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निशा - भाग-2


मुजे रातको निंदमे चलने और बोलने की आदत है ये बात सब दोस्त जानते है। शुबह उठकर निशांतने पुछा, ”निंदमे चलते--चलते सामने दीवाल के पास अकेला- अकेला क्या बोल रहा था? बस यही सवालने मेरे मन के सभी दरवाजे खोल दिये मगर निशा कोई और दोस्तोसे ना मिले उस कारण मैने बात को हंस कर टाल दिया। पूरा दिन युही गुजर गया रातको सभी दोस्तोने पासके गांव में रात गुजारनेका प्लान किया था। मैंने खराब तबीयतका बहाना बाना के साथमे नहीं आने को कहा। और रातको उसी समय,छत की उसी जगह पर जाके बैठा, पर आज मे अकेला था मे निशाकी राह देखता रहा पर बहोत देर तक निशा नहीं आई और निराश होकर सोने चला गया, थोड़ी देर मे पीछे से एक आवाज़ आई, “आकाशजी”,पीछे मुड़के देखा तो निशा वहाँ पे बैठी थी। वो कहासे आई वो सोचा ही नहीं क्योंकि उसके आनेकी खुशी मे सब कुछ भूल ही गया था। ऐसे ही हम दोनों हर रात मिलते रहे, मेरे और निशा के बीच दोस्ती गहरी हो गई।पर ऐसा कब तक ?? हमको तो अब कुछ दिनो मे आगेका सफर तय करनाथा।पर मेरा निशा के प्रति वो आकर्षण मुजे भाणगढ़ और धर्मशाला छोडने ही नहीं देते थे।वो हर रोज आके अपनी दु:खभरी दास्तान सुनातिथी और हम पूरी रात ढेर सारी बाते करते,मे कब सो जाता और वो कब निकाल जाती पताही नहीं चलता था। एक रात फिरसे मुजे उसके बारे मे जाननेकी तमन्ना हुई।मैंने पूछा तुम कहा रहेती हो ? तुम्हारा घर कहापे है?अभी तुम्हारा पति कहा पे है?’” उसने उंगली आगे करके कहा ,”मेरा घर इस धर्मशालाके पीछे है।“ मुजे रातके अंधरेमे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।मैंने उसको पूछा ,”शुबह तुम क्या करती हो? क्या हम सुबह को नहीं मिल शकते ?”ऐसा पूछते ही वो अचानक रोने लगी और कहा, ”हमारी दुनिया अलग है।“ उसके ऐसा बोलने से मेरा दिमाग फिरसे चकरा गया।मुजे एक सिगरेट की ज़रूरत थी,मे सिगरेट लेने नीचे गया वापस आया तो निशा गायब थी।पता नहीं कहा चली गई?मे क्या कर रहा था मुजे पता हि नहि चल रहा था क्यू एक अंजान नए बने हुए दोस्त की दोस्तीमे बहेका जा रहा था?मेरी मंगनि हो गई थी वो भी भूल गया था। निशा को देखतेही मेरे मनमे कुछ सैलाब सा शुरू हो जाता था। दुसेरे दिन सुबह मैंने निशाके घर जाने का फैसला किया,धर्मशाला के पीछे एक बहोत पुराना दो छोटे कमरे वाला घर था।घर के अंदर कुछ पुराना समान बिखरा हुआ पड़ा था।घर का पूरा माहोल बहोत डरावना लगता था मानो कई सालो तक घरमे कोई नहीं रहेता हो।एक कमरे मे एक बूढ़ा आदमी काली चादर ओढ़े हुए लकडीकी खुरशी पे बैठा था,मे उसके पास गया ,मेंने पूछा ,”ये घर किसका है ,आप कौन है,और निशा ...” निशा का नाम सुनते ही वो मुजपे भड़क गया और गुस्से से बोला ,”निशा नहीं है, रात को ही आती है,चले जाओ यहा से “। मुजे थोड़ा डर लगा और मे बाहर निकला,वहा मेरी नजर सामनेकी दीवालपे टिंगी दो तस्वीर पे पड़ी एक तस्वीर कुछ धुंधली थी उसमे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था मगर निचे नाम लिखा था, “स्व रविशंकर शास्त्री” और दूसरी तस्वीर निशा की थी। अब पक्का मालूम हो गया था के वो निशा का ही घर था।पर वो बूढ़ा आदमी कौन था?? मे निराश होके वापस धर्मशाला आया,और भवानीसे पूछा, “पीछे वाले घरमे कौन रहेता है?” वो मेरे पे हँसने लगा और कहा, ”छोरे बावरा हो गया है के? सुबह-सुबह देशी ताड़ी नहीं पी रखिना ?पीछे कोई घर न होवे। मे वहा हक्का बक्का मूरत बनके खड़ा रहे गया ,पूरा बदन पसीनेसे लत-पत हो गया और क्या करूँ कुछ पता ही नहीं चल रहा था।और मैंने पूछा, ‘ ये रविशंकर शास्त्री कौन है?और निश....??मेरी बात काटते भवानी बोला, ”वो इस धर्मशालाके स्थापक थे और उसके मारे हुए 18 साल हो गए है।और छोरो बहोत दिन हो गए है अपनी खैरियत चाहतेहो तो अपना बोरियाँ बिस्तरा बांधो और निकलो यहा से।“ उसकी आवाज़ मे डर और गुस्सा था।बहोत सारी बहेश के बाद उसने बोला की यह लो सामने वाले कमरेकी चाबी और जानलो जो कुछ जानना चाहते हो,पर बादमे मुजे कुछ नही कहेना। मैंने चाबी ली और कमरे की और बढ़ा मानो मेरा मन यह ना करने को कह रहा था मगर मैंने ताला खोला और कमरेके अंदर गया।कमरेमे चारो और अंधेरा कुछ पुरानी अलमारी और दो पलंग और कुछ कपड़े बिखरे पड़े हे सभी जगह धूल धूल।मैंने मोबाइल की लाइट जलायी।एक अलमारीमे कुछ सामान, कुछ तस्वीरे और कुछ चिट्ठियाँ थी।दो तस्वीरे सबसे नीचे पड़ी थी।एक तस्वीर देखते मे सुन रह गया।वो वही तस्वीर जो उस घरमे लगी थी जो धुंधली थी किसी और की नहीं स्व.रवि शंकर शास्त्रीकी वो बुढे आदमिकी थी,और दूसरी तस्वीर देखितों पैरो तले ज़मीन खिसक गई,मेरे हाथ काँपने लगे,मे पूरा डर गया तस्वीर को लेकर मे सीधा बाहर गया और सभी दोस्तोकों और भावनिकों बुलाया।और इतने दिनोके सभी बात विस्तार से कही।वो तस्वीर थी “स्व.निशा रविशंकर शास्त्रीकी”,सब लोग डरे हुए थे और हमने जगह छोडके वापस घर जाने का फैसला किया।पर आज की रात यहा बितानीथी,पहेले हम सब पीछे का घर देखने गए।पीछे देखा तो कोई घर ही नहीं सिर्फ टूटा हुआ खंडर।अभी सब लोग सदमे मे आ गये। मैंने ठान लिया है दोस्तों आज की रात निशा से जरूर मिलूँगा। मैंने बिना डरे कहा “अरे भाई खतरा है” सब ने माना किया। जो होगा वो देखा जाएगा अगर उसे कुछ करना होता तो अब तक तो मुजे मारना देती,मैंने जवाब दिया ।आज अमावस है छोरे ,वो आज के दिन का ही इंतज़ार कर रही थी।आज तू जाएगा तो तू मरा समज,भवानीने अब अपनी चूपी तोड़ते हुए कहा। मगर मे कहा मान ने वाला था मैंने जिद पकड़ी। तुजे जाना है तो अकेला मत जा हम साथ रहेंगे। थोड़ी लकड़ी पेट्रोल या केरोसिन ले आओ। तू आगे जाना हम सब पीछे छुपे रहेगे।पर अपने हाथ मे लाइटर रखना और थोड़ी- थोड़ी देरमे जलाते बुझाते रहेना।भवानीने ऐसा करने को बोला। उस रातको छत पे मे वही छोटी दीवाल के पास नीचे बैठा।मगर अबतक निशा आयी नहीं थी,बैठे बैठे मेरी आँख लग गई और अचानक आँख खुली तो पास मे निशा को बैठे पाया।निशा आज हर रोज से ज्यादा खूबसूरत और तेजस्वी लग रहीथी,अब सच जानने के बाद मन मे बहोत डर लग रहा था, मे कुछ भी कहूँ उससे पहेले वो बोली, ”चलो आकाश यहा से कई दूर चले जाते है।“ डरके मारे तो मेरी तो साँसे रुक गई थी,फिरभि मैंने हिम्मत करके उसको बोला, “तुमने ही कहा था ना की हमारी दुनिया अलग है, मे तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हु।मैंने उसको उसकी तस्वीर दिखाई अचानक उसकी भोली सूरत एक शैतान की तरह बन रही थी और कातिल मुस्कान दे रही थी।अब तक तो मुजे पता चल ही गया था की वो एक आत्मा और मे एक सामान्य इंसान हु।उसका रूप अब पूरा बदल गया था और डरावनी आवाज मे बोली ,”मेरी दुनियामे आ जाओ सब कुछ मिलेगा,तू हा कहेगा तो ठीक वरना मूजे तुजको मारना पड़ेगा, कितने सालो से यह दिनका इंतज़ार कर रही थी।“ मे हां बोलूँ या ना बोलूँ मेरी मौत तो अब तय ही थी।पर अचानक वो लाइटर वाली बात याद आयी और मैंने लाइटर जालाया।तो वो थोड़े कदम दूर गई और उसे यह सब करने का कारण पूछा,उसने कहा की इसी जगहपे मेरे पती के दोस्तोने मेरा बलात्कार किया था और मुजे यहा जिंदा जलाया था बादमे मेरे पिता को भी मार डाला था। इसलिए यहा रातको छतपे आते सभी लोगको मे मार देती है।आज अमावस है मेरे बदलेका का दिन है।सुबह के साड़े चार बज रहेथे।मेरे पास सिर्फ सूर्योदय तक ही का वक़्त था। मैंने बातोमे उसे उलजाकर छुपे हुए दोस्तो को बुलाया। उनके पास निशाकी सभी पुरानी चिजे,कपड़े,चिठ्ठिया,पेट्रोल और कुछ सामान था। मैंने फिरसे लाइटर जलाके सिगरेट जलायी।आग से मानो वो डरती थी।वो जहाँ खड़ी थी वहा पेट्रोल से उसके आस पास गोल बनाया और उसकी सारी चिजे अंदर डालके जला दी।पता नहि था के ये नुसख़ा काम आएगा के नहीं पर सब ने हिम्मत करके ऐसा किया।और सूरज की थोड़ी किरनें छत पर पडने लगी। “तुम लोगोने क्या सोचा मे चली जाउंगी,सवेरा होना मेरी हद है इसलिए तुम सब बच गए मे वापस आऊँगी।“ इतना कहते ही निशा गायब हम सब ने राहत की सांस ली। भवानीने कहा की त्तुम सचमे नसीबवाले हो यहापे पहेले निशाने पाँच लोगोकों मारा है इसलिए तो उसने छत पे ना जाने का बोर्ड लगाया था। सब निकलो यहा से,और मे भी यह जगा छोड़के भाग रहा हु। हमने नीचे कमरेमे जाकर अपना सारा सामान समेटा और कोई दिन भाणगढ़ और अलवर ना आनेका फैसला किया।इतने दिनो से मे एक आत्माके साथ बांते कर रहा था और मुजे उसके साथ प्रेम भी हो गया था, मुजे कभी भी पाता नहीं चला के वो आत्मा थी और इसके विशेष रूपसे वो मेरी मृत्यु भी थी। वो रोज रात की निशाके साथ की मुलाकाते अभीभी याद आती है।मेरे जीवन के उस समयको मे “आत्मालाप” कहुगा ।

कुछ सालों बाद ...
अरे गाड़ी रोक कोई घर या धर्मशाला लगती है आज की रात यह रुक जाते है, दो गाडिया रुकी और एक लड़का उतरकर धर्मशाला के अंदर गया,और एक आदमी जो कुर्सी पे बैठा था उसको कहा एक रात रुकने के लिए कमरे चाहिए मिलगे ? कितने लोग हो वो आदमी बोला । जी नौ लोग लड़के ने जवाब दिया
हा मिल जाएंगे कमरे अंदर बुला लो सब को।
बेटी निशाशा.... साहब लोग को कमरे दिखादो............


दोस्तो प्रतिभाव जरूर दे अच्छा या बुरा ।
जल्द ही वापस आऊंगा नई कहानि को लेकर
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