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गुरुनूर और सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे बहुत देर तक केस के बारे में चर्चा करते रहे। उन लोगों ने आगे क्या करना है उसकी एक रूपरेखा बनाई। जब गुरुनूर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के साथ सरकटी लाशों के केस पर विचार करके बाहर निकली तो विलायत खान ने कहा कि मंगलू का पिता मनसुखा अपनी पत्नी के साथ आया है। वह उससे मिलना चाहता है। गुरुनूर जब उससे मिलने गई तो मंगलू की माँ उसके पैर पकड़ कर रोते हुए बोली,
"हमारे मंगलू को ढूंढ़ दीजिए। वह हमारा एक ही बच्चा है।"
यह कहकर उसने अपना सर उसके पैरों पर रख दिया था। गुरुनूर हड़बड़ा कर पीछे हट गई। उसने कंधे से पकड़ कर मंगलू की माँ को उठाया। वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहे। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा था कि अभी दो लाशें बरामद नहीं हुई हैं। उनमें एक लाश मंगलू की होने की संभावना है। उसके दिल में एक दर्द उठा। वह सोचने लगी कि मंगलू की माँ को तसल्ली कैसे दे। वह उसकी माँ से यह नहीं कह सकती थी कि उन्हें इस बात का शक है कि मंगलू की बलि चढ़ा दी गई है। मंगलू की माँ उसके सामने खड़ी रो रही थी। वह बार बार अपने बेटे को खोजने की विनती कर रही थी। गुरुनूर को बहुत बुरा लग रहा था। लेकिन मनसुखा और उसकी पत्नी को समझा बुझाकर भेजना ज़रूरी था। उसे ना चाहते हुए भी रटी रटाई बात कहनी पड़ी कि वो लोग जल्दी ही मंगलू का पता कर लेंगे। मनसुखा और उसकी पत्नी चले गए। उनके जाने के बाद से ही गुरुनूर का मन परेशान हो गया था।
अपने आवास पर लौटने के बाद भी गुरुनूर को मंगलू की माँ का रोता हुआ चेहरा दिखाई पड़ रहा था। वह बहुत परेशान थी। वह किसी भी कीमत पर सच सामने लाना चाहती थी। जिससे दूसरे मासूम बच्चों की बलि को रोका जा सके। केस के बारे में चर्चा करते हुए उसके दिमाग में दक्षिणी पहाड़ पर स्थित पुरानी हवेली का खंडहर घूम रहा था। उस दिन जब वह उस खंडहर में गई थी तो उसे कुछ गलत दिखाई तो नहीं पड़ा था पर यह एहसास ज़रूर हुआ था कि वहाँ कुछ ऐसा है जो ठीक नहीं है। उसके बाद वह अपने काम में उलझ गई थी और उसे यह याद नहीं रहा। इसी तरह जब वह उस जगह पर गई थी जहाँ दिनेश की लाश मिली थी तब भी उसे ऐसा लगा था कि कोई उस पर नज़र रखे हुए है। उसने इधर उधर देखा था। फिर अपने मन का भ्रम समझ कर वह वापस आ गई थी। अब इन सबके बारे में सोचकर उसे लग रहा था कि कोई बसरपुर में रहते हुए चुपचाप उन भयानक गतिविधियों को अंजाम दे रहा है।
दिनेश के भाई दिनकर ने लंबे बालों वाले आदमी का ज़िक्र किया था। उसका ध्यान दीपांकर दास की तरफ गया था। लेकिन अभी तक उसके खिलाफ कुछ भी ऐसा नहीं मिला था जिसके ज़रिए उसे घेरा जा सके। इस समय वह बहुत हताशा महसूस कर रही थी। जब भी जीवन में वह इस प्रकार की स्थिति में होती थी तो अपने डैडी और मम्मी से बात करती थी। इधर दो दिनों से वह उनसे बात भी नहीं कर पाई थी। उसने अपने डैडी को वीडियो कॉल लगाई। फोन उसकी मम्मी ने उठाया। स्क्रीन पर गुरुनूर को देखते ही उसकी मम्मी ने कहा,
"आजकल बहुत बिज़ी रहती है। मैंने फोन मिलाया था पर तुमने बात नहीं की। बाद में मैसेज कर दिया कि ठीक हूँ। क्या हुआ ? कोई खास बात है ?"
"मम्मी जानती हैं ना आप कि मुझे बसरपुर खास केस के लिए भेजा गया है। उसी को सॉल्व करने में व्यस्त हूंँ। इसलिए बात कम कर पाती हूंँ। जब फुर्सत मिलती है तो मैसेज करके अपना हाल चाल बता देती हूंँ।"
स्क्रीन पर अब उसके डैडी का चेहरा भी दिखाई दे रहा था। उसके डैडी ने कहा,
"काम करना अच्छी बात है। लेकिन तुम्हारा चेहरा बहुत मुर्झाया हुआ सा लग रहा है। अपना खयाल रखा करो।"
"अपना खयाल रखती हूंँ डैडी पर....."
कहते हुए गुरुनूर चुप हो गई। उसके डैडी उसका चेहरा देखकर समझ गए कि कोई परेशानी है। उन्होंने कहा,
"पर क्या ? कोई समस्या है ?"
"डैडी अभी तक मुझे इस केस में कोई सफलता नहीं मिली है। थोड़ा आगे बढ़ती हूंँ लेकिन कुछ आगे जाते ही फिर कोई ना कोई रुकावट आ जाती है। लोगों का भरोसा मुझ पर कम हो रहा है। इसलिए परेशान रहती हूँ।"
गुरुनूर स्क्रीन पर अपने डैडी का चेहरा देख रही थी। वह कुछ गंभीर हो गए थे। कुछ देर के बाद उन्होंने कहा,
"बेटा....इसे ही तो ज़िंदगी के इम्तिहान कहते हैं। जो इन रुकावटों से प्रभावित हुए बिना धैर्य से आगे बढ़ता है वही जीतता है। फौज में रहकर हमने तो यही सीखा है कि कठिन परिस्थितियों में शांत रहकर आगे की राह तलाशो। अगर तुम डरे नहीं तो राह ज़रूर मिलेगी।"
गुरुनूर बड़े ध्यान से अपने डैडी की बात सुन रही थी। उनकी बात सुनकर उसे बहुत अच्छा लग रहा था। उसने कहा,
"थैंक्यू डैडी आपसे बात करके मन बहुत हल्का हो गया।"
उसकी मम्मी ने कहा,
"तो फिर रोज बात क्यों नहीं करती। दिन भर में पांँच दस मिनट तो निकाले ही जा सकते हैं।"
"मम्मी अब रोज़ आप लोगों से बात किया करूँगी। आप अपना और डैडी का खयाल रखिएगा।"
उसके डैडी ने कहा,
"हमारी फ़िक्र छोड़ो। अपना खयाल रखा करो। जब तुम ठीक रहोगी तो ही कुछ कर पाओगी। जो मैंने बताया है उस पर अमल करना। शांत रहकर सोचोगी तो कोई ना कोई रास्ता अवश्य मिलेगा।"
गुरुनूर ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह अपना खयाल रखेगी। धैर्य रखते हुए आगे बढ़ेगी। फोन रखने के बाद उसे अच्छा लग रहा था। इस इरादे से वह सोने चली गई कि कल वह अपने डैडी की सीख का पालन करते हुए नए सिरे से केस के बारे में सोचेगी।
शांति कुटीर से एक कार में बैठकर दीपांकर दास और शुबेंदु कहीं बाहर निकले थे। शिवराम हेगड़े भी गेटकीपर को चकमा देकर बाहर निकल गया था। उसे इस बात की भनक लग गई थी कि दीपांकर दास रात में कहीं बाहर जाने वाला है। उसने पहले ही फोन करके इंतज़ाम कर रखा था। शांति कुटीर के पास एक बाइक उसका इंतज़ार कर रही थी। वह भागकर उसमें बैठ गया। बाइक उसे लेकर आगे बढ़ गई। कुछ ही देर में बाइक उस कार के पीछे थी जिसमें दीपांकर दास और शुबेंदु सवार थे।
शिवराम हेगड़े एक पुलिस इंस्पेक्टर था। गुरुनूर के कहने पर हेड क्वार्टर ने उसे दीपांकर दास पर नज़र रखने के लिए शांति कुटीर भेजा था। वह देखने में खूबसूरत था। उसके साथी उसे फिल्मी हीरो कहकर बुलाते थे। पुलिस विभाग के कार्यक्रमों में वह हिस्सा भी लेता रहता था। जब शांति कुटीर में खुद का परिचय देने की बारी आई तो उसने अपने आप को एक मॉडल बता दिया। वैसे उसका जन्म और शिक्षा मुंबई में ही हुई थी।
सर्द रात में सुनसान सड़क पर दीपांकर दास की कार दौड़ी जा रही थी। बाइक एक निश्चित दूरी रखते हुए उसके पीछे लगी थी। उसे सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह चला रहा था। करीब बीस मिनट बाद कार एक घर के सामने रुकी। यह ब्रिटिश काल का मकान था। कार कुछ देर गेट पर रुकी रही। कुछ देर में किसी ने मकान का बड़ा सा गेट खोला। कार उसके अंदर चली गई। कार के भीतर जाते ही गेट फिर से बंद हो गया। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह बाइक को गेट तक लेकर गया। उसने बाइक का इंजन बंद कर दिया था। शिवराम हेगड़े बाइक से उतर कर खड़ा हो गया। उसने कहा,
"रंजन कार तो मकान के अंदर चली गई। गेट भी बंद हो गया। अब क्या करें ?"
"पुलिस थाने फोन करके लोगों को बुला लेते हैं।"
"नहीं रंजन..... हमारे पास कोई सबूत नहीं है कि मकान के अंदर कुछ गलत चल रहा है।"
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कहा,
"लेकिन इतनी रात गए चोरी छिपे आने का और क्या कारण हो सकता है ?"
"देर रात कहीं आना जाना गैरकानूनी तो है नहीं। मान लो हम जबरदस्ती अंदर जाएं और वहाँ कुछ ना मिले तो पासा उल्टा पड़ जाएगा। फिर हमारे लिए सच तक पहुंँचना बहुत मुश्किल हो जाएगा। हमें कुछ और सोचना चाहिए।"
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह को उसकी बात समझ आ गई। उसने कहा,
"बात तो ठीक है पर हम कर क्या सकते हैं ?"
शिवराम हेगड़े कुछ सोचने के बाद बोला,
"यह किनारे का मकान है। तीन तरफ से खुला है। आगे, पीछे और साइड से। ऐसा करो तुम बाइक स्टार्ट करो। हम चारदीवारी का चक्कर लगाकर देखते हैं कि शायद अंदर जाने का कोई जुगाड़ मिल जाए।"
शिवराम हेगड़े बाइक पर बैठ गया। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह धीमी गति से तीन तरफ की चारदीवारी का चक्कर लगाने लगा। शिवराम हेगड़े बहुत ध्यान से देख रहा था। पीछे की तरफ जाने पर उन्हें एक पेड़ दिखाई पड़ा। पेड़ मकान के पिछले हिस्से में अंदर की तरफ लगा हुआ था। उसकी शाखाएं चारदीवारी के बाहर फैली थीं। शिवराम हेगड़े ने बाइक रोकने को कहा। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने बाइक रोक दी। शिवराम हेगड़े उस जगह जाकर खड़ा हो गया जहाँ शाखाएं बाहर निकली थीं। वह कुछ देर तक मन ही मन कुछ अंदाज़ा लगाता रहा। कुछ सोचने के बाद उसने कहा,
"रंजन मुझे लगता है कि अगर मैं बाइक पर खड़ा होकर कोशिश करूँ तो पेड़ की डाल तक पहुँच सकता हूँ।"
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने उसकी बात का मतलब समझने का प्रयास करते हुए कहा,
"अगर डाल तक पहुँच गए तो क्या होगा ?"
शिवराम हेगड़े ने समझाया,
"अगर मैं डाल पर चढ़ सका तो अंदर जाना आसान हो जाएगा। मैं पेड़ से अंदर नीचे उतर जाऊँगा।"
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कहा,
"अगर कोई खतरा हुआ तो ?"
"हमको कुछ खतरा तो उठाना ही पड़ेगा। मैं ऐसा करता हूंँ कि फोन से तुम्हारे साथ जुड़ा रहता हूंँ। अगर मुझे कोई खतरा महसूस हुआ तो तुम्हें इशारा कर दूँगा। तुम मदद ले आना।"
सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कुछ सोचकर कहा,
"ठीक है....पर तुम भी सावधानी बरतना।"
जैसा तय हुआ था शिवराम हेगड़े फोन पर सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह से जुड़ गया। बाइक को स्टैंड पर खड़ा करके शिवराम हेगड़े डाल तक पहुँच गया। उसके ज़रिए पेड़ पर चढ़कर अंदर नीचे उतर गया।