शालिनी और शौर्य दोनों बहुत ही प्यार से रहते थे। शालिनी अपने पति के साथ बड़े ही प्यार से शादी की पहली सालगिरह मना रही थी। तभी अचानक शालिनी को चक्कर आने से सभी चिंताग्रस्त हो गए।
तब तुरंत ही उसे पार्टी में आये हुए शौर्य के दोस्त डॉक्टर शर्मा ने देखकर मुस्कुराते हुए कहा "बधाई हो, शालिनी माँ बनने वाली है।"
यह सुनते ही शौर्य और शालिनी की ख़ुशियों का ठिकाना ना रहा। अब तो शौर्य शालिनी का पहले से भी ज़्यादा ख़्याल रखने लगा। हर रोज़ उसके लिए फल लाकर, स्वयं ही उसे काट कर खिलाता था। शाम को थोड़ा टहलने भी लेकर जाता था। हमेशा हँसता और उसे भी हँसाता रहता था। देखते ही देखते नौ महीने कैसे निकल गए पता ही नहीं चला।
सोमवार का दिन था, सुबह-सुबह शौर्य ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था तभी अचानक शालिनी को दर्द शुरू हो गया। शालिनी ने शौर्य को आवाज़ दी, "शौर्य मुझे जल्दी से अस्पताल ले चलो मुझे बहुत दर्द हो रहा है।"
शौर्य तुरंत ही उसे अस्पताल ले आया। वहाँ पर शालिनी ने एक बहुत ही प्यारी, सुंदर-सी बेटी को जन्म दिया। शौर्य बाहर बेचैनी से डॉक्टर का इंतज़ार कर रहा था।
डॉक्टर के बुलाते ही शौर्य अंदर की तरफ़ भागा। शालिनी को देखकर उसकी जान में जान आई लेकिन नन्हीं बेटी उसे दिखाई नहीं दी, तो वह बेचैन हो गया।
डॉक्टर ने बोला "मिस्टर शौर्य 2 मिनट इंतज़ार करो, आप की राजकुमारी को अभी नहला कर ले आएँगे।"
इतने में ही नर्स प्यारी-सी बेटी को साफ़ करके ले आई और शौर्य की गोदी में देते हुए बोली "लीजिए आप की लाडली, बहुत ही सुंदर निकलेगी, अपनी माँ की तरह।"
शौर्य ने अपनी बिटिया का माथा चूमते हुए, डरते-डरते ही उसको संभाला था। उसे डर लग रहा था, कितनी नाज़ुक है। तभी उसने शालिनी की तरफ़ झुक कर उसे भी अपनी बिटिया को दिखाया। शालिनी मुस्कुरा रही थी और शौर्य की ख़ुशी देखकर बहुत ख़ुश हो रही थी।
शौर्य ने शालिनी का हाथ चूमते हुए कहा "थैंक यू शालिनी, तुमने अपने परिवार को पूरा कर दिया, लव यू शालिनी।"
इतना सुनते ही शालिनी कुछ बेचैन होने लगी, वह शौर्य से कुछ कहना चाह रही थी। किंतु शायद वह बोल ही नहीं पा रही थी। उसकी बेचैनी देखकर शौर्य डर गया और डॉक्टर को आवाज़ देने लगा।
"डॉक्टर, डॉक्टर जल्दी आइए, देखिए ना शालिनी को क्या हो रहा है?"
तुरंत ही नर्स और डॉक्टर उनके कमरे में आ गए। डॉक्टर ने देखा शालिनी का ब्लड प्रेशर बहुत ही कम हो गया है। यहाँ तक कि उसकी नब्ज़ भी नहीं मिल रही है।
तुरंत ही शालिनी का इलाज़ शुरू कर दिया गया, किंतु डॉक्टर लाख कोशिशों के बावजूद भी शालिनी को नहीं बचा पाए। शालिनी हमेशा के लिए अपने पति और बेटी को छोड़ कर चली गई।
अब शौर्य की ज़िंदगी में संघर्ष और दुःख का साया था, जो उसका साथ नहीं छोड़ रहा था। इधर छोटी-सी बच्ची की चिंता, उसकी परवरिश की फ़िक्र से शौर्य परेशान हो गया।
शालिनी की माताजी शगुन, शौर्य के पास रहने आ गईं। वही उस नन्हीं-सी गुड़िया का सब काम करती थीं। शौर्य ने अपनी बेटी का नाम सपना रखा था। वह धीरे-धीरे, शगुन से सब कुछ सीख रहा था। आख़िर एक ना एक दिन तो शालिनी की माँ चली जाएँगी, फिर तो मुझे ही सब करना होगा। ऐसा ख़्याल हमेशा शौर्य को आता रहता था।
शगुन के पति अभी सेवा निवृत्त नहीं हुए थे। इसलिए शगुन को वापस जाना पड़ा। शौर्य के माता-पिता पहले ही दुनिया छोड़ कर जा चुके थे।
शौर्य ने सोचा कोई उम्र दराज़ दाई माँ रख लेता हूँ, सपना का अच्छे से ख़्याल रखेगी। फिर शौर्य को एक अच्छी-सी दाई माँ भी मिल गई। वह सपना को बहुत अच्छे से, प्यार से रखती थी। किंतु कुछ महीनों में ही उसे काम छोड़ कर अपने गाँव वापस जाना पड़ा।
अब शौर्य को उसके सब मित्रो ने दूसरी शादी के लिए बोलना शुरू कर दिया, "शौर्य ख़ुद के लिए नहीं, अपितु सपना के लिए तुम्हें यह निर्णय लेना ही होगा"
बहुत सोचने के बाद शौर्य को भी यही ठीक लगा और शौर्य ने पुनर्विवाह करने का फ़ैसला कर लिया। एक मध्यम वर्गीय सुषमा नाम की, साधारण दिखने वाली, सामान्य कद और पढ़ी-लिखी महिला को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
सुषमा सपना को बहुत प्यार से रखती थी और इसलिए शौर्य काफ़ी खुश था। किंतु सुषमा का यह प्यार केवल शौर्य के सामने ही होता था। उसके जाने के बाद वह सपना का अधिक ख़्याल नहीं रखती थी। वह उसके सारे काम कर देती थी, किंतु उसे प्यार नहीं करती थी।
देखते ही देखते दिन गुजरते गए और अब तक शौर्य भी समझ गया था कि सुषमा का प्यार केवल दिखावा है क्योंकि सपना के चेहरे की ख़ुशी पहले की तरह उसे नज़र नहीं आती थी। धीरे-धीरे सपना बड़ी हो रही थी। वह पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज़ थी। शौर्य हमेशा यह सोच कर दुःखी रहता था कि चाह कर भी वह सपना के जीवन में माँ का प्यार वापस नहीं ला पाया । वक़्त गुजरता गया अब सपना दसवीं कक्षा में आ गई थी। उसी समय जब सपना की परीक्षा चल रही थी तभी हृदयाघात से शौर्य की मृत्यु हो गई।
अब घर में सुषमा का ही राज था। उसे डर था कि सपना कहीं यह घर और बाक़ी सब अपने नाम ना करवा ले। इसलिए 18 साल की होते ही सुषमा ने सपना की शादी तय कर दी। सपना के लाख मना करने पर भी, सुषमा नहीं मानी और सपना की शादी की तैयारियाँ शुरू कर दी। जिस लड़के से सपना की शादी होने वाली थी उससे सपना को मिलाया। फिर एक ही दिन के अंदर उनकी शादी कर दी गई।
विदाई के बाद सपना जब अपनी ससुराल पहुँची, उसका बहुत ज़ोर-शोर से स्वागत किया गया और गृह प्रवेश की सारी रस्में पूरी की गईं। सुहाग रात के वक़्त जब वह लड़का कमरे में आया तो सपना उसे देखकर चौंक गई। क्योंकि यह, वह लड़का तो था ही नहीं जिससे उसे मिलाया गया था। सपना उठ कर खड़ी हो गई।
"कौन हो तुम," सपना ने पूछा।
वह लड़का कुछ बोले उससे पहले ही उसकी माँ और वह लड़का जिससे सपना को मिलाया था, दोनों सामने आ गए।
"देखो सपना," धीरज बोला, "यह मेरा बड़ा भाई है और तुम्हारी शादी इसके साथ ही हुई है।"
"तुम्हारी माँ सुषमा ने ही यह शादी तय करी थी और इसलिए बहुत सारे फूलों का सेहरा बनाकर मेरे भाई साकेत का चेहरा छुपा दिया गया था।"
"सपना यह साकेत है, थोड़ा-सा मंद-बुद्धि है, तुम्हें अब इसके साथ ही रहना है।"
साकेत की माँ ने सपना को गले से लगाया और बोली "बेटा यह घर तुम्हारा है, यहाँ कोई तुम्हारे साथ सौतेला व्यवहार नहीं करेगा। तुम इस घर की रानी हो, तुम्हारे साथ जो भी हुआ, वह तुम्हारी माँ ने करवाया है। हम तो अपने बेटे के लिए तुम्हारे जैसी अच्छी लड़की चाहते थे, इसलिए पुत्र मोह में ऐसा कर बैठे मुझे माफ़ कर दो बेटा।"
सपना ने माँ कहकर उनके हाथों को पकड़ लिया और बोली "माँ आप चिंता ना करें, साकेत मेरे पति हैं और आप मेरी माँ, मैं अपने कर्तव्य से कभी भी पीछे नहीं हटूँगी।"
तभी साकेत की माँ ने सपना को गले से लगा लिया और पूरी आज़ादी से घर में रहने के लिए और अपना हर सपना पूरा करने का आशीर्वाद दिया।
अब सपना ने अपने हौसलों में उड़ान भरना शुरू कर दिया। अपनी पढ़ाई जोर-शोर से शुरू कर दी। सपना को बचपन से ही चित्र-कला से अत्यधिक लगाव था। वह तो किसी का भी चित्र मिनटों में ही बना लेती थी। उसने साकेत को धीरे-धीरे रंगो से परिचित करवाया और छोटे-छोटे चित्र बनाना सिखाने लगी। साकेत को पशु-पक्षी, फल-फूल आदि के चित्र सिखाते-सिखाते सपना ने बहुत कुछ और भी सिखाया था। रंगों से प्यार करना, हर चित्र की बारीकी और उसमें छुपी भावना को समझना।
साकेत को सिखाते-सिखाते सपना स्वयं अपनी पढ़ाई भी करती रही। स्नातक परीक्षा में गोल्ड मेडल हासिल करने के बाद सपना ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी। अपनी मेहनत, लगन और अपने हौसले की वज़ह से वह जिलाधीश जैसे ऊँचे पद पर भी पहुँच गई।
तब तक साकेत भी बहुत अच्छी चित्रकारी करने लगा था। उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि आज से 5 वर्ष पूर्व यह मंद-बुद्धि रहा होगा। सपना के हौसले बुलंद थे और उन्हें पूरा करने की मेहनत और लगन का उसके पास अम्बार था।
अब तो सपना के हाथ में पावर भी था। सपना ने अब साकेत के चित्रों की प्रदर्शनी लगाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते लोगों को साकेत की बनाई तस्वीरें बेहद पसंद आने लगी। इस तरह उसकी तस्वीरें भी फटाफट बिकने लगीं।
अब तो आए दिन सपना, साकेत की चित्रों की प्रदर्शनी लगवाती रहती थी और इस तरह से धीरे-धीरे साकेत का नाम प्रख्यात होने लगा। लोग अब उसे चित्रकार साकेत के नाम से बुलाने लगे।
इसी बीच सपना और साकेत के बीच की कहानी भी लोगों को धीरे-धीरे पता चलने लगी। लोगों का उत्साह और भी बढ़ने लगा। एक मंद-बुद्धि वाला बालक इतना बड़ा चित्रकार कैसे बन गया?
बात फैलने लगी और उनकी जीवन कथा प्रचलित होने लगी।
तभी एक उपन्यासकार ने उनके जीवन पर एक उपन्यास लिखा, जिसमें सपना और साकेत के जीवन तथा उनके संघर्ष की सच्ची कहानी थी। इस उपन्यास का नाम उसने रखा "हौसलों की उड़ान।"
-रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक