पप्पा जल्दी आ जाना : एक पारलौकिक सत्य कथा - भाग 4 Shwet Kumar Sinha द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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पप्पा जल्दी आ जाना : एक पारलौकिक सत्य कथा - भाग 4

...“मम्मा, तुम दरवाजा खुला रखना। पप्पा जल्दी वापस आएंगे।”- चमक भरी निगाहों से अनोखी ने अपनी माँ की तरफ देखकर कहा।
अनोखी के स्कूल से अकेले घर लौट आने पर सभी भयभीत थें। हालांकि उसके सही-सलामत घर पहुँच जाने पर सबने भगवान को शुक्रिया अदा किया। सबके मन में यही खीज थी कि स्कूल वालों ने इतनी छोटी सी बच्ची को अकेले घर कैसे जाने दिया।
“मम्मा, तुम दरवाजा खुला रखना। पप्पा जल्दी आएंगे।” पुष्पा के दिमाग में अनोखी की कही बातें घूम रहीं थीं। लेकिन उसे पता था की ऐसा कभी संभव नहीं। फिर भी अपनी तसल्ली के लिए एक बार घर से बाहर झांककर देख ही लिया कि सच में कोई है तो नही और फिर अपना मन मसोस कर भीतर आ गई।
अनोखी को घर पर किसी ने कुछ कहा तो नहीं। हाँ, केवल प्यार से इतना समझाया कि बेटा किसी अंजान के साथ इधर-उधर कहीं मत जाना। इसपर अनोखी ने तपाक से जवाब दिया- “अंजान कहां! वो तो पापा थें।"
अनोखी की हालत देख अनिला ने पुष्पा को समझाया कि वह उसे अपने साथ लेकर शहर चली जाएगी। घर और इस माहौल से थोड़ा दूर रहेगी तो शायद उसमे कुछ सुधार आ सके। अपनी बेटी को खुद से दूर करने की बात कर पुष्पा उसे कुछ जवाब न दे पाई।
उसी दिन शाम में ।
अनोखी अभी भी अपने पापा के आने की राह देख रही थी और उसकी नजर बाहर दरवाजे पर ही टिकी थी। काफी देर होने पर मायूस चेहरा लिए वह विमलेश के पास आई। विमलेश ने उसे बड़े प्यार से अपने गोद में बिठाया और मोबाइल पर एक गेम लगाकर खेलने को से दिया। मोबाइल अपने हाथो में लेकर अनोखी ने विमलेश से कहा -“पापा को फोन लगाकर दो न चाचू। मुझे उनसे बात करनी है।"
उसकी बातों पर विमलेश ने उसे समझाने का प्रयास करते हुए कहा कि बेटा पापा भगवान जी के पास गए हैं। अनोखी पर विमलेश की कही बातों का तनिक भी असर नही दिखा और वह अपने पापा को फोन लगाने के ज़िद्द पर अड़ी रही।
अंततः विमलेश ने अपने बड़े भाई सुरेश के पास फोन लगाकर उसे सारी बातें बताई और मोबाइल अनोखी के हाथो में पकड़ा दिया।
फोन पर सुरेश अनोखी से उसका पिता बनकर बातें कर रहा था। पर कुछ ही देर में अनोखी ने सुरेश की आवाज़ पहचान ली और सिसकते हुए उससे पूछा– "आप ताऊ बोल रहे हो न? आप मेरे पापा नहीं हो सकते। मैं उनकी आवाज अच्छे से पहचानती हूं।"
इसपर सुरेश ने उसे शांत करते हुए कि बेटा मैं तुम्हारा ताऊ भी हूँ और पापा भी।" उसकी बातें सुन अनोखी ने भड़कते हुए कहा –“नहीं, तुम मेरे पापा नहीं हो। तुम केवल ताऊ हो। पापा से मेरी बात कराओ।"
अनोखी को समझाने का प्रयास करते हुए सुरेश ने उससे कहा– “अच्छा ठीक है। तुम्हें जो भी चाहिए, मुझे बता दो। मैं तुम्हारे पापा से कह दूंगा।"
“नही, पापा से आप क्यूँ बात करोगे! आपका तो उनसे झगड़ा था न और आपकी तो उनके साथ बातचीत भी बंद थी!" अपने कानों से मोबाइल सटाए अनोखी ने बिलखते हुए कहा। अनोखी की बातों का सुरेश के पास कोई जवाब नहीं था। उल्टे उसकी बातें सुन सुरेश का गला भर आया और पलके भींग गई।
बड़ी मुश्किल से अनोखी को बहला–फुसला कर पुष्पा और अनिला ने उसे शांत करने का प्रयास किया और गोद में उठाकर अपने कमरे में ले गई।
***
अगली सुबह।
अनोखी को नहलाकर उसकी माँ पुष्पा उसे कपड़े पहनाने लगी तो अनोखी ने उसे रोककर बताया कि बीती रात पापा उसके लिए एक फ्रॉक लेकर आए है।
पहले तो पुष्पा ने अपनी नन्ही बेटी की बातों को अनदेखा कर दिया। पर उसके बार–बार दुहराने पर उसे झल्लाकर चुप करा दिया।
जब पुष्पा उसकी बात सुनने को तैयार न हुई तो अनोखी ने अपने अंगुली से कमरे में रखी एक पैकेट की तरफ इशारा किया।।
आगे बढ़कर पुष्पा ने उस पैकेट को उठाया और उसे उलट-पलटकर देखने लगी। फिर खुद से ही बुदबुदाते हुए कहा-“पता नहीं, कौन लाया है ये पैकेट और यहाँ रख कर चला गया! जरूर विमलेश ही लेकर आया होगा”
“इस पैकेट मेरे लिए एक फ्रॉक है। कल रात को पापा लेकर आए थे। खोल कर मुझे पहना दो।” – अनोखी ने बड़े उत्साह से अपनी माँ को बताया।
अनोखी की बातो पर ध्यान दिए बगैर पुष्पा ने विमलेश को आवाज़ लगाकर उस पैकेट के बारे में पूछा। विमलेश ने इस पैकेट को पहली बार देखा था। उसने भी अपनी अनभिज्ञता ज़ाहिर कर दी।
पुष्पा ने पैकेट खोला और भीतर झाँककर देखी। अनोखी सच कह रही थी। उसमें एक सुंदर फ्रॉक पड़ा था। अपनी माँ के पास खड़ी अनोखी आँखों में चमक लिए फ्रॉक की तरफ निहार रही थी।...