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Rewind ज़िंदगी - Chapter-3.1:  तकरार

Chapter-3.1: तकरार

सुरवंदना संगीत के पास ही माधव और अरुण ने रहने और खाने पीने की व्यवस्था कर ली थी, माधव दो दिनों से पैसो की चिंता में ही पड़ा था, तभी वहां के चपरासी ने माधव से कहा कि रमेश जी उसे बुला रहे है।

“आपने मुझे बुलाया सर?” माधव ने रमेश जी की ऑफिस जाकर पूछा।
“हां मैंने ही तुमको बुलाया, आओ बैठो।”
माधव के मन में कई सारे ख़्याल एक साथ आ गए। उसे ये भी लगा कि शायद मुझे यहां से जाने को कह दिया जाए।
“तुम बहुत नसीब वाले हो माधव।”
“क्यों? क्या हुआ सर?”
“तुम्हारा दोस्त, काश ऐसे दोस्त हर किसी के पास होते।” रमेश जी ने कहा।
“मैं समझा नहीं सर, आप कहना क्या चाहते है?”
“तुम्हारे दोस्त ने तुम्हारी फीस भर दी है, तुम यहां 2 महीने की तालीम ले सकते हो। फीस की रसीद देने के लिए मैंने तुम्हें बुलाया था, ये लो रसीद।”
माधव ने रसीद लेते हुए पूछा, “अरुण ने मेरी फीस की रकम जमा कर दी और मुझे बताया भी नहीं?”
“मुझे उसका नाम तो नहीं पता पर एक सलाह जरूर तुम्हें देना चाहूंगा, कभी भी ऐसे दोस्त को खोना मत।”
“बिलकुल सर, थैंक्स सर!”
माधव की आँखें भर आई और वो सीधा जाकर अरुण के गले लग गया।
“ज़िंदगी में तुझ जैसा दोस्त हो तो किसी को जीवन में कभी भी कोई तकलीफ़ ना हो, थैंक्स यार!”
अरुण ने कुछ ना बोला, बस उसने माधव को गले लगा लिया। अरुण ने थोड़ी देर रुक कर कहा, “अब तो मैं यहां से जा सकता हूं ना? अब तो तू यहां पर अकेले ही सब कुछ संभाल लेगा।”
“नहीं यार तेरे बिना मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा।”
“पागल मत बन, तुझे अपनी राह ख़ुद चुननी है, मैं हर दम हर पल तेरे साथ नहीं हो सकता। तुझे मेरी जरूर होगी तो मैं जरूर आऊंगा, पर आगे की लड़ाई तुझे ख़ुद लड़नी है।”
“समझ गया यार, तूने जितना मेरे लिए किया इतना और कोई कर भी नहीं सकता, पर तेरी बात भी सही है, तुझे भी अपनी पढ़ाई ख़त्म करनी है, तेरे भी कई सपने है। उसके बीच में मैं नहीं आ सकता। तुझे यहां रोकूंगा नहीं पर जब भी तेरी जरूरत होगी तुझे जरूर याद करूंगा।”
“तू याद करेगा और मैं आ जाऊंगा यार!” अरुण ने कहा, “कल सुबह मुझे जाना है, कल सुबह 3 बजे की ट्रैन है, मुझे अभी निकलना होगा।”
“कोई बात नहीं, ला मैं तेरी मदद कर देता हूं सामान पैक करने में।” ये कहकर दोनों सामान पैक करने में लग गए।

माधव की तालीम शुरू हो गई। 10 लोगों में से 5-5 लोगों के ग्रुप बनाए गए थे इस तरह से उन लोगों को तालीम दी जाती थी पर माधव की खुशकिस्मती समझो या बदकिस्मती कीर्ति भी उसी के ग्रुप में तालीम ले रही थी। दोनों के बीच में नफ़रत तो थी ही, दोनों एक दूसरे को ज़्यादा नहीं बुलाते थे। अपने काम से काम रखते थे दोनों। तालीम के दौरान उन दोनों के बीच कई बार नोक झोंक भी हो जाती थी। रमेश जी और वहां के सभी लोग इन दोनों से परेशान थे। नतीजा ये आया कि दोनों को एक महीने बाद अलग-अलग ग्रुप में तालीम के लिए भेजा जाए।

“एक महीने बाद तो वैसे ही तुझे जाना होगा, फीस जो नहीं भरी तूने।” माधव ने कीर्ति को चिढ़ाते हुए कहा।
“तुझे उससे क्या, मैं फीस जमा करु या ना करु, तुझसे तो मांगने नहीं आई ना मैं!” कीर्ति ने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया।

माधव मन ही मन मुसकुरा के चुप हो गया, पर एक महीने बाद जब कीर्ति आई, तब माधव को पता चला कि कीर्ति ने अपनी फीस जमा कर दी थी।

माधव और कीर्ति दोनों ही अपनी तालीम में तल्लीन हो गए, और आखिर वो दिन आ ही गया जब सभी के इम्तिहान होने थे। 50 मार्क्स की टेस्ट में से सभी के अच्छे मार्क्स आये, पर असली परीक्षा तो गाना गाने में थी।

Chapter 3.2 will be continued soon…

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✍️ Anil Patel (Bunny)

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