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गप्पी दास 

मधुबन सोसाइटी में रहने वाला बंटी होशियार होने के साथ बड़ा ही नटखट था । पाँच बच्चों की उनकी टोली थी, जिसमें युवान उसका घनिष्ठ मित्र था । टोली के सभी बच्चों से बंटी उम्र में लगभग डेढ़ 2 साल बड़ा था । इसी का फायदा उठाकर वह उन सभी बच्चों का बॉस बन गया था ।

अपने सभी दोस्तों के बीच अपनी डींगें हांकने में उसे बड़ा मजा आता था । सभी के सामने अपनी झूठी प्रशंसा करके वह बहुत ख़ुश होता था । परंतु आजकल के बच्चे बड़े ही स्मार्ट होते हैं । उसकी बातें सुनकर वे सभी रोमांचित होते और उसके जाते ही उसका मजाक उड़ाते थे ।

युवान को इस तरह बंटी का मजाक उड़ाना पसंद नहीं था, पर था तो वह भी बच्चा ही । वह भी अपने सब मित्रों के साथ आनंद तो अवश्य ही लेता था पर बोलता कुछ नहीं था । आख़िर वह करता भी क्या, वह जानता था कि बंटी बहुत झूठ बोलता है और अपनी झूठी प्रशंसा ख़ुद ही करके वाहवाही बटोरता है ।

एक दिन जब सारे दोस्त खेल रहे थे तब बंटी ने कहा, “ऐ सुनो आज स्कूल में 20-20 क्रिकेट मैच था । तुम्हें पता है मैंने ही अपनी टीम को जिताया है ।”

सब बच्चे उसकी बातें सुनकर उसकी तारीफ़ करने लगे । यह देखकर बंटी और भी ख़ुश हो गया।

एक दिन उसने अपने मित्रों से कहा, “आज हमारी क्लास में मॉनिटर का चुनाव था । पता है पूरी क्लास ने टीचर को एक ही नाम बताया ।”

तभी आयुष ने पूछा, “किसका नाम बताया बंटी भैया ? कौन बना तुम्हारी क्लास का मॉनिटर ?”

“अरे आयुष, मैं बना, मेरे सिवा और कौन बन सकता था । सभी बच्चों को मैं बहुत पसंद हूँ ।”

आयुष उसकी बातें सुनकर बड़ा ही ख़ुश होता था और कई बार सच भी समझ लेता था । वह उनकी टीम का सबसे छोटा सदस्य जो था ।

बंटी हर रोज कुछ ना कुछ डींगें हांक कर सब बच्चों पर अपना प्रभाव छोड़ने की कोशिश करता रहता था । वह नहीं जानता था कि उसकी पीठ पीछे सब उसे गप्पी दास कह कर बुलाते हैं ।

एक दिन तो बंटी ने हद ही कर दी, उसने अपने मित्रों से कहा, “आज हमारे स्कूल का दूसरे स्कूल के साथ फिर से 20-20 क्रिकेट मैच हुआ। पता है मैंने आज के मैच में सेंचुरी बनाकर अपनी टीम को जिता दिया। सब टीचर बहुत खुश हो गए, यहां तक कि प्रिंसिपल मैडम ने मुझे बुलाकर शाबाशी दी। उन्होंने तो धोनी को फोन करके भी बताया कि हमारी स्कूल में एक नया खिलाड़ी तैयार हो रहा है। तब धोनी ने मुझे फोन पर बुलाया और कहा, बधाई हो बंटी, कांग्रेचुलेशंस और बोला वेलकम टू इंडियन टीम, जल्दी से बड़े होकर आ जाओ।”

आज बंटी की यह बातें किसी को भी बिल्कुल हजम नहीं हो रही थीं। वे अपनी हँसी रोक नहीं पा रहे थे तथा एक दूसरे की तरफ देखकर धीरे-धीरे मुस्कुरा रहे थे। छोटा आयुष भी धीरे-धीरे बंटी की झूठी बातों को समझने लगा था।

आज तो बंटी के जाते ही सबसे पहले आयुष ने कहा, “वाह गप्पी दास, क्या बात है, इतना बड़ा झूठ।”

उसकी बात सुनकर सभी जोर-जोर से हंसने लगे।

आज युवान को बंटी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि वह बंटी को सब कुछ बता देगा और उसकी इस गंदी आदत को छुड़वा कर रहेगा।

दूसरे दिन उसने बंटी से कहा, “बंटी तू क्यों सबके सामने झूठ-झूठ बोल कर अपनी झूठी प्रशंसा करता रहता है। तुझे नहीं मालूम, तेरे पीठ पीछे सब तेरा मजाक उड़ाते हैं। सब ने तेरा एक नाम भी रख दिया है और वह नाम है गप्पी दास। अब तो छोटा आयुष भी तेरा मजाक उड़ाने लगा है। आज तक उसने कभी तुझे गप्पी दास कह कर नहीं बुलाया था। कल तो तेरी इतनी बड़ी गप्प सुनकर पहली बार उसने भी बंटी भैया के बदले गप्पी दास कह कर तेरा मजाक उड़ाया।”

युवान की बातें सुनकर बंटी नाराज हो गया और उसने कहा, “ऐ युवान मैं गप्प नहीं मार रहा था, मैंने सच में सेंचुरी बनाई थी।”

“क्या, क्या बोल रहा है बंटी, यहाँ तो कभी तूने 50 रन भी नहीं बनाए और धोनी का फोन? इतना उल्लू समझता है तू सब को ? सब जानते हैं तेरा झूठ। मुझे अच्छा नहीं लगता जब सब तेरा मजाक उड़ाते हैं, इसलिए मैंने आज तुझे सच बात बता दी।”

युवान के इतना समझाने के बाद भी बंटी अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। वह ख़ुद ही ख़ुद को मजाक का मोहरा बनाता रहा । युवान ने भी मन में ठान लिया था कि वह अपने दोस्त की इस गंदी आदत को छुड़ाकर ही रहेगा।

अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए युवान ने पास की सोसाइटी के बच्चों के साथ क्रिकेट मैच रख लिया। सारे बच्चे बड़े ही ख़ुश थे, बंटी उनकी टीम का कैप्टन था। मैच शुरू हुआ तो बंटी 5 रन बनाकर ही आउट हो गया। अपना सा मुँह लेकर वह वापस आया।

उसने सब बच्चों से कहा, “अरे आज मेरा दिन नहीं था, कल देखना, तुम लोग अच्छे से खेलना।”

सारे बच्चों ने बहुत कोशिश की लेकिन अंततः बंटी की टीम हार गई।

दूसरे दिन के मैच के समय बंटी फ़िर बैटिंग करने आया किंतु आज भी वह क्रीज पर टिक नहीं पाया और बिना रन बनाए ही वापस चला गया। आज वह अपने मित्रों से कुछ भी ना कह पाया। वह शांत था, स्वयं को अपमानित महसूस कर रहा था।

तभी युवान ने उससे कहा, “बंटी तेरे भरोसे ही यह मैच रखा था। हम लोग तो अच्छा नहीं खेल पाते हैं, तू कहता है कि तूने सेंचुरी बनाई थी और हमेशा अपनी स्कूल की टीम को जिताता है। अब क्या हो गया ?, आज तो उनके दो अच्छे खिलाड़ी जल्दी आउट हो गए और मैंने 35 रन बनाए, इसलिए हम जीत गए। कल तो फाइनल है, कल क्या होगा ?”

आज तीसरा दिन और फाइनल मैच था। सब मित्र कह रहे थे, “बंटी आज अपना कमाल दिखा देना।”

बंटी अब तनाव में था, उसे अपनी झूठी बातों और झूठी प्रशंसा करने की सज़ा मिल रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे। उसे युवान की बातें याद आ रही थी कि इस तरह झूठ बोलना बंद कर दे बंटी। उसे दुःख था कि काश उसने युवान की बात मान ली होती। वह तो उसके अच्छे के लिए ही कह रहा था। वह समझ गया था कि इस तरह झूठ बोलकर कोई हीरो नहीं बन सकता।

आज वह बिना कुछ बोले चुपचाप अपनी बैटिंग करने चला गया और उसने 13 रन बनाए। बाकी बच्चे भी कुछ कमाल नहीं दिखा पाए और उनकी टीम यह मैच भी हार गई। दूसरी सोसाइटी के दो बच्चे बहुत अच्छा खेले । वह सभी बच्चे बहुत ख़ुश हो रहे थे।

मधु बन सोसाइटी के बच्चे बहुत दुःखी थे। युवान तो जानता था कि उसकी सोसाइटी के बच्चे बहुत अच्छा क्रिकेट नहीं खेल पाते हैं। उसके बाद भी उसने यह मैच रखा था यह जानते हुए कि उनकी टीम यह मैच जीत नहीं पाएगी। सब बच्चे बंटी का मजाक उड़ा रहे थे किंतु युवान ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया।

बंटी ने आज अपने सभी मित्रों के सामने अपनी गलती स्वीकार कर ली और कहा, “आज मेरी वजह से हम यह मैच हार गए हैं। मुझे माफ़ कर दो। आई एम सॉरी, कहते हुए बंटी की आँखें भर आईं।”

युवान ने उसे गले से लगाते हुए कहा, “कोई बात नहीं यार खेल में हार जीत तो चलती रहती है। आज हार गए तो क्या, अगले वर्ष तक हम मेहनत करेंगे और जरूर जीतेंगे, ।”

युवान आज बहुत ख़ुश था, उसने अपने मित्र बंटी को सही रास्ता दिखा दिया। वह मन ही मन सोच रहा था, यह हार तो मेरी जीत है। इस हार ने बंटी को सच्चाई का रास्ता दिखा दिया।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

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