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पश्चाताप 

काली अंधियारी रात, बादलों की गड़गड़ाहट, थोड़ी-थोड़ी देर में बिजली की चमकती रोशनी, आँधी की तेज हवा और फिर घमासान बारिश से जूझती दीपिका ने ट्यूशन से अपने घर लौटते समय अपनी साइकिल की रफ़्तार को बहुत तेज कर दिया। यूँ तो हर रोज़ इस रास्ते पर काफ़ी चहल-पहल रहती है किंतु आज मौसम ने उस चहल-पहल पर मानो अंकुश लगा दिया था। दीपिका के दिल में डर का तूफ़ान मचा हुआ था। बस किसी तरह सुरक्षित जल्दी से अपने घर पहुँच जाऊँ ये ही सोच कर उसकी साइकिल की रफ़्तार बढ़ती ही जा रही थी।


तभी रास्ते में फटाक करके ज़ोर की आवाज़ आई, दीपिका की साइकिल का टायर फट गया था। वह बहुत ज़ोर से डर गई और नीचे गिर पड़ी। उसने तुरंत ही अपनी साइकिल को उठाया और पैदल ही चल दी। तभी वहाँ से स्कूटर पर एक लड़का गुजरा।


डरी हुई दीपिका की ऐसी हालत देखकर वह लड़का वहीं रुक गया और उसने पूछा, "क्या हुआ बहन?"


दीपिका ने कोई जवाब नहीं दिया और अपनी चलने की गति को तेज कर दिया।


वह लड़का स्कूटर से उसके साथ-साथ चलने लगा, "अरे तुम्हारी साइकिल पंचर हो गई है, चलो मैं तुम्हें घर तक छोड़ देता हूँ।"


दीपिका ने घूरते हुए उसे देखा और कहा, "तुम जाओ यहाँ से, मैं ख़ुद चली जाऊँगी। तुम जैसे लोगों को मैं अच्छी तरह से पहचानती हूँ। तुम मौके का फायदा उठाना चाह रहे हो।"


"नहीं, नहीं तुम ग़लत समझ रही हो, देखो मौसम बहुत खराब है, रास्ता सुनसान है। ऐसे में कोई गुंडा मवाली अगर मिल गया तो..."


दीपिका ने गुस्सा दिखाते हुए कहा, "तुम जाओ यहाँ से वरना मैं शोर मचाकर लोगों को बुलाऊँगी।"


"अरे तुम समझ क्यों नहीं रही हो, ऐसे तूफ़ानी वातावरण में तुम्हारी आवाज़ किसी के पास तक नहीं पहुँचेगी। देखो तुम मेरी बहन जैसी हो, चलो मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ, कहाँ रहती हो तुम?"


दीपिका शांत रही।


"अच्छा सुनो, तुम मुझे इतना तो करने दे सकती हो ना कि मैं इसी तरह तुम्हारे साथ चलूं? मैं सिर्फ़ तुम्हारे साथ-साथ अपने स्कूटर से ही चलते रहूँगा ताकि किसी को तुम अकेली ना लगो। तुम्हारा घर आते ही मैं चला जाऊँगा। मैं सच कह रहा हूँ, मेरा विश्वास करो।"


इस बार दीपिका ने सोचा "इसमें हर्ज़ ही क्या है, मुझे वैसे भी बहुत डर लग रहा है। शायद यह कोई शरीफ़ बंदा है, अभी तो घर दूर है यदि कोई और मिल गया तो? उससे अच्छा इसे ही साथ में चलने देती हूँ," ऐसा सोचकर दीपिका ने कहा, "ठीक है लेकिन तुम मुझसे दूर चलो।"


"हाँ हाँ बहन मैं दूर ही चलूँगा।"


उधर दीपिका की माँ प्रिया घर में अकेली थी, उसके पिताजी शहर से बाहर गए हुए थे, वरना वह उसे लेने पहुँच जाते। प्रिया बेचैन होकर दरवाज़े के बाहर खड़ी अपनी बेटी का इंतज़ार कर रही थी। वह बार-बार फ़ोन लगा रही थी पर दीपिका को ना तो फ़ोन की घंटी सुनाई दे रही थी ना ही इस बात की सुध-बुध थी कि माँ चिंता कर रही होगी। इस समय उसके मन में केवल डर था और दिमाग़ उस लड़के की तरफ़ था।


रास्ते में उस लड़के ने पूछा, "आख़िर इतनी रात को, ऐसे मौसम में तुम अकेली? तुम्हें लेने कोई क्यों नहीं आया?"


"मेरी माँ घर पर अकेली है, वह कैसे आती? पिताजी बाहर गए हैं।"


दीपिका को अब लग रहा था कि यह लड़का ठीक-ठाक लग रहा है। उसे वह सुरक्षित घर तक अवश्य ही छोड़ देगा। इतने में बारिश और भी तेज हो गई। उस लड़के का स्कूटर बंद पड़ गया। वह किक मारकर उसे स्टार्ट करने की कोशिश करने लगा। तब तक दीपिका कुछ आगे निकल गई। तभी बाइक पर सवार एक लड़का उधर से निकला।


अकेली दीपिका को देख कर वह रुक गया और उसने कहा, "अरे वाह इस मौसम में अकेली कहाँ जा रही है, मैं छोड़ देता हूँ।"


उसने दीपिका के नज़दीक आने की कोशिश की और उसका हाथ पकड़ने लगा।


तब तक उस लड़के का स्कूटर भी स्टार्ट हो गया और वह तेजी से आया और बोला, "अरे रुपांगी, मैं तुम्हें लेने ही आ रहा था पर तुम ट्यूशन क्लास से क्यों निकल गईं? साइकिल को यहीं छोड़ो और चलो घर, माँ चिंता कर रही है।"


"ओ भाई कौन हो तुम, क्या चाहिए?"


छः फुट के ऊँचे पूरे उस लड़के को देखकर बाइक वाला घबरा गया, "अरे भैया मैं तो मदद करना चाह रहा था इनकी।"


"चल जा यहाँ से, जानता हूँ तेरी मदद करना..., वरना अभी पुलिस को बुलाता हूँ।"


लड़का अपनी बाइक लेकर भाग गया।


दीपिका ने चैन की सांस ली उसने स्कूटर वाले लड़के को धन्यवाद देते हुए कहा, "आप कौन हैं? आपका नाम क्या है भैया?"


"मेरा नाम अजय है बहना? तुम्हारा नाम क्या है?"


"आपने तो अभी पुकारा था ना रुपांगी।"


"अरे वह तो मैं उस लड़के के सामने यूँ ही, चलो अच्छा हुआ, वह भाग गया।"


दीपिका की साइकिल एक दुकान के पास रखकर अजय ने दीपिका को अपने स्कूटर पर बैठने के लिए कहा। दीपिका चुपचाप बैठ गई और उसे रास्ता बताती रही। कुछ ही देर में वह घर पहुँच गए।
घर पहुँचते ही दीपिका की माँ बेचैनी से दरवाज़े के बाहर खड़ी अपनी बेटी का इंतज़ार कर रही थी।


उसे देखते ही अजय समझ गया और दीपिका से पूछा, "तुम्हारी मम्मी है ना?"


"हाँ, आओ तुम्हें मिलवाती हूँ।"


"नहीं फिर कभी, अभी तुम जाओ, तुम्हारी माँ इंतज़ार कर रही हैं।"


तभी दौड़ कर प्रिया रोड पर आ गई, "दीपिका मेरी बच्ची, बेटा तुम ठीक तो हो ना?"


"हाँ माँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"


"बेटा मैं तो घबरा ही गई थी, यह कौन है दीपिका?"


"माँ इन्हें तो मैं भी नहीं जानती, यह कौन हैं, कहाँ से आए हैं, बस इतना जानती हूँ कि इन्होंने भाई के रूप में एक फरिश्ता बनकर आज मुझे इस संकट की घड़ी में साथ देकर सही सलामत अपने घर पहुँचाया है।"


"आओ बेटा अंदर चलो।"


"नहीं आंटी फिर कभी आऊँगा।"


"बेटा फिर कभी पता नहीं कब होगा। तुमने आज वह काम किया है, जो हर कोई तो नहीं कर सकता ना, तुम्हें आना ही होगा।"


अजय ने अपना स्कूटर पार्क कर दिया और दीपिका और प्रिया के साथ उनके घर आ गया।


प्रिया ने उसे भी टॉवेल दिया और कहा, "बेटा लो हाथ मुँह पोंछ लो और यह टी शर्ट है, शायद तुम्हें आ जाएगी, पहन लो।"


"अरे नहीं आंटी मैं ठीक हूँ।"


किंतु प्रिया कहाँ मानने वाली थी। तब तक दीपिका भी तैयार होकर बाहर के कमरे में आ गई। फिर दीपिका ने अपनी माँ को अजय के सामने ही पूरी घटना सविस्तार बता दी।


प्रिया ने अजय को बार-बार धन्यवाद देते हुए कहा, "बेटा तुमने जो उपकार किया है, हम कभी नहीं भूल सकते। भगवान तुम्हें हमेशा ख़ुश रखे। अजय बेटा तुम यहाँ आते जाते रहा करो, हमें अच्छा लगेगा।"


"हाँ आंटी मैं ज़रूर आऊँगा, अब मैं चलता हूँ।"


"नहीं अजय बेटा चाय बन रही है, चाय पी लो। तुम लोग पूरे गीले हो गए थे, फिर चले जाना।"


चाय पीने के बाद अजय जाने लगा तब दीपिका ने कहा, "मैं तुम्हें भैया बुला सकती हूँ क्या?"


"हाँ हाँ ज़रूर बुला सकती हो, मुझे बहुत अच्छा लगेगा।"


"तो अजय भैया आप यहाँ आया करोगे ना? अभी तो हमारी ज़्यादा बातचीत भी नहीं हुई है।"


"हाँ दीपिका मैं ज़रूर आऊँगा, फिर बैठ कर अच्छे से बात करेंगे और यह लो मेरा मोबाइल नंबर, कभी भी किसी भी तरह की मदद चाहिए या कुछ भी काम हो, तुम सिर्फ़ एक बार फ़ोन कर देना, मैं आ जाऊँगा।"


"ठीक है मैं अभी तुम्हें कॉल करती हूँ, तुम भी मेरा नंबर सेव कर लेना।"


"ठीक है मैं चलता हूँ,” इतना कह कर अजय अपने घर चला गया।


इधर प्रिया और दीपिका आपस में बात कर रहे थे, दीपिका ने कहा, "माँ आज यदि अजय भैया मुझे मदद नहीं करते तो वह गुंडा पता नहीं क्या करता। माँ मैं बहुत डर गई थी किंतु अजय भैया ने मौके पर आकर मेरी ज़िंदगी को किसी अनहोनी से बचा लिया। माँ काश मेरा भी एक भाई होता। वह बहनें कितनी सुरक्षित होती हैं, जिनके भाई होते हैं, है ना माँ।"


"हाँ बेटा आज अजय ने हम पर ऐसा एहसान कर दिया, जिसे इस जीवन में हम कभी उतार ही नहीं सकते,” बातें करते-करते दोनों सो गईं।


दूसरे दिन जब दीपिका के पिता श्याम घर आए, तब उन्हें प्रिया ने सब कुछ बताया। वह अपनी बेटी के लिए चिंतित हो गए। कुछ सोचकर उन्होंने कहा, "प्रिया दीपिका का कॉलेज, ट्यूशन क्लास, सब हमारे घर से बहुत दूर पड़ता है, क्यों ना हम यह घर किराए पर उठा दें और उधर कहीं घर ले लें। मेरा भी शहर से बाहर आना-जाना चलता रहता है। भगवान ना करे पर ऐसी दुर्घटना तो कभी भी हो सकती है। अरे हाँ क्या नाम बताया था तुमने उस लड़के का, हाँ-हाँ याद आया अजय, प्रिया मैं उस लड़के से मिलना चाहता हूँ। उसे रविवार को उसके माता-पिता के साथ डिनर के लिए बुला लो। जिसने इतना नेक काम किया हो, हमारी इतनी मदद की हो, उसके परिवार से सम्बंध रखना हमारे लिए सौभाग्य की बात होगी। कितने अच्छे संस्कार होंगे उस लड़के में।"


फ़िर दीपिका ने अजय को फ़ोन करके कहा, "अजय भैया रविवार को आपको और अंकल आंटी को हमारे घर डिनर पर आना है। माँ को आंटी से बात करना है, आप उन दोनों की बात करवा दो।"


"ठीक है दीपिका, मैं मम्मी को फ़ोन देता हूँ।"


दीपिका ने भी अपनी माँ को फ़ोन दे दिया।


तब प्रिया ने अजय की मम्मी से कहा, "हेलो नमस्ते रुदाली जी, अजय ने आपको हमारे बारे में बताया ही होगा। मैं प्रिया बात कर रही हूँ, आप लोगों से मिलने की बड़ी इच्छा है, इसलिए रविवार को हम सब साथ में डिनर करते हैं। आपकी स्वीकृति के लिए ही मैंने आपको फ़ोन लगाया है।"


रुदाली ने स्नेह सहित उनका निवेदन स्वीकार कर लिया।


रविवार के दिन दोनों परिवार मिले, साथ में समय बिताया। प्रिया बार-बार अजय की तारीफ़ कर रही थी। काफ़ी समय साथ बिताने के उपरांत अजय के पिता ने जाने की अनुमति मांगते हुए कहा, "अच्छा चलिए, इजाज़त दीजिए, हम मिलते रहेंगे। बहुत ही अच्छी शाम थी, बहुत अच्छा लगा आप लोगों से मिलकर।"


तभी रुदाली ने कहा, "डिनर बहुत अच्छा था, अब आप लोग आइए हमारे घर।"


"जी ज़रूर,” कह कर प्रिया रुदाली के गले से लग गई।


दूसरे दिन रुदाली ने प्रिया को फ़ोन करके अपने घर अगले रविवार डिनर के लिए आमंत्रित कर लिया। एक हफ़्ते के बाद फिर से दोनों परिवार एकत्रित हुए। डिनर के समय प्रिया की नज़र दीवार पर टंगी एक तस्वीर पर गई, जिस पर फूलों का हार चढ़ा हुआ था।


एक कमसिन लड़की का सुंदर-सा फोटो इस तरह टंगा देखकर प्रिया ने पूछ लिया, "रुदाली जी यह तस्वीर किसकी है?"


कुछ पलों के लिए वहाँ सन्नाटा छा गया। प्रिया को लगा शायद उसने कुछ ग़लत प्रश्न कर दिया।


तब रुदाली ने कहा, "प्रिया जी यह हमारी बेटी की तस्वीर है, किंतु अब वह हमारे बीच नहीं है।"


प्रिया सहम गई, कुछ भी ना कह पाई और ना ही आगे कुछ पूछ पाई।


तभी अजय के पिता ने बात को बदलते हुए कहा, "अरे अजय बेटा तुम कोल्ड ड्रिंक लाए थे ना, जाओ ले आओ।"


"जी पापा,” कहकर अजय फ्रिज से कोल्ड ड्रिंक निकाल लाया, तब तक सभी चुप थे।


अजय ने कोल्ड ड्रिंक देते हुए कहा, "अरे अंकल आपने तो कुछ खाया ही नहीं, लीजिए ना अंकल अच्छे से खाना खाइए।"


खाना ख़त्म होने के बाद काफ़ी देर तक सब बातें करते रहे। फ़िर दीपिका और उसके माता-पिता अपने घर के लिए निकल गए।


प्रिया सोच रही थी आख़िर उनकी बेटी को क्या हुआ होगा? वह सब घर आने के बाद भी आपस में यही बात कर रहे थे।


सबके मन में तस्वीर को लेकर एक प्रश्न चिह्न लग गया था कि आख़िर उसे क्या हो गया था, इतनी छोटी उम्र में कोई इस तरह जाता है क्या?


कुछ दिनों के बाद अजय जब दीपिका से मिलने आया तब प्रिया अपने आप को रोक ना पाई और अजय से उन्होंने पूछ ही लिया, "अजय बेटा आख़िर तुम्हारी बहन को क्या हो गया था, जो इतनी छोटी-सी उम्र में…"


अजय बीच में बोल पड़ा, "मैं आपको बताता हूँ आंटी, उसका गुनहगार मैं हूँ।"


दीपिका और प्रिया चौंक गए, "यह क्या कह रहे हो बेटा?" प्रिया ने कहा।


"एक साल पहले की बात है, दीपिका की ही तरह एक शाम को वह अपनी ट्यूशन से आ रही थी। सुनसान रास्ता था बिल्कुल वैसा ही, आँधी, तूफ़ान, बारिश वाला मौसम था। तभी कुछ गुंडे वहाँ आए और मौका देख कर उसे खींचकर अपनी गाड़ी में बिठा लिया। ट्यूशन ख़त्म होते ही ऐसा मौसम देखकर उसने मुझे फ़ोन किया था। मैं अपने दोस्तों के साथ पार्टी में था, हम लोग मस्ती कर रहे थे, इसलिए मुझे फ़ोन की रिंग सुनाई ही नहीं दी। आधे घंटे बाद मैंने जेब से फ़ोन निकाला तो उसमें उसके कई मिस्ड कॉल थे। तुरंत ही मैंने उसे फ़ोन लगाया पर उसने फ़ोन नहीं उठाया। मैं बार-बार कोशिश करता रहा पर उसका फ़ोन फिर बंद हो गया। मैं अपने दोस्तों के साथ उसे ढूँढने निकला पर वह कहीं नहीं मिली। घर पर भी सब चिंता कर रहे थे।"


"हम ने पुलिस में शिकायत दर्ज़ कर दी। पुलिस भी उसे ढूँढ रही थी पर कोई फायदा नहीं हुआ। शहर से दूर जब मैं अपने दोस्तों के साथ एक राह से गुजरा तो मुझे झाड़ियों का एक झुंड हिलता हुआ दिखाई दिया। हवा तो चल नहीं रही थी, मैं उस झाड़ी के पास गया, वहाँ मेरी बहन कराहती हुई पड़ी थी। उसे उठा कर हम लोग जल्दी से अस्पताल पहुँचे। पापा मम्मी भी वहाँ आ गए, डॉक्टर उसके इलाज़ में लगे थे। वह बोल नहीं पा रही थी, बार-बार अपनी उंगली उठा कर कुछ इशारा कर रही थी लेकिन क्या वह सब कुछ एक राज़ बन कर उसके साथ ही चला गया। जब वह मेरी तरफ़ देख रही थी, उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे, मानो कहना चाह रही हो भैया तुमने मेरा फ़ोन क्यों नहीं उठाया? मुझे लेने सही समय पर क्यों नहीं आए? हम सब मज़बूर थे आंटी, पैसों की कमी नहीं थी। बड़े-बड़े डॉक्टर इलाज़ में लगे थे पर शायद भगवान भी मज़बूर थे। अपनी बहन के मिस्ड कॉल देखकर मैं खून के आँसू रो रहा था। मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगा आंटी, कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगा," कहते हुए अजय रोने लगा।


"काश मैंने अपनी बहन का फ़ोन उठा लिया होता, काश मेरी बहन रुपांगी ज़िंदा होती, काश मेरे मम्मी पापा मुझसे नाराज़ ना होते।"


दीपिका यह नाम सुनते ही चौंक गई और उसने कहा, "अजय भैया शायद इसीलिए आपने मुझे उस दिन रुपांगी कह कर पुकारा था। मैं उसकी जगह तो नहीं ले सकती लेकिन आपकी बहन के रूप में आपके दर्द को कम करने में मदद ज़रूर कर सकती हूँ।"


प्रिया ने कहा, "अजय बेटा तुम्हारा नहीं यह भाग्य का दोष है, शायद वह समय ही ख़राब था। उस दिन तुम यदि समय पर नहीं आते तो आज शायद दीपिका अपने साथ सही-सलामत नहीं खड़ी होती। अजय आज रुपांगी यह देखकर ख़ुश होगी कि तुमने एक बहन की लाज बचा ली। तुम्हारे माता पिता भी तुम पर गर्व अवश्य ही करेंगे।"


अजय ने कहा, "आंटी मैंने लड़कियों के लिए एक आत्म रक्षा केंद्र खोला है, जहाँ लड़कियों को आत्मरक्षा करने की ट्रेनिंग दी जाती है। मैंने कुछ ट्रेंड लड़कियों को सिखाने के लिए रखा है। मैं चाहता हूँ कि दीपिका भी वह क्लास ज्वाइन कर ले, सभी के लिए वह बिल्कुल फ्री है। वहाँ काफ़ी लड़कियाँ आने भी लगी हैं, अब मेरा पश्चाताप यही है कि मैं जितनी हो सके उतनी ज़्यादा से ज़्यादा लड़कियों को आत्म रक्षा करना सिखा पाऊँ। क्योंकि सही समय पर कोई भी मदद करने आ पाए, यह ज़रूरी तो नहीं। कभी-कभी परिस्थितियाँ ऐसी बन जाती हैं। इसीलिए हर लड़की को स्वयं ही स्वयं की रक्षा करना आना ही चाहिए।"


"हाँ अजय भैया मैं वहाँ ज़रूर आऊँगी और पूरी ट्रेनिंग भी लूंगी।"


दूसरे दिन दीपिका और उसकी माँ पापा सभी आत्म रक्षा केंद्र गए। वहाँ हॉल में पहुँचते ही उन्होंने देखा, हॉल की दीवार के बीचों-बीच रुपांगी की बहुत बड़ी तस्वीर लगी हुई थी जिसके ऊपर लिखा था–'आज उठा लो यह कसम-आत्मरक्षा होगा पहला कदम।'


काफी सारी लड़कियाँ ट्रेनिंग ले रही थीं।


अजय दीपिका को देखते ही वहाँ आया और कहा, "दीपिका तुम्हें देखते ही मुझे ऐसा लगता है, मेरी रुपांगी लौट आई है।"


ऐसा कहते समय अजय की आँखों में आँसू थे और सुनते समय दीपिका की आँखों से वह बह रहे थे। दीपिका ने ख़ूब मेहनत की और कुछ ही महीनों में सब सीख कर वह भी वहाँ की ट्रेनर बन गई। उसके बाद ना जाने कितनी ही लड़कियों को उसने ट्रेंड किया।


अजय का पश्चाताप और उसके इस रूप को देखकर अजय के माता-पिता को अपने बेटे पर गर्व हो रहा था। अंजाने में हुई भूल का ऐसा पश्चाताप जो लड़कियों के लिए आत्मरक्षा केंद्र बन गया।
दीपिका के माता-पिता भी अजय और उसके परिवार के साथ जुड़कर तन-मन और धन से इस मुहिम का हिस्सा बन गए। अजय अपनी बहन को तो नहीं बचा पाया लेकिन अनेक लड़कियों को सक्षम करने में वह अवश्य ही कामयाब हो गया।


रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक




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