वह अब भी वहीं है - 52 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वह अब भी वहीं है - 52

भाग -52

उनकी इस बात से मैं घबरा गया। मैंने सोचा कि इनसे कहूं कि मुझे अंदर तुम्हारे पास जाने दें । आखिर ऐसी कौन सी बात है कि, ना तो तुम दिख रही हो, और ना ही ये मुझे अंदर जाने दे रहे हैं। लेकिन मेरे कुछ बोलने से पहले ही उनके मोबाइल की घंटी बज उठी, उन्होंने अंग्रेजी में बात की। रमानी बहनों के कारण उनकी अंग्रेजी में कही बातों का सारा अर्थ मैं समझ गया था। उन्होंने किसी को सारी बातें बताते हुए जल्दी ही पुलिस के आने की बात कही थी। पुलिस का नाम सुनते ही मैं पसीना-पसीना हो गया। साहब, सुन्दर हिडिम्बा के चलते पुलिस की मार का अनुभव मिल चुका था। वह भी बिना किसी अपराध के। इसलिए पुलिस के आने की बात ने मेरी हालत खराब कर दी। मैं एकदम घबरा उठा कि यह मैनेजर कुछ बता नहीं रहा है। तुम्हारा कुछ अता-पता नहीं है।

आखिर कौन सी गड़बड़ हो गई है, कि पुलिस बुलाई गई है। फ़ोन पर मैनेजर की बात खत्म होते ही मैंने उनसे पूछा, 'आखिर आप बताते क्यों नहीं बात क्या है? सैमी दिख नहीं रही है, पुलिस भी आ रही है, क्या हुआ है ? कुछ तो बताइए। मुझे सैमी के पास जाने दीजिए।'

मगर मेरी बातों का मैनेजर पर कोई असर नहीं पड़ा।

उन्होंने बड़े सपाट शब्दों में कहा, 'शांति से खड़े रहो। जब समझ ही लिया है कि पुलिस आ रही है, तो सीधे नहीं रह सकते। बेवजह उछल-कूद मचा रखी है। इतना कॉमनसेंस नहीं है, कि जब पुलिस आ रही है, तो कोई तो ख़ास बात होगी ही।'

उन्होंने यह बात बड़े गुस्से में कही। मैं आसानी से इस बात को समझ गया था कि उनके गुस्से का असली कारण यह था, कि मैंने उनकी बातों का आशय समझ लिया था। जबकि उन्होंने यह सोचकर अंग्रेजी में बात की थी, कि मैं उनकी बात नहीं जान पाऊँगा। लेकिन उनके गुस्से का मुझ पर जो असर हुआ, उससे तुमसे तुरंत मिलने की अकुलाहट एकदम बढ़ गई। मैंने थोड़ा तन कर कहा, 'मैं सैमी के पास जा रहा हूं। पुलिस जब आएगी तब आएगी।'

मेरी बात सुनते ही वह हत्थे से उखड़ गए। मेरी तरफ झपट कर मुझे आंखें तरेरते हुए कहा, ' तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? चुपचाप खड़े रहो, इसी में तुम्हारी भलाई है समझे।' उनके आगे आते ही, बाकी साथी भी एकदम से आगे आए और मुझे घेर लिया। और कोई समय होता, तो मैनेजर का टेटुआ पकड़ कर, उसे एक हाथ से ही दूर फेंक देता। मेरे कंधे से भी कम थी उनकी हाइट, मगर हालात के कारण खून का घूंट पीकर शांत रहा। मुझे छब्बी की घटना याद आ रही थी। वहां भी तो आखिर में पुलिस ही आई थी।

पूरा दृश्य नजर के सामने आ गया था। मेरी आत्मा काँप उठी। मैनेजर का व्यवहार उस समय सुन्दर हिडिम्बा के व्यवहार जैसा हो रहा था। इन सबके चलते मैं बहुत व्याकुल हो अचानक मुड़ कर तुम तक पहुँचने के लिए कमरे की तरफ भागा। मैंने मैनेजर सहित उसके किसी आदमी की परवाह नहीं की। उन सबने पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उन सबको एक तरफ झटकता हुआ मैं कमरे के सामने पहुंच गया।

वो भी चिल्लाते हुए मेरे पीछे पहुंच गए। लेकिन दरवाज़े पर पहुँच कर भी मैं तुम्हारे पास नहीं पहुंच पाया। कमरे का दरवाजा बंद था। मैं जब-तक खोलने की कोशिश करता, तब-तक उन पांचों ने मुझे खींच कर दरवाजे से दूर कर दिया। मैनेजर ने लगे हाथ कई गालियां दे डालीं। साथ ही हाथ भी उठाया, लेकिन आखिरी क्षण में ना जाने क्या सोचकर वापस खींच लिया। उनके साथियों ने मुझे दबोच रखा था।

मैंने उनसे खुद को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन छुड़ा नहीं पाया। तभी मुझे अहसास हुआ कि अब मुझमें आठ-दस साल पहले वाली ताकत नहीं रह गई है। अब-तक जितना समझता था, सच में तो उसकी आधी भी नहीं है। इस अहसास के साथ ही मैं एकदम सन्न रह गया। मैंने खुद को उन सबकी पकड़ में एकदम ढीला छोड़ दिया। फिर मैनेजर से हाथ जोड़कर कहा, 'मुझे खाली इतना बता दीजिए कि सैमी कहां है? बात क्या है? मुझे उसके पास क्यों नहीं जाने दे रहे हैं?'

मैंने बड़ी विनम्रता से पूछा था। लेकिन समीना बदले में मुझे भद्दी-भद्दी गालियां और चुप रहने की हिदायत मिली। मेरी कोशिश बेकार गई। मैं शांत हो खड़ा हो गया। मेरे पहुंचने के करीब पंद्रह मिनट बाद पुलिस पहुंची। मैनेजर पुलिस इंस्पेक्टर से ऐसे मिला, जैसे कोई बहुत करीबी बड़े दिन बाद अचानक ही मिल गया हो। उसने उसको फिर अंग्रेजी में सारी बातें बताईं । लेकिन ज़्यादातर बातें थोड़ा अलग जाकर कीं, जो सुनाई नहीं दी।

दो मिनट बाद ही वह कमरे के सामने पहुंचा। कांस्टेबिल ने दरवाजा खोल दिया। वह अपनी फोर्स के साथ दाखिल हो गया। हम-सब बाहर ही थे। मैं पसीना-पसीना हो गया। दिल बड़ी तेज़ी से धड़कनें लगा। ऐसे जैसे कि मैं दसियों किलोमीटर दौड़ कर रुका हूं। तुमको लेकर तरह-तरह के अशुभ विचार मन में एक के बाद एक आते जा रहे थे।

कुछ देर में पुलिस ने मुझे अंदर बुला लिया। कमरे में पहुंचते ही मुझे जो दिखा, उससे मैं हतप्रभ हो गया। दिलो-दिमाग बिल्कुल सुन्न हो गए। आंखों के सामने कुछ देर को अंधेरा छा गया। तुम पंखे से बंधी साड़ी से लटकी हुई थी। मैं हक्का-बक्का तुम्हें देखता रह गया। आंखों से आंसू टपकने लगे।

तभी इंस्पेक्टर ने पूछा, 'ये तुम्हारी कौन है?'

उसके प्रश्न से चौंक कर मैं उसकी ओर मुड़ा। मैं तुरंत उसकी बात का जवाब नहीं दे सका तो उसने फिर पूछा। मैंने कहा, 'जी ये मेरी पत्नी है?'

फिर उसने पूछा, 'तुम्हारी शादी कब हुई?'

यह बात पहली बार मुझसे किसी ने पूछी थी। मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था, कि क्या जवाब दूं। मैं असमंजस में चुप रहा तो उसने फिर डपटते हुए पूछा, तो मैंने बता दिया कि इतने दिनों से हम दोनों पति-पत्नी की तरह रह रहे हैं। इसी घर में हम-दोनों मिले। साथ ही मैंने रमानी बहनों का हवाला देकर कहा कि, 'आप चाहें तो उनसे भी पूछ लें।'

मेरी इस बात पर वह कुछ देर मुझे घूर कर देखता रहा फिर कहा, 'बिना शादी के ही दावा ठोंक दिया पति होने का।' इसके साथ ही उसने कई गालियां दीं।

इसके बाद फोटो खींच कर तुमको फंदे से उतारा गया। लेडीज पुलिस के नाम पर दो मरियल सी कांस्टेबिल थीं। मैं नहीं चाहता था, कि तुमको पुरुष कांस्टेबिल छुएं। लेकिन मन का तो जीवन में कुछ हुआ ही नहीं, तो यहां कैसे हो जाता। उन सब ने तुमको उतार कर तखत पर लिटाया। अलग-अलग कोणों कई और फोटो खींची गई। पूरे कमरे की तलाशी ली गई, तो तखत पर पड़े तकिए के नीचे तुम्हारा लिखा सुसाइड लेटर मिला।

तुमने सीधे-सीधे लिखा था, '' मेरे प्यारे-प्यारे विलेन-किंग, मेरे तशव्वुर के राजा, मेरे हीरो तुम बिल्कुल खफा ना होना, ना तुम ये कहना, कि मैं कायर थी, ज़िंदगी की दुश्वारियों से डर कर मौत को गले लगा लिया।

मेरे दिल में हर पल रहने वाले मेरे राजा, मैंने दरअसल अपना एक फर्ज पूरा किया है। जब डाक्टर ने यह बताया, कि मेरे युटेरस में कैंसर है, जो काफी फैल चुका है। सर्जरी हर हाल में जल्दी से जल्दी करनी होगी। बात इतनी होती तो भी मैं तुम्हारे प्रति अपना फर्ज पूरा करने के लिए यह कदम ना उठाती।

मगर जब उसने एड्स भी बताया और कहा कि तुम्हारी बीमारी लापरवाही के कारण बहुत बढ़ चुकी है। और एक दूसरे हॉस्पिटल का नाम बताकर कहा कि वह फोन कर देगा। मैं वहीं जाऊं। तुरंत एडमिट करने की स्टेज में हूँ। उसने यह भी बताया कि पैसा बहुत लगेगा। पूछने पर जितना बताया उससे मैं बहुत डर गई। इतना तो मैं तब भी नहीं डरी थी, जब उसने इन बीमारियों के बारे में बताया था।

मैंने इतना जानने के बाद पूछा, कि इतना पैसा खर्च करने के बाद मैं बच तो जाऊँगी। तो वह साफ़-साफ़ बताने के बजाय कहानी समझाने लगा। बार-बार पूछने पर भी कहानी समझाता रहा तो मैं सच समझ गई। मुझे यकीन हो गया कि जो सुनती हूं कि ये बीमारी मौत के साथ जाती नहीं, बल्कि मौत तक ले जाती है, तो सही यही है। यह मुझे मौत के सामने लाकर खड़ा कर चुकी है। बेवजह है पैसा खर्च करना। तिल-तिल कर मरने, रोज-रोज मरने से अच्छा है कि एक बार मरूं।

देखो एक फायदा और समझदारी की बात यह भी है कि इससे ना सिर्फ पैसा बच जाएगा, बल्कि और ज़्यादा कर्ज नहीं होगा। तुम पर पहले ही बहुत कर्ज है। मैं नहीं चाहती कि तुम कर्ज के साथ-साथ मेरे कारण और तकलीफ झेलो। मुझे पता चल गया था कि तुम मुझे एडमिट करने के लिए पैसों के इंतजाम में लग गए हो।

अब एक और बात कहने जा रही हूं। देखो इस उम्मीद, इस विश्वास के साथ कह रही हूं, कि तुम मेरी बात मान जाओगे। मैं सच में तुझे दिल से चाहती हूं। इसीलिए इतना कह रही हूं। बहुत सोच-समझ कर कह रही हूं। रोज-रोज टीवी, पेपर, लोगों से सुनती-समझती रही हूँ, तुम भी यह जानते-समझते ही होगे कि ये बीमारी कैसे फैलती है।

हम-दोनों इतने दिनों से साथ हैं, संबंध हैं। देखो, मैं ऊपर वाले से बार-बार ये दुआ करती हूं, अंतिम सांस में भी यही दुआ करूंगी, कि तुझे ना हो। लेकिन मेरे प्यारे विलेन राजा तुम्हीं बताओ सच्चाई से मुंह कैसे मोड़ लूं? तुम्हीं तो बार-बार कहते हो कि सच्चाई से डरना नहीं चाहिए। इसीलिए बहुत हिम्मत करके कह रही हूं कि अपनी जांच जल्दी से जल्दी करवा लेना।

तुझ पर कुछ अधिकार समझती हूं, इसीलिए यह भी कह रही हूं, कि मैं चाहती हूँ की तेरा अकेलापन मेरे साथ ही खत्म हो जाए। देख मैं बार-बार कहती हूं कि जरा भी हील-हुज्जत ना करना, मेरे ना रहने के बाद तुम लौट जाना। लौट जाना अपने जिले। अपने मुहल्ले। अपने घर, बड़वापुर लौट जाना। देखना वहां सब कैसे तुझे हाथों-हाथ लेंगे। तेरे सारे दोस्त, तेरा पूरा परिवार, पूरा खानदान तुझे सिर आंखों पर बिठाएगा।

तुम्हारे वो तीव्रतम सुख वाले प्रोफ़ेसर साहब भी गले से लगा लेंगे। तुमने उनके बारे में जो-जो बताया था, उससे मैं उन्हें बहुत ज्ञानी आदमी मानती हूँ। वो जरूर तुम्हारी पीठ थपथपा कर कहेंगे, यह तुमने बहुत अच्छा किया जो लौट आये। सुबह का भूला शाम को लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते। लेकिन अब यह भूल दुबारा नहीं करना।

तब उनसे कहना कि बरसों पहले आपने तीव्रतम सुख के बारे में तो बता दिया था, अब तीव्रतम दुःख के बारे में भी बता दीजिये। जब वो बता दें, तब देखना कि अब-तक तुम्हारे जीवन में जो कुछ हुआ, क्या उसमें कोई ऐसी घटना भी हुई जिसे तीव्रतम दुःख कह सकते हैं । अगर ठीक समझना तो उसके बारे में अपने प्रोफ़ेसर साहब से बात भी करना। देखना इन सारी बातों तुझे इतना सुकून मिलेगा, कि तुमको मुझे भूलने में भी देर नहीं लगेगी। तू जान भी नहीं पाएगा कि कब मुझे भूल गया।

मेरी यह बात एकदम सच मानना। कोई शक-शुबहा ना करना। मैं अपना अनुभव कह रही हूं। जब मेरा मन तेरे साथ लग गया। तेरे में रम गया। तो मैं अपना पिछला सारा कुछ भूल गई। भूल गई बच्चों को। भूल गई उस शौहर को, उसकी ज्यादतियों को, उसके हर काम को जिसके कारण मेरा यह हाल हुआ। मैं भूल गई थी उसके कहे गए आखिरी शब्दों, को जो मुझे तब बर्छियों की तरह चीरते चले गए थे। ''तलाक, तलाक, तलाक।''