बागी स्त्रियाँ - भाग दस Ranjana Jaiswal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

बागी स्त्रियाँ - भाग दस

कोविड 19 की अफ़रातफ़री।बाहरी दुनिया में हलचल बंद हो गई है और भीतरी दुनिया में हलचल बढ़ गई है।
लोग घरों में कैद हैं। सड़कों पर सन्नाटा है। स्कूल कॉलेज,ऑफिस,दुकानें सब बंद हैं।बसें नहीं चल रही ।ट्रेन बंद है।जाने कितनों की रोजी- रोटी छीन गयी है।जाने कितनों की नौकरी चली गई है।कितने लोगों के प्रिय -जन बिछड़ गए हैं । कोई किसी से मिलता नहीं।प्रेमी -प्रेमिका,पति- पत्नी तक एक -दूसरे को छूते नहीं।सभी को अपने प्राणों का संकट है।कितने अस्पताल से घर नहीं सीधे श्मसान ले जाए गए,वह भी कफ़न की जगह प्लास्टिक में लपेटकर।कितने हिंदुओं को अंतिम अग्नि नसीब नहीं हुई।अपनों का अंतिम प्रणाम,उनका स्पर्श,उनके अश्रुबिन्दुओं की श्रद्दांजलि भी नहीं मिली।अस्पताल भरे हुए हैं।ऑक्सीजन सिलेंडरों की मारामारी है ।सच ही यह विपदा बड़ी भारी है।
अपूर्वा भी घर में कैद है।पहले भी वह अकेली ही रहती थी पर यह अकेलापन उस पर इतना भारी नहीं था।यह उम्मीद रहती थी कि वह कभी भी बाहर निकल सकती है ।कहीं भी जा सकती है।वह अकेली थी इसलिए और डर रही थी कि अगर उसे कुछ हुआ तो वह बिना देख -भाल के ही मर जाएगी।कोई दवा तक लाने वाला नहीं। घर के करीब किराने की दुकान और ठेले वालों की सब्जियों से खाने- पीने की किल्लत तो नहीं हुई पर खुद के अलावा कोई बात करने वाला न हो तो बहुत घबराहट होती है।आखिर में छत का सहारा मिला।आस- पास की महिलाएं छत से ही एक -दूसरे से बातें करने लगीं पर बातचीत का मुद्दा बस कोविड ही रहता। फोन भी जीने का सहारा बना। टीवी के धारावाहिक बंद थे ।मनोरंजन का दूसरा कोई साधन नहीं था। ऐसे में भी नौकरी की चिंता बनी हुई थी।क्लॉसेज नहीं चल रहे तो सेलरी मिलेगी या नहीं ।गनीमत हुई कि आधी सेलरी बैंक में आने लगी। कुछ महीने बाद ऑनलाइन क्लॉसेज भी शुरू हो गए।लॉकडाउन हटने के बाद टीचर्स को कभी -कभार स्कूल बुलाया जाने लगा ,हालाँकि बच्चे नहीं आ रहे थे।टीचर्स को ऑनलाइन पढ़ाने की ट्रेनिग दी जा रही थी।ऐसे में एक दिन अपूर्वा को पता चला कि कुछ टीचरों ने काटी गई आधी सेलरी ले ली है।सबको ऑनलाइन पढ़ाने के लिए लैपटॉप की जरूरत थी।उसका लैपटॉप भी काफी पुराना हो चुका था और ठीक ढंग से काम नहीँ कर रहा था।मोबाइल भी सामान्य श्रेणी का था।उसने सोचा कि वह भी उनसे सेलरी के पैसे मांग ले और लैपटॉप ले ले।वह उनके पास गई तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया।
--स्कूल क्राइसिस से गुज़र रहा है ।बच्चों की फीस नहीं आ रही।किसी तरह हॉफ सेलेरी दे रहा हूँ।बाकी स्कूलों में तो आधी भी नहीं मिल रही।
--'कई स्कूल तो पूरी सेलेरी भी दे रहे'--उसने हँसकर उन्हें जानकारी दी तो वे थोड़े चिढ़ गए।
--जो दे रहा ,उसका पता है और जो नहीं दे रहा,उसका नहीं सोचना।
'हमारे स्कूल जैसा कोई स्कूल है भी तो नहीं।यहां किस बात की कमी है?वैसे लैपटॉप न लेना होता तो मैं नहीं मांगती।'
--नहीं हो पाएगा।स्कूल जब नार्मल चलेगा ,तभी कुछ सम्भव है।
वह मुँह लटकाकर वापस हो ली थी।दूसरे दिन फिर से लॉकडाउन लग गया।जरूरी चीजों की दुकानें कभी -कभार एक नियत समय पर ही खुल रही थीं।टैम्पो,ई- रिक्सा से कहीं आना- जाना सुरक्षित नहीं था और उसके पास कोई सवारी नहीं थी।वरना वह एक अच्छा मोबाइल ही ले लेती।ऑनलाइन पढ़ाने,कक्षा के लिए वीडियो बनाने में उसे खासी परेशानी हो रही थी।इधर वह बैंक भी नहीं जा पाई थी कि फोन लेने के लिए पैसे ही निकाल लाए।
एक दिन कुछ तकनीकी कारणों से ऑनलाइन क्लॉस लेने में कुछ दिक्कत आई तो उसने उन्हें फोन करके यह बात बतानी चाही तो वे फोन पर ही उस पर बरस पड़े।
--आपने झूठ बोलकर पैसे ले लिए।स्कूल की क्राइसिस नहीं समझी।आपने न तो फ़ोन लिया न लैपटॉप।
'दुकानें बंद हैं मेरे पास कोई वाहन नहीं है।मैं बस लैपटॉप लेने ही वाली हूँ पर लॉकडाउन के कारण मजबूर है।'
--लॉकडाउन!अभी क्या लॉकडाउन है, जब छह महीने का लॉकडाउन होगा तब पता चलेगा।आप क्लॉस नहीं ले पा रही।मैं बाकी टीचर्स से आपकी क्लॉस करवा लूँगा।
'मेरी गलती क्या है?मैं अकेली हूँ परेशान हूँ।मैं झूठ नहीं बोल रही।'
--आप झूठी हैं ।झूठ बोलकर पैसा ले लिया।आप कैसी हैं, मुझे खूब पता है।माना पैसा आपकी ही सेलरी का था पर इस तरह वसूलना एक टीचर को शोभा देता है क्या?आप लालची हैं।सोचा होगा पता नहीं काटा गया पैसा मिलेगा या नहीं ,चलो झूठ बोलकर ले लेते हैं।पैसा लेने के बाद भी आपको प्रॉब्लम आ रही है!
वे अनाप- शनाप कुछ भी बोले जा रहे थे।उसकी बात ही नहीं सुन रहे थे।उसको सफाई का मौका भी नहीं दे रहे थे।वह तकनीकी गड़बड़ी के कारण नियत समय पर क्लॉस लेने में विलंब की सूचना दे रही थी और वे पैसे की बात कर रहे थे।उसे बच्चों के क्लास की चिंता थी ,पर उन्हें पैसों की।वे किस पैसे की बात कर रहे हैं?सेलरी तो सबको भेजा है ।लैपटॉप के लिए पैसा मांगा तो मना ही कर दिया था ,फिर क्यों उसे झूठी और लालची कह रहे हैं ?वह कुछ समझ नहीं पा रही थी।वे बहुत नाराज थे और वह हैरान -परेशान थी।
फोन पर भी पता चल रहा था कि वे दाँत पीस रहे हैं।
--मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है।आप फ़ोन रखिए।हमें और भी जरूरी काम है।आपसे अब काम नहीं हो पा रहा।मैं कोई और व्यवस्था करूंगा।
उन्होंने फोन काट दिया।वह शॉक्ड थी।उसने एक बार और कोशिश की, तो मोबाइल की तकनीकी प्रॉब्लम दूर हो गई और उसने अपनी क्लॉस का वीडियो अपलोड कर दिया।सब कुछ पहले से तैयार था ही ।
उसने उन्हें मैसेज भी कर दिया कि क्लॉस ले लिया है और 'सॉरी' भी लिख दिया पर उधर से कोई जवाब नहीं आया।उस समय उसकी हालत पागलों- सी हो गई थी।आंखों से आंसू बहे जा रहे थे।चारों तरफ से आवाज़ आ रही थी--झूठी...झूठी !मैं अच्छी तरह जानता हूँ आपको!झूठ बोलकर पैसा लिया....!
उन्होंने उसके इमेज की हत्या कर दी थी।उसी विक्षिप्त अवस्था में वह बैंक गई।बैंक में ही सेलरी आती थी।सेलरी आने पर बैंक से मैसेज भी आ जाता है, पर इस बार कोई मैसेज नहीं आया था।बैंक मैनेजर से उसकी जान- पहचान थी।वह जाते ही उन पर बरस पड़ी कि बैंक से लेन- देन का मैसेज नियम से क्यों नहीं आता?वे समझ गए थे कि कुछ न कुछ बात हुई है।उन्होंने पूछा तो वह उनके ऑफिस में ही भरभराकर रो पड़ी और उन्हें सारी बात बताई ।उन्होंने तुरत उसका एकाउंट चेक किया । पता चला कि स्कूल से उसी दिन उसकी काटी गई आधी सेलरी भेज दी गई थी, जिस दिन वह उनसे लैपटॉप के लिए पैसे मांगने गई थी।
.....तो इसीलिए वे और भी खफा थे कि पैसे भेजने के बावजूद उसने लैपटॉप नहीं लिया है।उसने लैपटॉप खरीदने के बहाने से काट ली गई सेलरी वसूली है।पर उसे क्या पता था कि उन्होंने मना कर देने के बाद भी पैसा भेज दिया है।बैंक से मैसेज न आने से यह दिक्कत हुई है।
पर जानने के बावजूद वह इस लॉकडाउन में अकेली मीलों दूर बाज़ार कैसे गई होती?ऑनलाइन सेवाएं भी लगभग बंद थीं।अपना अकेला और साधन-हीन होना उसे उस दिन बहुत खल रहा था।उसकी नौकरी उसके हाथ से निकल रही थी और वह भी इस तरह बेबुनियाद बातों को लेकर।माना उसने पैसे ले लिए थे पर थे तो उसी की सेलरी के पैसे ,फिर वे इतने क्यों भड़क रहे थे?उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों को तो पूरी की पूरी सेलरी दी थी ।साथ ही मेडिकल और अन्य सुविधाएं भी ।इधर के कुछ टीचर भी अपनी परेशानियों का रोना रोकर उनसे पूरी सेलरी ले चुके थे ।फिर सिर्फ उसी की लानत- मलामत क्यों ?क्या इसलिए कि वह अकेली है ..इसी नौकरी पर आश्रित है...।या फिर किसी न किसी बहाने उसे नौकरी से निकालना चाहते हैं ताकि कम सेलरी में किसी फ्रेश नवयुवती को रख सकें।या फिर वे जानते हैं कि कोविड पीरियड सालों चलेगा और ऑनलाइन क्लॉस के लिए एक विषय और एक कक्षा के लिए कई टीचरों की आवश्यकता नहीं है।उनका बिजनेस माइंड इस संकट- काल में भी तेजी से काम कर रहा है।यह कारण ज्यादा महत्वपूर्ण था क्योंकि वे तेजी से कई नए टीचरों को निकाल चुके थे।वह पुरानी और योग्य टीचर थी,इसलिए उसको निकालना थोड़ा कठिन था,इसलिए उसे ही अपराध -बोध करवाकर अपना यह स्वार्थ सिद्ध करना चाहते थे और वही किया।
इस तरह एक और सम्बंध का पटाक्षेप हुआ।