Pappa Jaldi Aa Jana - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

पप्पा जल्दी आ जाना : एक पारलौकिक सत्य कथा - भाग 2

...सिसकती हुई अनोखी यह कहते हुए पूजन सामग्रियों को इधर-उधर बिखेरने लगी। फिर पिता के फोटो पर टंगी माला हटाकर फोटो को अपने सीने से लगाए कमरे की तरफ जाने लगी।

बड़ी मुश्किल से अपने आंसुओं को रोक रखी पुष्पा से अब रहा न गया और दहाड़ मार कर रोती हुई वह एक तरफ जहां अनोखी को संभालती, तो दूसरी तरफ बिखरी हुई पूजन सामग्रियों को समेटने में लगी थी।

सुरेश, दिवंगत रमेश का बड़ा भाई जो वहीं पास में बैठा था। उससे यह सब देखकर रहा न गया। वह उठा और अनोखी को अपने गोद में लेकर चुप कराने का प्रयास करते हुए कहा- "बेटा, पापा को एक जरूरी काम आ गया है और वह भगवान जी के पास गए हैं।"

इसपर अनोखी ने सिसकते हुए कहा –“ऐसे कैसे चले गए भगवान जी के पास! वो भी मुझे बिना बताए। ताऊ, आप मुझे भी भगवान जी के पास लेकर चलो।"

अपने ताऊ की तरफ देख अनोखी उनसे भगवान जी को फोन लगाने की ज़िद्द करती हुई बोली- “ताऊ, आप भगवान जी के पास फोन लगाओ। मैं भगवान जी से कहूंगी कि मेरे पापा को जल्दी से भेज दो। अनोखी को अपने पापा बहुत याद आ रही है।“

विमलेश, दिवंगत रमेश का छोटा भाई। अनोखी का ध्यान भटकाते हुए उसे गोद में उठाकर घर से बाहर की तरफ निकल गया और एक परचून की दुकान पर लाकर उसके पसंद की हरेक चीज - चोकलेट, टॉफियाँ, बिस्किट, खिलौने खरीद कर दिया। पर अनोखी का ध्यान तो शहर से आती खाली सड़कों पर ही टिका था कि कहीं से भी उसके पापा दिख जाएँ और वो भाग कर उनके गोद में चली जाए।

तभी अनोखी की नजर विमलेश के शर्ट की जेब में रखे मोबाइल पर जाकर टिक गई। अपनी तुतली ज़ुबान में उसने पूछा -“चाचू, पापा का फोन आपके पास क्यूँ है?”

अनोखी के सवाल पर विमलेश का गला भर आया और उससे आंखें चुराते हुए भारी मन से कहा -“नही बेटा, यह तो मेरा ही फोन है।"

“नहीं। आप झूठ बोल रहे हो। ये देखो इस फोन के पीछे मेरा टैटू है, जो मैंने और पापा ने मिलकर लगाया था।" - अपनी कर्कश आवाज़ में अनोखी ने विमलेश को फोन पलटकर दिखाते हुए कहा।

बिना कोई उत्तर दिए विमलेश अपनी गीली आँखों के साथ अनोखी को लिए वापस घर लौट आया और उसे उसकी मां की गोद में सौंप दिया। फिर भीतर कमरे में जाकर फूट-फूट कर रो पड़ा ।

लौकडाउन के इस समय में दिवंगत रमेश की तेरहवीं बड़े ही मुश्किलो से रीति-रिवाज के साथ सम्पन्न हो पाया। इसमें शामिल होने कुछ करीबी रिश्तेदार ही आ पाये थें। कार्यक्रम के समाप्त होते ही वे भी अब धीरे-धीरे वापस जाने लगे।

रमेश के बिना वीरान पड़ा घर पुष्पा को काटने दौड़ रहा था और ऊपर से अनोखी का रोना और अपने पापा को ढूँढना अभी भी कम न हुआ था। हालांकि अनोखी की बुआ अनिला वापस शहर नहीं गयी थी और पुष्पा के पास ही रुक गयी थी।

उसी रात। घर पर सभी सो रहें थें। अचानक से अनोखी नींद से उठकर बैठ गई और पापा-पापा की आवाज़ लगाकर आंगन की तरफ दौड़ी। फिर खिलखिलाकर हँसते हुए किसी से बातें करना शुरू कर दिया। अनोखी की आवाज़ सुन उसकी माँ पुष्पा की नींद टूट गई। वह भाग कर आंगन में आई तो पाया कि अनोखी किसी से बातें कर रही है, पर वहां आसपास तो कोई था ही नहीं।...


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