ग्यारह अमावस - 32 Ashish Kumar Trivedi द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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ग्यारह अमावस - 32



(32)

पुलिस की गतिविधियां अचानक बढ़ गई थीं। इस बात से जांबूर परेशान था। उसने अपने साथियों की एक मीटिंग बुलाई थी। इस मीटिंग में काबूर और उसके अन्य दो साथी थे। जांबूर हमेशा की तरह काला चोंगा और शैतान वाला मुखौटा पहने हुए था। मुखौटे के पीछे से झांकती जांबूर की आँखें गुस्से से लाल थीं। उसने कहा,
"बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है। पुलिस हमारी हर जगह पर पहुँच रही है। पहले दक्षिणी पहाड़ वाले खंडहर में। फिर उत्तर के पहाड़ वाले खंडहर में। वहाँ से उन्हें नर मुंड और कंकाल भी मिल गए। वो एसपी गुरुनूर कौर बड़ी खतरनाक है। अब उसने शांति कुटीर पर भी नज़र रखनी शुरू कर दी है।"
काबूर ने कहा,
"रानीगंज के उस मकान पर भी पुलिस पहुँच गई। वो तो समय पर पता चल गया। मैंने इन दोनों को बच्चे के साथ निकल जाने को कह दिया। पर जल्दबाजी में ये लोग वहाँ बहुत कुछ छोड़ आए हैं।"
वहाँ मौजूद दो व्यक्ति बच्चों को अगवा कर बसरपुर पहुँचाने का काम करते थे। उन्होंने ही मंगलू का अपहरण किया था। इस समय राजू उनके कब्ज़े में था। वो उसे नींद का इंजेक्शन देकर आए थे। उनमें से एक राजेंद्र था जो अहाना को पालमगढ़ से अगवा करके लाया था। राजेंद्र ने कहा,
"क्या करते ? पुलिस के आने की सूचना आखिरी वक्त में मिली। इसलिए बच्चे को लेकर फौरन निकलना पड़ा। वहाँ रहते तो पकड़े जाते।"
दूसरा व्यक्ति लंबा था। उसका नाम नागेश था। यह वही था जिसने शिवराम हेगड़े को पकड़ा था। नागेश और राजेंद्र जांबूर के खास आदमी थे। नागेश ने कहा,
"अमावस में कुछ ही दिन बचे हैं। अब अनुष्ठान के लिए कोई नई जगह तलाश करनी पड़ेगी। जिस तरह से वो पुलिस वाली पीछे पड़ी है नई जगह की तलाश कर पाना आसान नहीं होगी।"
काबूर ने कहा,
"बसरपुर इस काम के लिए सबसे अच्छी जगह थी। एक शांत सा कस्बा जो चारों तरफ पहाड़ों से घिरा था। पर अब वहाँ कुछ भी करना खतरनाक होगा।"
नागेश ने कहा,
"गलती किसकी है ? लाशों को ठिकाने लगाना तुम्हारी ज़िम्मेदारी थी। तुम्हारी लापरवाही की वजह से पुलिस को खबर लगी। थोड़ी सी सावधानी बरतते तो कोई दिक्कत ही नहीं होती।"
काबूर को अपने ऊपर लगाया इल्ज़ाम अच्छा नहीं लगा। उसने कहा,
"मेरी क्या गलती है। मैं तो घने जंगल में लाशें डालकर आया था। वो भी अलग अलग दिशा में। सरकटी लाशों की पहचान भी मुश्किल थी।"
राजेंद्र बोला,
"इस तरह खुले में छोड़ने की क्या ज़रूरत थी। दफना देते।"
काबूर ने कहा,
"मुझ पर बेवजह इल्ज़ाम मत लगाओ। वैसे भी कितने दिनों तक तो किसी को कुछ पता भी नहीं चला था। पर एक लाश मिली और हड़कंप मच गया।"
नागेश ने कहा,
"वो एक लाश ना मिलती तो कुछ भी नहीं...."
"चुप हो जाओ...."
जांबूर की ज़ोरदार आवाज़ सुनकर सब एकदम चुप हो गए। उसे अपने साथियों का इस तरह आपस में झगड़ना पसंद नहीं आ रहा था। उससे रहा नहीं गया तो वह चिल्ला उठा। वह अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया। उसकी आँखों में पहले से अधिक क्रोध दिखाई पड़ रहा था। उसने कहा,
"यह समय एक होकर सोचने का है। तुम लोग बेवकूफों की तरह एक दूसरे से उलझ रहे हो।"
उसके साथियों ने अपनी निगाहें झुका लीं। जांबूर उस कमरे में इधर उधर टहलने लगा। कुछ देर में अपनी जगह पर बैठते हुए बोला,
"चाहे जो भी हो जाए। हम ग्यारह अमावस का अनुष्ठान पूरा करके ज़ेबूल को प्रसन्न करेंगे। कोई एसपी गुरुनूर कौर हमें हमारे संकल्प से डिगा नहीं सकती है।"
काबूर ने पूछा,
"पर ऐसी कौन सी जगह है जहाँ हम अपना अनुष्ठान कर पाएंगे ?"
जांबूर इस सवाल के जवाब में कुछ सोचने लगा। उसके साथी प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह कोई जगह सुझाए। कुछ देर बाद जांबूर ने कहा,
"उसी जगह जहाँ वो दोनों कैद हैं।"
काबूर समझ गया कि वह किन लोगों की बात कर रहा ‌है। उस जगह के बारे में सोचकर वह बोला,
"बहुत अच्छी जगह सोची है। उस जगह का तो पुलिस अनुमान भी नहीं लगा सकती है। पर सभी सदस्यों को वह जगह दिखानी पड़ेगी।"
जांबूर ने कहा,
"फिलहाल ब्लैक नाइट ग्रुप में संदेश भेज दो कि सभी सावधान रहें और अगले निर्देश का इंतज़ार करें।"
उसके बाद जांबूर ने नागेश और राजेंद्र से कहा,
"तुम लोग भी सावधानी बरतना। जल्दी ही तुम्हें बता दिया जाएगा कि बच्चे को लेकर कहाँ आना है। अब तुम दोनों जाओ।"
जांबूर के आदेश पर दोनों वहाँ से चले गए। उनके जाने के बाद काबूर ने कहा,
"एक बात पूछूंँ ?"
जांबूर ने कहा,
"जानता हूँ कि क्या पूछना चाहते हो। वो दोनों हमारे काम के हैं इसलिए ज़िंदा हैं। जब काम के नहीं रहेंगे उन्हें हटा दिया जाएगा।"
काबूर जानना चाहता था कि वो दोनों किस काम आने वाले हैं। उसका आशय समझते हुए जांबूर ने कहा,
"बस इससे अधिक कुछ मत पूछो। जो कहा है वह करो।"
काबूर ने आगे कुछ नहीं कहा। वह चुपचाप वहाँ से चला गया।

गुरुनूर अपने केबिन में बैठी सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के साथ आगे की योजना के बारे में बातचीत कर रही थी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैडम आपने दीपांकर दास के बीते जीवन के बारे में पता करने को कहा था। कुछ खास पता चला।"
"अभी तक कुछ खबर नहीं मिली।"
गुरुनूर ने कुछ सोचकर आगे कहा,
"दीपांकर दास और शुबेंदु का अभी तक शांति कुटीर वापस लौटकर नहीं आए हैं। इससे पक्का हो गया है कि वही दोनों इस सबमें शामिल हैं। उन्होंने ज़रूर शिवराम हेगड़े और सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को नुक्सान पहुँचाया है। दीपांकर दास और शुबेंदु को खोजना आवश्यक हो गया है।"
उसकी बात सुनकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैडम ऐसा तो नहीं है कि दोनों शांति कुटीर में ही कहीं छिपकर बैठे हों। हो सकता है वहाँ भी कोई गुप्त जगह हो। जिसके बारे में हम ना जानते हों।"
गुरुनूर ने उसकी बात पर विचार किया तो वह ठीक लगी। उसने कहा,
"फिर देर नहीं करते हैं। अपनी टीम के साथ वहाँ की तलाशी लेते हैं।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे शांति कुटीर पर छापे की तैयारी करने चला गया। पुलिस टीम जब शांति कुटीर के अंदर छापा मारने के लिए दाखिल हुई तो वहाँ उनका विरोध किया गया। बात बसरपुर में फैल गई। बहुत सारे और ‌लोग भी विरोध करने के लिए आ गए। वहाँ एक बवाल मच गया। गुरुनूर ने सभी को बड़ी मुश्किल से समझाया। लोगों को शांत कराने के बाद पुलिस ने शांति कुटीर की अच्छी तरह तलाशी ली। पर उन्हें वहाँ कुछ नहीं मिला।

गगन को पालमगढ़ में कोई काम नहीं मिला था। इसलिए इन दिनों वह बसरपुर आ गया था। यहाँ उसने एक दो जगह काम की बात की थी। लेकिन जैसा उसके साथ होता था वही हुआ था। उसे काम तो नहीं मिला पर उपहास अवश्य सहना पड़ा। उसने तय कर लिया था कि अब वह काम मांगने किसी के पास नहीं जाएगा। उसने अनुमान लगाया कि यदि वह किफायत से चले तो कुछ महीने बिना काम के भी उसे कोई दिक्कत नहीं होने वाली थी। उसने सोचा कि उसके बाद तो ग्यारह अमावस पूरी हो जाएंगी। उसे शक्तियां प्राप्त होंगी। फिर वह अपने हिसाब से रह सकेगा। तब तक के लिए वह बहुत सोच समझकर खर्च कर रहा था। खाना खाने बाहर नहीं जाता था। खुद ही बनाता था।
वह सर्वेश की दुकान पर कुछ आवश्यक सामान लेने गया था। उसने सर्वेश को सामान की लिस्ट दी। सामान के साथ उसकी मात्रा भी लिखी हुई थी। सर्वेश उसकी लिस्ट को देख रहा था। उसी समय उसकी दुकान पर रामबन भी आ गया। उसने हमेशा की तरह गगन को छेड़ते हुए कहा,
"क्या हुआ तुमको ? सुना है आजकल खुद ही खाना बनाते हो। कोई खाना बनाने वाली ही रख लो।"
तभी सर्वेश ने लिस्ट देखकर कहा,
"भइया इतना कम सामान। ऐसा भी क्या है एक साथ महीने भर का सामान खरीद लो।"
गगन ने दोनों की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह चुपचाप खड़ा रहा। उसने तय किया था कि जब ज़ेबूल की शक्तियां उसे मिलेंगी तब सबसे बदला लेगा। लेकिन रामबन तमाशा करना चाहता था। उसने कहा,
"लगता है नौकरी छूट गई है तुम्हारी। तभी बसरपुर में रह रहे हो। भगवान ऐसे दिन ना दिखाए किसी को। पहले बीवी किसी के साथ भाग गई। अब नौकरी भी नहीं है।"
गगन वहांँ से जल्दी से जल्दी निकल जाना चाहता था। उसने सर्वेश से कहा,
"लिस्ट में जो जितना लिखा है उसे बांध दो। मुझे बहुत काम है।"
रामबन फौरन बोला,
"हांँ भाई घर जाकर खुद ही तो खाना बनाना है। घरवाली तो पहले ही छोड़ कर चली गई थी।"
अब तक सर्वेश भी मूड में आ गया था। उसने कहा,
"चली गई तो कोई बात नहीं। दूसरी घरवाली ले आओ। कुछ महीने तक तो टिकेगी ही। फिर देखा जाएगा।"
सर्वेश की इस बात पर रामबन बहुत ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा। गगन के लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया था। उसने गुस्से में कहा,
"बात सचमुच कुछ महीनों की ही है। उसके बाद तुम लोगों को ऐसा सबक सिखाऊंँगा कि जीवन में दोबारा किसी से ऐसी बातें नहीं करोगे।"
गगन की यह बात सुनकर सर्वेश और रामबन ठहाका लगाकर हंसने लगे। सर्वेश ने हंसते हुए कहा,
"कुछ महीनों बाद क्या हो जाएगा ? तुमको कोई जादुई ताकत मिल जाएगी।"
"हाँ मिल जाएगी....."
गगन ने झोंक में कह दिया। उसके बाद बिना सामान लिए गुस्से में पैर पटकते हुए दुकान से चला गया। नज़ीर सर्वेश पर नज़र रख रहा था। वह उसकी दुकान के पास ही खड़ा था। उसने वहांँ जो कुछ भी हुआ सब सुन लिया। गगन ने जो कहा वह उसे साधारण नहीं लगा‌। खासकर उसके कहने का तरीका। उसने इस तरह से अपनी बात कही थी कि जैसे उसे आने वाले समय में किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद हो। उसे लगा कि यह बात एसपी गुरुनूर कौर को बतानी चाहिए। वह इस विषय में सूचना देने पुलिस स्टेशन चला गया।