3. ‼️मुझे तन्हाई से डर नहीं है अब ‼️
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खुश हैं जिन्दगी से हम !
ना किसी की चाहत है अब!!
मुझे तन्हाई से डर नहीं है अब!!!
गमों का साहिल मिला मुझे किनारे बैठा !
देख के उसे गले लगा लिया है!!
तडपती रूह को स्कून का मंजर मिला अब !
दर्द ए जिन्दगी का अफसाना मिला मुझे !!
ना चाहत है किसी की अब !!
मुझे तन्हाई से कोई डर नहीं है!!
सिमटती रातों में अक्सर मैं अकेला !
गुजरता रहता हूं कहीं मंजिल की तलाश में !!
ठोकरे खाकर धीरे धीरे सम्भलते हुये ! चल रहे है मुसाफिर की तरह हम !!
देखके अपने साये से बाते करते रहते है !
अकेलेपन का अफसोस नहीं है अब!!
ना चाहत है किसी की अब !
मुझे तन्हाई से डर नहीं है अब !!
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4. ‼️मैं तो एक वैशया हूं ‼️
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अपने जिस्म की प्यास बुझाने,सभी आते है यहां पे ।
हर एक अपनी हैवानियत,दिखाने आते है यहां पे।।
क्योंकि मैं तो एक वैश्या हूं।!!१!!
क्या छोटा बडा ,क्या जवान क्या बुड्ढा ।
सभी अपनी आग को ,बुझाने आते है यहां पे ।।
क्योंकि मैं तो एक वैश्या हूं !!२!!
कोई भी समझ ना सका मजबूरी को मेरी।
कोई जान ना सका,दर्द को मेरे ।।
यूं ही शौक से नहीं करती हूं मैं।
अपने जिस्म का सौदा यहां ।।
एक येही तो है जिसके सहारे मेरा परिवार का भुखा पेट पलता है ।।
क्योंकि मैं तो एक वैश्या हूं ...!!३!!
कुछ अपनों ने इस जमाने में ठोकरे दी।
तो कुछ समाज के खोखलेपन ने ठोकरे दी ।
दर-ब-दर ठोकरों का सिलसिला मिलता रहा मुझे।
वरना कोई भी यूं ही नहीं अपने जिस्म की नुमाईश करती है।
क्योंकि मैं तो एक वैश्या हूं !!४!!
बेवसी -लाचारी का फायदा तो यहा पें ।
हर काम वासना के भुखे भेडियों ने उठाया है।।
समाज में किसी स्त्री के साथ बल्ताकार ना हो।
इसीलिए हर एक दरिंदों की भुख मिटाती हूं ।।
क्योंकि मैं तो एक वैश्या हूं !!५!!
आज भी मैंं एक कलंक से भरा जीवन जी रही हूं।
समाज की गंदी नजर पर टिकी रहती हूं मैं।।
हर एक गली मोहल्ले,व लोग हमें गालियां देते है।
अपनी प्यास बुझाकर यही कहते है अब सभी।।
साली तू तो रंडी है ।
सुनकर यह अपमान भी सह लेती हूं मैं।।
क्योंकि मैं तो एक वैश्या हूं !!६!!
प्यास तुम्हारी बुझा के,खुद को बेच दिया है मैने ।
हर पल अब मन ही मन, खुद की जिन्दगी को कोसती हूं मैं।।
हे!खुदा कभी भी किसी स्त्री को ऐसी जिन्दगी ना मिले।
अपनी हर तकलीफ छुपाकर मुस्कुराती हूं अब मै।।
क्योंकि मैं तो एक वैश्या हूं
हां मैं तो एक रंडी ही हूं...!!७!!
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5. !!!!कदम रुकते गये!!!!!
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मेरे प्रिय मित्रों व प्रिय आत्मनों
आज एक बार पुनः आप सबके सामने अपने दिल की कुछ पंक्तियों को कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूं... इसमें कोई भी गलती रही हो तो मुझे(निखिल ठाकुर) को आप अपना सुझाव देकर सूचित करें. ताकि भविष्य मे हम कोई गलती न कर पाये|.....उम्मीद है कि आप सब मेरी इस कविता के अर्थे को समझेंगे.... क्योंकि हर शब्दों के अर्थ अनेक होते है... परंतु उसके भाव ही शब्दों को पूर्णता प्रदान करते है... आशा करता हूं कि आप सब... इस कविता के भावों को समझेंगे..... क्योंकि मैं केवल जीवन पर आधारित और आपबीती पर ही लिखता हूं..
!!!!कदम रुकते गये मेरे!!!!
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चल रहा हूं मैं मंजिलों की ओर..!
ठोकरों को खाकर बस कदम रुकते गये मेरे!!
कभी गिरता रहता हूं तो !
कभी गिर कर संभलता हूं !!
होश संभलते संभलते ही !
खुद ही बेहोश हो जाता हूं दुनिया में !!
जमाने के ताने सुन सुनकर !
बस कदम रुकते गये मेरे!! 1!!
मोहब्बत की बाजी लगाकर !
खेल हमने भी खेला था !!
इश्क करके गुजर गये थे !
लैला मजनू से भी हम आगे !!
पर धोखा खाकर दिल ए दर्द !
को देखकर कदम रुकते गये मेरे!!2!!
संस्कार व सम्मान से जिन्दगी गुजारने की कोशिस करता रहा !
सबका सम्मान करता रहा मैं !
दुनिया के अपमानों को सहता रहा !
पर अपनों को इल्जाम लगाते देख करके !
बस कदम रुकते गये मेरे!!3!!
प्यासा दरिया हूं मैं, किनारे तक पहुंचने के लिए तरस रहा हूं मैं !
आंधी तूफान से लडता,बेपरवाह दरिया की तरह बह जाता हूं लहरों में !!
लहरों को उठते यूं देखकर, ही बस कदम रुकते गये मेरे!!4!!
माना की गमों सा साया है मुझ पर, जाहिर करता नहीं हू मैं !
जमाने में तेरी भी पहचान है, पर तुझे बदनाम करता नहीं हूं मैं !!
दुनिया के रंगों को देखकर ! बस कदम रुकते गये मेरे!!5!!
मशहूर होने की तमन्ना दिल में अब नही है मेरे !
बस खुद से खुद परेशान हूं !
बस दर्द- ए- तन्हाई में जी रहा हूं !
पर दर्द ए गमों को देखकर !
बस कदम रुकते गये मेरे!!6!!
माना कि जख्म तुने दिये हैं मुझे, जमाने भरके मोहब्बत में!
मोहब्बत को बिकते देखा है, मैंने जमाने में !
अब अपने गमों को बहते हुये देखा है मैने जमाने में !
पर हर गम को अपनाते अपनाते !
बस कदम रूकते गये मेरे!!7!!
माँ के आँचलों मे सकून है पाया मैने !
जमाने के गमों की भीड से
महफूज खुद को माँ के दामन की छांव मे पाया है मैने !!
माँ के आँखों के आंसु देखकर जमाने में
बस कदम रूकते गये मेरे!!8!!
दुनिया के रिति रिवाजों को देखा है मैंने !
काले गोरे में भेदभाव देख है मैंने|
परायों से प्सार, अपनों से वैर का भाव देखा है मैंने !
लोगों से लोगों को बिछुडते हुये देखकर!
बस कदम रूकते गये मेरे!!9!!
दुश्मनों से जान का खतरा है यह मालुम था मुझे !
पर अपनों ने ही खंजर भौंक डाला मेरे पीठ में यह खबर नहीं थी मुझे !
अपनों से अपनों का वैर देखकर !
बस कदम रूकते गये मेरे!!10!!
बस दुनिया मैं आकर भी, सबसे जुदा रहा मैं !
मेरी पहचान होकर भी,अनजान सा रहा मैं !
मौत का कहर देखकर, बस कदम रूकते गये मेरे!!11!!
जीतता रहा है तामाम उम्र, जिन्दगी की जंग को !
अपनों से दुर होकर, दिल के घावों को छुपाता रहा !!
आज मौत से हराकर जिन्दगी की जंग को देखकर !
बस रूकते गये मेरे कदम सदा के लिए.... बस कदम रूकते गये मेरे !!12!!
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