Gyarah Amavas - 33 books and stories free download online pdf in Hindi

ग्यारह अमावस - 33



(33)


शांति कुटीर में पुलिस की कार्यवाही से बसरपुर में लोगों के बीच एक गुस्सा था। लोगों के बीच दीपांकर दास की छवि अच्छी थी। लोगों का कहना था कि पुलिस क्योंकी सही गुनहगार को पकड़ने में नाकामयाब रही है इसलिए इस तरह की कार्यवाही से लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है। पुलिस ने अपनी कार्यवाही के लिए जो दलीलें दी थीं वह सही साबित नहीं हुईं। इसलिए लोग और अधिक गुस्से में थे।
शांति कुटीर का मैनेजर नीलेश कुछ लोगों के साथ पुलिस स्टेशन आया हुआ था। उसने पुलिस स्टेशन में दीपांकर दास और शुबेंदु के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज़ कराई थी। उसने गुरुनूर से मिलकर कहा,
"मैडम मैं पिछले डेढ़ साल से शांति कुटीर में काम कर रहा हूँ। आज तक कभी दीपू दा और शुबेंदु दा इतने दिनों के लिए बिना बताए कहीं नहीं गए थे। उस रात जब दोनों निकले थे तबसे वापस नहीं लौटे। आपने उन्हें तलाश करने की बजाय शांति कुटीर पर इस तरह छापा मारा जैसे वहाँ कुछ अनैतिक कार्य होता हो। अब मैंने बाकायदा उन दोनों के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज़ करा दी है। अब आपका फर्ज़ है कि उन दोनों को तलाश कीजिए।"
नीलेश के साथ आए बाकी लोगों ने भी उन दोनों को तलाश करने की बात कही। गुरुनूर ने आश्वासन दिया कि वह अपनी पूरी कोशिश करेगी। उन लोगों के जाने के बाद गुरुनूर ने सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे से कहा,
"शांति कुटीर में तो कुछ ऐसा नहीं मिला जिससे दीपांकर दास पर शक किया जा सके। हमने उसके व्यक्तिगत कमरे में भी तलाशी ली थी। वहाँ कबर्ड से एक तस्वीर और अखबारों की कुछ कटिंग्स मिली थीं। उनमें हावड़ा पश्चिम बंगाल की किसी कुमुदिनी दास का ज़िक्र था। शायद कुमुदिनी दीपांकर दास की बेटी या कोई करीबी होगी। मैंने हावड़ा पुलिस को दीपांकर दास के बारे में पता करने को कहा है। हो सकता है कि कोई काम की बात पता चल जाए।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैडम ऐसा ही हो। अब बसरपुर की जनता में असंतोष व्याप्त हो रहा है। अगली अमावस भी आने वाली है। उससे पहले हमको कुछ करना पड़ेगा। अगर इस बार भी वह कातिल कामयाब हो गया तो हमारे लिए बहुत मुश्किल खड़ी हो जाएगी।"
गुरुनूर के मन में भी यही चल रहा था। उसने कहा,
"अब ऐसा नहीं होगा आकाश। हमें अपनी कोशिशों को तेज़ करना पड़ेगा। बसरपुर, पालमगढ़ और रानीगंज के आसपास ऐसी जगहों की तलाश तेज़ कर दो जहाँ बलि देने का काम आसानी से हो सके।"
"मैडम मैंने पहले ही यह काम तेज़ कर दिया है।"
"आकाश तुमने नज़ीर को सर्वेश और जोगिंदर पर नज़र रखने को कहा था। उसने कोई खबर दी।"
"मैडम अभी तक तो उसके हाथ कुछ खास नहीं लगा है। पर मैं उससे भी कहता हूँ कि अपने काम में तेज़ी लाए।"
उसी समय कांस्टेबल हरीश ने आकर कहा कि नज़ीर मिलने के लिए आया है। गुरुनूर ने फौरन उसे केबिन में भेजने को कहा। नज़ीर ने गुरुनूर को वह बात बताई जो उसने गगन को कहते हुए सुना था। वह बोला,
"मैडम जितना मैं जानता हूँ गगन एक दब्बू इंसान है। लोग उसके मुंह पर उसका मज़ाक उड़ाते थे पर वह कभी कुछ नहीं बोल पाता था। पर मैंने उसे बड़े विश्वास के साथ वह बात कहते सुना था। मुझे लगा कि उसके इस विश्वास के पीछे कोई कारण है।"
गगन की बात सुनकर गुरुनूर ने कहा,
"नज़ीर तुमने बात तो सही पकड़ी है। उसका कहना कि कुछ महीनों में वह ऐसा बदला लेगा कि सब याद रखेंगे मामूली बात नहीं है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैडम बात तो सही है। पर हमारे समाज में अक्सर लोग इस तरह की बात कर जाते हैं। इस आधार पर हम उससे पूछताछ करें और कुछ ना निकले तो और मुश्किल हो जाएगी। अभी शांति कुटीर के मामले में हम देख चुके हैं।"
गुरुनूर कुछ सोचकर बोली,
"तुम्हारी बात मैं समझ रही हूँ आकाश। हमको कोई जल्दबाजी नहीं करनी है। लेकिन गगन ने जो कहा उसे नज़र अंदाज़ भी नहीं कर सकते।"
बोलते हुए वह रुकी। उसने नज़ीर से कहा,
"ऐसा करो कि तुम गगन पर कड़ी नज़र रखो। देखो कि वह कहाँ जाता है ? क्या करता है ? किससे मिलता है ? उसकी हर एक छोटी से छोटी बात पर अपनी निगाह जमाकर रखो। हर चीज़ की रिपोर्ट फोन पर करते रहना।"
नज़ीर ने किसी मंजे हुए पुलिस वाले की तरह कहा,
"बिल्कुल मैडम.... मैं गगन पर पूरी नज़र रखूँगा। समय समय पर रिपोर्ट दूँगा।"
यह कहकर वह जाने के लिए खड़ा हो गया। गुरुनूर ने उसे निर्देश दिया कि वह नज़र रखने के साथ साथ पूरी सावधानी बरते। नज़ीर चला गया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"आपने गगन पर निगरानी रखने को कहकर अच्छा किया। अगर जैसा हम सोच रहे हैं वैसा है तो उसकी हरकतों से हमको कोई सुराग अवश्य मिलेगा।"
"बिल्कुल मिलेगा आकाश। मेरे मन में ना जाने क्यों यह आ रहा है कि जल्दी ही हम सही मुजरिम तक पहुँच जाएंगे। बस हमको ज़रा भी ढिलाई नहीं बरतनी है।"
गुरुनूर और सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे अपने अगले कदम पर विचार करने लगे।

गगन कुछ समय पहले ही खाना खाकर आराम करने के लिए अपने आंगन में चारपाई पर लेटा था। हल्की गुनगुनी सी धूप उसे बहुत भली लग रही थी। वह सर्वेश की दुकान पर जो कुछ भी हुआ उसके बारे में सोच रहा था। उसने बहुत कोशिश की थी कि हमेशा की तरह वह चुपचाप उनकी बातें सुन ले। लेकिन उसके अंदर से एक आवाज़ आ रही थी। वह आवाज़ उससे कह रही थी कि अब उसे और अधिक दबने की ज़रूरत नहीं है। वो दिन जल्दी आने वाले हैं जब वह उसे दबाने वालों को अच्छा सबक सिखाएगा। अपने अंदर की उस आवाज़ से प्रेरित होकर उसने उन दोनों को जवाब दे दिया था।
वह पीठ के बल लेटा हुआ था। अपने दोनों हाथों को उसने सर के पीछे कर तकिया सा बना रखा था। गुनगुनी धूप में लेटा वह आने वाले अच्छे समय के सपने देख रहा था। वह सोच रहा था कि उसके मकान की मरम्मत कराना बहुत ज़रूरी है। घर में गुसलखाना और शौचालय को नए तरह से बनाने की ज़रूरत है। बहुत से और भी काम करवाने हैं। एकबार जब उसे शक्ति मिल जाएगी तो पैसों की तंगी नहीं रहेगी। तब वह इस मकान का हुलिया ही बदल डालेगा। घर में हर एक चीज़ एकदम नई होगी। वह पूरी शान के साथ रहेगा। आज जो उसकी खिल्ली उड़ाते हैं उसकी रईसी देखकर जलभुन जाएंगे। तब वह भी उन्हें आसपास फटकने नहीं देगा।
उसका ध्यान बाकियों से हटकर उर्मी पर आ गया। उसे सबसे गहरा घाव उर्मी ने ही दिया था। वह सोच रहा था कि पैसे आने के बाद सबसे पहले वह उसे ही ढूंढ़ेगा। उसका पता करके उसे अपने घर लेकर आएगा। यहाँ रखकर उससे अपने अपमान का बदला लेगा। उसे उस हालत में पहुँचा देगा कि वह उसके सामने रहम की भीख मांगने को मजबूर हो जाएगी। उसके ज़ेहन में परेशान उर्मी की छवि उभरी। उसका चेहरा आंसुओं से भींगा था। वह उसके कदमों में गिरी गिड़गिड़ाते हुए कह रही थी कि अब बस। उससे और अधिक नहीं सहा जा रहा है। इस छवि के बारे में सोचकर उसका दिल खुशी से झूम उठा।
वह यह सब सोचकर खुश हो रहा था तभी उसके फोन पर मैसेज अलर्ट आया। उसने फौरन फोन उठाकर चेक किया। ब्लैक नाइट ग्रुप पर मैसेज था,
'बिल्लियों सावधानी से रहना.... कुत्ते झपटने को तैयार हैं.... आगे जल्दी ही.... इंतज़ार करो....'
गगन इस मैसेज के अर्थ को समझ गया। पुलिस की बढ़ती गतिविधियों की उसे जानकारी थी। उन्हीं से सावधान रहने को कहा गया था। अपनी समझ से वह पूरी तरह सावधान था। बहुत अधिक घर से बाहर नहीं निकलता था। निकलता भी था तो इधर उधर किए बिना काम निपटा कर सीधे घर आ जाता था। वह भी नहीं चाहता था कि उसके सपनों में कोई विघ्न पैदा हो।

दीपांकर दास अपने बिस्तर पर बैठा था। वह परेशान था। सुबह आँख खुलने पर उसने एकबार फिर खुद को काले चोंगे और शैतान वाले मुखौटे में पाया था। वह समझ नहीं पा रहा था कि ऐसा कैसे हुआ। कई दिनों से तो वह इस कमरे के बाहर नहीं निकला था। कभी कभी खिड़की से बाहर झांक लेता था। वहाँ से भी उसे एक जैसा दृश्य ही दिखाई पड़ता था। वह यहाँ रहते हुए ऊबने लगा था। अपने आपको मानसिक रूप से स्थिर रखने के लिए वह ध्यान करने का प्रयास करता था। लेकिन ध्यान करने में भी उसका मन नहीं लगता था।
एक आदमी था जो उसे खाना देने के लिए आता था। कल रात जब वह आया था तो दीपांकर दास ने उससे कहा था कि उसे शुबेंदु से मिलना है। वह उसके साथ शांति कुटीर वापस जाना चाहता है। पर उस आदमी ने उसकी किसी बात पर ध्यान ही नहीं दिया। रोज़ की तरह खाने की नई थाली रखी। पुरानी उठाई और वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद बहुत देर तक वह दरवाज़े को पीटते हुए शुबेंदु को आवाज़ देता रहा था।
उसके बाद क्या हुआ था उसे याद नहीं था। खाने की थाली खाली थी। इससे उसे लग रहा था कि शायद उसने खाना खाया था। उसके बाद ही उस पर वह बेहोशी छाई होगी। उसे कुछ याद नहीं कि वह कैसे उस रूप में आया। वह बहुत अधिक परेशान था। उसके साथ इतना कुछ हो जाता था लेकिन उसे कुछ पता ही नहीं चलता था। उसकी इस स्थिति का कारण क्या है उसे नहीं पता था।
बेचैनी में वह बिस्तर से उठकर कमरे में टहलने लगा।




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