सुहाग, सिन्दूर और प्रेम - (अन्तिम भाग) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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सुहाग, सिन्दूर और प्रेम - (अन्तिम भाग)

वसुधा एक शाम सरगम के घर पहुँची,वसुधा को देखकर सरगम बोली.....
दीदी! लगता है आप तक भी खब़र पहुँच गई....
हाँ! मुझे पता चल गया,काँलोनी की औरतों ने मुझे सब बता दिया है,वसुधा बोली।।
तो बताओ वसुधा! अब क्या रास्ता निकाले इस समस्या का?दयमंती ने पूछा।।
मेरे ख्याल से तो बुआ जी! दोनों को साथ साथ एक ही घर में रहना चाहिए,अगर दोनों साथ में नहीं रहेंगें तो काँलोनी वाले कुछ ना कुछ कहते रहेगें और बेचारी सरगम मानसिक तनाव झेलती रहेगी,आँफिस में भी तो लोंग कई तरह की बातें करते ही होगें,क्यों सरगम करते हैं ना फालतू की बातें? वसुधा ने सरगम से पूछा।।
हाँ! दीदी! करते तो हैं,सरगम बोली।।
सरगम! समाज ऐसा ही है,कुछ ना करो तो लोंग बातें करते हैं और अगर कुछ कर दिया तो फिर तो बातें करेगें ही,लोंग अपनी गिरेबाँ में झाँककर नहीं देखते लेकिन दूसरे की गिरेवाँ पकड़ने को हमेशा तैयार रहतें हैं,यही हमारी दुनिया है,यही हमारा समाज है और हम इस समाज को छोड़ भी नहीं सकते,वसुधा बोली।।
लेकिन दीदी! ये समाज ऐसा क्यों है?उस दिन इतनी बातें कहीं गईं मेरे बारें में कि कमलेश्वर ने इतना बड़ा कदम उठा लिया,सरगम बोली।।
हमने समाज को स्वयं ऐसा बना रखा है,अपनी सोच को संकुचित कर रखा है और सबसे बड़ी बात यहाँ पर ये है कि एक औरत ही दूसरी औरत को नीचे गिराने से पीछे नहीं हटती,तो पुरूष क्यों पीछे रहे औरत को नीचा दिखाने में?वसुधा बोली।।
दीदी! शायद आप सही कहतीं हैं,सरगम बोली।।
तो अब क्या सोचा तुमने?वसुधा ने पूछा।।
दीदी! अभी तो कुछ नहीं सोचा,सरगम बोली।।
तुझे नहीं लगता कि तू उसके संग अन्याय कर रही है,उसने तुझे डूबने से बचाया और तूने ही उसे भँवर की ओर धकेल दिया,वसुधा बोली।।
दीदी! मेरे दिल में अभी भी संयम ही बसते हैं,मैं कैसे अचानक से किसी परपुरुष को अपना पति मान लूँ? सरगम बोली।।
तेरी बात बिल्कुल सही है,कौन कहता है कि तू उसे अपने दिल में जगह दे दे,उस ने तेरी माँग में सिन्दूर डाला है तो उस सिन्दूर की खातिर तुम दोनों एक घर में तो रह ही सकते हो,लोगों के मुँह बंद करने के लिए,वसुधा बोली।।
दीदी! एक ही घर में कैसे रह सकते हैं हम दोनों?मेरा दिल गवारा नहीं करता,सरगम बोली।।
अपने दिल को समझा सरगम! रहने लग एक घर में उसके साथ,वसुधा बोली।।
लेकिन दीदी! कैसे समझाऊँ मन को? सरगम बोली।।
एक बात बोलूँ सरगम!दयमंती बोली।।
हाँ! कहिए! सरगम ने कहा।।
तुझे याद है ना कि संयम ने अपनी अन्तिम साँसें लेते वक्त क्या कहा था? यही कि उसके जाने के बाद सरगम की माँग सूनी नहीं रहनी चाहिए,उसकी दूसरी शादी करवा देना,तुझे याद है या नहीं,दयमंती बुआ बोलीं।।
सब याद है,सरगम बोली।।
तो तू उसकी ही अन्तिम इच्छा का मान रख लें,दयमंती बुआ बोलीं।।
सरगम! दो दिन बाद इतवार है! उस दिन तुम्हारा कमलेश्वर के घर में गृहप्रवेश होगा,मैं तब तक तेरे लिए श्रृंगार का सामान खरीदती हूँ और जोशी जी से कह के उस दिन पूरी काँलोनी का खाना-पीना कर देगें,सभी की शिकायतें दूर हो जाएंगीं,अगर तू कमलेश्वर के घर में रहने लगेगीं तो सबका मुँह अपनेआप बंद हो जाएगा और सबसे बड़ी बात ये है कि तुझे तेरा पुराना घर भी वापस मिल जाएगा,वसुधा बोली।।
लेकिन दीदी! इतनी जल्दी ये सब,सरगम बोली।।
ये काम जितनी जल्दी हो जाए तो उतना अच्छा,वसुधा बोली।।
तुमने हमारी उलझन दूर कर दी,दयमंती बुआ बोलीं।।
ये तो मेरा फर्ज था बुआ जी,वसुधा बोली।।
सच,तूने हर कदम पर ,हर मुश्किल घड़ी में सरगम का साथ दिया,भगवान तुझे हमेशा खुश रखें,दयमंती बुआ बोली।।
अच्छा तो अब मैं चलती हूँ और इतना कहकर वसुधा चली गई।।
वसुधा के जाते ही सरगम ,बुआ से बोली....
मैं और कमलेश्वर एक घर में कैसें रहेगें बुआ?
तू चिन्ता मत कर ,सब अच्छा ही होगा,दयमंती बोली।।
चिन्ता कैसें ना करूँ? वो पहले मेरा दोस्त था तो मैं उससे लड़ लेती थी,झगड़ लेती थी लेकिन अब वो रिश्ता बदल गया है,समाज की नजरों में अब वो मेरा पति है,जब हम एक ही घर में रहने लगेंगें तो मैं कैसें उससे नज़रें मिला पाया करूँगीं? अभी तो हम दूर दूर रहते हैं तो कोई बात नहीं लेकिन हर घड़ी हर पल एक ही छत के नीचें रहना,कुछ अच्छा नहीं लग रहा बुआ जी! सरगम बोली।।
तू इतना क्यों डरती है?वो पहले तेरा दोस्त है और दोस्त हर मुश्किल घड़ी में केवल साथ ही निभाते हैं,दयमंती बोली।।
मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा ,सरगम बोली।।
और तू समझ ही मत ,बस सब भगवान के भरोसे छोड़़,खाना खा और चादर तान कर सो जा,दयमंती बोली।।
शायद आप सही कहतीं है,तो चलिए फिर खाना खाते हैं,इतना कहकर सरगम खाना परोसने रसोई में चली गई।।
इतवार का दिन भी आ पहुँचा,वसुधा और उनके पति ने सभी तैयारियांँ कर ली,शाम के समय सरगम का गृहप्रवेश होगा फिर उसके बाद सबका डिनर,डिनर का आयोजन कमलेश्वर के घर के पास ही निर्धारित किया गया,जोशी जी सुबह से काम में लग गए,हलवाइयों को हिदायत दी कि खाना ऐसा बनना चाहिए कि लोग ऊँगलियाँ चाटते रह जाएं,
घर के सामने वाले मैदान में टेंट लगाकर कुर्सियाँ और मेज डाल दी गईं कि जो भी आता जाएं खाना खाता जाएं,खाना परोसने के लिए कई लड़के भी लगा दिए गए।।
और इधर वसुधा ने अपनी कामवाली बाई से दिनभर कमलेश्वर के घर की सफाई करवाई,फिर द्वार पर चौक पूरा,दरवाजे पर आम की पत्तियों और गेंदा के फूलों से बने तोरण को लगाया दरवाजे के भीतर चावल से भरा कलश रखा,जिसे पाँव से गिराकर सरगम भीतर प्रवेश करेगी,फिर कमलेश्वर से बोली.....
तैयारी रखना दूल्हे राजा! बस दुल्हन को लाने जा रही हूंँ,बस जरा तैयार हो जाऊँ,क्योंकि मैं तो दोनों ओर से हूँ,दूल्हे की तरफ से भी और दुल्हन की तरफ से भी।।
वो तो ठीक है भाभी लेकिन सरगम इस रिश्ते से बिल्कुल खुश नहीं है,ये रिश्ता उसके लिए जबरदस्ती का रिश्ता है,गैर मन से वो ये सब कर रही है,कमलेश्वर बोला।।
बस वही तो मैने ,आधा काम कर दिया है बाकी़ का काम तुम्हें करना है बर्खुरदार! तुम्हें उसके दिल को जीतना होगा,उसके मन में अपनी जगह बनानी होगी,आगें की राहें आसान तो नहीं है लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि तुम कर लोगें क्योंकि तुम उससे सच्चा प्यार करते हो,वसुधा बोली।।
शायद आप ठीक कहतीं हैं,काश ऐसा हो जाए और वो मुझसे नफरत करना छोड़ दे,कमलेश्वर बोला।।
ऐसा ही होगा वत्स! आप अपने लक्ष्य में अवश्य सफल होगें और इतना कहकर वसुधा खिलखिला उठी।।
भाभी! काश ,आपकी तरह हर औरत दूसरी औरत के बारें में भला सोचने लगें तो दुनिया की कोई भी औरत कभी भी दुखी ना हो,कमलेश्वर बोला।।
लेकिन औरत ही तो औरत की दुश्मन होती है,वसुधा बोली।।
इसलिए तो हमारे समाज में औरतों की ऐसी दशा है,कमलेश्वर बोला।।
सही कहते हो कमल,वसुधा बोली।।
चलिए मैं बाजार से कुछ चादर और गद्दे ले आता हूँ,मेरे पास अभी इतने गद्दे नहीं है फिर सब आ जाऐगें तो काम नहीं चल पाएगा,कमलेश्वर बोला।।
ठीक है,तुम गद्दे ले आओ,कल परसों तक मैं सरगम का सामान फिर से इस घर में शिफ्ट करवा दूँगीं,क्योंकि तुम्हारे पास तो अभी ना बरतन है और ना जरूरत का कुछ सामान ,तब तक मेरे घर से ही काम चलता रहेगा,वसुधा बोली।।
भाभी ! आप कितनी अच्छी हैं,कितना ख्याल रखतीं हैं आप सरगम का,कमलेश्वर बोला।।
सरगम तो मेरी बच्ची की तरह ही है,कम उम्र में शादी हो गई,संयम तो उम्र में उससे काफी बड़ा था,वो मुझे दीदी कहता था इसलिए सरगम भी दीदी कहने लगी ,अब तुम सरगम से जुड़ गए हो तो तुम्हारा भी ख्याल रखूँगी,वसुधा बोली।।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका,मैं भी आपको दीदी ही कहूँगा,सरगम भी दीदी कहती है इसलिए,कमलेश्वर बोला।।
ठीक है तो मैं अब जाती हूँ और तुम भी अपने काम निपटा लो और याद रखना शाम को वो नया कुरता पहन लेना जो मैं तुम्हारे लिए लाई थी,वसुधा जाते हुए बोली।।
ठीक है दीदी! मुस्कुराते हुए कमलेश्वर बोला।।
वसुधा शाम को सरगम के घर गई,वो ही उसके लिए नई लाल साड़ी और लाल चूनर लाई थी,साथ में लाल चूडिय़ांँ,सिन्दूरदानी ,महावर और नए बिछुए भी लाई थी,वसुधा ने ही सरगम का श्रृंगार किया,जब सरगम तैयार हुई तो उसे वसुधा ने उसे काला टीका लगा दिया।।
फिर वसुधा बोली.....
चल मेरे साथ ,तेरी आज विदा करके आती हूँ।।
वसुधा,सबको लेकर कमलेश्वर के द्वार पर पहुँची,लाल सुहाग के जोड़े में वसुधा बहुत खूबसूरत लग रही थी,कमलेश्वर ने पहली बार उसे इस रूप में देखा था,उसने देखा तो बस देखता ही रह गया,वसुधा ने काँलोनी की और भी औरतों को बुलाया था,वें सब भी वसुधा और सरगम के पीछे हो लीं,वसुधा ने सरगम से कहा कि कलश को पाँव से गिराकर घर के भीतर प्रवेश करो,सरगम ने ऐसा ही किया।।
फिर वसुधा ने सरगम को कमरें में ले जाकर चटाई पर बैठा दिया और बाहर बैठक में आकर सबका चाय नाश्ता करवाने लगी,बुआ और बच्चे भी सबके साथ बाहर बैठक में ही थे,सरगम उस कमरे को बड़े गौर से देखने लगी,ये वही कमरा था जो पहले उसका बेडरूम हुआ करता था लेकिन अब बिल्कुल खाली पड़ा है,इसी कमरें में ही तो उसने संयम के साथ अपनी तमाम रातें बिताईं थी ,वो उसके साथ बिताएं अपने अंतरंग पलों को याद करने लगी,वो रातभर चिन्ता के मारे नहीं सोई थी इसलिए उसकी आँख लग गई और वो दिवार से टिके टिके ही झपकी लेने लगी।।
तभी कमलेश्वर अपना बटुआ लेने उस कमरें में आया जो कि उसी कमरें की अलमारी में रखा हुआ था,उसकी नज़र सरगम पर पड़ी,सरगम सोते हुए बहुत ही प्यारी लग रही थी,उसकी खूबसूरती देखते ही बनती थी और कमलेश्वर उसे एकटक निहारता ही रह गया।।
तभी वसुधा ,सरगम को नाश्ता देने आई और जब उसने कमलेश्वर को वहाँ देखा तो उल्टे पैर लौट गई,कमलेश्वर उसे देख ही रहा था कि सरगम का सिर दिवार से लुढ़क गया और उसकी आँख खुल गई,उसने कमलेश्वर को अपने सामने देखा तो पलकें झुका लीं।।
वो तो कुछ नहीं बोली लेकिन कमलेश्वर ही माहौल की चुप्पी तोड़ते हुए बोला.....
मैं तकिया ले आता हूँ,तुम आराम से उस पर सिर रखकर सो जाओ।।
इसकी कोई जरुरत नहीं है,सरगम ने शुष्कतापूर्ण उत्तर दिया।।
फिर कमलेश्वर भी कुछ नहीं बोला,अपना बटुआ उठाया और बाहर चला गया....
रात होने को थी,सब काँलोनी वाले खा पीकर चले गए थे,फिर बैठक में जोशी जी और कमलेश्वर ने खाना खाया और इधर सरगम,वसुधा बुआ और बच्चों ने,वसुधा और बुआ ने सबके गद्दे जमीन पर बिछा दिए कमलेश्वर अपना बिस्तर बैठक में लगाकर लेट गया और फिर सब दिनभर के थके थे,आज सबका तनाव भी कुछ कम था इसलिए सबको आसानी से नींद आ गई।।
सुबह सबसे पहले सरगम उठी और वो जैसे ही नहाकर बाहर निकली तो तब तक कमलेश्वर भी जाग गया था,उसने सरगम को देखा तो बोला......
मैं तो बाहर होटल में ही खाता हूँ इसलिए तुम्हें तो यहाँ सुबह की चाय भी नहीं मिल सकती।।
कोई बात नहीं,सरगम बोली।।
लेकिन बच्चे तो दिनभर खाने को माँगेंगे,कमलेश्वर बोला।।
मैं सब कर लूँगी,तुम चिन्ता मत करो,सरगम बोली।।
कुछ देर में बुआ भी जाग गईं,तब तक वसुधा सबके लिए थरमस में चाय भरकर और गरमागरम आलू के पराँठे,हरी चटनी के संग ले आई,फिर बोली....
ये रहें तुम दोनों के टिफिन,आँफिस जाते हुए लेते जाना,एक दो दिन में तुम्हारी गृहस्थी इस घर में आ जाएंगी,तब तक मेरे घर से काम चलता रहेगा,सरगम! अपने घर की चाबी देती जाना,मैं सब सामान मँगवा लूँगीं....
वसुधा जैसे ही जाने लगी तो पलटकर दोनों से बोली....
और हाँ ! तुम दोनों के बीच जो भी मनमुटाव हो लेकिन आँफिस दोनों साथ में ही जाना,क्योंकि दुनिया की नज़र में अब तुम दोनों पति-पत्नी हो,कैंटीन में भी साथ में खाना खाना,भले ही एकदूसरे से चाहे बात ना करो,किसी को कुछ भी बोलने का मौका मत देना और इतना कहकर वसुधा चली गई।।
दोनों साथ में आँफिस गए और साथ में ही खाना खाया लेकिन बात नहीं की,एक-दो दिन में ही वसुधा ने एक दो मजदूर लगवा कर सारा सामान पुराने घर से मंगवा कर शिफ्ट भी करवा दिया,अब सरगम को वो अपना घर लगा रहा था बिल्कुल पहले जैसा।।
बुआ जी ने दोनों बच्चों को समझाया कि अब ये तुम्हारे पापा हैं,इन्हें पापा ही कहा करो,कच्ची उम्र के बच्चे इस बात को फौरन समझ गए क्योंकि कमलेश्वर उन्हें प्यार भी तो करता था,उनका कितना ख्याल रखता था और फिर बच्चे प्यार की भाषा जल्दी समझ जाते हैं।।
अभी कमलेश्वर ने अपने घर में नहीं बताया कि उसे सरगम मिल गई है और उसके साथ इतना कुछ हो चुका था और कौन से हालातों में उसे उसकी माँग भरनी पड़ी,कमलेश्वर ने सोचा तो कि घर में बता दे लेकिन फिर सोचा कि जब उसे सरगम दिल से स्वीकार कर लेगी तब बताएगा सबको कि उसे सरगम मिल गई है और उससे उसने शादी कर ली है।।
लेकिन सरगम ने अपने मामा दिनेश और मामी कनकलता को चिट्ठी लिखकर सब बता दिया और कनकलता,दिनेश को ये बहुत अच्छा लगा कि अब सरगम अकेली नहीं है उसका हाथ कमलेश्वर ने थाम लिया है।।
अब सामान पूरी तरह से लग चुका था इसलिए सरगम ने वसुधा को मना कर दिया कि अब आप तकलीफ़ ना उठाएं,मैं सब कर लिया करूँगीं,फिर दूसरे दिन सरगम उठी,नहाकर रसोई में चाय बनाने गई,तब तक दयमंती भी जाग उठी थी,चाय बनाकर वो बुआ के पास लाकर बोली....
बुआ! ये रही आपकी चाय और ये वाली चाय अपने लाड़ले को दे दीजिए।।
तू ही क्यों नहीं दे आती उसे अच्छा लगेगा,दयमंती बोली।।
मैं क्यों जाऊँ उसे चाय देने? सरगम बोली।।
अरे,दे आ ना,जिद़ क्यों करती है? दयमंती बोली।।
ठीक है!आप कहती है इसलिए जा रही हूँ उसे चाय देने और सरगम चाय लेकर कमलेश्वर के पास पहुँचकर बोली....
ये लो तुम्हारी चाय,पी लो।।
कमलेश्वर बोला....
तुम इस हरी साड़ी में अच्छी लग रही हो,तुम्हें याद है एक हरी फ्राँक मैं भी बाबूजी के साथ लेकर आया था तुम्हारे लिए,तुम्हें हरा रंग बहुत पसंद है ना!
चाय पीने को कहा है तारीफ करने को नहीं,इतना कहकर सरगम चली गई....
और कमलेश्वर मुस्कुराते हुए बोला....
एक ना एक दिन तुम्हारा दिल तो मैं जीतकर ही रहूँगा।।
सरगम ने नाश्ता बना दिया,तब तक कमल नहाकर आ चुका था और उसे परोसकर नाश्ता दे आई,फिर उसके पास टिफिन रखकर बोली....
ये लो तुम्हारा लंचबाँक्स,रख लो।।
तुम अब अलग अलग डब्बा मत पैक किया करो,शाम को मैं थोड़ा बड़ा सा लंचबाँक्स ले आऊँगा,एक साथ उसमें ही दोनों का पैक कर लिया करो,वैसे ही खाया करेंगें जैसे स्कूल में खाते थे,कमलेश्वर बोला।।
कमलेश्वर की बात सुनकर फिर सरगम कुछ ना बोली....
शाम को कमलेश्वर एक नया लंचबॉक्स ले आया और सरगम को थमाते हुए बोला....
ये लो इसमे दोपहर का खाना पैक किया करों।।
दोनों का खाना अब एक साथ एक ही डिब्बे में पैक होता और दोनों साथ बैठकर ही खाते ,आपस में बिना बात करें।।
ऐसे ही दिन बीत रहे थे ऐसे पाँच-छः महीने और बीत गए,दशहरा आया,कमल ने बच्चों के संग दशहरा मनाया,घर के लिए चिट्ठी लिख दी कि छुट्टी नहीं मिल रही है,फिर करवाचौथ भी आया,वसुधा ने सरगम से कहा....
बहन जी! व्रत रखना,क्योंकि अब तुम्हारी माँग सूनी नही है।।
बुआ और वसुधा के कहने पर सरगम ने व्रत रखा और पूरा श्रृंगार भी किया,बुआ ने बच्चों को सम्भाल लिया था और छत पर जाकर वसुधा और सरगम दोनों ने पूजा की साथ में वसुधा के पति जोशी जी और कमलेश्वर भी छत पर थे,चाँद निकला सरगम ने छलनी से चाँद देखा फिर कमलेश्वर की छवि को देखा,उसकी आरती उतारी,फिर वसुधा ने कमल से कहा कि.....
सरगम को कुछ मीठा खिलाओ और उसे जल पिलाकर ,उसका व्रत पूरा करो।।
कमलेश्वर ने ऐसा ही किया जब विधिवत पूजा करके सरगम, कमलेश्वर के चरण स्पर्श करने को हुई तो कमलेश्वर पीछे हट गया....
वसुधा ने पूछा....
क्या हुआ कमल पीछे क्यों हटें?
दीदी! ये तो मुझे अब अपना दोस्त भी नहीं मानती,पति तो दूर की बात है,जब इसके दिल में मेरे लिए भाव जाग जाएगें तब चरण स्पर्श करवाऊँगा,क्योंकि बिना भावों के ना तो आदर-सम्मान होता है और ना ही चरण-स्पर्श।।
ये सुनकर फिर किसी ने कुछ नहीं कहा और सब नीचे चले आएं,सबने खाना खाया फिर अपने अपने में बिस्तर पर जा लेटे।।
लेकिन सरगम रात को सो ना सकी,उसे कमल की बात बहुत ज्यादा चुभ गई थीं,उसने सोचा सच ही तो कहा कमल ने.....
उसने मेरे सम्मान की खातिर इतना बड़ा कदम उठा लिया,जब कि मैं विधवा थी,मेरे दो बच्चे भी थे,उसे इस बात से कोई भी फर्क नहीं पड़ा,उसके दिल में मेरे लिए जो जगह बचपन में थी वो अब भी है,उसे फरक नहीं पड़ा कि मैं किसी की ब्याहता थी,
वो सच में एक देवता ही तो है,मेरे बच्चों ने उसे कितनी जल्दी स्वीकार लिया उसे पापा कहते हैं,जब वो मेरे बच्चों का पापा बन सकता है तो क्या मैं अपने बच्चों की खातिर उसकी पत्नी नहीं बन सकती?ऐसा कौन सा अहम है मुझमे जो आड़े आ रहा है और मुझे ऐसा करने से रोक रहा है,ये सोचते सोचते सरगम कब सो गई उसे पता ही नहीं चला?
एक शनिवार की शाम, वसुधा बाजार चली गई कुछ सामान खरीदने, बच्चों को बुआ के पास छोड़ गई ,बोली फौरन लौट आएगी,कमलेश्वर भी घर पर था और वो बच्चों के ही साथ खेल रहा था,तभी बुआ रसोई में कुछ काम करने लगी,सोचा सरगम को आने में समय लग जाएगा,मैं तब तक सब्जी वगैरह काटकर रख देती हूँ।।
इधर कमलेश्वर ने भी ध्यान नहीं दिया वो पुल्कित के साथ खेलने में ब्यस्त था तब तक हर्षित अकेले ही छत पर जाने वाली सीढ़ियों पर चढ़ने लगा और वो स्वयं को साध नहीं पाया क्योंकि छोटा था,उसके हाथ से सीढ़ी की पकड़ छूट गई और वो धड़धड़ाते हुए नीचे आ पहुँचा,आवाज सुनकर सब भागें,उसके सिर में चोट आई थी और खून बह रहा था।।
कमलेश्वर ने फौरन ही हर्षित को उठाया और डाक्टर के पास ले भागा,उसकी जान सूख गई थी,डाक्टर ने देखा तो बोला....
कुछ नहीं हुआ मालूम सी चोट है,बच्चों को ये तो ये सब होता रहता है,खून निकल गया तो अच्छा रहा नहीं तो अन्दरुनी चोट का डर बना रहता,उन्होंने पट्टी कर दी और बोले कि.....
ये सिरप है दिन में तीन बार पिलाइए,ये दूसरा सिरप तब पिलाइए जब बुखार आ जाएं क्योंकि बच्चों के साथ ऐसा होने पर अक्सर बुखार की सम्भावना बनी रहती है,कमल ने डाक्टर साहब का धन्यवाद किया और हर्षित को लेकर घर पहुँच गया,तब तक सरगम भी पहुँच चुकी थी और गुस्से में लाल थी वो बोली....
बुआ! ये उठाएगा मेरे बच्चों की जिम्मेदारी,देखा ना थोड़ी देर को घर से बाहर क्या गई? महाशय ने ध्यान नहीं दिया और बच्चा सीढ़ियों से गिर गया।।
अरे,उसके सिर क्यों सारा दोष मढ़ रही है,मैं भी तो थी घर में,दयमंती बोली।।
आपकी तो जैसे उम्र हो चुकी है लेकिन ये देख सकते थे ना,भगवान ने इतनी बड़ी बड़ी आँखें काहे के लिए दी हैं,सरगम गुस्से से बोली।।
अच्छा....अच्छा...मेरी आँखें बड़ी बड़ी है,चलो कम से कम इतना ध्यान तो दिया मुझ पर,धन्यवाद ध्यान देने के लिए,कमलेश्वर बोला।।
इतना सुनते ही बुआ खिलखिलाकर हँस पड़ी तो उन्हें देखकर बच्चे भी हँस पड़े,फिर कमल हँसा,सबको हँसता देख सरगम भी हँस पड़ी....
कुछ देर बाद सरगम बोली....
हँसीं में मत टालो,आइन्दा ऐसा ना हो,
जी! बेग़म साहिबा! जो हुक्म,आपकी इस बात पर गौर फरमाया जाएगा,कमल बोला।।
फिर कमल की बात सुनकर सरगम बोली तो नहीं लेकिन मंद मंद मुस्कुराते हुए रसोई में चली गई।।
ऐसे ही दिन बीत रहे थें,अब सरगम ,कमल से कभी-कभार बात करने लगी थी,उसकी पसंद का खाना भी बनाने लगी थी,एक दिन दोनों मन्दिर गए तब कमल ने सरगम से कहा.....
सरगम! तुम मुझे अपना पति मानो या ना मानो लेकिन मैं तुम्हारा दोस्त पहले था और हमेशा रहूँगा,मैने तुम्हारा हाथ तुम्हारा साथी बनने के लिए थामा ना कि जीवनसाथी बनने के लिए,तुम अपने मन में कोई भी गलतफहमियाँ मत रखना,मेरा इरादा गंदा नहीं था मैं तो बस तुम्हारी मदद करना चाहता था।।
मैं जानती हूँ और इतना कहकर सरगम आगें बढ़ गई।।
फिर एक रात सरगम को जोर का बुखार चढ़ा,बुआ घबरा गई और उतनी ही रात को उन्होंने कमल को जगाकर बताया कि सरगम बुखार से तप रही है,कमल जागकर सरगम के पास पहुँचा,छूकर देखा तो सचमुच बुखार बहुत तेज था,
कमल ने बुआ से कहा कि हर्षित और पुल्कित को आप अपने पास सुला लीजिए,कहीं माँ का बुखार बच्चों को ना लग जाए,मैं सरगम के पास बैठता हूँ और इसके सिर पर ठंडे पानी की पट्टियांँ रखता हूँ,मेरे पास बुखार की गोली पड़ी होगी,मैं इसे खिला देता हूँ,इस वक्त तो डाक्टर भी नहीं मिलेगा,रात के दो बज रहे हैं,सुबह तक इन्तज़ार करना पड़ेगा।।
गोली खाने के बाद सरगम का बुखार थोड़ा कम हुआ और वो सो गई, लेकिन कमल उसके सिरहाने ही बैठा रहा बार बार उसके माथे पर ठंडे पानी की पट्टियांँ रखता रहा,रात भर बिल्कुल भी पलकेँ नहीं झपकाईं उसने, सुबह होते होते सरगम का बुखार फिर तेज होने लगा,उसके चेहरे पर और हाथों में एक दो दाने भी निकल आएं।।
कमल समझ गया कि सरगम को चेचक निकलीं हैं इसलिए इतना तेज बुखार हुआ है लेकिन फिर भी वो डाक्टर को लेकर आया,डाक्टर ने दूर से ही सरगम को देखकर बता दिया कि चिकनपॉक्स ही है,मैं बुखार की दवा दिए दिए देता हूँ और तो बाकि एतिहात बरतनी होगी,संक्रमित रोग है घर के और सदस्यों को भी हो सकता है,बच्चों को भी इन से दूर रखिए।।
डाक्टर का धन्यवाद करते हुए कमल उन्हें बाहर तक छोड़ आया और बुआ से बोल दिया कि आप बच्चों को लेकर दूसरें कमरें में रहिए मैं सरगम की देखभाल करूँगा,कमल ,सरगम की देखभाल में लग गया,नीम के रोज ताजा पत्ते लाता,उन्हें उसके बिस्तर पर रखता,नींम का पानी ही बाथरुम में भर कर रखता उसके नहाने के लिए,अपने हाथों से खाना खिलाता,उसका सिर दबाता,सिर में तेल लगाकर उसके बाल बनाता, और जमीन पर गद्दा बिछाकर उसके ही कमरें में ही सोता,इतना सेवाभाव पाकर सरगम के आँसू बह निकलते,तब कमल पूछता....
रो क्यों रही हो पगली!
सरगम कहती,
तुम मेरी इतनी सेवा जो कर रहे हो,
फिर कमल कहता,
आखिर तुम मेरी दोस्त हो,इतना तो कर ही सकता हूँ तुम्हारे लिए।।
ये सुनकर सरगम निहाल हो जाती,पन्द्रह दिन में सरगम बिल्कुल ठीक हो गई,ये दवा का असर नहीं था हमदर्दी और अपनेपन का असर था जो सरगम ठीक हो गई।।
इन पन्द्रह दिनों में सरगम ने ये जान लिया कि कमल सच में सच्चा साथी है,वो बिल्कुल संयम की ही तरह है,लेकिन उसकी भावनाओं को शब्द नहीं मिले अपनी बात कमल तक पहुँचाने के लिए,कमल ने भी इस बात को महसूस कर लिया था कि सरगम की निगाहें अब उसको प्यारभरी दृष्टि से देखतीं हैं,
बुआ ने सरगम के ठीक होने पर घर में कन्या जिमा दी क्योंकि बड़े बूढ़े ऐसा ही करते थे,किसी को चेचक निकलती थीं तो ऐसा ही किया जाता था।।
दिन बीते,महीने बीते ,ऐसे ही एक साल होने को आया,कमल एक बार बस बीच में अपने घर गया था,उसने सोचा बहुत दिन हो गए हैं वो गाँव नही गया,तो उसने गाँव जाने का सोचा.....
ये बात उसने बुआ और सरगम से भी कही,
दोनों बोलीं कि हाँ! तुम्हें जाना चाहिए और कमल ने दो दिन बाद का रिजर्वेशन करा लिया।।
एक ही ट्रेन थी जो उसके गाँव के पास वाले कस्बे तक जाती थी,वो कस्बे तक ट्रेन से जाता और वहाँ से अपने गाँव जाने के लिए ताँगा पकड़ लेता।।
उस दिन इतवार था,उसे स्टेशन तक छोड़ने जोशी जी गए,बोले स्कूटर में छोड़ आता हूँ,तुम्हारे पास ज्यादा सामान भी तो नहीं है और कमल ,जोशी जी के साथ स्कूटर में बैठकर चला गया,जोशी जी उसे ट्रेन में बिठाकर वापस आ गए।।
ट्रेन को स्टेशन से निकले दो चार घंटे ही बीते होगें कि वसुधा और जोशी जी रेडियो सुन रहें थे,तभी समाचार सुनाई दिया कि कालका एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई है,कई लोगों की जान जा चुकी है,बचावकार्य प्रगति पर है,घायलों को अस्पताल पहुँचाया जा रहा है,मृतकों को भी अस्पताल में रखवाया जा रहा है,हेल्पलाइन नम्बर भी निर्धारित किए गए,कृपया इन टेलीफोन नम्बर पर आप अपने प्रियजनों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।।
ये सुनकर जोशी जी के होश उड़ गए बोले....
ये तो वही ट्रेन है जिस पर कमल गया है और रूट भी वही बताया जा रहा है,हे भगवान! ये क्या हो गया? कैसे बताएं सरगम को....
लेकिन बताना तो पड़ेगा ना! हो सकता है कि कमल एकदम ठीक हो ,हमने तो केवल रेडियो पर ये खबर सुनी है हो सकता है हालात वैसे ना हो जैसे रेडियो पर बताएं जा रहे हैं,वसुधा बोली।।
तो चलो उसे बताकर आते हैं,जोशी जी बोले।।
दोनों लोंग बताने पहुँचे और बड़ी हिम्मत करके ये बात बता पाएं,सरगम वहीं पर चक्कर खाकर गिर पड़ी,वसुधा ने फिर सरगम के चेहरे पर पानी के छींटे मारे ,सरगम को होश आया,वो सोचने लगी एक बार फिर से वही मंजर,अभी तो बड़ी मुश्किल से उबरी थी ,बुआ भी बिलख पड़ी,ना जाने अब क्या होने वाला हैं?ये कहकर उनकी आँखो से आँसू बह निकलें....
तब जोशी जी बोले....
चिन्ता मत करो,मैं टेलीफोन करके पूछता हूँ कि क्या माजरा है? कमल को चार पाँच घंटे से ज्यादा हो चुका है,मुश्किल से चार-पाँच स्टेशन ही निकले थे कि किसी गाँव के पास एक्सीडेंट हो गया ट्रेन का,गाँव का नाम मुझे याद नहीं आ रहा।।
आप जाइए ना जल्दी से पता कीजिए कुछ,वसुधा बोली....
हाँ,जा रहा हूँ,तुम दोनों को सम्भालो और जोशी जी जैसे ही दरवाजे तक पहुँचे तो सामने से कमल आता हुआ दिखाई दिया.....
उसे देखकर जोशी जी का दिमाग चलना बंद हो गया,जोशी जी को ऐसे हतप्रभ सा देखकर कमल ने पूछा....
क्या हुआ भाई साहब? कोई भूत देख लिया क्या?
ऐसा ही समझो,जोशी जी बोले।।
जब सबने कमलेश्वर की आवाज़ सुनी तो दरवाजे के पास भागकर आएं और सरगम जाकर कमल के सीने से लगकर फूट फूटकर रो पड़ी और बोली...
ये कैसा गंदा मज़ाक था?तुमने तो मेरी जान ही निकाल दी॥
मज़ाक! कैसा मज़ाक भाई? जरा मैं भी तो सुनूँ,आखिर चल क्या रहा है यहाँ? कमलेश्वर बोला।।
तब जोशी जी बोले.....
तुम्हारी ट्रेन चार पाँच स्टेशन के बाद दुर्घटनाग्रस्त हो चुकी थी,तुम सही सलामत हो इसलिए हम सब अचरज में हैं,यहाँ तो रोना धोना चल रहा था।।
अच्छा तो ये बात है,अब मैं बताता हूँ कि क्या हुआ था?कमल बोला।।
हाँ! बोलो भाई! कैसे किया तुमने ये चमत्कार?जोशी जी बोले...
वो हुआ यूँ कि आप मुझे ट्रेन में बैठाकर चले गए,ट्रेन चल पड़ी,टी.सी.आया उसने मुझसे टिकट माँगा,मैने जेब टटोली तो टिकट नदारद था,मैने उससे कहा कि टिकट नहीं है तो उसने कहा कि दूसरा बनवा लो,जेब टटोली तो बटुआ भी नदारद था ,याद आया कि आज तो बटुआ अलमारी से उठाया ही नहीं ,शायद टिकट भी उसी में था,चूँकि आप स्टेशन छोड़ गए थे इसलिए रिक्शे का किराया भी नहीं देना पड़ा नहीं तो स्टेशन पर याद आ जाता कि बटुआ घर में छूट गया है,टी.सी.ने घोर बेइज्जती की और बोला कि अगले स्टेशन पर उतर जाना नहीं तो जेल की हवा खानी पड़ेगी।।
मैं अगले स्टेशन पर उतर गया,वहाँ से वापस आने को बस पकड़ी,कोई भी बस वाला बैठाने को तैयार नहीं था क्योंकि किराएं के पैसे नहीं थे,इसलिए तो लौटने में इतनी देर हो गई,फिर एक बस वाले को अपनी सोने की अँगूठी दी तब जाकर उसने बैठाया,तब मैं यहाँ वापस आ पाया।।
ओहो...तो ये बात है और यहाँ हम सबकी साँसें अटकी थीं,जोशी जी बोले।।
तब वसुधा बोली....
सरगम हमें पता चल गया कि तुम कमल को चाहती हो तो क्या ऐसे ही सबके सामने उसके सीने से लिपटी रहोगी,पूरी रात पड़ी है भाई !बातें करने को,
ये सुनकर सरगम शरमाते हुए कमल से दूर जा खड़ी हुई...
फिर वसुधा बोली....
चलिए बुआ जी ! आज आपका हमारे घर में बच्चों सहित न्यौता है,आप हमारे घर ही सोएंगी,खाना बनते ही तुम दोनों के लिए भी पहुँचा दूँगी और जाते जाते वसुधा,बुआ और बच्चों को अपने साथ ले गई।
कमल ने सरगम के पास जाकर पूछा....
तो हमारी बेग़म साहिबा हमारा इतना इन्तजार कर रहीं थीं...
किसने कहा कि मैं तुम्हारा इन्तजार कर रही थी,सरगम बोली।।
मेरे दिल ने,कमल बोला।।
और क्या कहता है तुम्हारा दिल? सरगम ने पूछा।।
कि हमारी बेग़म साहिबा को हमसे प्यार हो गया है,कमल बोला।।
झूठ कहता है तुम्हारा दिल ,सरगम बोली।।
तो फिर मेरी आँखों में आँखें डालकर कहो कि तुम मुझसे प्यार नहीं करती,कमल बोला।।
नहीं..करती..,सरगम शरमाते हुए बोली...
आँखों में आँखें डालकर बोलोगी तभी मानूँगा,कमल बोला।।
सरगम ने कमल की आँखों में आँखों डाली और उससे धीरे से लिपटकर बोली....
हाँ!मैं तुम्हें चाहने लगी हूँ और तुम से अब कभी भी दूर नहीं जाना चाहती,मुझे खुद में समेट लो कमल!
मैं तो कब से यही चाहता हूँ और कमल ने सरगम को अपनी बाँहों में समेट लिया....
उस रात कमल और सरगम ने दिल से एकदूसरे को अपना बना लिया,उनकी प्यार की नैया जिन्दगी रूपी नदी में तैरने लगी,फिर एक साल के बाद सरगम ने एक बेटी को जन्म दिया,कमलेश्वर ने तीनों बच्चों में कभी फर्क नहीं किया और कभी पुल्कित और हर्षित को ये नहीं पता चलने दिया कि वो उनका दूसरा पिता है,कमलेश्वर के परिवार ने भी सरगम को और उसके बच्चों को दिल से अपना लिया।।
आज भी दोनों का दाम्पत्य जीवन खुशहाल है,पुल्कित को अपना ये पुराना घर दे दिया है और हर्षित को नया घर बनवा दिया और बेटी शुभाली भी नौकरी करती है उसे भी ईश्वर की कृपा से अच्छा घर और वर मिल गया,वें दोनों रिटायरमेंट के बाद बारी बारी से बच्चों के घर में बिताते हैं।।
तो ये थी पापा और मम्मी की कहानी ,पुल्कित की पत्नी अविका ने दयमंती बुआ से कहा।।।
हाँ,ये थी सरगम की कहानी,उसके पास अभी भी उसका सुहाग,सिन्दूर और प्रेम तीनों है,दयमंती बुआ बोलीं।।

समाप्त.....
सरोज वर्मा....🙏🙏😊😊