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पलायन (पार्ट2)

और उनके झगड़े में वह बीच बचाव करने जाने लगा।।और
राम कुमार ड्यूटी पर गया हुआ था। खाना खाने के बाद वह घर लौटा तो विभा के घर का दरवाजा खुला देखकर वह अंदर चला गया।विभा पलंग पर सो रही थी।कुछ देर तक वह उसे देखता रहा।फिर वह उसके बगल में लेट गया।
रात का सन्नाटा चारो तरफ पसरा पड़ा था।वातावरण शांत खामोश।दूर तक कोई। आवाज शोर नही।कभी कभी किसी कुत्ते के भोंकने की आवाज जरूर वातावरण की खामोशी को चीर कर दूर तक चली जाती थी।रात के एकांत में एक औरत और एक मर्द।वह चुपचाप विभा के बगल में लेटा रहा।कोई हलचल नही।तब उसने अपना हाथ उसके शरीर पर रख दिया।उसकी गर्म सांसे विभा की गर्दन को छूने लगी।वह शांत पड़ा विभा की प्रतिक्रिया जानने का प्रयास करने लगा।किसी तरह की हरकत न देखकर उसने अपना हाथ उसकी छाती पर रख दिया।विभा की नींद टूट गयी।उसने आंखे खोलकर देखा।उसे अपनी बगल में देखकर वह कुछ नही बोली।और आंखे मूंद ली।वह समझ गया।विभा ने अपनी मौन स्वीकृति दे दी थी।
और उसके हाथ विभा के शरीर पर रेंगने लगे।एक एक करके विभा के तन से कपड़े अलग होते गए।और फिर दो शरीर एक हो गए।उसने पहली बार नारी शरीर का स्वाद चखा था।
उस रात के बाद जब भी राम कुमार ड्यूटी पर बाहर जाता विभा उसको समर्पण करती रहती थी।कभी भी उसने उसकी इच्छा का दमन नही किया।जब भी उसे मौका मिला उसने अवसर का फायदा उठाया था।उसकी शादी से कुछ दिन पहले राम कुमार का ट्रांसफर हो गया और वह अपने परिवार के साथ चला गया था।जाते समय विभा उससे बिछुड़कर खूब रोयी थी।
विभा को याद करके वह भी दुखी होता था।रात को बिस्तर में उसको याद करके रात निकलती थी।लेकिन ज्यादा दिन तक ऐसा नही हुआ।उसके लिए रिश्ते आ रहे थे और उसने सालू को पसंद कर लिया।और अब विभा की जगह सालू ने ले ली थी।सगाई के कुछ दिनों बाद ही सालू पत्नी बनकर उसके पास आ गयी।सालू के रंगरूप का जादू ऐसा चढा की विभा अतीत में कही खो गयी।उसकी याद उसकी स्मृति से मिट गयी।सालू जब से उसके पास आयी हर रात उसने उसके साथ बिस्तर में गुज़ारी थी।
सर्द हवा के झोंके ने खिड़की के रास्ते प्रवेश करके उसे झकझोर दिया।ठंड से उसके बदन में सिहरन।ऐसी ठंडी रात में वह अकेला------ नही नही वह मन ही मन मे बड़बड़ाया और उत खड़ा हुआ।
वह कमरे से निकलकर बाहर सडक पर आ गया।
जनवरी।सुबह से ही कोहरा छाया था।पिछले कई दिनों से शीत लहर चल रही थी।दिन में भी सूरज के दर्शन नही हो रहे थे।रात होते ही कोहरा और गहरा जाता।कोहरे की वजह से खम्बो पर लगी ट्यूब लाइट का प्रकाश भी टिमटिमा रहा था।सड़क साफ नजर नही आ रही थी।उसके मन मे रिक्शा करने का विचार आया।फिर उसने इस विचार को त्याग कर पैदल चलने का ही निर्णय लिया।
बाजार धीरे धीरे बन्द हो रहा था।यो तो दुकाने देर तक खुलती थी लेकिन ठंड और कोहरे की वजह से लोग घरों से बाहर नही निकल रहे थे।इसलिए दुकानों पर ग्राहक नही आ रहे थे।फिर दुकान खोलने से क्या फायदा।
वह धीरे धीरे

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