ग्यारह अमावस - 25 Ashish Kumar Trivedi द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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ग्यारह अमावस - 25



(25)

दीपांकर दास परेशान हो गया। वह उठकर कमरे के दरवाज़े तक गया। दरवाज़ा खोलने की कोशिश की। पर दरवाज़ा बाहर से बंद था। उसने अपनी मुठ्ठियों से दरवाज़ा पीटना शुरू किया। वह चिल्ला रहा था,
"शुबेंदु....शुबेंदु..... दरवाज़ा खोलो। मुझे यहाँ से निकालो।"
वह बहुत देर तक दरवाज़े को पीटते हुए शुबेंदु को आवाज़ लगाता रहा। लेकिन कुछ नहीं हुआ। थककर वह दरवाज़े के पास ही फर्श पर बैठ गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे अचानक यह क्या हो जाता है। वह इस भयानक रूप में क्यों आ जाता है। अचानक ही उस पर एक बेहोशी सी छा जाती है। उसके बाद जब वह होश में आता है तो अपने आप को इसी रूप में पाता है। उसके लिए यह समझ पाना कठिन था कि कैसे वह काला चोंगा पहन लेता है। वह शैतान वाला मुखौटा उसके पास कैसे आ जाता है।
उसके साथ यह पहली बार नहीं हुआ था। इससे पहले भी कई बार उसने अपने आप को इस अवस्था में पाया था। कई बार उसने खुद को अंधेरी सी जगह फर्श पर खून के तालाब में पड़े हुए पाया था। शुबेंदु का कहना था कि अचानक उस पर किसी शैतान का साया हो जाता है। उस शैतान के चंगुल में वह अजीब सी हरकतें करने लगता है। शैतान की तरह काला चोंगा पहनता है। उसकी शक्ल वाला मुखौटा लगाकर शैतान की पूजा करता है। शुबेंदु ने बताया था कि उस समय उसे संभाल पाना बड़ा मुश्किल होता है। वह किसी की नहीं सुनता है। आरंभ में उसने उसे रोकने की कोशिश की थी। लेकिन अब वह उस स्थिति में उसे छोड़ देता है। अपने उन्माद के उतरने पर जब वह सामान्य होता है तब वह उसके पास जाता है।
दीपांकर दास अपनी इस स्थिति से बहुत परेशान था। उसको कुछ याद ही नहीं रहता था कि उन्माद की स्थिति में उसने क्या किया था। स्वयं को खून से लथपथ देखकर उसे लगता था कि उसने कुछ बहुत गलत किया है। जबसे बसरपुर में सरकटी लाशों के मिलने का सिलसिला शुरू हुआ था उसे डर लगने लगा था। वह सोच रहा था कि क्या उस पर सवार हो जाने वाला शैतान उससे यह सब बुरे काम कराता है।
उसने अपने हाथ पैरों को अच्छी तरह देखा। खून का एक भी धब्बा नहीं था। उसके दिल को सुकून मिला। इस बार उसने कुछ गलत नहीं किया था। जिन हत्याओं की बात बसरपुर में चल रही थी उससे खुद को जोड़ने से उसके ‌मन में अपने लिए घृणा उत्पन्न होती थी। वह जानता था कि यदि वह किसी भी तरह से उन हत्याओं में लिप्त है भी तो यह उसकी गलती नहीं है। वह जो भी करता था अपने उन्माद में करता था। उस स्थिति में उस पर शैतान सवार होता था। उसे कुछ भी याद नहीं रहता था। वह खुद को अपराधी नहीं मानता था। लेकिन फिर भी अपराध बोध से ग्रसित था।
किसी को मार सकने की हिम्मत उसके अंदर नहीं थी। अगर ऐसा होता तो अपनी बच्ची कुमुदिनी के गुनहगारों को वह मार देता। उसे उनके विषय में पूरी जानकारी मिल गई थी। उसकी प्यारी बच्ची के गुनहगार आराम से घूम रहे थे। वह केवल पुलिस के सामने गिड़गिड़ाता रहा था। पुलिस ने यह कहकर मदद नहीं की थी कि उनके विरुद्ध पुलिस के पास कोई सबूत नहीं है। इस स्थिति में उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो सकती है। पर वह उन गुनहगारों की तरफ उंगली उठाने तक की हिम्मत नहीं कर पाया था।
यह सोचकर ही वह डरता था कि कोई उसके ऊपर इस तरह काबिज़ हो जाता है कि उसे अपना होश भी नहीं रहता है। उसके दिमाग को इस तरह नियंत्रण में ले लेता है कि वह हत्या जैसा जघन्य अपराध करने से भी नहीं चूकता है। इस समय भी वह कांप रहा था। क्योंकी शैतान ने एकबार फिर उसे अपने कब्ज़े में ले लिया था।

शिवराम हेगड़े नींद से जागा। उसने इधर उधर देखा। कुछ समझ नहीं आया। कुछ क्षणों बाद उसे वह सब याद आया जो उसके साथ घटा था। सब याद करके उसे आश्चर्य हो रहा था कि इतना सबकुछ होने के बाद भी उसे इतने इत्मीनान की नींद कैसे आ गई। अब उसे सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह का खयाल आया। रौशनी बहुत कम थी। फिर भी आसपास की चीज़ों का अनुभव किया जा सकता था। उसे अपने आसपास सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह दिखाई नहीं पड़ा। उसने आवाज़ लगाई,
"रंजन..... रंजन....."
लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला। अब वह सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को लेकर चिंतित हो गया था। उसे लग रहा था कि कहीं ऐसा ना हुआ हो कि उसने यहांँ से निकलने की कोई कोशिश की हो। इस बात से गुस्सा होकर उन लोगों ने सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को कोई नुकसान पहुंँचाया हो। उसे अपने सो जाने पर अब और अधिक अफसोस हो रहा था। उसे लग रहा था कि यदि वह सोया ना होता तो शायद अपने साथी की मदद कर सकता था।
उसके हाथ-पांव बंधे हुए थे। फिर भी उसने अपने आप को हिलाने डुलाने की कोशिश की। वह खिसकते हुए थोड़ा आगे आया। यहाँ एक मेज़ रखी थी। उसके दोनों हाथ पीछे की तरफ बंधे थे। वह खिसक कर मेज़ के पाए से पीठ सटाकर बैठ गया। उसके बाद अपने हाथों से पाए को पकड़ कर ऊपर उठने के लिए ज़ोर लगाने लगा। पहली बार में कोई सफलता नहीं मिली। थोड़ा ऊपर उठते ही वह फिसल कर नीचे आ गया। उसने कुछ देर रुककर अपनी ताकत को एकत्रित किया। थोड़ी देर बाद फिर एक कोशिश की। इस बार थोड़ा अधिक ऊपर तक गया पर फिसल कर नीचे गिर गया। वह एक बार फिर सुस्ताने लगा। इस बार जब उसे इस बात का एहसास हो गया कि उसमें दोबारा कोशिश करने की ताकत आ गई है तो उसने अपना पूरा ध्यान लगाते हुए एक बार फिर ऊपर उठने की कोशिश की। इस बार में वह सफल हो गया। अब वह मेज से सटकर खड़ा था। उसने दोनों हाथों को पीछे की तरफ मेज़ पर रखा था। उसे अपनी इस सफलता पर अच्छा लग रहा था। अब वह इधर उधर नज़र घुमाकर अच्छी ‌तरह देख सकता था।
वह अपने हाथों के सहारे खुद को मेज़ से सटाकर खड़ा हुआ था। उसके मन में आ रहा था कि आखिर उसे एकदम से नींद कैसे आ गई थी। वह उस क्षण को याद करने लगा जब अचानक ही उसकी पलकें भारी होकर मुंदने लगीं थीं। उस समय एकदम शांति थी। वह अपने खयालों में खोया हुआ था। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह भी चुप था। अब उसे याद आ रहा था कि उसे एक गंध आई थी। वह जब तक कुछ समझता उसकी आँखें बंद होने लगी थीं। वह गहरी नींद सो गया था। यह बात ध्यान में आते ही उसे लगा कि फिर तो सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह भी इसी तरह गहरी नींद सो गया होगा। तो क्या उसे बेहोशी की हालत में ही कहीं ले जाया गया। कहीं उसकी हत्या तो नहीं कर दी गई। यह बात मन में आते ही वह डर गया। कुछ देर तक वह अपने साथी के मारे जाने का अफसोस करता रहा।
उसे अफसोस हो रहा था कि उसके कारण सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को मार दिया गया। वह उसकी सहायता के लिए आया था। पर उससे चूक हो गई। वह जाल को समझ नहीं पाया। खुद के साथ-साथ सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को भी मुसीबत में डाल दिया। अब तो उसे जान से हाथ धोना पड़ा। वह पछता रहा था। इसी पछतावे के बीच एक और प्रश्न उसके मन में उठा। बेहोश तो वह भी हो गया था। तो फिर उन लोगों ने केवल सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को ही क्यों मारा ? जबकी वो लोग जानते थे कि वह एक पुलिस वाला है और उनकी जासूसी कर रहा है। ऐसे में उसे बेहोशी की हालत में यहाँ छोड़ देने का क्या औचित्य था ‌?
इस सवाल के साथ एक और सवाल उसके ज़ेहन में उठा। कमरे में केवल वह और सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ही मौजूद थे। फिर वह नशीली दवा किसने छोड़ी थी जिसकी गंध ने उन दोनों को बेहोश कर दिया था। इसका अर्थ यह था कि कमरे में उन दोनों के अलावा भी कोई और था। भले ही कमरे में बहुत कम रौशनी थी। लेकिन यदि उन दोनों के अलावा वहाँ और कोई होता तो उसके होने का पता चल जाता। उसने कमरे में एक बार फिर नज़र दौड़ाई। वह देखने का प्रयास कर रहा था कि कमरे में कोई अलमारी तो नहीं है जिसमें वह शख्स पहले से छिपा रहा हो। मौका देखकर बाहर आया और उन दोनों को बेहोश कर दिया। उसे कमरे में कोई अलमारी दिखाई नहीं पड़ी। उसका दिमाग एक के बाद एक अलग-अलग चीज़ों की तरफ भाग रहा था। उसने सोचा कि हो सकता है कि दवा किसी पाइप के ज़रिए कमरे के अंदर पहुंँचाई गई हो। उसकी गंध हवा में फैली हो और वो दोनों बेहोश हो गए हों। यह बात दिमाग में आते ही उसने गौर किया कि कमरे में कोई खिड़की नहीं थी। सिर्फ एक दरवाज़ा था। उसमें ऐसी कोई जगह नहीं थी जिसके रास्ते पाइप से दवा अंदर की जा सके।
वह परेशान हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे और सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को बेहोश किस तरह किया गया। सब सोचने के बाद उसके मन में एक और बात आई। वह और सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह बंधे हुए थे। दोनों कुछ भी कर सकने की स्थिति में नहीं थे तो फिर उन्हें बेहोश करने के लिए इतने तामझाम की क्या ज़रूरत थी।
वह जितना अधिक सोच रहा था उतना ही अधिक उलझ रहा था। उसके साथ जो कुछ भी घट रहा था बड़ा विचित्र था। उसका कारण समझना बहुत मुश्किल था। लेकिन एक बात उसे स्पष्ट हो गई थी कि जो भी हो रहा है वह सिर्फ भ्रम पैदा करने के लिए हो रहा है।