Pappa Jaldi Aa Jana - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

पप्पा जल्दी आ जाना : एक पारलौकिक सत्य कथा - भाग 1

"मुझे स्कूल पहुंचा दो । जब मैं वहाँ जाकर खूब रोऊंगी, तब पापा को मुझे लेने आना ही पड़ेगा।" - पापा से मिलने की आस में सिसकती हुई पांच साल की अनोखी ने अपनी माँ से कहा ।

छोटी सी वह बच्ची यह समझने को कतई तैयार न थी कि उसके पापा उसे छोडकर हमेशा के लिए भगवान जी के पास चले गए हैं और अब लौट कर कभी वापस नही आएंगे।

अनोखी के पापा रमेश की मृत्यु कोरोना से हो गयी थी।

अनोखी ने अंतिम बार अपने पापा को करीब बीस दिन पहले देखा था, जब ऑक्सीज़न स्तर कम हो जाने के कारण उन्हें शहर के अस्पताल में भर्ती कराने ले जाना पड़ा था।

फूल–सी बच्ची अनोखी के क़हर ढाने वाले सवालों का जवाब घरवालों से देते नही बन रहा था। छोटी सी इस बच्ची की बातें घरवालो की आंखे आंसुओं से भर देने के लिए काफी थी।

पर किसी में भी उसके सामने रोने की हिम्मत न थी। न जाने उनके आंखों में आंसू देख अनोखी फिर कौन सा सवाल कर दे, जिसका जवाब देने की हिम्मत किसी में न थी।

पुष्पा, दिवंगत रमेश की पत्नी। एक तरफ जहां पति का साया सिर से उठ जाने से उसपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था, वहीं दूसरी तरफ उसकी छोटी बेटी अनोखी के मासूम सवाल उसके कलेजे को छलनी कर रहें थें।

रमेश और पुष्पा के दो बच्चे थें। बड़ी–दस साल की अवनी जो थोड़ी समझदार थी, और छोटी–पाँच साल की अनोखी। छोटी होने के वजह से अनोखी अपने पापा की लाडली थी।

अनिला, दिवंगत रमेश की छोटी बहन। वह पेशे से वकील थी और शहर में ही रहती थी। अपने भाई की मौत की खबर सुन वह भी भागते हुए गाँव में अपने घर पहुँची।

रोती-बिलखती पुष्पा ने उसे सारी बातें बताई कि कैसे कोरोना की वज़ह से रमेश का ऑक्सीज़न लेवल काफी कम हो गया और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। लेकिन हालत में ज्यादा सुधार नहीं होने से अस्पताल में ही उन्होने दम तोड़ दिया। कोरोना संक्रमित होने और अलग-थलग रखने की वजह से अंतिम समय में वह अपने पति से मिल तक नहीं पायी। जिला प्रशासन वालों ने अपनी देख-रेख में रमेश के पार्थिव शरीर का दाह-संस्कार करवाया। यह सब बताते हुए पुष्पा बिलख पड़ी।

अनिला ने उसके आँसू पोछकर उसे संभाला और हिम्मत देते हुए कहा-“भाभी, अब आपको अकेले ही अवनी और अनोखी को बड़ा करना है। अगर आप ही ऐसे हिम्मत तोड़ देंगी तो कैसे चलेगा।"

अपनी माँ के गोद में सिर रख अनोखी बड़ी मुश्किल से थोड़े ही देर पहले सोयी थी। बुआ की आवाज़ सुन उसकी आँखें खुल गई। कुछ पल बुआ को निहारने के बाद वह उठ कर बैठी और उसकी तरफ देखकर पूछा-“बुआ, पापा को साथ लेकर आई हो क्या?"

अनोखी के मासूम सवालों का उत्तर देने में असमर्थ अनिला ने अपने आंसुओं को पोछते हुए उसे अपने सीने से लगा लिया।

आज। रमेश की तेरहवीं का दिन।

उसकी आत्मा की शांति के लिए घर में पुजा रखा गया था।

बीच आंगन में रखे अपने पिता की तस्वीर पर टंगा हुआ फूलों का माला और उसके इर्द-गिर्द हो रही पूजा की तैयारियों को देख अनोखी हैरान थी और दिलों को पिघला देने वाले सवाल कर रही थी। “क्यूँ लटका रखा है पापा की फोटो पर ये माला? चलो हटाओ इसे! पूजा क्यूँ कर रहे हो मेरे पापा के तस्वीर की!”...


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