सुहाग, सिन्दूर और प्रेम - भाग(६) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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सुहाग, सिन्दूर और प्रेम - भाग(६)

संयम जल्दी से डाँक्टर साहब को लेकर आ पहुँचा,डाक्टर साहब ने सरगम का चेकअप किया तो बोलें....
इन्हें टायफाइड हुआ है,अभी बिल्कुल माइनर स्टेज में हैं ,इसलिए इन्हें बुखार हुआ है,खाने पीने का ख़ास ख्याल रखें ,लगता है बारिश में भीगने से इनकी तबियत और भी बिगड़ गई है,डाक्टर ने इंजेक्शन दिया कुछ दवाएं लिखीं और बोले....
दो दिन के बाद इन्हें मेरे क्लीनिक ले आइएगा,दोबारा चेकअप कर लूँगा,वो तो अच्छा हुआ कि शुरुआत में ही आपने इन्हें दिखा लिया इसलिए मर्ज ज्यादा नहीं बढ़ पाया,नहीं तो ठीक होने में मुश्किल हो जाती है,अच्छा अब चलता हूँ,मरीज को हल्का खाना दीजिए,फल वगैरह ज्यादा हो खाने में,अच्छा अब मैं चलता हूँ।।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका डाक्टर साहब!संयम ने डाँक्टर साहब का शुक्रिया अदा करते हुए उनकी फीस दी और उन्हें बाहर तक छोड़ आया।।
और फिर सरगम के पास आकर बैठ गया और उसका सिर सहलाते हुए पूछा....
अब कैसा लग रहा है?
अभी थोड़ा ठीक लग रहा है,दोपहर में तबियत ज्यादा खराब लग रही थी इसलिए आकर ऐसे ही गीले ड्रेस में सोफे पर ही लेट गई,हिम्मत ना हुई कपड़े बदलने की,सरगम बोली।।
कोई बात नहीं,तबियत ठीक होती तो तुम कपड़े बदल ही लेती ,संयम बोला।।
तो फिर तुमने बदले क्या मेरे कपड़े? सरगम ने पूछा।।
क्या करता? तुम्हारी तबियत ठीक नहीं थी,तुम्हें होश ही नहीं था इसलिए बदल दिए,संयम बोला।।
मुझे अब शरम आ रही है,सरगम सकुचाते हुए बोली।
अच्छा!तो तुम्हें शरम भी आने लगी,लेकिन कब से?संयम ने चुटकी लेते हुए पूछा।।
कहीं तुम मेरा मज़ाक तो नहीं उड़ा रहें,जैसे की कक्षा की लड़कियाँ उड़ाती है,कहतीं हैं तुझे कुछ नहीं पता,सरगम भोलेपन से बोली।।
नहीं मज़ाक नहीं उड़ा रहा ,अच्छा! अब तुम आराम करो,मैं खाने का इंतजाम करता हूँ,फिर तुम्हें दवा भी तो खानी होगी,संयम बोला।।
ठीक है तो तुम खाना बना लो,बाद में बात करते हैं,सरगम बोली।।
फिर संयम ने मूँग दाल की चटपटी सी खिचड़ी बनाई और दोनों ने खाई,सरगम ने अचार और घी माँगा तो संयम ने मना कर दिया।।
सरगम बोली...
लेकिन तुम तो खा रहे हो।।
लो मैं भी नहीं खाता,अब खुश ,संयम बोला।।
फिर दोनों खाना खाकर फुरसत हुए तो संयम ने रसोई में जाकर बरतन धोएँ और फिर से सरगम के सिरहाने जाकर बैठ गया,थोड़ी देर बात करने के बाद संयम ,सरगम से बोला....
अब तुम आराम करो,मैं भी सोफें पर लेटता हूँ।।
सरगम बोली...
आज मेरे पास लेट जाओ,मुझे अच्छा नहीं लग रहा,तबियत खराब है इसलिए और फिर आज तो सोफा भी गीला होगा,मैं दिनभर सोफें पर ही तो लेटी थी जब बारिश में भींगकर आई थी,तुम यही सो जाओ ना!अब तो मैं पाँव पसारकर भी नहीं लेटती,बड़ी जो हो गई हूँ।।
पहले संयम, सरगम की मासूमियत पर हँसा ,फिर सरगम की इस बात को संयम टाल ना सका और बिस्तर पर ही लेट गया,वो दिनभर का थका था इसलिए उसे नींद आ गई,लेकिन सरगम तो दिनभर सोई थी इसलिए उसे नींद नहीं आ रही थी,सरगम ने संयम की ओर करवट ली और बिना पलक झपकाएं उसे एकटक निहारती रही,आज उसने शादी के बाद संयम को पहली बार गौर से और इस नज़र से देखा था।।
सरगम मन में सोच रही थी,कितना भोला मासूम सा चेहरा है संयम का,कितने सुन्दर नैन-नक्श है,आज से पहले उसने कभी ध्यान ही नहीं दिया और सबसे खूबसूरत है इसका दिल जिसमें प्रेम और दया का अथाह भण्डार है,ये तो एक अनमोल खजाना है और इसको मैं आज तक समझ ही नहीं पाई,इसका कोमल स्वाभाव,मधुर वाणी,सहनशीलता,क्या क्या गुण इसमें नहीं समाएं और एक मैं हूँ कि कभी इसे तबज्जो ही नहीं दी,इसके सानिध्य में रहकर तो पत्थर भी पिघल जाएं फिर मैं तो इंसान हूँ,ईश्वर तेरा लाख लाख शुक्र मुझे ऐसा अनमोल तोहफा बख्शने के लिए।।
इतना सोचते सोचते सरगम की आँखों से आँसुओं की धार बह निकली और उसने उठकर संयम के माथे को चूम लिया,सरगम के चुम्बन का स्पर्श संयम ने अपने माथे पर महसूस किया लेकिन वो चुप्पी साधे लेटा रहा,वो यही चाहता कि सरगम को प्यार का एहसास खुद से हो और वो ही उसके करीब आएं और शायद धीरे धीरे ऐसा हो रहा था।।
फिर सरगम ने अपना एक हाथ संयम के सीने पर रखा और सो गई लेकिन उधर संयम को सरगम की गरम साँसें बेचैन कर रहीं थीं,फिर संयम ने करवट ली और सरगम से दूरी बनाकर सो गया।।
सुबह हुई,पहले संयम जागा और चाय बनाकर सरगम को जगाते हुए बोला....
उठिए,श्रीमती जी,चाय पी लीजिए।।
प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ सरगम ने आँखें खोलींं और फिर खिलखिलाकर हँस पड़ी।।
अरे,भाई! हँस क्यों रही हो? मैने कोई चुटकुला थोड़े ही सुनाया है,संयम बोला।।
तुमने मुझे श्रीमती जी बोला इसलिए हँसी आ गई,सरगम बोली।।
तो तुम मेरी श्रीमती तो हो इसलिए तो मैने श्रीमती बोला,संयम ने कहा।।
तो तुम मेरे श्रीमान हुए,सरगम बोली।।
और क्या? अच्छा! ये सब छोड़ो नाशते में क्या खाओगी?संयम ने पूछा।।
कुछ भी बना लो,अब से सब खा लिया करूँगीं,कोई भी नखरें नहीं करूँगीं,तुम मेरा इतना ख्याल रखते हो और मैं तुम्हें जब देखो तब परेशान करती रहतीं हूँ,सरगम बोली।।
नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है,मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा,संयम बोला।।
तुम मुँह से कहों या ना कहो लेकिन ऐसा ही है,सरगम बोली।।
चलो,ठीक है इस बात पर बाद में बहस कर लेना पहले चाय पी लो,संयम बोला।।
हाँ! तुम्हें देर हो रही होगी,आँफिस भी तो जाना होगा,सरगम बोली।।
नहीं जाना आँफिस से मैने एक हफ्ते की छुट्टी ले ली है,तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है ना! संयम बोला।।
तब ठीक है,मैं भी तुमसे ढ़ेर सारी बातें करना चाहती हूंँ,सरगम बोली।।
अरे,हाँ मैं तो बताना ही भूल गया ,कल दादाजी की चिट्ठी आई थी,तुम्हारी तबियत के चक्कर में पढ़ ही नहीं पाया,सोचा बाद में पढ़ूगा,तुम जाकर नहा लो,तब तक मैं चिट्ठी पढ़कर देखता हूँ आखिर क्या लिखा है उन्होंने? संयम बोला।।
हाँ! हम लोंग दीवाली में गाँव गए थे,तब से गाँव भी तो नहीं गए इसलिए उन्होंने खैर-खबर पूछी होगी,सरगम बोली।।
हाँ! शायद तुम ठीक कहती हो,संयम बोला।।
सरगम नहाने चली गई और संयम ने चिट्ठी पढ़ी तो सच में जगजीवनराम जी ने दोनों का हाल-चाल पूछा था,चिट्ठी पढ़कर संयम नाश्ता बनाने चला गया,थोड़ी ही देर में सरगम नहाकर निकली और आज उसने लाल साड़ी पहनी,बहुत दिनों बाद आज उसने साड़ी पहनी थी,दीवाली पर जब गाँव गई थी तब वहाँ उसने साड़ी पहनी थी,वो यहाँ रहती है तो सलवार कमीज ही पहनती है।।
साड़ी को उसने बहुत सलीके से बाँधा था,क्योंकि अब उसने साड़ी पहनना सीख लिया था,फिर उसने माँग में सिन्दूर भरा,लाल बिन्दी लगाई,आँखों में काजल की पतली धार डाली,लाल चूड़ियाँ भी पहनी,पैरों में पायल भी डाल ली,खुले गीलें बालों में जब वो संयम के सामने पहुँची तो संयम उसे एकटक देखता ही रह गया लेकिन बोला कुछ नहीं।।
जब संयम ने कुछ नहीं कहा तो सरगम ने मजबूर हो कर संयम से पूछा....
ये लाल साड़ी कैसीं लग रही है?बताओ तो जरा।।
अच्छी लग रही है,तब संयम का पूरा ध्यान पोहे की कढ़ाई पर था,वो ऐसा जानबूझकर कर रहा था ताकि सरगम चिढ़े।।
तुम देख तो रहे नहीं हो और कहते हो कि अच्छी लगती है,सरगम ने गुस्से से कहा।।
फिर संयम ,सरगम की ओर पलटकर बोला....
तुम भी अच्छी लग रही हो और साड़ी भी।।
और फिर सरगम शरमा गई,संयम यही तो चाहता था कि सरगम के मन में उसके प्रति प्रेम का भाव स्वतः उत्पन्न हो और शायद अब यही हो रहा था।।
हफ्ते भर संयम घर पर रहा,वो अब दोनों एक ही बिस्तर पर लेटते ,कुछ देर बातें करते और सो जाते,पति-पत्नी वाला रिश्ता अब भी दोनों के बीच कायम ना हुआ था,अब सरगम भी ठीक हो चुकी थी, डाक्टर साहब भी बोले कि अब वो पूर्णतः स्वस्थ है,इसलिए एक हफ्ते बाद संयम आँफिस जाने लगा,अब सरगम को भी अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो चला था,वो अब धीरे धीरे घर के काम करने भी सीखने लगी,कभी सब्जी काटती तो ऊँगली काट लेती और रोटी पकाती तो हाथ जला लेती,ये सब देखकर संयम कहता तुमसे किसने कहा कि काम करो....
तो क्या सारी जिन्दगी तुम ही मुझे पकाकर खिलाते रहोगें?अब मुझे भी तो घर के काम सीखने चाहिए,सरगम भोलेपन से कहती।।
हाँ! बाबा! सीख लेना,लेकिन तुम इस तरह से चोटें लगवाती रहो और मैं उन पर मरहम मलता रहूँ,ये मुझसे ना हो पाएगा,संयम कहता।।
मुझे दर्द में देखकर तुम्हें दुःख होता है और ये पूछते हुए सरगम की आँखें भर आतीं।।
दुःख नहीं होगा मुझे! तुम मेरी पत्नी जो हो,संयम कहता।।
फिर सरगम कुछ ना कहती और पलटकर धीरे से अपने आँसू पोछ लेती ताकि उसके आँसू संयम ना देख पाएं।।
वो अब सँजने सँवरने लगीं थीं,रोज शाम को संयम के आने से पहले सलीके से श्रृंगार करती और जब संयम उसे अनदेखा कर देता तो उसे बहुत बुरा लगता,उसका दिल प्रेम से भरा था लेकिन वो प्रेम जुबान तक आने में समय लगा रहा था,बस वो तो अब उसकी आँखों से झलक रहा था।।
अब कुछ दिनों से संयम देर से घर आने लगा था क्योंकि उसके आँफिस में कोई नई लड़की आई थी जिसका नाम माधुरी था और उसे यहाँ की जगह के बारें में कुछ पता नहीं था कि कहाँ क्या मिलता है तो उसने अपनी मदद के लिए संयम से कहा और संयम भी तैयार हो गया उसकी मदद के लिए।।
वो जब भी घर का समान खरीदने के लिए संयम को बुलाती तो तो संयम उसके साथ बाजार जाने को राजी हो जाता,वो वहीं उनकी ही कालोनी में रहती थी उसे भी सरकारी घर मिल गया था,संयम का उसके साथ जाना सरगम को फूटी आँख भी ना सुहाता और वो मन ही मन में कुढ़कर रह जाती।।
ये काँलोनी वालों को भी दिखने लगा था कि संयम का माधुरी के संग व्यवहार कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था,एक दिन ये बात वसुधा दीदी ने भी सरगम से कही,वें बोलीं....
जरा !अपने पति की लगाम खींचकर रख ,उस माधुरी से उसका ज्यादा मेलजोल अच्छा नहीं,कहीं आगें जाकर तुझे पछताना ना पड़े।।
सरगम गुस्से से उबल पड़ी और घर जाकर बिस्तर पर लेट गई,दोपहर से शाम हुई और शाम से रात हो चली थी लेकिन संयम अभी तक घर नहीं लौटा तभी दरवाजे की घंटी बजी,वो उठी और उसने दरवाजा खोला....
आज संयम ,माधुरी को लेकर घर आया था,माधुरी को देखकर उसका गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया,वो उस समय तो कुछ नहीं बोली लेकिन माधुरी से बिना मिले ही अपने कमरें में जाने लगी,तब संयम बोला....
सरगम! देखो तो माधुरी आई है,जरा पानी-वानी तो पिलाओ इन्हें।।
क्यों? इनके घर पर पानी नहीं है क्या ? पास में ही तो रहतीं हैं,अपने घर जाकर पानी क्यों नहीं पी लेतीं? सरगम गुस्से से बोली।।
इतना सुनना था कि माधुरी बोली...
सही तो कह रही है सरगम ,मैं अब अपने घर जाती हूँ,वहीं पानी पी लूँगी,इतना कहकर माधुरी चली गई।।
संयम ने घर का दरवाजा बंद किया और फिर सरगम से पूछा.....
मेहमानों से कोई ऐसे पेश आता है, ये तुम्हें क्या हो गया है?
वो मेरे घर में मुँह उठाकर चली आएगी और मैं सहन कर लूँगी,सरगम बोली।।
उसने तुम्हें तो कभी कुछ बुरा नहीं बोला,संयम बोला।।
बोल तो नहीं रही लेकिन कर तो रही है,सरगम बोली।।
क्या कर रही है वो? संयम ने पूछा।।
तुम्हें मुझसे दूर करने की कोशिश,सरगम ये कहते कहते रो पड़ी।।
तो तुम्हें क्या फर्क पड़ेगा? अगर मैं तुमसे दूर हो जाऊँ तो,संयम ने पूछा।।
मैं तुम्हारे बिना मर जाऊँगी,सरगम बोली।।
लेकिन तुम क्यों मरोगी? मेरे बिना,संयम ने पूछा।।
क्योकिं मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ और तुम्हारे बिना नहीं जी सकती और सरगम रोते हुए संयम के गले लग लग गई।।
सच में! मुझसे प्यार करती हो,संयम ने पूछा।।
हाँ,सच में,सरगम रोते हुए बोली।।
पगली हो तुम बिल्कुल,मैं पता है तुमसे कब से प्यार करता हूँ जब से तुम दुल्हन के लिबास़ में बिस्तर में पाँव पसारकर लेटी थी तब से,उस रात तुमने मेरे माथे को चूमा था,उसकी गरमाहट मुझे आज भी अपने माथे पर महसूस होती है,मेरे प्यार को समझने में तुमने इतनी देर लगा दी और ये कहते कहते संयम की आँखें भी बरस पड़ीं और उसने सरगम को अपने सीने से जकड़ लिया।।
अच्छा तो उस रात तुम जाग रहे थे जब मैने तुम्हारा माथा चूमा था,तुमने कुछ कहा क्यों नहीं? सरगम ने पूछा।।
वो कहने वाली बात थोड़े थी,मुझे पता चल गयग था कि तुम मुझे चाहने लगी हो,संयम बोला।।
अच्छा! और ये कहते हुए सरगम ने और भी कँस के संयम को अपनी बाँहों में जकड़ लिया।।
उस रात चाँद और उसकी चाँदनी ने दोनों के मधुर मिलन की गवाही दी,अब दोनों की जिन्दगी ने सही मोड़ ले लिया था,अब सरगम पूर्णतः गृहिणी बन चुकी थी,जब इस बार वो गाँव गई तो सभी उसे देखते रह गए कि ये वही अल्हड़ सरगम है जिसे कुछ नहीं आता था और अब देखो तो पूरा घर सिर पर उठाएं घूमती है,सारे काम काज में निपुण हो गई है।।
वो इस बार मायके भी गई और कनकलता ने जब दोनों को देखा तो बोली....
आखिरकार दमाद जी सरगम का दिल जीतने में कामयाब हो ही गए....
कुछ दिन रहकर फिर दोनों शहर आ गए क्योकिं सरगम ने अब दसवीं पास करके बाहरवीं में एडमिशन ले लिया था,उसे संयम ने पढ़ाई जारी रखने पर जोर दिया,अब दोनों की जिन्दगी की गति सुचारू रूप से चल रही थी।।

और उधर अब कमलेश्वर के घर पर...
कमलेश्वर ने अब ग्रेजुएट कर लिया था अब वो अपने आगें के भविष्य को लेकर चिन्तित था कि अब वो क्या करें?उसने इन्जीनियरिंग कर ली थी और नौकरी की तैयारी में लगा हुआ था।।
तभी एक दिन उसकी माँ सुमित्रा ने उसके पास जाकर पूछा....
क्यों रें! तेरे भाई और बहन का ब्याह हो चुका है तुम कब ब्याह रचाऐगा,अगर तू कहें तो देखूँ कोई लड़की तेरे लिए।।
माँ! कितनी बार कहा है कि मुझे अभी ब्याह के झमेले में नहीं फँसना,जब होना होगा तो हो ही जाएगा,तुम्हें मेरे ब्याह की इत्ती चिंता करने की जुरूरत नहीं है,कमलेश्वर बोला।।
मत कर उसका इंतज़ार ना जाने कहाँ होगी वो? सुमित्रा बोली।।
मैं सरगम का इन्तजार बिल्कुल भी नहीं कर रहा,बस मुझे अभी ब्याह नहीं करना,कमलेश्वर बोला।
तेरी आँखें सब कहतीं है तू मुझे लाख छिपा लें,उसकी गुड़िया,उसकी चूड़ियाँ और उसके रिबन को कल मैने तेरे पुराने संदूक में तेरे कमरें की सफाई करते वक्त देखा था,सुमित्रा बोली।।
तुम गलत समझ रही हो माँ! ऐसा कुछ नहीं है,कमलेश्वर बोला।।
मैं बिल्कुल सही समझ रही हूँ बेटा! वो तेरे भाग्य में नहीं है,अब तक तो उसका ब्याह भी हो चुका होगा,सुमित्रा बोली।।
मैं भी देखना चाहता हूंँ कि मेरा भाग्य मुझसे कब तक रूठा रहता है?कमलेश्वर बोला।।
तो तू जिद नहीं छोड़ेगा,सुमित्रा बोली।।
माँ! जिद तो तुम कर रही हो,कमलेश्वर बोला।।
जा नहीं करती जिद़,लेकिन एक बार फिर कहूँगी कि उसका इन्तज़ार केवल तुझे कष्ट ही देगा,इतना कहकर सुमित्रा चली गई और कमलेश्वर फिर से अपनी पुरानी यादों में डूब गया।।

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....