रात - एक रहस्य - 3 Sanjay Kamble द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रात - एक रहस्य - 3




अगर मैं पानी पीने के लिए उठा और उसी वक्त वो पिशाच आ गया तो मेरे जिस्म के हजारों चिथड़े ... नहीं नहीं मुझे इसी तरह बेजान पड़ा रहना होगा। रिस्क नहीं ले सकता, क्योंकि इस अंधेरे में पता नहीं वह कब कहां से आएगा। मेरी हल्की सी भी आवाज उसे मेरी मौजूदगी का एहसास दिला देगी। और मैं तो नहीं चाहता की उसेे मेेेेरी मौजूदगी पताा चले।
लगता है कुछ आहट महसूस हो रही है। आहट, साथ ही किसी चीज के घसीटे जाने की आवाज। लगता है कोई कुछ घसीट कर ले जा रहा है जमीन पर उस चीज के घसीटे जाने की आहट धीरे-धीरे तेज हो रही है। शायद इस दरवाजे की दूसरी तरफ वह है। मतलब वह आ चुका है। इसका मतलब अब मुझे चौकन्ना रहना होगा, वरना मेरी जरा सी भी आवाज उसे आगाह कर देगी। पूरा बदन कंबल से ढका हुआ हैै। सिर्फ मेेेरी आंखें खुली हैै। और मेरी आंखों की पुतलिया दरवाजे पर ही टिकी हुई है। पर कभी कभी बीच-बीच में मैं आंखों की पुतली को दीवार के एक कोने में तो कभी दूसरे को लेने घुमाता हूं ताकि हर जगह को अच्छे से देख सकूं। दरवाजे के उपर टंगी घड़ी में २:४५ बजने को है। कुछ देर से आने वाली वो घसीटने की आवाज अब कम होते होते दूर जाती सुनाई दे रही है। अब आवाज पूरी तरह से बंद हो चुकी है। अब दोबारा एक गहरा जानलेवा सन्नाटा चारों ओर फैला है। और दोबारा मुझे उस घड़ी के कांटों की आवाज बिल्कुल साफ सुनाई दे रही है। वो घड़ी भी मुझे किसी टाइम बम की तरह लग रही है। पता नहीं कब फट जाए और मेरे जिस्म के चिथड़े-चिथड़े कर दे। इस अंधेरे में तो साफ-साफ नजर नहीं आ रहा लेकिन क्या दरवाजे के ऊपर 'की' होल है. मतलब अगर 'की' होल होगा तो वो दरवाजे की दूसरी तरफ से भी मुझे साफ-साफ देख सकेगा। और अगर ऐसा हुआ तो मेरी जान जाना पक्का है। भगवान से हाथ जोड़कर विनती करता हूं कि दरवाजे के ऊपर कोई भी 'की' होल ना हो। लेकिन उसे कि होल की क्या जरूरत है। वो जब चाहे जैसे चाहे जहां से चाहे इस कमरे के भीतर आ सकता है। जैसे मेरे दोस्त विनीत ने उस दिन बताया था।
मै, विनीत के घर गया था। भाभी जी ने कॉफी का कप मेरे और विनीत के हाथ में दिया और विनीत के पास बैठते हुए खुद भी कॉफी पिने लगी। विनीत की बीवी अब काफी ठीक लग रही थी। कॉफी का एक घूंट पीते हुए विनित ने मुझसे कहा
"तुम्हारा भूत प्रेत इन चीजो पर यकिन नहीं ये जानकर मुझे अच्छा लगा।"

"पर तुम्हारा इन सब चीजों पर यकिन है यह देखकर मुझे बड़ी हंसी आई। मतलब तुम इतने बेवकूफ कैसे हो सकते हो।"

'' मैं बेवकूफ नहीं हूं। बस चीजों की कद्र करना, उनसे नजदीक या दूरी बनाए रखना इन बातों का खास ख्याल रखता हूं। ऐसी जगहों से दूरी बनाए रखता हूं जहां पर ऐसी ताकतें होने का अंदेशा है।"
कहते हुए उसने टेबल पर एक कागज रखा और मेरी तरफ सरकाया। मैंने वह कागज उठाकर देखा और याद आ गया की कुछ दिन पहले उसकी पत्नी का भुत उतार कर हम वापस आ रहे थे तब उसने मुझे जो कागज दिया था उसपर यही पता लिखा हुआ था।

" हां मैं इस जगह के बारे में जानता हूं। पर इस घर में क्या हुआ था ? "

" करीब साल भर पहले की बात है। रात काफी हो गई थी। एक लड़का अपनी गाड़ी से जा गुजर रहा था, पर इंजन गर्म होने से गाड़ी बंद हो गई। गाड़ी सड़क पर खड़ी कर वह आजुबाजू देखने लगा। सड़क से कुछ ही दुरी पर उसे एक पुराना घर नजर आया। मोबाइल की टॉर्च शुरू कर वह मदद मांगने उस घर पहुंचा , पर पुरा घर सुनसान पड़ा था। ना बत्तींया, ना कोई इन्सान। चारों और बस छोटी मोटी झाड़ियां थी। कई सालों से बंद उस घर के दरवाजे पर नजर डाली तो दरवाजे पर ना कोई ताला ना कुंडी लगी थी। उसने हाथ से धक्का देकर वह दरवाजा खोला और एक गंदी भयानक बदबू उसके नाक के अंदर घुसी। जिससे उसका दिमाग सुन्न हो गया। लग रहा था जैसे कोई जानवर उस घर के भीतर सड रहा हो। उसने मोबाइल का टॉर्च ऑन किया और घर के भीतर चला गया। घर काफी बड़ा था ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां बाजू में तीन चार कमरे और ऊपर दो कमरे। उसने चारों और टोर्च की रोशनी डाली पर जैसे वह हैरान रह गया। घर के भीतर का सामान जैसे कि तैसा पड़ा था। पुराने जमाने का टीवी , लकड़ी की अलमारी, लकड़ी के टेबल , सोफा, छत पर लटक रहा रोशनदान , दीवारों पर लगी कुछ अनजान लोगों के तस्वीरेंं , रंग उड़ी दीवारें सब कुछ काफी हैरान करने वाला था। लग रहा था घर के लोग सारा सामान वैसा ही छोड़कर गये थे।
वह धीरे-धीरे एक-एक सीढ़ि उपर चढ़ने लगा। ऊपर जाने वाली सीढ़ियों पर लगी लकड़ियां काफी पुरानी और कमजोर हो गई थी । उसकी वजह से पैर रखते ही कर्रर कर्रर्र जैसी आवाजें घर के भीतर फैले उस वीरान सन्नाटे में काफी डरावनी लगने लगी। वह सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर पहुंचा ही था कि तभी घर के मेन दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। उसके कदम डर की वजह से पूरी तरह से जम गए। उसने पीछे मुडकर दरवाजे की तरफ देखा तो दरवाजा बंद हो चुका था और बाहर से कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा था।

क्रमशः