बागी स्त्रियाँ - भाग बारह Ranjana Jaiswal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बागी स्त्रियाँ - भाग बारह

मीता जब अपने कस्बे से रिसर्च के लिए इस शहर आई थी,तो बेहद भोली थी।शहर की चकाचौध से वह घबरा गई थी।उसके गाइड का घर विश्वविद्यालय से काफी दूर था।पर उसे काम के सिलसिले में अक्सर वहाँ जाना पड़ता था।एक दिन उनके ही घर उसे आनंद मिला।बड़ी -बड़ी बोलती आंखों,लम्बी नाक वाले आनंद ने उसे प्रशंसक नजरों से देखा।वह अचकचा गई।गाइड ने दोनों का परिचय कराया तो पता चला कि वह भी उसी के कस्बे का है और उसी के कॉलेज में पढ़ा है पर कस्बे में कभी दोनों की मुलाकात नहीं हुई थी क्योंकि वह उससे पहले ही कॉलेज छोड़ चुका था।वैसे भी कस्बाई संस्कृति के कारण वह कॉलेज से घर तक का ही रास्ता जानती थी।कहीं आना-जाना,किसी से मिलना -जुलना उसके पिता और भाइयों को पसन्द नहीं था।वे तो उसकी पढ़ाई के भी विरोधी थे पर माँ के समर्थन और सहयोग के कारण वह पढ़ पा रही थी। कड़े प्रतिबंधों वाले कस्बे से शहर की आजादी तक का यह सफर सिर्फ अपनी माँ के कारण उसने तय किया था। शहर के लिए चलते समय उसके गुरू जी ने उसे दो नाम, पते के साथ दिए थे,जो उसके शोध -कार्य में सहायक हो सकते थे।उसमें एक नाम आनन्द का भी था।परिचय हो जाने के बाद सच ही उसने उसका बहुत सहयोग किया। विश्वविद्यालय में वह प्रवक्ता था,फिर भी उसे अपनी स्कूटर से उसकी काम की जगहों पर ले जाने,काम के लोगों से परिचय कराने का काम करने में उसने कोई संकोच नहीं किया।मीता को लग रहा था कि उसे एक अच्छा दोस्त मिल गया है।उसने उसे अपनी पत्नी और बच्चे से भी मिलवाया।उसका नन्हा बच्चा जब उसे लगातार देखता ही रहा तो आनंद ने मुस्कुराते हुए ऐसे 'हूँ' कहा कि वह शरमा गई।आनन्द की पत्नी और उसकी बहनें भी उससे घुल -मिल गईं और अपने घर आते रहने को कहा।वह बहुत खुश थी।शहर में जैसे उसे परिवार मिल गया हो।
एक दिन एक रेस्टोरेंट में कॉफी पीते हुए आनन्द ने उसके अतीत के बारे में पूछा ।वह उसे सब कुछ बता गई।वह भी जो उसने अब तक किसी को नहीं बताया था।आनन्द चुपचाप सुनता रहा।सब कुछ बताने के बाद वह जैसे खुद से ही शर्मिंदा हो गई।उसने आनन्द से संकोच के साथ पूछा--आपकी नज़रों में तो मेरी छवि खंडित हो गई होगी।
"नहीं,बल्कि अब तो मुझे आपसे प्रेम हो गया है।"
मीता ने आनन्द के इस इज़हार को दोस्ती के अर्थ में ही लिया था क्योंकि एक बच्चे के पिता से प्रेम की बात वह सोच भी नहीं सकती थी।
यह सच था कि आनन्द ने ही पहली बार उसे उसकी सुंदरता का अहसास कराया था ,वरना अपने परिवार में वह सबसे साधारण लड़की मानी जाती थी।उसका गेहुंआ रंग,दुबली- पतली काया और लंबा कद अच्छे नाक -नक्श के बावजूद कस्बाई सौंदर्य के मापदंड पर खरा नहीं उतरता था,जबकि उसकी यही विशेषताएं शहर में सौंदर्य का मानक बन गई थीं ।पूरे विभाग में उसके सौंदर्य की चर्चा होने लगी थी।यह बात उसे आनंद ने ही बताई थी।
एक दिन उसी ने पवन के बारे में बताया जो उसी की तरह विश्वविद्यालय में प्रवक्ता था।पवन पुरूष सौंदर्य का मानक था।बिल्कुल उसके सपनों के राजकुमार जैसा।लंबे कद का गोरा चिट्टा,ख़ूबसूरत ,सजीला युवक,जिस पर लड़कियाँ मरती थीं।जब आनन्द ने बताया कि वह उसका बहुत बड़ा प्रशंसक है।उसे भव्य कहता है तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
पवन आनन्द की तरह मुखर और निडर नहीं था।आनन्द ने ही दोनों को मिलाया और मिलते ही वे एक- दूसरे के प्रेम में पड़ गए।इस प्रेम ने मीता का जीवन बदल कर रख दिया।
आनन्द उसे पसन्द करता है, यह तो उसे पता था पर उसे पाना चाहता है,यह बहुत बाद में पता चला।यह पता लगते ही वह जैसे बिखर गई।
हर दिन की तरह उस दिन भी आनन्द स्कूटर से उसे छोड़ने उसके क्वार्टर आया था।इधर किराए का एक कमरा लेकर वह उसमें रह रही थी।हॉस्टल में उसे जगह नहीं मिल पाई थी। रोज तो वह उसे कमरे के बाहर ही छोड़कर चला जाता था पर उस दिन उसने चाय पिलाने की ज़िद की। वह उसे कमरे के भीतर नहीं बैठाना चाहती थी क्योंकि ऊपर मकान-मालिक का परिवार रहता था और उन्होंने इसी शर्त पर कमरा किराए पर दिया था कि उसका कोई पुरुष मित्र यहाँ न आएं ।
कमरे में आते ही आनन्द ने उसे बाहों में जकड़ लिया और जबरन उसके होंठ चूम लिए।वह बिफ़र उठी।जी तो चाहा कि दो -चार झापड़ रसीद कर उसे कमरे के बाहर निकाल दे पर शोरगुल से मकान -मालिक को पता चल जाता।दूसरे शहर में आनन्द के सिवा उसका कोई परिचित ऐसा नहीं था,जो उसकी मदद कर सकता हो।उसको अपमानित करना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा था।उसकी आँखों से बेबसी के आंसू बहने लगे।उसने रोते हुए कहा--तो आप भी मेरी मजबूरी का फ़ायदा उठाना चाहते हैं।मुझे गलत लड़की समझते हैं।मदद के बदले मेरी देह चाहते हैं।मैंने तो आपको अपना हमदर्द ,राजदार दोस्त समझा था।
--'मुझे क्षमा कर दो।मुझे तो लगा था कि तुम भी यही चाहती हो।मेरे साथ इतनी फ्री हो ,बोल्ड हो तो व्यर्थ के नैतिक बंधन नहीं मानती होगी।आज तो तुम मुझे आमंत्रित करती हुई प्रतीत हुई थी वरना मैं खुद जबरन रिश्ते में विश्वास नहीं करता।
वह सिर्फ रोती रही उसके दिल को ठेस पहुंची थी।वह माफी मांगते हुए चला गया।उसके भीतर क्रोध,दुःख,चिंता,प्रतिकार सभी भावनाएं एक साथ उमड़ रही थीं।
'वह उसके लिए ऐसा कैसे सोच सकता है?वह बाल- बच्चेदार है।क्या वह अपनी पत्नी को धोखा देना चाहता है?या फिर उसे ही सहज सुलभ मान बैठा है।उसकी दोस्ती को गलत समझने लगा है।उसके मन के भाव को अगर उसकी पत्नी जानेगी तो उसके बारे में क्या सोचेगी? ये पुरूष क्यों ऐसे होते हैं?स्त्री से उनकी दोस्ती क्यों सिर्फ दोस्ती नहीं रहती?
वह कस्बे की ठेठ परम्परावादी लड़की थी।उसे तो यही पता था कि पति ही देह छू सकता है।'दोस्ती में प्रेम का नाम लेकर देह -सम्बन्ध बनाया जा सकता है'--इसकी तो वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी।यही कारण था कि आनन्द के प्रति उसके मन में कभी ऐसा -वैसा आकर्षण नहीं जन्मा था पर आनन्द के मन में उसको पाने की चाह जन्म ले चुकी थी।