Gyarah Amavas - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

ग्यारह अमावस - 24



(24)

शिवराम हेगड़े ने पेड़ से नीचे उतर कर इधर उधर देखा। यह उस मकान का बैकयार्ड था। यहाँ उस तरह के और भी पेड़ लगे हुए थे। शिवराम हेगड़े ने इस बात की तसल्ली कर ली कि वहाँ कोई है तो नहीं। जब उसे कोई दिखाई नहीं पड़ा तो उसने सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को संदेश दिया कि सब ठीक है। वह उसी जगह पर खड़ा होकर उसकी राह देखे। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह से बात करके वह आगे बढ़ गया। सावधानी से बढ़ते हुए वह ऐसी जगह की तलाश कर रहा था जहाँ से मकान के अंदर चल रही गतिविधियों का पता लगाया जा सके।
मकान बीचो-बीच बना था। चारों तरफ खाली जगह थी। जिसमें पेड़ पौधे लगे हुए थे। वह अपने बाईं तरफ आगे बढ़ा। उसे एक खिड़की दिखाई पड़ी। खिड़की बंद थी। पर्दा पड़ा हुआ था। इसलिए अंदर क्या है देख पाना संभव नहीं था। उसने खिड़की पर कान लगाकर सुनने की कोशिश की। अंदर से कुछ लोगों के बोलने की आवाज़ें आ रही थीं। पर क्या बातें हो रही हैं समझना कठिन था। शिवराम हेगड़े सोच रहा था कि क्या करे जिससे अंदर की गतिविधियों का पता किया जा सके। उसे ब्लूटूथ पर सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह पूछ रहा था कि सबकुछ ठीक है। शिवराम हेगड़े ने कहा कि सब ठीक है। अभी वह मकान के अंदर क्या हो रहा है इसका पता लगाने की कोशिश कर रहा है। अगर कोई खास बात होगी तो वह बता देगा।
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह से बात करने के बाद वह फिर आगे बढ़ा। वह मकान के अंदर दाखिल होने के बारे में सोच रहा था। तभी उसे ऐसा महसूस हुआ कि जैसे सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह की तरफ कुछ घटा है। उसके बाद अचानक लाइन कट गई। वह परेशान हो गया। उसी समय उसे अपने कंधे पर एक हाथ महसूस हुआ। उसने पलट कर देखा तो एक लंबा सा आदमी उसके सामने खड़ा था। उस आदमी ने कहा,
"यहांँ क्या कर रहे हो ?"
शिवराम हेगड़े ने पूछा,
"मेरे साथी के साथ क्या किया तुम लोगों ने ?"
"कुछ नहीं इतनी सर्दी में बाहर खड़ा था। उसे पकड़कर अंदर ला रहे हैं। तुम भी चलो।"
लंबे आदमी के साथ उसका साथी भी था। उसने शिवराम हेगड़े को पकड़ लिया। शिवराम हेगड़े ने कहा,
"तुम लोग जानते नहीं हो मैं कौन हूँ। तुम लोगों को अपने किए पर पछताना होगा।"
"हमें सब पता है। तुम इंस्पेक्टर शिवराम हेगड़े हो।‌‌ तुम शांति कुटीर में रह रहे थे। खुद को मॉडल बता रहे थे।"
यह कहकर उस लंबे आदमी ने उसके कान से ब्लूटूथ डिवाइस निकाल दी। शिवराम हेगड़े का मोबाइल छीन लिया। फिर अपने साथी से बोला,
"इसकी अच्छी तरह से तलाशी लो। देखो इसके पास कोई हथियार या दूसरी डिवाइस तो नहीं है।"
उसके साथी ने तलाशी ली। कुछ भी नहीं मिला। शिवराम हेगड़े अपने आप को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था लेकिन दूसरा आदमी बहुत मजबूत था। उसके पास जब कुछ नहीं मिला तो लंबे आदमी ने अपने साथी से कहा,
"इसे लेकर आओ।"
उसका साथी शिवराम हेगड़े को लेकर मकान के सामने वाले हिस्से में आ गया। वहांँ दीपांकर दास की कार खड़ी थी। उसके पास ही एक आदमी सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को पकड़े हुए खड़ा था। लंबे आदमी ने उससे पूछा,
"इसकी तलाशी ले ली ?"
उस आदमी ने कहा कि अच्छी तरह से तलाशी ली है। इसके पास फोन के अलावा कुछ नहीं था। लंबे आदमी ने शिवराम हेगड़े और सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को अंदर ले चलने का आदेश दिया। उन दोनों को मकान के अंदर ले जाया गया।‌ मकान के पिछले हिस्से में एक कमरा था। वहाँ हल्की रौशनी थी। कमरे में एक आसन पर काला चोंगा और मुखौटा पहने जांबूर बैठा था। उस लंबे आदमी ने कहा,
"जांबूर उन दोनों को पकड़ लिया है। अब इनका क्या करना है ?"
जांबूर ने कुछ क्षणों तक दोनों को देखा। फिर उस लंबे आदमी से कहा,
"पालमगढ़ के बाहर जो मकान है वहाँ पहुँचा दो।"
शिवराम हेगड़े हैरान था। मुखौटे के पीछे से झांकती हुई जांबूर की आँखों में वही खिंचाव था जो उसने दीपांकर दास की आंँखों में महसूस किया था। उसे आश्चर्य हो रहा था कि दीपांकर दास ने यह किस तरह का हुलिया बना रखा है। उस लंबे आदमी ने आदेश दिया कि शिवराम हेगड़े और सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह के हाथ पैर बांधकर गाड़ी में बैठा दिया जाए। उसके आदेश का पालन हो गया। कुछ देर बाद शिवराम हेगड़े और सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को लेकर एक बोलेरो मकान से बाहर निकल गई। वह लंबा आदमी भी उनके साथ था।

शिवराम हेगड़े और सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह एक कमरे में बंद थे। कमरे में नाममात्र को रौशनी थी। दोनों के हाथ पैर बंधे हुए थे। उन दोनों को लाकर इस कमरे में बंद कर दिया गया था। उस लंबे आदमी ने जाते हुए कहा था कि कोई होशियारी करने की ज़रूरत नहीं है। इस मकान से निकल पाना नामुमकिन है। शिवराम हेगड़े ने सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह से पूछा,
"तुम इन लोगों के चंगुल में कैसे आ गए ?"
"तुमसे बात होने के बाद मैं बाइक से टिककर खड़ा था। सर्दी लग रही थी। मैं अपने हाथों को कसकर सीने से चिपकाए खड़ा था। तभी दो आदमी मेरी तरफ आए। जब तक मैं कुछ करता एक ने पीछे से मेरी गर्दन पकड़ ली। मेरा फोन छीनकर काट दिया। उसके बाद मेरी तलाशी ली। फिर मुझे मुझे गन प्वाइंट पर मेरी बाइक के साथ अंदर मकान में ले गए।"
शिवराम हेगड़े ने उसके साथ जो घटा वह बताया। उसके बाद बोला,
"उन्हें हमारे वहांँ होने का पता कैसे चला ?"
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कहा,
"गलती हमारी थी। ज़रूर वहांँ कोई सीसीटीवी कैमरा रहा होगा। उस कैमरे से हम पर नज़र रखी जा रही होगी।"
शिवराम हेगड़े ने कहा,
"इतनी बड़ी बेवकूफी हमसे नहीं हो सकती है। बात कुछ और है। शायद वो लोग खुद चाहते थे कि हम अंदर जाएं। नहीं तो आसानी से उसी समय पकड़ लेते जब हम मकान के चारों तरफ चक्कर लगा रहे थे।"
शिवराम हेगड़े चुप हो गया। वह मन ही मन कुछ सोच रहा था। उसने कहा,
"रंजन उन्हें मेरे बारे में सब पता था। उस लंबे आदमी ने खुद बताया था कि मैं एक इंस्पेक्टर हूंँ। उसे यह भी पता था कि मैं मॉडल बनकर शांति कुटीर में रह रहा हूंँ। इसका मतलब यह है कि जब हम शांति कुटीर से उनके पीछे लगे थे तब उन्हें पता था कि हम लोग उनके पीछे आ रहे हैं। फिर भी हमें रोकने की कोशिश नहीं की गई। इसका अर्थ यह है कि कोई बहुत गहरी बात है। कुछ ऐसा है जिसके कारण वह चाहते थे कि हम मकान के अंदर जाएं।"
वह एकबार फिर रुका। कुछ देर तक मन ही मन विचार करने के बाद बोला,
"जिसे वह लंबा आदमी जांबूर कह रहा था उसकी आँखें दीपांकर दास की आँखों की तरह थीं। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि उसने काला चोंगा और मुखौटा क्यों पहन रखा था।"
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कहा,
"इसमें आश्चर्य की क्या बात है। हमें भी तो दीपांकर दास पर ही शक था। वह सीधे हमारे सामने नहीं आना चाहता था। इसलिए यह स्वांग रचा।"

शिवराम हेगड़े को उसकी बात ठीक नहीं लग रही थी। उसने कहा,
"रंजन अगर दीपांकर दास को पता था कि मैं उस पर नज़र रखने के लिए शांति कुटीर में रह रहा हूंँ तो फिर उसने मुझे उसके पीछे क्यों आने दिया। वह सावधानी बरत सकता था।"
"हो सकता है कि वह हमें यहाँ लाकर बंद करना चाहता हो। इसलिए हमें उसका पीछा करते हुए उस मकान तक जाने दिया। उसके बाद पकड़ कर यहाँ भिजवा दिया।"
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने समझाने की कोशिश की। लेकिन शिवराम हेगड़े के दिमाग में बार बार एक ही बात आ रही थी कि मामला कुछ और है। उसने कहा,
"तुम्हारी बात ठीक है। लेकिन ऐसे में वह जांबूर बनकर हमारे सामने क्यों आया। वह बिना हमसे मिले भी तो आदेश दे सकता था कि हमको यहांँ लाकर बंद कर दिया जाए।"
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कहा,
"मुझे तो लग रहा है कि तुम ज़रूरत से ज़्यादा सोच रहे हो। सीधी सी बात है कि बसरपुर में जो कुछ भी हो रहा है उसके पीछे दीपांकर दास ही है। अब किसी तरह से यहांँ से निकलें तो अपने लोगों को खबर दें।"
उसकी इस बात पर शिवराम हेगड़े कुछ नहीं बोला। उसने पूछा,
"तुम बताकर आए थे ना कि हम दोनों दीपांकर दास के पीछे जा रहे हैं।"
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कहा,
"नहीं.... तुम्हारा फोन मिलते ही मैं चला आया था। गलती हो गई मुझसे। अब उन्हें समझने में समय लगेगा।"
शिवराम हेगड़े यह सुनकर परेशान हो गया। लेकिन उसके दिमाग में अभी भी यही चल रहा था कि जो हुआ उसके पीछे कोई साजिश है। सबकुछ जानते हुए भी उन दोनों को पीछा करने देना और जांबूर के सामने ले जाना पहले से तय था। पर ऐसा क्यों किया गया यह समझना आसान नहीं था। कमरे में बहुत ही मद्धम रौशनी थी। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह एकदम खामोश था। शिवराम हेगड़े को थकान महसूस हो रही थी। अचानक उसकी आँखें मुंदने लगीं।

दीपांकर दास की आंँखें खुलीं। वह याद करने की कोशिश करने लगा कि उसके साथ क्या हुआ था। वह शुबेंदु के साथ कार में बैठकर कहीं जा रहा था। उसके बाद उस पर बेहोशी सी छा गई। उसके बाद अब होश आया था। वह उठकर बैठ गया। उसने अपने ऊपर गौर किया तो उसने काले रंग का चोंगा पहन रखा था। उसके पास ही वह डरावना मुखौटा पड़ा था। वह डर गया। उसके मुंह से निकला,
"लगता है कि फिर मैं उस हालत में पहुँच गया था।"
दीपांकर दास ने इधर उधर नज़र दौड़ाई। वहाँ उसके अतिरिक्त और कोई नहीं था। उसने दो तीन बार शुबेंदु को पुकारा। लेकिन शुबेंदु नहीं आया।

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