ने कहा,
"उस लड़के का क्या करेंगे ?"
"उसे छोड़ो.... उसके चक्कर में अगर हम फंस गए तो सबकुछ बर्बाद हो जाएगा।"
उसके बाद राजेंद्र भी बिना कुछ बोले उसके साथ बाहर की तरफ भागा। दोनों मकान के गेट पर आए तभी पुलिस की जीप गेट पर आकर रुकी। दोनों बैकयार्ड की तरफ भागे। नागेश फुर्तीला था। वह बैकयार्ड की दीवार फांदकर भाग गया। राजेंद्र को पुलिस ने दबोच लिया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे फौरन हेड कांस्टेबल ललित के साथ नागेश को पकड़ने के लिए चला गया।
राजू को बसरपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया। रानीगंज पुलिस को उसके मिलने की सूचना दे दी गई। राजेंद्र का पकड़ा जाना केस के लिए अच्छी खबर थी। पूछताछ के लिए गुरुनूर उसे पुलिस स्टेशन ले गई। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे की कोशिश के बावजूद नागेश पुलिस के हाथ नहीं लगा।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने गुरुनूर को नज़ीर के मैसेज के बारे में बताया। सुनकर गुरुनूर गंभीर हो गई। उसने कहा,
"कितने बजे आया था मैसेज ?"
"मैडम मैसेज तो उसने करीब चार बजे भेजा था। पर मैंने पाँच बजे के करीब देखा था। नेटवर्क नहीं आ रहा था इसलिए मैसेज देर से मिला। पर तब उस मकान पर धावा बोलना था। इसलिए आपको बता नहीं पाया।"
"आकाश ना जाने वह किस हालत में होगा। अब तक उसे फोन करना चाहिए था।"
वह रुकी। कुछ सोचकर बोली,
"फिर भी तुम उससे बात करने की कोशिश करो। शायद बात हो जाए।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने फौरन नज़ीर का नंबर मिलाया। उसका फोन स्विच ऑफ था। गुरुनूर और सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे दोनों परेशान हो गए। गुरुनूर ने कहा,
"गगन के बारे में पता करो। उसके ज़रिए ही नज़ीर तक पहुँच पाएंगे।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैं सर्वेश के पास जाकर उसके बारे में पता करता हूँ।"
यह कहकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे फौरन वहाँ से निकल गया।
गगन और संजीव सोच में पड़े हुए थे। उन्हें मीटिंग के लिए जाना था। पर उन्हें डर था कि उनके पीछे कहीं नज़ीर होश में ना आ जाए। हालांकि उन लोगों ने पूरा इंतज़ाम कर रखा था। नज़ीर के हाथ पैर अच्छी तरह से बंधे हुए थे। मुंह में भी कपड़ा ठूंसकर बांध दिया था। होश में आने के बाद भी वह कुछ करने के लायक ना होता। फिर भी दोनों कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। संजीव ने कहा,
"इस समय तो मीटिंग में जाने की जल्दी है। पर लौटकर सोचना पड़ेगा कि इसका करना क्या है ?"
गगन नज़ीर के पास जाकर पंजों के बल बैठ गया। उसे ऐसे देखा जैसे किसी सामान को निहार रहा हो। वह बोला,
"ना जाने कबसे मुझ पर नज़र रखे होगा। इसे मैंने कई बार बंसीलाल की चाय की दुकान पर देखा था। पता नहीं था कि पुलिस के लिए जासूसी करता है।"
संजीव ने कहा,
"जो भी हो। इसका जल्दी ही कुछ करना पड़ेगा। नहीं तो हम मुश्किल में पड़ सकते हैं।"
गगन उठकर संजीव के पास आया। उसके पास बैठते हुए बोला,
"रास्ते में मुझे यह शक हो गया था कि कोई मेरे पीछे लगा है। मैं जब पेशाब करने के बहाने सड़क के किनारे रुका तो यह भी कुछ दूरी पर रुक गया। तब यह किसी को फोन करने की कोशिश कर रहा था। मेरे आगे बढ़ने पर फिर मेरे पीछे लग गया। तभी मैंने तुम्हें आगाह कर दिया था कि कोई मेरे पीछे आ रहा है।"
संजीव ने एकबार फिर अपना सवाल दोहराया। गगन ने कहा,
"इसे रखना तो खतरनाक होगा। मारने पर इसकी लाश को ठिकाने लगाने की समस्या आएगी। कुछ सोचना पड़ेगा।"
संजीव कुछ झल्लाकर बोला,
"वही तो कह रहा हूँ कि कुछ सोचो। एक कमरे में इसे कैसे छिपाकर रख सकेंगे। मैं कह रहा था कि मीटिंग के बाद जांबूर को अपनी समस्या बता देते हैं। वह मदद कर देगा।"
गगन ने कहा,
"जांबूर को बताने की क्या ज़रूरत है। हम लोग निपट लेंगे।"
"हम क्या कर लेंगे। बैठे-बिठाए अच्छी मुसीबत गले पड़ गई है। समझ नहीं आ रहा था कि अब इस मुसीबत का करेंगे क्या ?"
संजीव गुस्से से बोला। गगन को अच्छा नहीं लगा। उसने कहा,
"अब तुम तो इस तरह पेश आ रहे हो जैसे कि मैं जानबूझकर इसे यहाँ लेकर आया हूँ।"
संजीव ने अपने आप को शांत करके कहा,
"मेरा मतलब वो नहीं है। पर इसका यहाँ रहना हम दोनों के लिए नुकसानदेय है। इसलिए कह रहा हूँ कि जल्दी कुछ करते हैं।"
गगन भी अब कुछ शांत हुआ। उसने कहा,
"सही कह रहे हो तुम। पर हमको बहुत सोच समझकर काम लेना होगा।"
संजीव ने कहा,
"हम दोनों अकेले कुछ नहीं कर पाएंगे। अपने ग्रुप में किसी से मदद लेते हैं।"
गगन ने कुछ सोचकर कहा,
"ठीक है मैं भानुप्रताप से बात करता हूँ।"
संजीव ने याद करते हुए कहा,
"वही जिसने अमन की किडनैपिंग में मदद की थी।"
गगन ने भानुप्रताप को फोन करके सारी बात बताई। उसने मीटिंग के बाद मदद का आश्वासन दिया। उससे बात करके गगन और संजीव आराम से बत्ती बुझाकर मीटिंग के लिए निकल गए।
कमरे के एक कोने में नज़ीर किसी सामान की तरह बंधा हुआ पड़ा था। कुछ देर में उसने अपनी आँखें खोलीं। उसे अपने आसपास अंधेरा दिखाई पड़ा। उसने हिलने की कोशिश की तो पता चला कि वह बंधा हुआ है। मुंह भी बंधा हुआ था। वह ज़ोर से चिल्ला भी नहीं सकता था। उसे याद आया कि जब वह गगन का पीछा करते हुए यहाँ पहुँचा तो अंधेरा हो चुका था। उसने गगन को छोटे से मकान के सामने अपनी मोटरसाइकिल खड़ी कर अंदर घुसते देखा। वह भी मकान के बाहर रुक गया। वह देखना चाह रहा था कि गगन यहाँ रुकता है या कहीं और जाता है। वह अपनी मोटरसाइकिल से उतर कर कुछ आगे बढ़ा था कि किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने पलट कर देखा। उस आदमी ने कोई स्प्रे उसके चेहरे पर मारा। वह बेहोश हो गया।
वह सोच रहा था कि उसकी थोड़ी सी असावधानी ने उसे मुसीबत में डाल दिया। जब गगन रुका था तब उसे भी वहीं नहीं रुकना चाहिए था। उसे कुछ आगे जाकर उसकी राह देखनी चाहिए थी। तब गगन को उस पर शक ना होता। उसने गलती की। वहीं रुककर एकबार फिर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे से संपर्क करने की कोशिश करने लगा। संपर्क नहीं हो पाया। उसके बाद वह फिर गगन के पीछे लग गया। शायद तभी गगन ने अपने साथी को सूचित कर दिया होगा कि वह उसके पीछे लगा है। उसके साथी ने ही उसे बेहोश किया होगा।
पालमगढ़ के बाहर स्थित मकान में मीटिंग चल रही थी। जांबूर अपने आसन पर बैठा था। उस जगह पर एकदम शांति छाई हुई थी। माहौल में एक तनाव था। सभी चुपचाप बैठे इस बात का इंतज़ार कर रहे थे कि जांबूर कुछ कहे। करीब पाँच मिनट तक चुप रहने के बाद जांबूर ने कहा,
"पुलिस हमारे इस अनुष्ठान को भंग करने में लग गई है। अगर हमारे अनुष्ठान में चूक होती है तो अब तक की सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। हम सबने ज़ेबूल को प्रसन्न करने के लिए बड़ी मेहनत और धैर्य से यहाँ तक का सफर तय किया है। हमको अपनी मेहनत बेकार नहीं जाने देनी है। आज पुलिस ने हमारे एक आदमी को पकड़ लिया है। हमारी बलि भी हमसे छीन ली है। अब अगली अमावस से पहले हमको नई बलि का इंतज़ाम करना होगा। पर यह काम पूरी सावधानी के साथ करना होगा।"
काबूर ने कहा,
"अगला अनुष्ठान कहाँ होगा ?"
जांबूर ने कहा,
"अभी हमको एक एक कदम फूंककर रखना है। एक बार बलि की व्यवस्था हो जाए फिर सबको सूचना दे दी जाएगी। अभी आप सब वापस चले जाएं। पूरी सावधानी बरतें। हमारी थोड़ी सी भी चूक घातक हो सकती है।"
सब एक एक करके उस जगह से निकल गए। सबके जाने के बाद काबूर ने पूछा,
"राजेंद्र पुलिस के कब्ज़े में है। उसका क्या करना है ?"
जांबूर ने जवाब दिया,
"उसकी व्यवस्था हो जाएगी।"
यह कहकर वह अपने आसन से उठकर चला गया।