इस बदलते हुए परिवेश में हर इंसान बदल जाए, यह ज़रूरी नहीं। जो बात सही ना लगे उसे स्वीकार कर पाना भी संभव नहीं । कुछ ऐसा ही था गांव में रहने वाले मध्यम वर्ग के पुण्य और पवित्रा का मन भी। उनकी एक प्यारी सी बेटी थी आकांक्षा । पुण्य अपने गांव के इकलौते स्कूल में अध्यापक के तौर पर कार्यरत थे। उन्हीं की मेहनत के कारण गांव में यह स्कूल खुल पाया था। धीरे-धीरे पहली कक्षा से बढ़ते बढ़ते 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई गांव के इस स्कूल में संभव हो पाई थी।
आकांक्षा भी उन्हीं के स्कूल में पढ़ती थी । वह और उसकी बचपन की सहेली प्रिया दोनों अब 12वीं कक्षा में थे। दोनों ही पढ़ने में होशियार थीं और आगे पढ़ाई करना चाहती थीं। पुण्य अपनी बेटी को आगे पढ़ाना तो चाहते थे किंतु अपने से दूर शहर भेज देना, इतना साहस उनमें नहीं था । अनेक शंकाएं उनके मन में उथल-पुथल मचाती रहती थीं।
आकांक्षा के ज़िद करने पर वह हमेशा उसे समझाते, “बेटा शहर का माहौल बहुत खराब होता है, तुम्हें बाहर भेजने में मुझे कोई तकलीफ़ नहीं लेकिन डर लगता है।”
धीरे-धीरे आकांक्षा ने यह ज़िद करना छोड़ दिया, तब पुण्य को लगा शायद आकांक्षा उनकी बात मान गई है।
दोनों सहेलियां हमेशा से साथ में ही पढ़ाई करती थीं । 12वीं कक्षा की परीक्षा आरंभ हो चुकी थी। दोनों बहुत मेहनत कर रही थीं और दोनों के पेपर भी बहुत अच्छे हो रहे थे ।
प्रिया के माता-पिता अशोक व राधा भी प्रिया को बाहर पढ़ाई के लिए भेजने को तैयार नहीं थे। अंततः प्रिया ने भी आकांक्षा की ही तरह बाहर जाने की ज़िद करना बंद कर दिया। दोनों के माता-पिता यह सोच कर ख़ुश थे कि बेटियां मान गई हैं। आकांक्षा और प्रिया की दोस्ती के कारण ही दोनों परिवारों के बीच घनिष्ठ संबंध थे। वह सब आपस में मिलकर योजना बना रहे थे कि आगे क्या करना है। दोनों बेटियां होनहार हैं, यदि उन्हें आगे पढ़ने का अवसर दिया जाए तो उनका भविष्य अच्छा बन सकता है। उन चारों को नहीं पता था कि आकांक्षा और प्रिया के जीवन में तो कुछ और ही चल रहा है।
शनिवार का दिन था, पवित्रा सुबह रोज की तरह सात बजे आकांक्षा को उठाने उसके कमरे में गई। वहां उसे ना पाकर पवित्रा ने बाथरूम में देखा किंतु वहां भी आकांक्षा नहीं थी, छोटे से घर में उसे ढूंढने की ज़्यादा ज़रूरत नहीं थी।
पवित्रा ने पुण्य को आवाज़ लगाई , “सुनते हो आकांक्षा कहां गई है ?, आपको बता कर गई है क्या ?”
“नहीं पवित्रा, उसने मुझसे तो कुछ नहीं कहा, बाहर देखो शायद बाहर होगी।”
पवित्रा ने बाहर देखा किंतु वह वहां भी नहीं थी, अब दोनों को चिंता होने लगी, बिना बताए तो कभी, कहीं नहीं जाती। कहां गई होगी ?
तब उन्होंने प्रिया के घर फोन लगाकर पूछा लेकिन पता चला कि प्रिया भी घर पर नहीं है। अशोक और राधा भी चिंतित थे, अब उन चारों को किसी अनिष्ट की आशंका सताने लगी। राधा और अशोक पुण्य के घर आ गए और चारों मिलकर विचार विमर्श करने लगे कि अब आगे क्या करें।
वह सभी अपने आपको कोस रहे थे तभी अशोक ने कहा, “काश हमने बाहर भेजने के लिए उन्हें मना नहीं किया होता।”
पुण्य ने कहा, “बिल्कुल, दोनों को पढ़ाई का कितना शौक है शायद इसीलिए उन्होंने यह कदम उठाया है।”
पवित्रा ने सभी को आश्वासन देते हुए कहा, “कॉलेज में प्रवेश मिलते ही दोनों हमें सूचित अवश्य ही करेंगी।”
राधा तो लगातार रो रही थी। एक दूसरे से बात करने के उपरांत सबने मिलकर यह निर्णय लिया कि चाहे जो भी हो पुलिस में शिकायत दर्ज़ अवश्य ही करवानी चाहिए।
शिकायत दर्ज़ करवाने के पश्चात भी दोनों का पता नहीं चल पाया। लगभग दो महीने गुजर गए लेकिन आकांक्षा और प्रिया की अब तक कोई खबर नहीं आई।
दोनों परिवारों में दुःख का माहौल था, गांव में चर्चा का विषय केवल यही था। तभी कहीं से पता चला कि आकांक्षा और प्रिया ने किसी कॉलेज में दाख़िला ले लिया है, दोनों किसी कॉल सेंटर में नौकरी भी कर रही हैं और साथ में ही रहती है।
इस ख़बर से दोनों परिवारों ने राहत की सांस ली। पुण्य और अशोक ने वहां जाने का निर्णय भी ले लिया किंतु इस ख़बर के साथ ही कुछ और अजीब तरह की अफ़वाहें भी आ रही थीं, जिन पर विश्वास करना उनके लिए संभव ही नहीं था। सच कभी कहां छिपता है, एक ना एक दिन सामने आ ही जाता है।
सब जानकर पवित्रा ने पुण्य से कहा, "हम तो किसी को मुंह दिखाने के काबिल ही नहीं रहे।"
पुण्य कुछ कहे उसके पहले राधा बोल पड़ी, "इससे तो दोनों किसी लड़के के साथ भाग जातीं तो हमें इतनी शर्म का सामना नहीं करना पड़ता।"
अशोक और पुण्य ख़ामोश थे, पवित्रा ने रोते रोते कहा, "इन दोनों लड़कियों ने तो अपना जीवन ही बर्बाद कर लिया, कैसे समझाएं उन्हें? क्या समझाने से वह समझेंगी ? क्या हमारी बात मान जाएंगी ?"
तभी राधा ने कहा, "एक बार कोशिश करने में क्या हर्ज है, हम सब मिलकर उन्हें समझाएंगे । सही गलत का अंतर भी बताएंगे, हो सकता है वह समझ जाएं।"
राधा की बात मानकर उन्होंने दोनों को बहुत समझाया लेकिन आकांक्षा और प्रिया की भी अपनी दलीलें थीं, जो उनके लिए शायद सही हों। ऐसे रिश्तों को भले ही कानूनी मान्यता भी मिल गई हो, किंतु बदलते हुए इस परिवेश को समझ पाना अशोक, पुण्य, पवित्रा और राधा के लिए आसान नहीं था ।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक