रिश्ते तिज़ारत नहीं होते - 2 Ranjana Jaiswal द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ते तिज़ारत नहीं होते - 2

(2)

जिंदगी चल रही थी कि एक दिन विशद का मैसेज आया। यह मेरा बहुत ही पुराना विद्यार्थी है। करीब 6-7 वर्ष पहले फेसबुक पर मुझे देखकर उसने मुझसे संपर्क साधा था और मुझसे मिलने मेरे घर आया था। मैंने उसे दसवीं में पढ़ाया था। करीब 20 साल मुझसे छोटा होगा। गोल चेहरे, मध्यम कद व भरे शरीर वाला साधारण -सा युवा। वह एम. बी. करके किसी प्राइवेट कम्पनी में काम करता था। मुझे अकेले रहते देख बहुत दुःखी हुआ था, फिर वह अक्सर घर आने लगा। मुझे वह हमेशा दसवीं कक्षा वाला गोल -मटोल विद्यार्थी ही लगता था पर कुछ दिन बाद मुझे महसूस हुआ कि वह मुझसे कुछ कहना चाहता है, पर डर के मारे कह नहीं पाता। मैंने भी इस बात को ज्यादा तबज्जो नहीं दी। कुछ दिन बाद एकाएक उसने आना -जाना बंद कर दिया। मुझे लगा कि अक्सर उसे छोटा -मोटा काम सौंप देती हूँ इसलिए वह भाग गया। 
बीच में एकाध बार उसने व्हाट्सऐप पर चैट की। हर बार वह कहता कि कुछ कहना है पर न वह कह पाया न मैंने सुना ही। 
दो साल पहले वह अचानक घर आ गया और उदास मुखमुद्रा बनाकर बैठ गया। मैंने यूँ ही तुक्का मारा कि कैसी चल रही तुम्हारी शादीशुदा ज़िंदगी?तब उसने बताया कि उसकी शादी के चार साल हो गए और अब तलाक का मुकदमा चल रहा है। 
-क्यों, क्या हो गया था?
'धोखे से शादी हो गई। लड़की मात्र इंटर पास है। वे लोग बी. एस .सी. बताए थे। देहात की है। शहरी रहन -सहन नहीं आता। सुंदरता देखकर घरवाले शादी कर दिए। किसी तरह चार साल गुजरे थे, फिर वह अपने भाई को बुलाकर अपने घर चली गई और तलाक का मुकदमा दायर कर दिया। '
मुझे उसकी बात में कुछ झोल लगा पर मैंने उसकी व्यक्तिगत जिंदगी में हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा। 
--तुमने मुझे अपनी शादी में नहीं बुलाया था। 
'बड़ी जल्दबाजी में शादी हो गई थी। '
--कहां की लड़की है?
'घर तो गांव में है पर इसी शहर में अपने एक रिश्तेदार के घर रह रही थी। यहीं पर बात चली फिर शादी फिक्स हो गई। '
--तुमने पता नहीं किया कि लड़की कितनी पढ़ी -लिखी है?
'उसके रिश्तेदार झूठ बोल दिए थे। '
इतने दिनों में मुझे समझ में आ गया था कि यह लड़का बहुत झूठ बोलता है और मन का साफ़ भी नहीं है। स्वभाव से भी जल्दबाज़ और अधीर किस्म का है। साथ ही इसका अपना कोई मॉरल नहीं है। 
खैर मुझे उससे क्या लेना -देना था? हाँ, मेरी छठी इन्द्रिय ने संकेत जरूर किया कि इससे सतर्क ही रहना। 
एक बात और थी वह मैसेज करने में जितना मुखर था, उतना सामने बातचीत में नहीं । फोन पर भी ठीक से अपनी बात नहीं रख पाता था। मुझसे डरता भी बहुत था। मेरे व्यक्तित्व के आगे वैसे भी वह बौना पड़ जाता था। 
झूठ नहीं कहूँगी मुझे उससे स्नेह था पर वह मित्रता में नहीं बदल पाया था। मुझे हमेशा ही उसमें गम्भीरता की कमी लगी। मेरी किसी बात का जवाब न दे पाने पर नाराजगी दिखाते हुए भागने लगता था। फिर लंबे समय गायब रहता था। फिर प्रकट होता था तो गुड मॉर्निंग, गुड नाईट से लेकर खाने -पीने, सोने- जागने, दुःख -बीमारी सबकी चिंता दिखाने लगता था। इतना मैसेज करता कि इरिटेट होकर मैं उसे ब्लॉक कर देती। गुस्सा शांत होने पर अनब्लॉक भी कर देती। 
उसके समूचे व्यक्तित्व में कुछ ऐसा था, जो मुझे उलझाता था। वह और उसका इरादा स्पष्ट नहीं था। इसलिए न वह पकड़ा जाता था न छोड़ा ही जाता था। 
एक बार और यूं ही मैंने तुक्का मारा कि तुम्हारा बच्चा किसके पास है ?तब उसने बताया कि उसकी चार साल की बेटी भी है और अपनी माँ के साथ है। उसे लगा कि किसी श्रोत से मुझे पता चल गया है इसलिए उसे यह सच बताना पड़ेगा, पर इसमें छुपाने वाली बात ही क्या थी? मैंने भी अपने अतीत के बारे में उसे कुछ नहीं बताया था। ना उसने कभी पूछा न मैंने बताया। अगर मुझे उसके साथ कोई रिश्ता बनाना होता तो अवश्य बताती। उसे मैं छात्र बनाम मित्र ही मान रही थी और कुछ नहीं। मेरे मन में उसके प्रति जरा -सा भी आकर्षण नहीं था। मैं अपने अकेलेपन से त्रस्त थी इसलिए उसके आने से अच्छा ही लगता था। वैसे भी अधेड़ या बूढ़े पुरुष -मित्रों से डर बना रहता है कि न जाने कब एकांत मिलते ही वे आक्रामक हो जाएं। विशद से मुझे इस तरह का कोई डर नहीं था। यही कारण था कि मैं उसकी कमियों और कमजोरियों को नजर-अंदाज कर रही थी। नौकरी वह अपनी विवाहिता बहन के शहर में करता था। हर शनिवार को वह अपने घर आता और रविवार रात को वापस चला जाता था। उसकी माँ सरकारी स्कूल में टीचर थीं। चार वर्ष पहले ही रिटायर हुए थीं। वह अपनी माँ का लाडला था। पिता प्राइवेट नौकरी से रिटायर थे। 
इधर काफी समय से वह गायब था। एक दिन फेसबुक से पता चला कि उसकी माँ हार्ट -अटैक का शिकार हो गयी हैं। मैंने व्हाट्सऐप पर शोक प्रकट करके उसे सांत्वना दी। फिर वह बातचीत करने लगा। माँ का पेंशन घर में आ रहा था । लॉकडाउन में घर बैठे ही उसे पूरी सेलरी मिल रही थी। कोई परेशानी की बात नहीं थी। 
एक दिन उसने बताया कि उसका वकील मेरी ही कॉलोनी के पास रहता है और उसे उसके घर बराबर आना पड़ता है। उसने मुझसे पूछा कि लॉकडाउन में कोई सामान या राशन वगैरह मंगाना हो तो व्हाट्सएप कर दीजिएगा, उधर आऊंगा तो लेता आऊँगा। पहले तो मैंने मना कर दिया पर उसके रिक्वेस्ट करने पर सोचा कि मँगवाने में हर्ज ही क्या है?सभी के घर कोई न कोई पुरुष सदस्य सामान लाने वाले हैं । मेरे पास ही कोई नहीं। एक हैंड तो चाहिए ही। लड़का जाना -पहचाना है, छात्र रहा है। उससे कोई खतरा भी नहीं। उसका मुझसे कोई स्वार्थ भी तो नहीं है। 
पर यही मेरी सबसे बड़ी भूल थी। बाद में पता चला कि वह भी बड़ा शिकारी है। 
लॉक डाउन के पूरे महीने उसने मेरी मदद की। मेरा सामान और साग -सब्जी पहुंचाया। मेरी चिंता की !वैक्सीन लगवाने भी ले गया । मैं निहाल थी कि एक बेटे की तरह वह मेरी चिंता कर रहा है। मेरे दिल से उसके लिए दुआ निकल रही थी पर कभी -कभी मुझे बेचैनी होने लगती थी और रात भर नींद नहीं आती थी कि वह क्यों मेरी मदद कर रहा है?कहीं इसके पीछे कोई स्वार्थ, कोई मकसद तो नहीं। सुना था कि सिंह का बच्चा भी हाथी के सिर को फाड़ सकता है। वह मेरी जरूरतें बढ़ा रहा था और मैं घटा रही थी। मैं जरूरत से ज्यादा कभी कोई चीज नहीं मंगाती। आदतें बिगाड़ने के पक्ष में बिल्कुल नहीं हूँ। कम से कम में गुजारा मेरी आदत है। चादर से ज्यादा पैर नहीं फैलाती। 
वह सुबह से शाम तक व्हाट्सऐप करने लगा । चाय पी ...खाना खाया, दवा ली। मैं इरिटेट होती। लगता कि जैसे मेरी आजादी में वह दखल दे रहा है। एकाध बार समझाया भी कि बच्ची नहीं हूँ। अपना ख्याल रख सकती हूँ। कभी वह लव की इमोजी बनाकर भेजता। बुरा लगता पर मैं टाल देती। लॉकडाउन खत्म होते ही वह काम पर चला गया था। अब वह शनिवार को अपने घर आता तो रविवार को दस -पांच मिनट के लिए मेरे घर भी हो लेता। मैं मास्क और दूरी रखते हुए चाय -पानी देती, तो हँसता। एक दिन खाना भी खिला दिया। वह मेरी जरूरत के बारे में पूछ लेता और ख्याल रखता। 
पर धीरे- धीरे वह फिर पुराने रंग में आने लगा। झूठ बोलता। लव के इमोजी बनाता और कहता कि मुझे कुछ कहना है। मैं हमेशा की तरह टाल देती। मुझे कुछ- कुछ उसका इरादा समझ में आ रहा था कि वह मेरे निकट होना चाहता है। 
आखिर एक दिन वह खुलकर सामने आ गया। उस दिन वह सोमवार को ऑफिस से छुट्टी लेकर अपने घर आ रहा था। रास्ते पर मैसेज करता रहा कि तुम्हें देखने आ रहा हूँ। 
पर उस दिन ही नहीं दूसरे दिन भी मेरे घर नहीं आया, तो मैने अंदाज से कहा-आज मुकदमें की तारीख थी क्या?
तब उसने बताया कि --हाँ, बस कुछ कागज़ पर हस्ताक्षर करने है। फिर आपकी दवा लेकर आऊंगा। 
पर रात के आठ चालीस हो गए । वह नहीं आया तो मैंने दरवाजा बंद कर दिया और घर के ऊपरी माले पर अपने बेडरूम में आ गई। तभी उसने दरवाजे पर दस्तखत दी। मैंने बमुश्किल अपने गुस्से पर काबू रखा था। मैं नीचे उतरी बाहर के बरामदे की कुर्सी पर वह बैठ गया। उसकी मुखमुद्रा से लगा कि वह वापस जाने के इरादे से नहीं आया है। मैंने शांत स्वर में कचहरी के बारे में पूछा तो उसने बताया कि आज दूसरा पक्ष भी हाजिर हो गया था। जज के सामने बहस हुई। 5 वहीं बज गए। 
उस दिन पता चला कि उसकी पत्नी ने एक साथ ही उसपर तीन मुक़दमें दायर किए हैं दहेज -उत्पीड़न, मार -पीट व शोषण और तलाक का। वह हर बात के लिए पत्नी को दोषी ठहरा रहा था कि वह कम पढ़ी -लिखी, देहातन होने के साथ ही सुख-सुविधा चाहने वाली, बड़ों का आदर न करने वाली आदि आदि थी। मैंने पूछा -शादी के चार साल उपरांत उसमें इतनी कमियां नजर आईं?
--मैं उसे आगे पढ़ने को कहता था, तो नहीं पढ़ती थी। अपने घर देहात में बिना पंखे के रही थी पर यहां ए .सी. वाला  कमरा ही चाहिए था!मेरे घर में सभी एजुकेटेड और नौकरीपेशा रहे हैं माँ ...बहन सब। मैं कहता था कि पढ़-लिखकर नौकरी करो। मैं अकेले कितना कमाऊंगा, प्राइवेट जॉब में हूँ आज नौकरी है कल रहे न रहे। पर उसका कहना था, नहीं पढूंगी। इसी बात पर बहस हो जाती थी। एक दिन उसने फोन करके अपने भाई को बुला लिया और
इल्ज़ाम लगाया कि सबने मिलकर मारा -पीटा है और दो लाख दहेज की मांग की है। फिर वह भाई के साथ चली गई। मैं भी उसे लेने नहीं गया। खुद गई तो खुद आए। फिर उसने मुकदमा दायर कर दिया। 
'बच्ची का मोह नहीं लगता?'
-मैं क्या कर सकता हूँ। कानून अवयस्क बच्चों को मां के पास रहने की ही इजाजत देता है। 
'आज पत्नी को देखा तो प्यार नहीं जगा..!'
--अब कहीं और इन्वाल्व हो गयी है। अलग हुए तीन साल हो गए। सब पता चल जाता है। 
'साथ रहे तो प्यार तो रहा ही होगा। सुंदरता देखकर ही तो शादी की थी। आज उसे दूर से देखकर तो बहुत खला होगा। '
-एक तरफ से क्या होता है? उधर से भी कुछ होना चाहिए। उसे बहुत घमंड है। माँ के मरने पर भी आ गई होती तो झगड़ा खत्म हो गया होता। 
बातचीत लम्बी हो गई थी !मैंने घड़ी की तरफ देखा-अरे, 'रात के साढ़े नौ बजे गए। मेरे यहाँ आठ बजे के बाद कोई नहीं आता। '
--ओके, चलता हूँ गुड नाईट। 
उसके जाने के बाद मैंने राहत की सांस ली। मन ही मन उससे दूरी बढ़ा लेने का फैसला भी किया। जाने क्यों मुझे उसकी बीबी सही लग रही थी और उसके द्वारा दायर तीनों मुकदमें भी जायज लग रहे थे। मैंने अपने जीवन में पति नामक जीव को करीब से देखा -सुना -समझा है। कोई भी पत्नी माँ बनने के बाद अपने पति से खुशी -खुशी अलग नहीं होती! अन्याय- अत्याचार का घड़ा भर जाने के बाद ही ऐसा निर्णय लेती है। वह चला तो गया था पर उस रात देर तक चैट करके वह मेरा दिमाग खाता रहा और अपने असल रूप में सामने आ गया। उसकी योजना, उसके मन्तव्य भी खुलकर सामने आ गए। 
--आज मैं तुमसे बहुत दुःखी हुआ। तुमने एक गिलास पानी के लिए भी नहीं पूछा। 
'इतनी रात को आए तो क्या करती?मेरे घर के नियम तो पता है। आठ बजे के बाद कोई गेस्ट नहीं। अकेली रहती हूँ पड़ोसियों की निगाह मेरे घर की ओर ही लगी रहती है। '
--नो बॉडी केयर मी!मैं तुमसे अपने दिल की बात कह रहा हूँ। मुझे तुमसे मेंटल और फ़िजिकल सपोर्ट चाहिए। 
'फ़िजिकल!यह असम्भव है। हाँ, मेंटल स्पोर्ट कर सकती हूँ। '
--मुझे तुमसे सब कुछ चाहिए बदले में मैं भी सब कुछ करूँगा। 
'सॉरी, मैंने अपने लिए सब कुछ किया हुआ है। लॉकडाउन न होता तो तुम्हारी मदद भी न लेती। इस उम्र में मैं किसी नए रिश्ते के लिए तैयार नहीं हूँ। '
--मैं तो शुरू से ही तुम्हें प्यार करता हूँ। मैं तुमसे शादी करूंगा। 
'किसको धोखा दे रहे हो?अभी तुम्हारा तलाक नहीं हुआ। तुम पर एक बच्ची का नैतिक दायित्व है। 
--मैं सब कर लूँगा। तुम भी तो कुछ करोगी। हम मिलकर सब देख लेंगे। 
'माफ करना । सबसे पहले यह स्पष्ट कर दूं कि हमारा और तुम्हारा कोई मैच नहीं । न उम्र में, न भाव- विचार, सिद्धांतों में!मैं तो सोच भी नहीं सकती इस सम्बंध के बारे में। तुम परेशान हो इसलिए समझा रही हूं, नहीं तो हमेशा की तरह ब्लॉक कर चुकी होती। '
--आई लव यू। सच्चे दिल से कह रहा हूँ आई लव यू । मुझे एक मौका दे दो। 
'नशा किया है क्या?खाना खाकर सो जाओ। दिमाग स्थिर होगा तो बात करना। '
मैंने फोन बंद कर दिया। पर रात -भर सो नहीं पाई। उसकी हिम्मत और हिमाक़त पर आश्चर्य हो रहा था। उसकी मूर्खता पूर्ण बातों में भला क्या सच्चाई हो सकती है?50+ महिला से  29 -30 साल का लड़का प्यार व शादी की बात कैसे सोच सकता है?वह भी ऐसी महिला, जो उसकी शिक्षिका भी रह चुकी है। क्या है उसके मंसूबे!ये प्यार तो कतई नहीं है और न ही मेरे भविष्य की चिंता!जरूर कोई साजिश या योजना है। मुझे अकेली जानकर वह जाल बिछा रहा है। अकेली जरूर हूँ पर जिंदगी के अनुभव भी तो साथ हैं। एम बी ए का अभ्यास मुझ पर करना चाहता है क्या!
क्या होता जा रहा है आज की युवा पीढ़ी को?किस हद तक गिरती जा रही है वह!बड़ी उम्र की महिला को फंसाकर उसके धन पर ऐश करने वाले युवकों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। कोई नैतिकता नहीं, कोई मूल्य नहीं। युवतियों का भी यही हाल है वे अधेड़ बूढ़ों को फाँसकर अपनी महंगी ज़रूरतें पूरी करती दिख रही हैं। किसी को कोई अपराध -बोध, पाप-  बोध नहीं। उनके तर्क भी कितने बेतुके होते हैं। 'गन्दा है पर धंधा है। 'जिंदगी न मिलेगी दुबारा'!
ये उम्र को महत्व नहीं देते, प्यार लुटाने में संकोच नहीं करते, पर इनमें से ज़्यादातर विश्वसनीय नहीं होते। अवसर मिलते ही धोखाधड़ी कर जाते हैं। हत्या या आत्महत्या तक की स्थिति ला देते हैं। बढ़िया अवसर मिलते ही पलायन कर जाते हैं। सच्चा प्यार तो वे अपने हमउम्र से ही करते हैं। उसी के साथ पूरा जीवन गुजारते हैं। यह सब तो टाईमपास या धन कमाने का शार्टकट है। अक्सर ऐसे युवा बेरोजगार या फिर छोटी -मोटी नौकरी में होते हैं। जिंदगी को मनमर्जी से जीने के साधनों को जुटाने के लिए वे अपनी देह का इस्तेमाल करते हैं। और इसमें उन्हें कोई बुराई नज़र नहीं आती। उन्हें न रिश्तों का लिहाज़ होता है न मनुष्यता की परवाह। 
पता नहीं वे क्या सोचते हैं कैसे सोचते हैं?अरसे से मैं इस पर विचार करती रही हूँ पर ये तो मेरा विश्लेषण है । मेरा अनुमान है । मेरे निष्कर्ष हैं कि वे गलत हैं पर कुछ उदाहरण ऐसे भी मिले हैं, जिसमें यह निर्णय लेना कठिन हुआ कि वास्तव में ऐसे लड़के और रिश्ते अगम्भीर और अस्थायी होते हैं। और ऐसे रिश्तों में सच्चा प्यार नहीं होता।