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पसंदगी



" आज तो बड़ी ही खुशी का दिन है।" पापा शाम को दफ्तर से आते ही बड़ी खुशी से मा से कहने लगे।
"ऐसी कौन सी लॉटरी लग गई है आपको तो आप इतने खुश हो रहे है?" मां ने देखा पापा बहुत ही खुश थे इसलिए खुशी का कारण जानना चाहती थी।
" पहले ये बताओ मिशा बिटिया कहा गई?" पापा ने देखा पर मिशा कहीं दिखाई नहीं दी।
"वो अपनी सहेली के घर गई है बस आती ही होगी....." मा मिशा के बारे में बता ही रही थी तभी मिशा घर पहोच गई।
"अरे लो आ गई आपकी बिटिया रानी.." मा मिशा को देख के पापा को कहने लगी।
"मिशु.... इधर आ बेटा.. तुझे कुछ बताना है..." पापा ने मिशा को अपने पास बिठाया।
" क्या बात है पापा?? आप इतना खुश दिखाई दे रहे हो..." मिशा ने भी पापा के चहेरे को नोटिस किया था।
"हा बेटा खुशी की ही बात है, तभी तो इतना खुश हूं।।" पापा को देखकर लग रहा था वो खुशी के मारे पागल हो जाएंगे।
"अब ऐसे ही मन ही मन मलकते रहेंगे या खुश बताएंगे भी??" अब मा से सब्र नहीं हो रहा था इसलिए वो पापा को कहने लगी।
"अरे हा बाबा...!!! मिशू तुम वो आनंद शाह को जानती हो?" पापा ने मिशा से पूछा।
"हा पापा। उसे कौन नहीं जानता?? आनंद ग्रुप ऑफ कंपनी के मालिक को देश में कोन नहीं जानता..!!" मिशा ने बताया।
"तो तु उसके बेटे को भी जानती होगी??" पापा ने दूसरा सवाल किया।
"ओह.. मयंक शाह... आज कल वहीं तो अपने पापा की कंपनी चला रहा है।।" मिशा जो जानती थी वो बता रही थी।
"अब वो आनंद शाह और उसका बेटा जो भी नाम था उसका.... उस से हमें क्या लेना देना... वो अपनी कंपनी के मालिक है उसमे से हमें तो कोई फूटी कौड़ी भी देने वाला है नहीं.... तो उसके बारे में बात करके हमें क्या फायदा??" मा खुशी की बात सुनना चाहती थी पर पापा की ये सब फिजूल बाते सुन के मा को गुस्सा आ गया।
"तुम थोड़ी दूर चुप नहीं रहे सकती?? मेरी बात अभी खत्म नहीं हुई है, पहले मुझे मेरी बात खत्म तो कर लेने दो बात में तुम अपनी राय देना।। भगवान के लिए तब तक अपना मुंह बंद करके बैठना।।"पापा ने मा को डांट ते हुई कहा।
"आज मेरे पास हरिभाई आये थे। वो आनंद शाह के बड़े करीबी मित्र है। हरिभाई वो मयंक शाह की रिश्ते की बात हमारी मीशु के लिए लाए थे......" पापा इतना कह के थोड़ी देर रुके।
"क्या??? वो क्या नाम बताया वो .... जो भी हो..... इतने बड़े कंपनी के मालिक के बेटे के साथ.....मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है...... में कोई सपना तो नहीं देख रही....??" मा तो खुशी के मारे पागल हो गई थी। उसे देख के लग रहा था मानो वो आसमान में उड़ रही थी। वो इतनी खुश थी कि वो क्या बोल रही थी और क्या बोलना चाहती थी वो खुद भी नहीं जानती थी।
पापा ने मिशा के सामने देखा तो मिशा ऐसे ही चुपचाप बैठी थी।
"क्या हुआ बेटा, तुम है नहीं पसंद आया ये रिश्ता?? की कोई और है तुम्हारे मन में...?? तुम्हारी खुशी ही हमारे लिए सबसे ज्यादा मायने रखती है।" पापा मिशा की राय जान ना चाहते थे।
" ऐसी कोई बात नहीं है पापा।। आप को जो अच्छा लगे वो करे।। मुझे आप पर पूरा भरोसा है। आप मेरे लिए सब अच्छा ही सोचेंगे।" मिशा खड़ी हो के अपने कमरे में चली गई।

खाना खा के मिशा अपने कमरे में सोने आ गई। मा और पापा हॉल में बैठ के बात कर रहे थे। मिशा को उसके कमरे में भी आवाज आ रही थी। मा और पापा उस लड़के के बारे में ही बात कर रहे थे। और बड़े ही खुश थे।
मिशा अपने बेड पर लेट गई और छत को देखती हुई गहरी सोच में डूब गई.....,
" मयंक शाह.......... कोई भी ऐसी लड़की नहीं होगी जो मयंक शाह को नहीं जानती होगी।और मिशा खुद भी उसकी फेन थी। वो छोटी उम्र का एक बड़ा ही हेंडसम बंदा था बिल्कुल विराट कोहली की तरह तो जाहिर सी बात है लड़कियां तो इसकी दीवानी होगी ही। मयंक शाह था तो एक बिजनेसमैन पर इसकी पर्सनालिटी एकदम बॉलीवुड के ऐक्टर की तरह थी। मिशा भी उन लड़कियों में से एक थी जो मयंक की हर बात पे फिदा थी। पर वो फेन होना और उसकी फियोंसी होना ए दोनों में जमीन आसमान का फर्क था। मिशा इस गहरी सोच से कब गहरी नींद में चली गई उस भी पता नहीं चला। जब सुबह आ के मा ने उठाया तब जा के मिशा की आंख खुली।
" कितने बजे मोम??" मिशा अपनी आंखे रगड़ती हुई बोली।
" आठ...." मा रजाई लेती हुई बोली।
" क्या???? आठ .....?? और मुझे आप अभी उठा रहे हो। मेरा लेक्चर भी शुरू हो गया होगा।।" मिशा जल्दी से बिस्तर से उठी और बाथरूम में चली गई।
" इतनी देर कभी तू सोती नहीं है इसलिए मुझे लगा आज तेरी छुट्टी होगी। में तेरा नस्ता तैयार करती हूं जल्दी से आ जा।।" मा किचन की तरफ चली गई।
*
मिशा जब कॉलेज पहोची तो पहला लेक्चर खत्म हो गया था। वो जल्दी जल्दी जा के क्लास में घुस गई।
" मिशु , कहा थी अब तक यार??" पिया ने पूछा।
" पता नहीं आज उठने में देर हो गई यार।" मिशा अजीब सा चेहरा बना के बोल रही थी।
" किस के ख़यालो में खोई थी देर रात जो सुबह उठ भी ना शकी??" टीना मिशा का मजाक करते हुए बोल रही थी।
" मयंक शाह के....!!" मिशा बोली।
" आए हाए....... मयंक शाह...... बड़े बड़े सपने देखे जा रहे है।" पिया अपने नेन नाचते हुए बोली।
" मिशा, जुठ बोल रही है।" पिछली बेंच से आके नेन्सी बोली।
" इसका क्या मतलब??" टीना को कुछ समझ में नहीं आया।
" क्युकी कल तो में मयंक शाह के साथ डेट पर थी। हाए.... मेरा चले तो ए सपना कभी खत्म ना हो...!" नेनसी अपने ख़याली पुलाव में खोई हुई थी।
" पागल लड़की।" पिया नेनसि को मुक्का मारते हुए बोली।
" मिशा तेरी बात यहां कोई सच मान ने वाला नहीं है तू चुप ही सही है।" मिशा अपने आप से ही बात करने लगी।
"ये गर्ल्स.. मेरे पास ना एक सरप्राइज है ब्रेक में आप लोगो को दिखाऊंगी।" टीना एकदम खुश होते हुए बोली।
" क्या सरप्राइज है?" नेन्सि पूछने लगी।
" अबे यार, बता दूंगी तो सरप्राइज केसे रहेगा। पर आप सब का दिल खुश हो जाएगा देख के उसकी में गरेंटी देती हु।" टीना सुपर एक्साइटेड थी।
" अबे ए क्या केह दिया अब तो मेरे से ए लेक्चर भी खत्म नहीं होगा।" नेनशी से सब्र नहीं हो रहा था। तभी प्रोफेसर आ गए और सब अपनी जगह पे बैठ गए।
*
" हेय टीना..... फटाफट दिखा अब चल....." जैसे ही प्रोफेसर गई की नेनशि टीना के पास आ गई।
" धेन..... टेननन्नन्न........" टीना अपने बेग से कुछ निकाल रही थी।
"कल की ही बिजनेस मेगेजिन है पापा के टेबल से चुप के ले ली है।" टीना सबके सामने मेगेजीन रखते हुए बोली।
" टीना, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?? तुम कबसे ए बिजनेस मेगेजिंस पढ़ने लगी?" नेंनसी मुंह मचकोड ते हुए बोली।
" अरे सरप्राइज मेगज़ीन के अंदर है।" टीना मेगेज़ीन खोल ने लगी।
"ये देखो.... क्यू है ना एकदम डेशिंग बॉय... बोरिंग कॉन्फरेंस मीटिंग करते हुए भी कोई इतना हैंडसम केसे लग सकता है...!!" टीना को देख कर लग रहा था वो खुशी के मारे पागल हो जाएगी।
" पर आखिर है कोन? कोई हमें भी बताओ??" मिशा अपनी जगह पे बैठ कर पूछने लगी।
" मेरा हीरो.... मयंक शाह......" टीना कुछ बोले उनसे पहले नेन्नसी ही बोल पड़ी।
मिशा मयंक शाह का नाम सुनते ही वहां से चल पड़ी।
" पता नहीं इस दुनिया में केवल एक ही बंदा रह गया है। जहा देखो वहां उसके ही चर्चे हो रहे है। घर जाऊंगी तो भी मयंक के टॉपिक पर ही बात शुरू होंगी। उसकी वजह से आज पहली बार मेरी पहली क्लास मिस हो गई है और मेरे फ्रेड्स ब्रेक इंजॉय करने की जगह वो भी उसके पीछे पागल बनके बैठे है। मयंक... मयंक...." मिशा गुस्से हो कर अकेले अकेले ही बडबडा रही थी।
*
मिशा घर आ के सीधे अपने कमरे में जा के सो जाना चाहती थी। आज उसका पूरा सिर घूम रहा था। मिशा अपने कमरे जा रही थी तभी मां ने उसको रोका l,
" बेटा, थोड़ी देर पहले तेरे पापा का फोन आया था, वो तेरी और लड़के की मुलाकात चाहते है। लड़का क्या उसका नाम है... वो जो भी नाम हो वो तुमसे मिलना चाहता है फिर वो जवाब देंगे...." पापा से जो बात हुई थी वो बात मा ने मिशा को बताई।
" ये क्या बात हुए मा, वो देखना चाहता है.... अगर में उस पसंद आई तो हा..... वरना ना......।। वाह.... और मेरी पसंद नापसंद का क्या??" मिशा का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया था।
" बेटा, वो अमीर लोग है, ऊपर से लड़के वाले है, वो ही पहले डिसाइड करेगे ना। और उसमे गलत बात भी कोई नहीं है। पहले तुम उससे एक बार मिल लोगी तो आगे सोचते है उसकी क्या राय है तुम्हारे बारे में.....!! मा बड़ी ही आसान तरीके से बोल गई।
" मा........." मिशा बहुत कुछ बोलना चाहती थी पर कुछ बोल नहीं शकी वो जानती थी अब उसकी बात यहां कोई समझ ने वाला नहीं था।
" में तेरे पापा को बता देती हूं कल ही तुम्हारी मुलाकात हो जाए तो बड़ा अच्छा रहेगा।" मा तो बड़ी खुश दिख रही थी।
" मा, इतनी भी क्या जल्दी है मेरी कोलेज तो खत्म हो जाने दो...!" मिशा को देख कर लग रहा था वो अब रो पड़ेगी।
"अब दो महीने ही तो रह गए है वो तो यूं निकल जायेगे।" मा चुटकी बजाते हुई बोली।
" और फिर मेरे करियर का क्या ??" मिशा ने बड़ा ही अहम सवाल किया।
" वो तो बेटा लड़के वाले तेय करेगे ना।। तुम अभी उसके बारे में मत सोचो। अगर वो हा कर देता है तो तुम्हे जॉब की क्या जरूरत है तुम्हारे ससुराल वाले तो बड़े ही अमीर है। और तुम कुछ करना चाहो तो भी वो लोग आज के जमाने के है तुम्हे शायद ना नहीं कहेंगे।" मा अभी अपनी ही सोच से बात कर रही थी।
" वाह.... उसमे भी शायद....." मिशा तलिया बजाने लगी।
" मोम, जब आपने मेरा स्कूल में दाखला करवाया तब भी पहले आप ने लड़के वालो से पूछा ही होगा??" मिशा अब अपने आपे से बाहर हो गई थी।
" क्या मजाक कर रही हो मिशा, अभी भी तुम्हारा रिश्ता तय नहीं हुआ है तो उस वक्त थोड़ी हम किसी से पूशेगे! हम तुम्हे पढ़ना चाहते थे तुम्हे तरक्की करते हुए देखना चाहते थे इसलिए मैने और तुम्हारे पापा ने मिलके तुम्हारी स्कूल पसंद की थी।" मा बड़े ही गर्व के साथ बोल रही थी।
" तो आप ने बड़ा ही गलत सोचा था मोम, क्युकी अब आगे जा के तो मेरे ससुराल वाले मेरी तरक्की तय करेंगे। तो इनसे तो अच्छा था में अनपढ़ ही रेहती।" मिशा अपनी मा से बहस करने लगी थी।
" मिशा, ये हमारी ज़िंदगी है कोई तीन घंटे की मूवी नहीं जो कुछ बड़े बड़े डायलॉग बोलेंगे और सब अपने हिसाब से होने लगेगा। बेटा, कुछ बाते और फैसले हमें अपने आप लेने की इजाजत नहीं होती।" मा मिशा को समझाने की कोशिश करने लगी।
" मा, मुझे शादी से या ससुराल वालो से कोई प्रॉब्लम नहीं है। पर में आप दोनों की एक लौती संतान हूं बेटी और बेटा दोनों में ही हूं। अब तक आपने मेरे ही लिए सबकुछ किया है पर अब मेरी बारी है आप दोनों के लिए कुछ करके दिखाने की... में शादी करके सिर्फ किचन सम्भाल ना नहीं चाहती हूं। में पहले अपने मा बाप के लिए कुछ करना चाहती हूं। अब तक वो मेरे लिए जीते रहे है काम करते रहे है। तो में उन जिम्मेदारियों को आपके कंधे से हठा के अपने कंधे पे लेना चाहती हूं। और आप अपनी बची ज़िन्दगी को बेहतर तरीके से कोई जिम्मेदारियों के बिना जिए ऐसा चाहती हूं।अगर में आपका बेटा होती तो आप जरूर उनसे यही उम्मीद करते इसलिए मा में आप दोनों का बेटा बन के जीना चाहती हूं।" मिशा को देख के लग रहा था मानो ये मिशा थी ही नहीं। वो बड़ी ही गहरी सोच में जाके सब बोल रही थी।
"बेटा, में तेरी भावनाओ को समझ शक्ति हूं और तुम्हे हमारी फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। अभी भी हम जवान ही है हमें कुछ और साल कुछ भी होने वाला नहीं है। तू जिम्मेदारियों की बात करती है तो अभी हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी बाकी है और वो तेरी शादी है। तू ससुराल चली जाएगी फिर हमारे मन को शांति मिलेगी की नहीं हमने सही से अपनी सारी जिम्मेदारियां को निभाया है।" मा मिशा के सर पे हाथ रखते हुई बोली।
मिशा अब कुछ बोले बिना ही अपने कमरे में चली गई वो जानती थी कि उसकी बात यहां समजने वाला कोई नहीं था। मिशा बेड में लेट के रो पड़ी। उस समझ में नहीं आ रहा था कि वो किस से बात करे जो उसे समझें।। कोई ऐसा नहीं था जो उसकी बात को समझ सकता हो।। उसके फ्रेंड भी अभी बच्चो जैसे हरकते कर रहे थे वो तो मयंक के पीछे पागल थे उस से तो बात करना ही बेकार था। मिशा और जोर से रो पड़ी। इस टेंशन में मिशा की आंख कब लग गई उस भी पता नहीं चला।
" मिशा, चलो जल्दी आ जाओ खाना तैयार है।" मा की आवाज सुनकर मिशा की आंख खुली तो उसे पता चला बहार अंधेरा हो चुका था वो तीन घंटे से सोई हुई थी। उसके पापा भी दफ्तर से आ चुके थे। मिशा बेड में से उठी और अपना चहेरा पानी से साफ किया और फिर एकदम सवस्थ हो के खाने की लिए बहार गई।
"मीशु बेटा, तुम्हारी एग्जाम कब है?" पापा ने खाना खाते हुए पूछा।
" अगले महीने पापा।" मिशू ने जवाब दिया।
" बेटा, तुम्हे कल मयंक का ड्राइवर आ के ले जाएगा तुम दोनों एक बार मिल लो फिर आगे सोचते है क्या करे...! पर तुम बिल्कुल भी फिक्र नहीं करना शादी के बारे में हम तुम्हारी एग्जाम के बाद ही सोचेगे। अभी सिर्फ तुम दोनों एकदुसरे से बात करलो।पापा बड़ी शांति से मिशा से बात कर रहे थे।
" जी पापा।" मिशा को कुछ ज्यादा बोलना मुनासिफ ना लगा। मिशा अपना खाना पूरा करके जल्दी ही अपने कमरे में चली गई।
*

मिशा कमरे में आकर आयने के सामने खड़ी हो गई। उसने मन भरकर रो लिया था इसलिए अब उसका मन शांत हो गया था। मिशा आयने में खुद को देखकर जोर जोर से हंसने लगी,
" यार, मेरी लाइफ तो वो विवाह मूवी के सीन जैसी चल रही है। एक अमीर लड़का एक मिडल क्लास लड़की को देखने आता है, पर मूवी में तो शाहिद कपूर खुद देखने आ रहा था और यहां एक ये है जो खुद आने की जगह अपने ड्राइवर को मुझे लेने के लिए भेज रहे है। शायद यहां आने से उसकी इज्जत कम हो जाएगी क्युकी हम उसके जैसे बड़े लोग तो है नहीं। चल ये सब छोड़ मिशा, ये डिसाइड कर कल तू क्या पहनेंगी?? कुछ ढंग का नहीं पहना तो वो राजकुमार मुझे इनकार कर देगा। चलो कल पता चल ही जाएगा वो हेंडसम, डेशिंग बॉय आखिर में है केसा। फिलहाल तो मुझे सो जाना चाहिए।" मिशा कब से खुद से ही बाते किए जा रही थी।
*
"मिशा बेटा, नीचे ड्राइवर आ गया है, तू तैयार है?" मा जल्दी ही कमरे में आकर बोली।
" वाह, मेरी बच्ची बड़ी ही प्यारी दिख रही है। किसी की नजर ना लगे मेरी मीशू को।" मा काला टीका लगाते हुए बोली।
मिशा ने आसमानी कलर की कुर्ती पेहनी थी। बाल को खुले ही छोड़ दिया था और क्रिम्मझन रेड कलर की लिपस्टिक लगाई थी और साथ में आसमानी कलर की बिंदी उसे और भी सुंदर बना रहा था।
मिशा ड्राइवर के साथ कार में चली गई। मिशा के मम्मी पापा थोड़ी देर गेट पर ही खड़े रहे। उन दोनों के देखकर लग रहा था मानो उसने अपनी बेटी अभी विदा कर दी।
*
ड्राइवर ने गाड़ी एक बड़े ही बंगलो के सामने आ के रोक दी। मिशा गाड़ी में से बहार निकली और आलीशान बंगलो देखती ही रह गई।
" मेम, आप अंदर आइए..." ड्राइवर मिशा को अंदर ले गया।
" आप यहां बैठिए सर थोड़ी ही देर में आते होंगे" ड्राइवर मिशा को लिविंग रूम में छोड़ के चला गया। एक नौकर ने मिशा को पानी दिया। मिशा ने थोड़ा पानी पिया फिर घर को देखने लगी। बहोत बड़ा घर था और घर में रखी हर एक चीज बहुत कीमती दिखाई दे रही थी। दस मिनिट हो चुकी थी पर कोई आया नहीं इसलिए मिशा लिविंग रूम से बहार आ गई। वो गार्डन में आई तो सामने ही बड़ा स्विमिंग पूल था। मिशा आसपास सब देख रही थी। शहर से दूर बड़ी ही शांत और खूबसूरत जगह थी। मिशा को ये जगह पसंद आई।
"कैसी लगी जगह बेटा?" पीछे से आवाज़ आई। मिशा ने देखा तो सामने मी. आनंद शाह खड़े थे। इतने बड़े कंपनी के मालिक थे परन्तु दिखने में एकदम सरल और सहज दिखाई दे रहे थे।
" बहुत अच्छी है, सर।।" मिशा थोड़ी बेचैन हो गई थी।
" अरे बेटा, में कोई तुम्हारा प्रोफेसर नहीं हु जो सर.. सर लगा रखा है। चलो आयो यहां बैठो।" आनंद शाह बगीचे में रखे सोफे पर बैठे।
" जी अंकल।" मिशा भी वहां जाकर बैठी।
" सॉरी बेटा, तुम्हे मयंक से मिलने का सोचा होंगा और में आके बैठ गया। मयंक एक मीटिंग में है तो मुझे लगा इस मौके का फायदा मुझे उठा लेना चाहिए।" आनंद शाह हस्ते हुई बोले।
" ऐसी कोई बात नहीं अंकल, आप से मिलना मतलब एक सपना है सब लोगो का...' ऑनर ऑफ दि आनंद ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज' और में लकी हूं जो में आपके सामने हूं।" मिशा बड़ी ही शांति से बोल रही थी।
" ये सब बाते छोड़ो अब ए बिजनेस से में छुट्टी लेना चाहता हूं, हरिभाई से बहुत सुना था तुम्हारे बारे में तो बड़ी इच्छा थी तुमसे मिलने की। हरिभाई बिल्कुल सही कह रहे थे तुम बहुत प्यारी हो।" आनंद शाह बड़े ही नरमी से बात कर रहे थे।
"पता नहीं हरी अंकल ने क्या बताया होगा मेरे बारे में पर में कोई खास नहीं एक बहुत ही सामान्य लड़की हु।" मिशा कोई भी हिचकिचाई के बिना बोल रही थी।
" बेटा, इस दुनिया में कोई सामान्य नहीं होता सबके पास कुछ न कुछ होता है जो उन्हें दूसरे से अलग बनाता है।" आनंद शाह अपने अनुभव से बोल रहे थे।
" ये भी सही है।" मिशा आनंद शाह की बात को अग्री करती हुई बोली।
"आई थिंक मयंक के आने का वक्त हो गया है अब मुझे चलना चाहिए। पर एक बात याद रखना ए कोई मार्केट से सब्जी लाने का फैसला नहीं है तुम दोनों की पूरी ज़िंदगी का सवाल है तो पूरे दिल और दिमाग से फैसला लेना। और ये मत सोचना में एक लड़की हूं तो मुझे अपना फैसला सुनाने का कोई हक नहीं है। अगर तुम्हे मयंक पसंद ना आए तो बिंदास साफ साफ बोल देना। किसी को बुरा नहीं लगेगा और लगे तो भी कोई बात नहीं तुम्हे इस से क्या मतलब? तुम्हारी ज़िंदगी है तो फैसले भी तुम्हारी पसंद के ही होने चाहिए। ऑल द बेस्ट बेटा।। आनंद शाह मिशा के सर पर हाथ रखते हुए वहां से चले गए।
मिशा तो आनंद शाह को देखती ही रह गई। सच में आज तक कोई भी व्यक्ति ने मिशा से अपने दिल की बात सुनने के बारे में नहीं कहा था। मिशा को आनंद शाह के साथ बहुत अच्छा लगा। उसे लग रहा था वो तो सालो से उसे जानती थी। मिशा सब सोच रही थी तभी उसे गाड़ी की आवाज आई और उसके सारे विचारो पे ब्रेक लग गई। उस कुछ समझ नहीं आ रहा था अब आगे क्या होगा? वो मयंक से बात केसे करेंगी? उसके पेट में बटरफ्लाई उड़ने लगे थे। उस वो सारी फीलिंग्स आ रही थी जो कोई भी लड़की को आती है जब उन्हें कोई लड़का देखने आता है। और ए सारी फीलिंग्स ही ऐसी होती है जो सिर्फ एक लड़की ही समझ सकती है।
" मेडम, कुछ ऑफर किया??" नौकर मयंक के पास बेग लेने आया तो मयंक ने पूछा।
" नहीं सर।" नौकर ने सिर हिलाते हुए कहा।
" कोई बात नहीं दो कॉफी लेके आओ।" मयंक अभी पीछे नौकर के साथ बात कर रहा था। पर मिशा की बिल्कुल हिम्मत नहीं थी के वो अपना सिर घुमाकर पीछे देख शके। मिशा को पता था अब मयंक उसी की और आ रहा है इसलिए उसने जोर से आंखे बांध करके भगवान का नाम लिया।
" हाय, आई एम् मयंक। अंड आई एम् रियली सोरी आपको यहां इंतजार करना पड़ा। मयंक आके मिशा के सामने बैठ गया।
" इट्स ओके....।" मिशा को समझ नहीं आया आगे क्या बोले।
नौकर आया और कॉफी रख कर चला गया।
"कॉफी.... एक और बार सोरी मैने तुम्हे बिना पूछे ही कॉफी मंगवा ली। मयंक ने कोफी ऑफर करते हुए कहा।
" थैंक्स...!" मिशा अपने बाल सवारते हुए बोल।
"बी रिलेक्स, हम यहां बात करने बैठे है कोई वाइवा नहीं चल रहा तुम्हारा एकदम बिंदास हो जाओ।" मयंक ने नोटिस किया कि मिशा स्ट्रेस हो रही थी।
"जी..." मिशा को भी लग रहा था कि वो बड़ी बेहूदी हरकत कर रही थी इसलिए उसने भी नज़रे ऊपर करके एकदम कॉन्फिडेंस से बैठने की ट्राय कर रही थी। मिशा ने मयंक को देखा तो ये क्या हो गया? ये कोई कॉइंसिडेंस हो गया था मयंक ने भी आसमानी कलर की शर्ट पहनी हुई थी और उसके पर ब्लू ब्लेजर था।
" वेल, अभी क्या कर रही हो?" मयंक ने बात को जारी रखा।
" मास्टर पूरा होने में दो महीने बाकी है।" मिशा अब थोड़ी स्वस्थ हो चुकी थी।
"तुम्हे मुझसे भी पूछने का हक है? अब तुम मुझसे सवाल करोगी?" मयंक कॉफी हाथ में लेता हुआ बोला।
"आप तो इतने बड़े कंपनी के मालिक हो, आपकी एक्सपेक्टेशन भी हाय होगी। तो मुझ जैसी मिडल क्लास लड़की को आप पसंद केसे कर सकते है? " मिशा ने बात को घुमा फिराने की जगह सीधा सीधा अहम सवाल कर दिया।
" अच्छा सवाल है, में आज जहा भी खड़ा ही वो सिर्फ अपने पापा की बदौलत है। और पापा का कहना है एक मिडल क्लास लड़की सिर्फ अपने बारे में और अपने पति के बारे में नहीं सोचती। वो पूरे परिवार के बारे में सोचती है। और उनसे बेहतर कोई नहीं जानता कि परिवार को केसे संभाला जाए उसमे जो खुशियां बरकरार रखने की ताकत होती है वो और कोई में नहीं होती। और खुशियां परिवार के साथ रहने से मिलती है पैसे से तो बिल्कुल नहीं। और सबसे बड़ी बात ये है कि में सिर्फ पापा की खुशी चाहता हूं।" मयंक जब बोल रहा था तभी उसके शब्दों से उसके लिए उसके पापा का प्यार दिखाई देता था।
"हा पापा तो हमारे सुपर हीरो होते है उसके लिए हम जितना भी करे शायद वो कम ही रहेगा।" मिशा भी मयंक की बात से सहमत थी।
"तो आगे क्या करना चाहती हो कुछ सोचा है?" मयंक मिशा के फ्यूचर के बारे में पूछ रहा था।
" हा, में आगे अपना करियर बनाना चाहती हूं। में अपने दम पे कुछ करना चाहती हू।" मिशा को अच्छा लगा मयंक ने फ्यूचर के बारे में पूछा तो।
" ये तो अच्छी बात है। सब को अपनी पसंद का काम करना चाहिए।" मयंक भी मिशा की बात से सहमत हुआ।
मयंक का फोन बजा।
"अब तुम कुछ जानना चाहती हो? तो जल्दी से पूछ सकती हो मेरी थोड़ी देर बाद मीटिंग है तो मुझे जाना पड़ेगा।" मयंक ने फोन रखकर मिशा से पूछा।
" जी नहीं.... अब मुझे भी चलना चाहिए।" मिशा जाने के लिए खड़ी हुई।
" हितेश, मेडम को घर छोड़ दो।" मयंक ने नौकर को बुला के कहा।
मिशा ड्राइवर के पीछे पीछे दरवाजे की ओर चलने लगी। मिशा ने जाते जाते मूड के देखा तो मयंक अपनी लेपटॉप में काम करने में बिजी हो गया था।
*
मिशा घर पहुंची तो मा और पापा मिशा का ही इंतजार कर रहे थे। वो मिशा की राय जानना चाहते थे कि आखिर उसको मयंक पसंद आया कि नहीं।
" मिशा, क्या बात हुई बेटा?? मयंक कैसा लगा?? " मिशा के आते ही मा ने सवाल शुरू कर दिए।
" मा, प्लीज़ मेरे सिर में दर्द हो रहा है आप जानते ही हो मुझे कार में AC पसंद नहीं है। में थोड़ी देर आराम करना चाहती हूं। फिर आप से सारी बात करूंगी।" मिशा सिर पर हाथ रख कर बोल रही थी।
" अब तो तुम्हे ये सब आदते डालनी होगी अब तो तुझे बड़ी बड़ी गाड़ी में ही घूमना होगा। दामादजी थोड़ी ना तुम्हारे साथ बाइक ने घूम सकते है।" मा तो रिश्ता अपनी तरफ से पक्का कर चुकी थी।
" मा........!! आप क्या दामादजी...... अभी में ने और मयंक ने हा बोली नहीं है।" मिशा को मा की बात पसंद नहीं आई।
" मिशु बेटा, तुम कमरे में जा के थोड़ी देर आराम कर लो। फिर शांति से बैठ के बात करते है।" पापा ने मिशा को कमरे में भेज दिया। पापा जानते थे मिशा अपने आप से बात करना चाहती थी।
*
मिशा अपने कमरे में आई। आके सीधे अपने बेड पर बैठ गई।थोड़ी देर गहरी सांस ली और कपड़े चेंज करने के लिए खड़ी हुई। आयने के पास जाकर अपने इयरिंग उतार कर रखा और अपने बालों को बांध रही थी तभी अचानक अपनी कुर्ती पर नजर करते ही उसे मयंक का आसमानी शर्ट भी याद आ गया और वो स्माइल करने लगी।
" पता नहीं लड़कियां छोटी छोटी बात पे इतना खुश केसे हो जाती है सिर्फ इत्तफाक से कपड़े का कलर क्या मैच हो गया तो उसे लगने लगता है वो दोनो लाइफ पार्टनर के लिए भी मैच हो गए। मयंक ने तो ये बात नोटिस भी नहीं की होंगी और उसे तो ये सब बाते बकवास लगेगी। उसे तो सिर्फ अपने आप से अपने काम से मतलब है। उसने मुझे करियर के बारे में पूछा तो सही और उसे इससे कोई प्रॉब्लम भी नहीं था कि में अपने सपनों को पूरा करूं पर उसने ये जानने की कोशिश भी नहीं की के मेरा इंटरेस्ट किस में है, मेरा ड्रीम क्या है?, मुझे क्या करना पसंद है?
उसे लगा जैसे ये भी कोई बिजनेस मीटिंग ही है। उसका स्वभाव बहुत अच्छा है। वो अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद बिल्कुल नहीं। वो अपने पापा को बहुत चाहता है। और उस अपने पैसे का भी कोई अभिमान नहीं है ये सब बाते उसमे अच्छी है।
पर एक लड़की को सिर्फ इतना नहीं चाहिए होता। लड़की को अपने पति के पैसे की नहीं उसके प्यार की जरूरत होती है। एक लड़की ऐसा पति चाहती है कि इसका लाइफ पार्टनर उसकी सारी अच्छी बुरी आदतें जाने समझें और उसे एक बच्ची की तरफ ट्रिट करे। वो चाहती है कि जब उसका पति शाम को काम से वापस आए तो उसके पसंद का खाना बना कर उसे प्यार से खिलाए और उसका पति भी उससे प्यार से दिन में क्या हुआ उसके बारे में पूछे।
पर वो मयंक शाह को तो सिर्फ अपने बिजनेस से प्यार है। हम वहां पूरी ज़िन्दगी का फैसला करने बैठे थे।हमें एक दूसरे के बारे मे बात करनी थी पर नहीं उसे तो मीटिंग इम्पोर्टेंट लगी। और मुझे कहने लगा तुम्हे कुछ पूछना है तो जल्दी जल्दी पूछ सकती हो। अब उसे कोन समझाए की ये कोई प्रोपर्टी खरीदने की बात नहीं थी, लोग तो प्रोपेटी खरीदने में भी कितनी बार देखते है सोचते है फिर कोई फैसला लेते है। पर यहां तो पूरी ज़िन्दगी का सवाल था वो केसे यूहीं घंटे भर की मुलाकात तेय कर सकती है।
मी. मयंक आप बड़े ही अच्छे आदमी है। आपका परिवार भी बड़ा ही प्यारा है। ऊपर से आप अमीर भी है। पर आई एम् वेरी सॉरी मुझे आप पसंद नहीं है। क्युकी मुझे पैसेवाला लड़का नहीं चाहिए। मुझे मेरे जैसा लड़का चाहिए जो मुझसे प्यार करता हो, माना कि काम जरूरी है, उसके बिना खाना नहीं होता पर काम के साथ साथ अपने हमसफ़र का साथ भी इतना ही जरूरी होता है। मुझे लगा था में जब जा रही थी तब आप पीछे से मेरे मूड कर देखने का इंतजार कर रहे होंगे पर में ही बेवकूफ थी ये आज कल के रोमेंटिक मूवी और सीरियल हम लड़कियों की एक्सपेक्टेशन बढ़ा देते है। आप तो अपनी मीटिंग के लिए लेपटॉप में बिजी हो गई थे।"
मिशा आयने के सामने अपने आप से बात किए ही जा रही थी। मिशा जब अपने इमोशन से बहार आई तो उसे पता चला कि उसकी आंखे गीली हो चुकी थी।
मिशा बाथरूम में गई कपड़े चेंज किए और फ्रेश हो के बहार आई। और फिर गहरी सास लेके अपने आप से कहने लगी,
" मिशा, तो फाइनली तुझे मी. मयंक शाह पसंद नहीं है। और अभी तू नीचे जा के साफ साफ मा और पापा को भी ये तुम्हारा फैसला सुनाएगी।"
*
"नमस्ते आनंद जी, बस बढ़िया हाल चाल है। आप बताई ये??" पापा आनंद शाह से बात कर रहे थे।
" क्या सच में?? हमारे नसीब खुल गए की मयंक बेटे को हमारी मिशा पसंद आ गई।" पापा बहुत खुश हो गए थे। मिशा पापा की बात सुनकर कमरे के दरवाजे पर ही खड़ी रह गई और चुप के से पापा की बात सुनने लगी।
"जी, मिशा से अभी कोई बात हुई नहीं, वो आई तो उसकी तबीयत ठीक नहीं थी इसलिए आराम कर रही है। में मिशा से बात करके फिर आपको बताता हूं।" पापा ने फोन रखा।
" क्या बात हुई जी??" मिशा की मा से सब्र नहीं हो रहा था वो तो फोन रखने का ही इंतज़ार कर रही थी।
" अरे बधाई हो....मयंक को हमारी मिशा पसंद है।" पापा के शब्दों में खुशी साफ साफ दिखाई दे रही थी।
" क्या बात कर रहे हो आप...!! हमारी मिशा की तो किस्मत ही खुल गई। अब जाके मेरे दिल को सुकून मिलेगा मेरी बेटी एक अच्छे घर की बहू बनेगी उससे ज्यादा मुझे और क्या चाहिए।" मा की आंखो में खुशी के आंसू आ गए थे।
" आनंद जी से बात करके साफ पता चलता है कि वो बड़े ही भले इंसान है उसे अमीरी का कोई अभिमान नहीं है। मुझे पता है मिशा उस घर में जाएंगी तो किसीको भी शिकायत का मोका नहीं देंगी। तुम सही कह रही थी मिशा के लिए मयंक एकदम सही लड़का है। आनंद जी से बात करने के बाद दिल को चैन मिल गया है मन को शांति मिल गई है कि बेटी एक सही घर में जा रही है।" पापा को देख के लग रहा था मानो उसकी सारी जिम्मेदारियां पूरी हो गई है और वो निवृत्त हो गई।
मिशा अपने कमरे में सब सुन रही थी। मिशा के पाव वहीं थंभ गए। मयंक ने रिश्ते के लिए हा कर दी थी। पर मिशा को रिश्ता पसंद नहीं था उसका क्या? वो मयंक के साथ खुश नहीं रेह सकती थी। मिशा ने दरवाज़ा खोल के देखा तो मा और पापा बड़े ही खुश होकर बात कर रहे थे।
मिशा फिर गहरी सोच में डूब गई। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था वो क्या करे? मिशा का दिल मयंक के लिए हा नहीं कह रहा था। पर उसके मा पापा को मयंक पसंद था। मा पापा को लगता था उसकी बेटी के लिए मयंक और उसका परिवार सही है। मिशा को भी आनंद अंकल और मयंक का स्वभाव पसंद आया था पर इसका मतलब ये तो नहीं कि वो शादी के लिए भी सही था। मिशा अपना आखरी फैसला कर के नीचे मा और पापा के पास गई।
*
"अरे बेटा, अब केसी तबीयत है तुम्हारी?" पापा ने बड़े ही प्यार से पूछा।
" अब ठीक है पापा।" मिशा एकदम स्वस्थ हो गई थी।
" मिशा , एक बड़े ही खुशी की बात है..." मा मिशा को बताने ही जाती थी तभी पापा ने इशारे से मा को रोक दिया।
" तुम तुम्हारी मा को छोड़ो , बेटा मुझे इतना बता की तुम क्या चाहती हो? तुम्हारी खुशी हमारे लिए सबसे पहले मायने रखती है। अगर तुम्हे पसंद है तो ही हम आगे बात करेंगे.... हम सिर्फ तुम्हारी खुशी चाहते है।" पापा ने मिशा को अपने पास बिठा के प्यार से पूछा।
" पापा, मयंक के तरफ से कोई जवाब आया??" मिशा जानकर भी अनजान बनी।
" नहीं बेटा, अभी उसने भी कोई जवाब नहीं दिया। पहले तू बता तेरी क्या राय है??" पापा जानना चाहते थी की मिशा क्या चाहती है।
तभी पापा के फोन की रिंग बजी। फोन मा के पास पड़ा था।
"आंनद जी का फोन है?? क्या जवाब देना है जी??" मा ने फोन को हाथ में लेकर कहा।
"मा, मुझे दीजिए में बात करूंगी अंकल से...." मिशा ने फोन के लिए हाथ बढ़ाया पर मा ने पहले पापा के सामने देखा पापा ने सिर हिला के हा कहीं इसलिए मा ने फोन मिशा को दिया।
" हेल्लो अंकल, नमस्ते में मिशा बात कर रही हूं।" मिशा ने बड़े ही प्यार से बात शुरू की।
" नमस्ते बेटा, कैसी तबीयत है तुम्हारी अब??" आनंद शाह भी बड़ी नरमाई से बात कर रहे थे।
" अब बिल्कुल ठीक हूं अंकल।" मिशा ने बताया।
" बेटा , में घुमा फिरा के बात करना नहीं चाहता इसलिए तुम्हे साफ साफ पूछ रहा हूं तुम क्या चाहती हो?? तुम्हे मयंक पसंद आया कि नहीं??" आनंद शाह ने सीधे ही सवाल कर दिया।
" अंकल वो...... वो में ........ कहना चाहती हूं कि.... वो......" मिशा को समझ नहीं आ रहा था वो अपना फैसला केसे सुनाए।
" बेटा, तुम्हे हिचकिचाने की बिल्कुल जरूरत नहीं है तुम बिंदास बोल सकती हो। और तुम्हारा जो भी फैसला होगा वो हमे मान्य होगा तो बिल्कुल सोचे बिना सिर्फ अपने दिल से पूछो और जवाब दो तुम्हे ये रिश्ता पसंद है??" आनंद शाह मिशा पे कोई जोर नहीं डालना चाहते थे।
" जी अंकल, मेरी हा है।" इतना बताने के बाद तुरंत मिशा ने फोन अपने पापा को दे दिया।
पापा और आंनद शाह एकदुसरे को बधाइयां देने लगे । मा ने भी मिशा को अपने सीने से लगा लिया। मा की आंखो में खुशी के आंसू आ गए थे। मिशा ने देखा तो उसके पापा भी फोन में बात करते करते अपनी आंखे पोंछ रहे थे।
मिशा भी सिर्फ अपने मम्मी पापा को खुश देखना चाहती थी। और उसने देखा कि उसकी एक हा से दोनों परिवार में खुशियां आ गई थी। तो सबकी खुशी देख के मिशा भी खुश हो गई..........!!!


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