सरगम ने पेड़ से नीचे उतरते ही उन बुजुर्ग से कहा....
लो! आ गई नीचें,बोलो क्या काम है?
काम तो कुछ नहीं है,ये तो बता तेरा नाम क्या है? बुजुर्ग ने पूछा।।
मेरा नाम सरगम है और तुम्हारा नाम,सरगम ने धड़ल्ले से पूछा....
मैं..मैं जगजीवनराम हूँ,वें बुजुर्ग बोले।।
अच्छा!आम खाओगें,सरगम ने पूछा।।
ना बेटी! तुम ही खाओं,जगजीवनराम जी बोलें।।
वैसे तुम इतने बुरे भी नहीं हो,सरगम बोली।।
तुम भी तो बहुत अच्छी हो बिटिया!,जगजीवनराम जी बोले।।
ना! मैं अच्छी नहीं हूँ,सरगम बोली।।
ऐसा कौन कहता है? मुझे तो तू बहुत भली लगी,जगजीवनराम जी बोले।।
ऐसा नानी कहती है और गाँववाले भी कहते हैं,सरगम बोली।।
तुम्हारी नानी और गाँव वालें बिल्कुल गलत कहते हैं,तुम तो बहुत अच्छी हो,जगजीवनराम जी बोले।।
कहीं तुम मुझे बुद्धू तो नहीं बना रहें,सरगम बोली।।
भला तुझे कोई बुद्धू बना सकता है,तू तो बड़ी समझदार है,जगजीवनराम जी बोले।।
वैसे तुम इस गाँव के नहीं लगते,कहाँ से आए हो? सरगम ने पूछा।।
तूने सही पहचाना,सच में मैं इस गाँव का नहीं हूँ,जगजीवनराम जी बोले।।
तो कहाँ से आएं हो? सरगम ने पूछा।
मैं सीतापुर से आया हूँ,जगजीवनराम जी बोलें।।
यहाँ क्या करने आएं हो? सरगम ने पूछा।।
मैं यहाँ अपने दोस्त की पोती की शादी में आया हूँ,जगजीवनराम जी बोले।।
किसके घर जाओगे? सरगम ने पूछा।।
रघुवरदयाल है मेरे दोस्त का नाम ,बहुत साल पहले आया था मैं इस गाँव में उसकी सबसे छोटी बेटी की शादी में,जगजीवनराम जी बोले।।
तो तुम नानाजी के दोस्त हो और कालिन्दी की शादी में आएं हो,सरगम ने पूछा।।
अच्छा! तो तुम रघुवरदयाल की नातिन हो,जगजीवनराम जी ने पूछा।।
मैं उनकी दूर की नातिन हूँ,तभी तो नानी मुझे प्यार नहीं करती,सरगम बोली।।
मतलब! मैं कुछ समझा नहीं,जगजीवनराम जी बोले।।
ये तुम नानाजी से पूछ लेना,अब यही खड़े बतियाते रहोगें कि घर भी चलोगे,सरगम बोली।।
अच्छा! चल घर चलते हैं इतना कहकर जगजीवनराम जी ,सरगम के संग चल पड़े....
घर पहुँचकर जगजीवनराम जी ने सरगम के बारें में रघुवरदयाल जी से पूछा,
तब रघुवरदयाल जी ने सरगम की सारी कहानी कह सुनाई,सरगम की कहानी सुनकर जगजीवनराम जी बोले....
कितनी प्यारी बच्ची है और ऐसा अनर्थ हो गया बेचारी के साथ......
मैं तो कभी कभी सोचता हूँ इसके बारें में कि अभी तो मैं जिन्दा हूँ तो इसे सम्भाल लेता हूँ,कोई कुछ कहता है तो इसका पक्ष ले लेता हूँ लेकिन मेरे बाद ना जाने इसका क्या होगा? कौन सम्भालेगा फिर इसे?कितनी भोली और मासूम है,अभी दुनियादारी की भी कोई समझ नहीं है इसे,रघुवरदयाल जी बोले।।
ठीक कहते हो मित्र! सच बहुत ही भोली है,जगजीवनराम जी बोले।।
इसलिए तो डर लगता है,रघुवरदयाल जी बोले।।
तुम चिन्ता मत करो सब ठीक होगा,मन के सच्चे लोगों के साथ भगवान कभी भी बुरा नहीं होने देते,जगजीवनराम जी बोले।।
शायद तुम ठीक कहते हो मित्र! रघुवरदयाल जी बोले।।
दोनों मित्रों के मध्य ऐसे ही वार्तालाप चलता रहा....
जगजीवन राम जी भी ब्याह के कामों में रघुवरदयाल जी का हाथ बँटा रहे थे और उन्हें जब भी फुरसत मिल जाती तो वें सरगम से बात करना नहीं भूलते,उससे बात करते करते वें कभी कभी अपनेआप को भी भूल जाते,उन्हें दो तीन दिनों में ही सरगम से बहुत लगाव हो गया था।।
शादी वाले दिन कनकलता ने सरगम को अपने हाथों से सजाया,कुछ गहने भी पहना दिए, बसंती रंग के लहंगें में सरगम का रूप कुन्दन सा धमक उठा,उसे जो भी देखता तो देखता रह जाता,सोलह साल की सरगम अपनी उम्र से ज्यादा ही बड़ी लग रही थी,दिनेश भी अपनी भान्जी को देखते ही रह गया और कनकलता से बोला....
लगता है अगले एकाध सालों में हमारे घर एक और बारात आने वाली है।।
मैं भी यही चाहती हूँ कि हमारी सरगम को अच्छा सा घर मिल जाएं,जहाँ वो राज करें और उसका दूल्हा उसे इतना चाहे कि वो अपने पुराने सारे दुख भूल जाएं,कनकलता बोली।।
तुम्हारे मुँह में घी-शक्कर,दिनेश बोला।।
उस दिन सरगम को जो भी देखता बस देखता ही रह जाता,रघुवरदयाल जी को भी आज सरगम सयानी दिख रही थी,उन्होंने मन सोचा कि कितनी प्यारी बच्ची है,बस थोड़ी अल्हड़ ही तो है फिर भी लोंग ना जाने क्यों इसे पसंद नहीं करते?
जगजीवन राम जी ने सरगम को देखा तो बस देखते ही रह गए और उसके पास जाकर बोले....
सरगम बिटिया! आज तो तुम बहुत अच्छी लग रही हो।।
सरगम बोली.....
हाँ! आज ना मुझे मामी ने तैयार किया है लेकिन ये सब मुझे बिल्कुल भी नहीं भा रहा,ये गहने ...ये लहंगा...ये चूड़ियाँ,सब मुझे चुभ रहे हैं,देखो तो मैं ठीक से चल भी नहीं पा रही।।
कोई बात नहीं बिटिया! आज शादी है ना! देखो सभी ने नई पोशाकें पहनीं हैं,बस थोड़ी देर की ही तो बात है,कालिन्दी की विदा हो जाए तो तुम फिर अपना वही पुराना वेष धर लेना,जगजीवनरामजी बोले...
ठीक है,लेकिन सहन नहीं हो रहा मुझसे,सरगम बोली।।
बस,थोड़ी देर की ही तो बात है सह लो बिटिया,जगजीवनरामजी बोले।।
हाँ,ठीक है और इतना कहकर सरगम चली गई....
वो पूरे ब्याह में यहाँ से वहाँ हिरनी की तरह कुलाचें भरती रही,कभी इधर से उधर तो कभी उधर से इधर...
उसे देखकर संतोषी उसे टोकते हुए कहती ....
तू घड़ी भर शांत होकर नहीं बैठ सकती,कालिन्दी के ससुराल वाले तुझे देखकर ना जाने क्या सोचते होगें?
तो सोचने दो,मुझे क्या फर्क पड़ता है? सरगम बोली।।
लेकिन हमें तो पड़ता है,अब क्या सबके सामने हमारी नाक कटाएगी?
संतोषी बोलती रही और सरगम तो चिकना घड़ा थी उसे क्या फरक पड रहा था? वो तो अपनी ही धुन में मस्त थी....
कालिन्दी का ब्याह बहुत अच्छे से निपट गया,विदा भी हो गई और एक दो दिन में धीरे धीरे सभी मेहमान भी जाने लगें....
जगजीवनराम जी भी अपने गाँव वापस जाने को तैयार हो गए और रघुवरदयाल जी के पास आकर बोले....
एक बात कहूंँ मित्र!
हाँ कहो मित्र! मुझ से कैसा संकोच? रघुवरदयाल जी बोले।।
मैं अपने पोते संयम के लिए तुम्हारी सरगम का हाथ माँगता हूँ,जगजीवनराम जी बोले।।
रघुवरदयाल जी ने ये सुना तो उन्हें कुछ अटपटा सा लगा और वें बोलें....
अभी वो सोलह साल की ही तो है,ऊपर से अल्हड़ और मासूम,वो क्या समझ पाएगी शादी का मतलब?
फिर तुम्हारा पोता तो टेलीफोन विभाग में इन्जीनियर है,मेरी सरगम से उम्र में बड़ा भी तो होगा और क्या वो ये रिश्ता मंजूर करेगा....?
तुम बस हाँ कर दो मित्र! तो मैं सबको मना लूँगा,लेकिन सरगम जैसी प्यारी बच्ची मेरे परिवार में ही बहु बनकर आनी चाहिए.....
लेकिन मैं पहले तो सबसे पूछ लूँ,रघुवरदयाल जी बोले।।
मैं दो दिन और रूक जाऊँगा यहाँ,तुम सबसे सलाह मशविरा कर लो,अब तो हाँ का जवाब लेकर ही यहाँ से हटूँगा,जगजीवनराम जी बोले।।
रघुवरदयाल जी ने घर में इस विषय पर सबसे बात की....
पर बाबूजी !वो तो अभी अठारह की भी नहीं हुई,ऊपर से अल्हड़ ,कुछ भी तो नहीं जानती वो,सिवाय पेड़ो से आम और अमरूद तोड़े जाने के अलावा..दिनेश बोला।।
कनकलता भी नहीं चाहती थी कि अभी सरगम का ब्याह हो लेकिन संतोषी को ये अच्छा मौका मिला था,सरगम को अपने घर से भगाने का और वो बोली.....
घर बैठे बिठाए इतना अच्छा रिश्ता आया है ऊपर से लड़का इन्जीनियर है,उम्र में थोड़ा ही बड़ा होगा,ज्यादा से ज्यादा पच्चीस का होगा और तुम्हारी लाड़ली के पास ऐसी कौन सी डिग्रियांँ धरी हैं कि आसानी से उसका ब्याह हो जाएगा,घर के कामों में भी निपुण नही है,कल को कैसे करोगे उसका ब्याह?अगर ये रिश्ता ठुकरा दिया तो फिर कोई नहीं आएगा तुम्हारे द्वारे रिश्ता माँगने,लड़की में केवल रूप ही रूप है गुण नहीं.....
स़ंतोषी की बात सुनकर रघुवरदयाल जी सोच में पड़ गए,आखिर क्या कहें?
लेकिन संतोषी ने आखिरकार अन्त में रघुवरदयाल जी से हाँ करवा ही ली.....
ये खबर सुनकर जगजीवनराम जी फूले ना समाएं और खुशी खुशी अपने घर की ओर रवाना हो गए खुशखबरी लेकर.....
और जब उनके पोते संयम ने ये बात सुनी तो वो अड़ गया कि ब्याह ना करेगा....
लड़की उम्र में छोटी और ऊपर से आठवीं तक पढ़ी आखिर वो इन्जीनियर है कम से कम ग्रेज्युएट लड़की की कामना तो कर ही सकता है.....
और इधर जगजीवनराम जी भी अड़ गए उन्होंने अन्न जल का त्याग कर दिया कि जब तक संयम हाँ नहीं कहेगा,वो एक बूँद जल भी नहीं ग्रहण करेंगें....
उन्हें इसी तरह पूरा एक दिन हो गया,पानी ना पीने से उनकी तबियत बिगड़ने लगी,उनकी बिगड़ती हुई हालत देखकर संयम को मजबूरी में हाँ करनी ही पड़ी.....
संयम की हाँ सुनते ही जगजीवनराम जी के मन में खुशी की लहर दौड़ गई.....
क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....