1.चल मुसाफिर
मंजिल मिलना इतना आसान नहीं है !
उठ चल मुसाफिर मंजिल की ओर!!
कांटे मिलेंगे राह ए मंजिल में !
पर हिम्मत ना हारना तू!!
गिरेगा फिर गिरकर उठना !
हौंसल बुलंद रख मंजिल जरूर मिलेगी!!
अपनों के फेरबी चेहरे दिखने को मिलेंगे!
आस तू कभी मत खोना जिन्दगी में !!
कारवां कर बूलंद वक्त की धारा बदलेगी !
किस्मत भी करवट लेगी तेरे हौंसले के आगे!!
कदम रोकना मत कभी अपने!
मंजिल करीब है तेरे यूं चलता रह तू!!
दुनिया में हर मुसाफिर मिलेंगे!
सबसे कदम मिलाकर यूं चलता रह!!
मारेगा ताना समाज तुझे हर वक्त !
पर कभी ना तू पीछे हटना अपने लक्ष्य से!!
सामज की दरंदिगी देखकर तेरे दिल दहक उठेगा!
उम्मीद की अग्नि मशाल हाथ लेकर चल मुसाफिर!!
चल मुसाफिर चल तू मंजिल नजदीक है तेरे !
बस यूं ही एक -एक कदम बढ़ता जा!!
2.‼️ सारी दुनिया मतलबी है ‼️
इस विषय पर कविता लिखने को मेरी पाठिका वन्दना ने कहा था ...यह कविता उसी के लिए लिखी है मैने ...उम्मीद है आप सबको यह पसंद आयेगी...बस मात्र कोशिश की है मैने लिखने की....❗
‼️ सारी दुनिया मतलबी है ‼️
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रंग-बिरंगे से खेल है इस जहां के ।
कोई यहां पे रंक तो कोई राजा है यहां पे।।
बडा ही अजीब खेल है इस दुनिया का यहां।
हर एक अपने मतलब के लिए ही अपनो का गला घोंटता है।।
देखकर दुनिया के रंगों को यही सीखा है मैने।
यह सारी दुनिया मतलबी है।।१!!
भुल नहीं पाई हूं मैं आज भी उस फरेबी चेहरे को।
जिससे मुझे बेइंतहां मोहब्बत सी थी।
वह मेरा पहला प्यार,और आखिरी प्यार था।
जो आज भी मेरे दिल में जिंदा है।।
दर्द -ए-धोेखे ठोकरों का सिलसिला दिया उसने मुझे।
टूटते गये सारे दिल ए अरमान मेरे यहां पे।।
अब तो धोखे ए जिन्दगी से यही सीखा है ।
यह सारी दुनिया मतलबी है।।२!!
फुल-ए- बहारों से सजी हुई है तो जिन्दगी ।
अपनों के प्यार से भरी हुई है जिन्दगी।।
समाज की दरिंदगीं निगाहों से भरी हुई है जिन्दगी ।
हर तरफ अब तो जलजला है मेरी बदनामी का।।
बदलती समाज की तस्वीरों की मंजर है यहां।
हर कोई दरिंदगीं नजरों से मुझे देखता है।।
अब तो मैने बदलते लोगों से यही सीखा है।
यह सारी दुनिया मतलबी है!!३!!
जिसे चाहा था मैने दिलों-ए-जान से।
उसने ही कत्ल कर दिया मेरे दिल -ए-अरमान का।।
प्यार तो मैने किया था उससे दिले-ए- बेइंतहां।
वह तो जिस्मी भुख का प्यासा भेडिया था।।
नोच-नोच के खा गया मेरे जिस्म को ।
दर्द -ए-रूह को नही समझ पाया वह अब तक।।
अब तो मैने जिस्मी दरिंदों को देखकर यही सीखा है।
यह सारी दुनिया मतलबी है ।।४!!
समाज की नंगी -ए-तस्वीर का अब सामना किया ।
अपने आप को आज समझा है मैने।।
ओंस की बूंदों से चमकता जीवन है यह ।
आखिर एक दिन सुखी घास बन जाता है।।
हर बदलते चेहरों को देखकर निखिल ने यही समझा है।
यह सारी दुनिया मतलबी है।।५!!
शब्द नि:स्पृद्ध हो रहे है मेरे आज ।
देखकर दर्द-ए-जिन्दगी किसी की।
कलम अब टूटती सी जा रही है !
जख्म -ए-दिल को देखकर किसी के।।
स्याही सुखती -सी जा रही है अब मेरी ।
इम्तहां -ए- जिंदगी देख के किसी की।।
नहीं लिख सका इस जहां पे निखिल ।
किसी के दर्द -ए-हमदर्द की दवा ।।
बेदर्दी -ए-दरिंदों से भरा शहर देखकर ।
आज निखिल ने यही समझा है अब।।
यह सारी दुनिया ही मतलबी है।।६!!
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