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वही होगा मेरा पति 

कड़कड़ाती धूप में मेहनत करती यमुना पसीने से तरबतर हो रही थी। तभी खाना खाने की छुट्टी हुई। इतने शरीर तोड़ परिश्रम के बाद उसे जोरों की भूख लगी थी। आज माँई ने क्या साग भेजा होगा, सोचते हुए उसने अपना खाने का डब्बा खोला। वह देखकर हैरान रह गई कि डब्बे में प्याज और सूखी रोटी के सिवाय और कुछ भी नहीं था। यमुना गुस्से में लाल हो रही थी। उसने डब्बे को वैसे ही वापस बंद कर दिया।

तभी उसके बाजू में खाना खा रही पार्वती ने पास में खड़े लार टपकाते कुत्ते को देखकर उसके आगे एक सूखी रोटी फेंक दी। कुत्ता भी रोटी देख उसे सूंघकर अलग हो गया। उसे शायद बिस्किट की तमन्ना थी जो इस वक़्त उस के नसीब में नहीं थे। यमुना की भूख और गुस्सा दोनों ही अपनी चरम सीमा पर थे। वह उठी और वापस काम पर जाने लगी।


तभी पार्वती ने पूछा, “क्या हुआ यमुना खाना क्यों नहीं खा रही है ? अरी बोल ना क्या हुआ ?”


“सूखे टिक्कड़ भेजे हैं माँई ने, कैसे खाऊँ? सूखे टिक्कड़ को देखकर तो वह कुत्ता भी भाग गया, फिर भला मैं कैसे खाऊँ?”


“अरी आ जा मेरे पास चटनी और थोड़ी साग भी है, खाएगी?”


“नहीं पारो तू खा ले मेरा पेट भरा है, जाती हूँ काम पर।”


कड़ी धूप में पसीना बहता रहा, यमुना काम करती रही। सूरज को भी मानो उस पर दया आ गई तो वह भी धीरे-धीरे अपने तापमान पर नियंत्रण करके ढलने लगा। शाम होने आई अपनी दहाड़ी पूरी करके यमुना जब शाम को घर पहुँची तो उसकी माँई ने पूछा, “यमुना बड़ी थकी-थकी लग रही है ? क्या बात है आज काम ज़्यादा पड़ गया क्या ?”


यमुना ने गुस्से में जवाब नहीं दिया।


उसकी माँई ने अधिक ध्यान ना देते हुए उसका डब्बा धोने के लिए उठाया और बाहर चली गई। डब्बा खोलते ही उसने देखा, खाना तो जस का तस रखा है। वह वापस आई और यमुना से पूछा, “यमुना खाना क्यों नहीं खाया ? इसीलिए ऐसी लग रही है, मुँह उतर गया है, क्या हुआ है तुझको ?”


“क्या खाती माँई, सूखी रोटियाँ? साग क्यों नहीं बनाई ? इतना तो कमा कर लाती हूँ, खाने के लिए तो पैसा कम नहीं पड़ सकता।”


“यमुना अब से तो ऐसा ही खाना मिलेगा।“


“यह क्या कह रही हो माँई? क्यों ऐसा खाना मिलेगा ? एक ही दिन में महँगाई इतनी बढ़ गई कि साग लेने के लिए भी पैसा नहीं है ?”


“अरी नाराज़ी ना दिखा, तेरे बापू ने तेरा ब्याह तय कर दिया है। बहुत अच्छा लड़का है, कमाता भी ठीक-ठाक है। दहेज में उसके माँई-बाप डेढ़ लाख रुपया माँग रहे हैं, देना तो पड़ेगा। कौड़ी-कौड़ी बचाएंगे तभी तो इकट्ठा होगा ना। छह-सात महीने का समय है हमारे पास। तब तक हमें उतना पैसा जोड़ना पड़ेगा। साहूकार के पास से थोड़ा कर्ज़ा ले लेंगे ।”


“यह क्या कह रही हो माँई, इतना सारा दहेज मांग रहा है और तुम कह रही हो अच्छा लड़का है? उसे लड़की भी चाहिए और साथ में पैसा भी ? मना कर दो, मैं ऐसे लड़के के साथ ब्याह हरगिज़ नहीं करूंगी, जिसकी नीयत में दहेज की दौलत हो। उसकी बाजू में ताकत नहीं है क्या अपनी जोरू को कमाकर खिलाने की?”


“बापू बिस्तर पर हैं, तुमसे काम होता नहीं। तुम दोनों का क्या होगा? कर्ज़ का ब्याज भरते-भरते ज़िन्दगी बीत जाएगी। ये साहूकार भी कम लालची नहीं होते। हम जैसों को कर्ज़ा दे कर ही अपना घर चलाते हैं। कामकाज होता नहीं है उनसे। गरीबों की मेहनत का खून चूस-चूस कर ही पलते हैं ये। इनकी औकात मच्छर और खटमल से ज़्यादा नहीं होती। दहेज लेने वाले भी इन्हीं के भाई-बंधु होते हैं। जो अभी पैसा माँग रहे हैं, क्या वह बाद में मुझे तुम्हारे लिए कुछ भी करने देंगे ? नहीं माँई नहीं, मुझे ब्याह करना ही नहीं है।”


“अरी पगली है क्या तू? दहेज के बिना रिश्ते नहीं होते, तूने अभी दुनिया देखी ही कहाँ है। ब्याह तो सभी को करना पड़ता है। बेटी को घर के खूंटे से बाँध कर तो नहीं रख सकते ना? तू हमारी चिंता ना कर, मैं जैसे-तैसे दो जून की रोटी का जुगाड़ तो कर ही लूँगी।”


“मैंने कह दिया ना माँई, ऐसे लालची परिवार में मैं रिश्ता कभी नहीं करूंगी।”


“ऐसी बातें ना बोल यमुना। तू क्यों भूल रही है बड़े-बड़े लखपतियों की छोरियाँ भी जब शादी के मंडप में बैठती हैं ना, उसके पहले ही क़रार हो जाता है। लाखों के सौदे होते हैं, यही रीत है।”
“होते होंगे लाखों के सौदे, उन छोरियों के मन में भी दहेज ले कर जाने की चाह रहती होगी। मैं वैसी नहीं हूँ माँई, वैसे भी मुझे भिखारी लड़के से ब्याह नहीं रचाना।”


“अरी यमुना दहेज तो उसके माँई बाप मांग रहे हैं। लड़के को काहे कोस रही है।”


“अच्छा मतलब वह अपने लड़के को बेच रहे हैं, डेढ़ लाख रुपये में, उन्हें कह दो हमें यह सौदा मंजूर नहीं।”


माँई ने यमुना को हर तरह से समझाने की कोशिश की किंतु यमुना की ना हाँ मैं ना बदली।


यमुना ने कहा, “माँई कल से साग बनाना मत भूलना।”


“ठीक है” कहकर माँई अपने काम से लग गई।


वह हर रोज़ थोड़ा-सा साग बनाकर यमुना के डब्बे में रख देती और बाक़ी कच्चा उठाकर गीले कपड़े में रखकर छुपा देती। माँई और बापू तो अभी भी यमुना की चोरी से सूखी रोटी, प्याज के साथ खा कर पानी पी लेते। यमुना को एक दिन तबीयत खराब लग रही थी इसलिए वह खाने की छुट्टी में मालिक को बोल कर घर आ गई। उसने सोचा आज माँई बापू के साथ घर पर ही खाना खाऊँगी, पर खोली में घुसते ही उसने देखा माँई और बापू प्याज और नमक के साथ रोटी खा रहे थे। यह देखकर यमुना की आँखें आँसुओं से भीग गईं और वह उन दोनों के सामने आकर घुटनों के बल बैठ गई।


माँई और बापू उसे देखकर हैरान रह गए। माँई ने कहा, “अरे यमुना तू इस वक़्त ?”


यमुना की आँखों से आँसू टपक कर उनकी थाली में जा गिरा। यमुना कुछ भी बोल नहीं पा रही थी लेकिन उसकी आँखें सब कुछ बोल रही थीं। उसके आँसू देख कर माँई और बापू के आँसू भी बह निकले।


बापू ने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला तो यमुना ने उनके मुँह पर अपनी उँगली रख दी और अपने घुटनों को नीचे कर पालथी मार कर उनके पास बैठ गई। यमुना ने अपना डब्बा खोला और उसमें से साग निकाल कर अपने हाथों से उन्हें पूरा खाना खिलाया। इस समय कोई किसी से कुछ नहीं कह पा रहा था।


यमुना के मन में केवल यही विचार आ रहा था कि उसका यह फ़ैसला कितना सही था कि वह दहेज देकर ब्याह नहीं करेगी वरना उसके माँई बापू को शायद जीवन भर नमक के साथ ही रोटी खाना पड़ती। उसके बाद उसने माँई से कहा, “ माँई दो-दो पैसे बचाकर साग के बिना रोटी खाकर आप डेढ़ लाख कभी इकट्ठे ना कर पाओगी, बस मेरा दिल दुखाओगी। तुम्हें मेरी क़सम आज के बाद फिर कभी ऐसा किया तो।”


“ठीक है यमुना तू जीती और मैं हारी।”


उसके बाद भी यमुना के लिए कई रिश्ते आते रहे लेकिन हर जगह बात दहेज पर आकर अटक जाती। यमुना अपनी ज़िद पर अड़ी ही रही।


वह अपनी माँई से हमेशा एक ही बात कहती थी, “माँई दहेज मांगने वालों के लिए मेरे मन में केवल दो ही बातें आती हैं। एक तो यह कि वे लालची हैं और उनका लालच कभी भी ख़त्म नहीं होगा और दूसरी ये कि वे भिखारी हैं अपने दम पर कमाने की शायद उनकी औकात ही नहीं है। माँई उनके लिए मेरे मन में मान सम्मान कभी नहीं आता। तुम ही बोलो माँई ऐसे परिवार या ऐसे लड़के से रिश्ता में क्यों जोड़ूँ जिसका मैं आदर ही ना कर पाऊँ। मुझे मेरे बापू और माँई की थाली में सूखी रोटी और प्याज नहीं, रोटी के साथ साग, चटनी और अचार भी चाहिए। मैं तो ऐसे लड़के से ब्याह करुँगी जो बिना दहेज लिए मुझसे विवाह करे और मुझे मेरे माँई बापू के लिए रोटी के साथ साग का भी जुगाड़ करने दे, वही होगा मेरा पति।“


रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक








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