पलायन (पार्ट3) Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पलायन (पार्ट3)

फुटपाथ पर चल रहा था।चौराहे पर आकर वह रुका।दो रास्ते थे.गोमती नगर के एक लंबा दूसरा छोटा।उसने छोटा रास्ता चुना।इस रास्ते मे मीट की दुकानें पड़ती थी।दिन में इधर से निकलते हुए मुँह पर कपड़ा रखना पड़ता था।लेकिन रात में दुकाने बन्द हो चुकी थी।सड़क पर चलने के बाद उसने तंग गली वाला रास्ता पकड़ा था।तंग गली में अंधेरा था।ठंड की वजह से लोग अपने अपने घरों में दुबके पड़े थे।किसी मकान की खिड़की या दरवाजे की झिर्री से प्रकाश निकलकर गली में आड़ी तिरछी रेखा बना रहा था।और धीरे धीरे चलकर वह गली के नुक्कड़ पर आ गया।वह रुका। था।उसने ओवरकोट के कोलार को सीधा किया।टोपी को सही लगाया।फिर दांये बांये चारो तरफ नज़र डाली और फिर सामने आकर नज़र ठहर गयी।वह कोठा उसे सुरक्षित नजफ़ आया।उस पर जाने के लिए उसे दांये या बांये चलने की भी ज़रूरत नहीं थी।कोठे के नीचे सर्राफ की दुकान थी जो बन्द हो चुकी थी।दुकान की बगल से ऊपर जाने के लिए जीना था।
उसने हाथ मे बंधी घड़ी में समय देखा।अभी रात के नौ ही बजे थे लेकिन सर्दियों में ऐसा लग रहा था मानो आधी रात हो गयी हो।उसने गर्दन घुमाकर एक बार फिर देखा और पूरी तरह आश्वस्त होकर तेजी से गली से निकलकर वह जीने पर आ गया।वह धीरे धीरे जीना चढ़ने लगा।अंतिम सीढ़ी पर जाकर वह रुका।तभी हवा में तैरता नारी स्वर उसके कानों में पड़ा,"रुक क्यो। गए।चले आओ।"
जीना चढ़ने की आवाज से उसे ग्राहक आने की सूचना मिल गयी थी।वह आवाज सुनकर कमरे के दरवाजे पर जा खड़ा हुआ।
उसने देखा कमरा कोठरी नुमा था।कमरे में हल्का नीला प्रकाश फैला था।दीवार से सटकर तख्त बिछा था।ज़मीन पर दरी बिछी थी.।एक छोटी सी टेबल भी कमरे में थी।बांयीं तरफ छोटी सी अलमारी में रूम हीटर जल रहा था।उसे देखते ही एक औरत आयी,"रुक क्यो गए/अंदर आइए।"वह उसके साथ कमरे में चला गया।
"बैठिये'
वह तख्त पर बैठ गया।वह औरत उससे सटकर बैठ गयी।उसने नज़रे उठाकर अपनी बगल में बैठी औरत को देखा।
साफ गोरा रंग,गठीला बदन,उम्र लगभग चालीस,बड़ी बड़ी काली कजरारी आंखे,उसके सुर्ख लाल होठ बड़े ही आकर्षक लग रहे थे।उसने झीनी नाइटी पहन रखी थी।जिसमे से उसके अंग प्रत्यंग साफ झांक रहे थे।कुल मिलाकर वह सूंदर थी और काफी उतेजक लग रही थी।
"क्या लोगी आज रात का?",उसने प्रश्न किया था।
"हज रुपये'
"बहुत ज्यादा है"
और कुछ देर तक मोल भाव के बाद वह सात सौ रुपये पर तैयार हो गयी।"
उसने पर्स निकाल कर उसे सात सौ रु दिए थे।पैसे लेने के बाद वह बोली,"दारू और खाने के अलग से दो।'
उसने उसे घूर कर देखा फिर उसे सौ रु और दे दिए।नोट को लेकर वह कमरे से बाहर निकली।कोठे के सामने होटल था।छज्जे पर जाकर उसने आवाज लगायी,"प्रताप।एक पव्वा और थाली भेज देना।"
वह अकेला बैठा कमरे को देखने लगा।दीवारों पर काम क्रीड़ा में लिप्त मर्द औरतो की फोटो लगी थी।फिल्मी हीरोइनों की उतेजक तस्वीरे भी थी।
छम छम की आवाज के साथ वह कमरे में लौट आयी और उसके बगल ने आकर बैठ गयी।उसके स्पर्श और अर्ध निर्वस्त्र रूप को देखकर उसकी आँखों मे चमक आ गयी।शरीर मे उतेजना की लहर दौड़ने लगी।अपने पर काबू रखते हुए वह बोला,"तुम्हारा नाम क्या है?"