Rewind ज़िंदगी - Chapter-1.2:  कीर्ति का परिचय Anil Patel_Bunny द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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Rewind ज़िंदगी - Chapter-1.2:  कीर्ति का परिचय

Chapter-1.2: कीर्ति का परिचय

Continues from the previous chapter…

अमिष जी और कुमुद जी को ये बात गले उतर गई, और उन्होंने अपने बेटों और दूसरे लोगों से भी सलाह-मशवरा किया। अंतिम फैसला सबका यही था कि कीर्ति के उज्ज्वल भविष्य के लिए उसे दूसरे शहर भेजना होगा और उसके अंदर जो संगीत की कला है उसको भी आगे चल के बढ़ाया जाए, इसी के चलते कीर्ति को भोपाल भेजने का फैसला लिया गया। भोपाल में अमिष जी के कई रिश्तेदार थे और उनका टेक्सटाइल का व्यापार भी वहां पर फैला हुआ था।

“मुझे कहीं नहीं जाना है।” कीर्ति ने गुस्से से चिल्लाकर कहा।
“बेटी, हम तुझे तेरी ही भलाई के लिए भोपाल भेज रहे है, यहां पर रहकर न तो तू पढ़ पाएगी और न ही आगे बढ़ पाएगी।” अमिष जी ने अपनी बेटी को प्यार से समझाते हुए कहा।
“मुझे न तो पढ़ना है और न ही आगे बढ़ना है।”
“तो फिर क्या करेगी?” कुमुद जी ने पूछा।
“मुझे कुछ नहीं करना, न कहीं भी जाना है, और न ही किसी से मिलना है, मैं जैसी भी हूं ठीक हूं यहां पर।”

बहुत समझाने के बाद भी कीर्ति नहीं मानी, आखिरकार प्यार से जब नहीं समझी तब उन लोगों को गुस्से का रास्ता अपनाना पड़ा, और क्यों न हो, सवाल कीर्ति के भविष्य का था। कुमुद जी ने पहली बार अपनी बेटी पर हाथ उठाया, और उस तमाचे की गूंज इतनी तेज़ थी कि दो मिनिट तक तो सभी देखते रह गए।

“हमारे ही लाड़-प्यार ने इसे बिगाड़ कर रखा है, इकलौती बेटी है यह समझ कर हम लोगों ने इसकी हर ज़िद पूरी की, पर अब जब हम उसे अपने बेहतर भविष्य के लिए कुछ करने को कह रहे है तो ये हमारी बात भी नहीं सुन रही है।” कुमुद जी ने गुस्से से आँखें लाल कर के अमिष जी को यह कहा।

“इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम उसे थप्पड़ मारो, अपनी बात मनवाने के लिए अपनी बच्ची पर हाथ उठाना कहां तक सही है?” अमिष जी ने कुमुद जी को कहा।

कीर्ति के आँखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे, इस पर गुस्से में कुमुद जी ने उसे दो थप्पड़ और मार दिए, सभी ने कुमुद जी को रोका और कीर्ति को अलग कमरे में ले गए।

उस रात कीर्ति और उसके पूरे परिवार को नींद नहीं आई, किसी ने ठीक से खाना भी नहीं खाया। दूसरे दिन कीर्ति सामने से आई और उसने सबसे कहा कि वो भोपाल जाने के लिए तैयार है। सभी लोग ख़ुश हो गए, साथ ही मन ही मन चिंता भी थी उन लोगों को कि कीर्ति भोपाल में सेटल हो पाएगी या नहीं? पर अब कीर्ति ने ठान ली थी कि वो कुछ पढ़कर या फिर कुछ नाम कमा के ही वापस आएगी।

भोपाल में शुरू में कीर्ति को थोड़ी सी दिक्कत हुई, पर उसने परिस्थितियों के अनुकूल जीना सीख लिया था। आगे चल के वो और बिंदास बनती गई, और साथ ही मुंहफट भी। उसने पढ़ाई में तो इतनी तरक्की नहीं की पर उसने अपनी गायकी में खूब सुधार ले आया। वो स्कूल की गायन प्रतिस्पर्धा में अव्वल आने लगी, लोग उसकी इस कला की कदर करने लगे।

एक दिन उसके स्कूल के संगीत गुरु ने उसको सलाह दी, “तुम इतना अच्छा गा सकती हो, तो तुम्हें इसी क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए।”
कीर्ति ने कुछ सोचा फिर कहा, “गीत-संगीत मेरी रुचि है, इससे मुझे अंदरूनी सुकून मिलता है, पर मैं क्या इस से अच्छे पैसे भी कमा पाऊंगी?”
“तुम कला को पैसो से क्यों तोल रही हो? शायद इसमें तुम्हें अच्छी खासी आमदनी ना मिले, पर जैसा तुमने कहा इससे तुम्हें अंदरूनी सुकून तो मिलेगा।”
“अच्छा है, तो फिर मुझे बताइए मैं कैसे इस दिशा में आगे बढ़ सकती हूं? वैसे भी पढ़ाई में मैं ज्यादा कुछ खास नहीं कर पाऊंगी।”
“तुम अपने दिमाग से सोचो, तुम्हें किस दिशा में आगे बढ़ना है? पार्श्वगायन में आगे बढ़ना हो तो उसमें ध्यान लगाओ, रेडियो में गाना हो तो उसमें ध्यान लगाओ, शादी-बारात में ऑर्केस्ट्रा में गायन करना हो तो उस दिशा में सोचो।”
“मुझे आशा भोंसले जी की तरह पार्श्वगायिका बनना है।” कीर्ति ने दृढ़ स्वर में कहा।
“बहुत खूब, तब तो तुम्हें काफ़ी मेहनत करनी पड़ेगी। तुम्हें शायद इसके लिए बॉम्बे जाना पड़ेगा।”
“मैं किसी भी जगह जाने को तैयार हूं। पर मेरी पढ़ाई का क्या होगा?” कीर्ति ने पूछा।
“पढ़ाई की चिंता मत करो, मैं तुम्हारे माता-पिता से बात कर लूंगा, और उनसे सारी बात करने के बाद ही तुम्हें बॉम्बे जाने को कहूंगा।”
“ठीक है।” इतना कहकर कीर्ति वहां से चली गई, और सोचने लगी, “क्या मैं सिर्फ गाना गाने के लिए ही पैदा हुई हूं? मुझे बहुत कुछ करना है, अपने परिवार को दिखा देना है कि मैं भी किसी से कम नहीं हूं।” तभी वहां से गुजरते हुए रेडियो में ये सुनाई दे रहा था,

*और अब प्रस्तुत है, फ़िल्म हम किसीसे कम नहीं का यह गाना, गीत के बोल है, हम किसीसे कम नहीं। जिसे गाया है मोहम्मद रफ़ी और आशा भोंसले जी ने, संगीत दिया है आर. डी. बर्मन ने, गीतकार है मजरूह सुल्तानपुरी, आइए सुनते है यह गाना,*

है अगर दुश्मन दुश्मन ज़माना गम नहीं गम नहीं
कोई आये, कोई आये, कोई आये, कोई आये,
कोई, हम किसीसे कम नहीं कम नहीं।

बस फिर क्या था, कीर्ति जी जान से जुट गई अपनी गाने की तैयारी में, उसके स्कूल के संगीत गुरु ने कीर्ति के घर वालो को ये बात बताई और कहा कि कीर्ति का पूरा ध्यान अब गायन पर दे, पढ़ने में वो अगर कम अंक भी लाये तो भी उसके अंदर कई सारी प्रतिभाएँ है।

कुछ साल में कीर्ति ने अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी कर ली, परिणाम आने में कुछ महीनों की देरी थी, कीर्ति ने उस समय अपने घर जाने के बजाय बॉम्बे जाना पसंद किया, और वहां पहुंच कर उसने सबसे पहले संगीत विद्यालय में प्रवेश लिया, और अपने गायकी के लिए ख़ुद-ब-ख़ुद रास्ता ढूंढने लगी। बॉम्बे में कीर्ति पेइंग गेस्ट के तौर पर एक घर में रहने लगी, न कोई जान-पहचान वाला, न कोई रिश्तेदार, वो अपने इस बदलाव से ख़ुश थी। नई जगह नए लोग, सभी परिस्थितियों से जूझना यह सब उसने सिख लिया था।

कीर्ति के घर पर भी सभी लोग ख़ुश थे, कम से कम अब वो अपने तरीके से ज़िंदगी के सारे निर्णय ले सकती थी, पर उनको ये बात बहुत सताती थी कि आखिर वो घर पर वापस क्यों नहीं आती? न बात करती वो अपने माँ-बाप से न ही किसी और से। अगर उसके माता-पिता उससे मिलने भी जाते तो भी वो मिलने के लिए सबसे मिल लेती, पर कुछ बोलती नहीं। यही बदलाव उसके माता-पिता के चिंता का विषय बन चुका था।

कुछ समय बाद कीर्ति का 12वीं कक्षा का परिणाम भी आ गया, हालांकि वो उत्तीर्ण तो हो गई, पर उसके मार्क्स बहुत ही कम थे। कीर्ति ने सोच लिया था, अब उसे आगे नहीं पढ़ना बस अपने आवाज़ को सही करना है ताकि वो अच्छे से गा सके। इसीलिए उसने अब अपना पूरा ध्यान गाने पर केंद्रित कर दिया।

Chapter 1.3 will be continued soon…

यह मेरे द्वारा लिखित संपूर्ण नवलकथा Amazon, Flipkart, Google Play Books, Sankalp Publication पर e-book और paperback format में उपलब्ध है। इस book के बारे में या और कोई जानकारी के लिए नीचे दिए गए e-mail id या whatsapp पर संपर्क करे,

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✍️ Anil Patel (Bunny)