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माधव दो घड़ी सोच में पड़ गया फिर बोला, “शो के बाद कीर्ति कहां गई, उसका क्या हुआ?”
“ये तो मुझे भी मालूम नहीं पर मुझे इतना पता है वो तुमसे सच्चा प्यार करती थी।”
“ये तुम कैसे कह सकती हो?”
“हम सब औरतों का दिल बहुत नाजुक होता है माधव, और हमारे अंदर लड़कों को लेकर सिक्स्थ सेन्स भी होता है। उससे हमें पता चलता है कि सामने वाला इंसान कैसा है कैसा नहीं। मैंने जो उसकी आँखों में तुम्हारे लिए देखा था वो किसी और की आँखों में या फिर किसी और के लिए नहीं देखा। वो एहसास, वो नज़र एक लड़की तभी महसूस कर पाती है जब वो किसी के सच्चे प्यार में हो।”
माधव सोच में पड़ गया। जिस बात को लेकर उसने अपने अंदर क्रोध बनाए रखा वो बात क्या ग़लत थी? क्या कीर्ति ग़लत थी? या माधव ग़लत था? या कोई ग़लत नहीं था? आखिर कीर्ति ने ऐसा किया तो किया क्यों? और ऐसा नहीं किया तो माधवी जो कह रही है वो भी तो झुठ नहीं हो सकता। किस दुविधा में डाल दिया भगवान ने!
“इतना सोच क्या रहे हो?”
“अगर तुम सही हो तो मैं सोच रहा हूं कि आखिर कीर्ति ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?”
“ये तो कीर्ति ही बता सकती है।”
“कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम ये चाहती हो की मेरी शादी उससे हो जाए इसीलिए मुझे अच्छा लगाने के लिए ये बोल रही हो?”
“नहीं बाबा मैं सच कह रही हूं। तुम्हें मुझ पर भरोसा ना हो तो किसी और से भी पूछ सकते हो। दरअसल तुमने कीर्ति के बारे में जानने की कोशिश ही नहीं की वरना तुम्हें तब ही सच्चाई का पता चल जाता।”
“शायद तुम सच कह रही हो। अब मुझे क्या करना चाहिए?”
“अब हमें कीर्ति से मिलना चाहिए और उसी से पूछना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों किया।”
“नहीं। मुझे उससे कोई बात नहीं करनी। मुझे सिर्फ तुम्हारी चिंता है और अब किसी और की परवाह नहीं।”
“मुझे भी सिर्फ तुम्हारी ही चिंता है, इसीलिए कह रही हूं कि कीर्ति से एक बार मिल लेते है। तब तक ना तुम्हें चैन आएगा ना मुझे।”
माधव माधवी की बात मान गया, अगले दिन वो दोनों उसी हॉस्पिटल चले गए और किसी भी तरह से कीर्ति के घर का पता हासिल किया। उसका घर मुंबई में ही था, वहां से कुछ आधे घंटे की दूरी पर। माधव और माधवी दोनों उसके घर पहुंचे। माधव के पैर और दिल दोनों अभी भी नहीं मान रहे थे। अगर माधव सही था और कीर्ति ग़लत तो वो उसे देखना ही नहीं चाहता था। पर अगर कीर्ति सही हुई तो वो क्या मुंह लेकर उसका सामना करेगा?
माधवी ने दरवाज़ा खटखटाया, दो-तीन बार खटखटाने के बाद अंदर से कीर्ति ने दरवाजा खोला। माधव और माधवी को देखकर कीर्ति हैरान हो गई। उसे ये उम्मीद बिलकुल नहीं थी कि वो दोनों उसे ढूंढते हुए उसके घर तक पहुंच जाएंगे।
“क्या हम अंदर आ सकते है?” माधवी ने पूछा।
“क्या? ओ हां। आइए।” कीर्ति ने कहा।
माधव अब तक कीर्ति से नज़र नहीं मिला रहा था।
“आइए, बैठिए। क्या लेंगे आप दोनों चाय या ठंडा?”
“जी कुछ नहीं।” माधवी ने कहा और माधव को इशारा किया कि वो कुछ पूछे जिसके लिए वो दोनों यहां पर आए थे। पर माधव ने मना कर दिया।
“माफ करना हम बिना बताए ऐसे ही यहां पर आ गए। पर हम लोगों को एक बहुत ही जरूरी बात करनी थी इसीलिए हमें ऐसा करना पड़ा। उम्मीद है आपको बुरा नहीं लगा होगा।” माधवी ने कहा।
“जी बिलकुल नहीं, क्या काम था बताइए!”
“आप के पास वक़्त तो है ना?”
कीर्ति को लगा इन दोनों को उसकी बीमारी के बारे में पता चल गया है।
“आप को कैसे पता चला, हॉस्पिटल से हो कर आये है आप दोनों?”
“जी हां।”
कीर्ति ने लंबी सांस लेकर कहा, “हां मेरे पास वक़्त नहीं है।”
“ओह! आप कहीं जा रही है?”
“नहीं अभी नहीं 6 महीने बाद शायद…”
“मैं समझी नहीं।”
कीर्ति को लगा कि जरूर कुछ ग़लतफहमियां हुई है, इसीलिए उसने बात को टाल दिया।
“आप दोनों कुछ तो लीजिए, चाय या ठंडा? कुछ तो?”
“हम यहां पर काम से आए है, हमारी मजबूरी है जो हमें यहां आना पड़ा। कोई चाय नाश्ता करने नहीं आए है।” माधव जो इतनी देर से चुप था उसके सब्र का बांध टूट गया।
दो घड़ी शांति हो गई।
“क्या काम है खुल कर बताइए। मुझे कोई काम नहीं है, मैं फ्री ही हूं।”
“दरअसल हम ये जानने आए है कि आपने माधव से झूठ क्यों कहा। मुझे पता है आप अजित से नफरत करती थी तो फिर माधव से झूठ बोल कर आप को क्या हासिल हुआ?”
“माफ कीजिएगा पर मैं ये सब भूल चुकी हूं और अब मैं ये सब याद नहीं करना चाहती हूं।”
“तुमने मेरी ज़िंदगी के साथ खेल क्यों खेला? जब भी मैं तुझसे पूछता था तू हंमेशा बात को टाल देती थी पर आज मैं पूरी सच्चाई सुने बिना यहां से नहीं जाने वाला। चाहे कुछ भी हो जाए। आज तुझे अपने बारे सब कुछ सच बताना होगा, क्यों किया ये? क्या है सच्चाई?” माधव ने पूछा।
“ये राज़ मेरे अंदर दफ्न हो चुका है, और इस राज़ के साथ मैं भी दफ्न हो जाऊंगी।” कीर्ति ने कहा।
“पर मैं इस राज़ को आज जानकर ही रहूंगा। क्यों मेरी जिंदगी को नर्क बना दी तूने? क्या वज़ह थी ऐसा करने की? बोल! तुझे मेरी कसम है, आज तुझे बोलना ही होगा।” माधव एकदम से चिल्ला कर उससे बोला।
“तूने मुझे अपनी कसम दे दी? ये कसम शायद 15 साल पहले दी होती तो आज हमारी किस्मत कुछ और होती।”
“कहना क्या चाहती हो? जो भी कहना है खुल के बोलो और सच बोलो।”
“हां सब कहती हूं, वैसे भी अब क्या फर्क पड़ता है? मैं सब बताऊंगी पर तुम लोगों में सुनने की शक्ति तो है ना?”
“हां है।”
“ठीक है, तो फिर सुनो मैंने ऐसा क्यों किया।”
Chapter 9.1 will be continued soon…
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✍️ Anil Patel (Bunny)