जीवन पथ है बड़ा अनोखा
फिर भी मानव चलता जाए।
कभी उजाला कभी अंधेरा
ना जाने कब जीवन में आए।
जीवन पथ पर चलते जाना
यही विडंबना है जीवन की ।
घोर अंधेरा ऐसा छाया
काले बादल यू मंडराए
जीवन पथ अब नजर ना आए।। 1 ।।
नेह निमंत्रण भेज दिए थे
घर में बिटिया की शादी है।
साथी मित्र और बंधुवर
सबसे नम्र निवेदन कीन्हा
घर में मंगल द्वार सजे है
तुम से ही शोभा है उनकी
नयन हमारे राह निहारे
प्रियवर तुम दर्शन दे देना ।। 2।।
हाथ जोड़कर अनुज कह रहे
दीदी की शादी है अब तो
हम तो राह तके हैं सबकी
पहले से तुम सब आ जाना।
हम सब नाचेंगे गाएंगे
सब मिले खूब धमाल करेंगे ।। 3।।
पापा की है बड़ी लाडली
मम्मी की आंखों का तारा
बिटिया राह तके है सबकी
मौसी बहना कब आएंगी।
गीत और संगीत सजेगा
सखी सहेली सज कर आएं।
जीवन के स्वर्णिम स्वप्न संजोए
दिन दिन घड़ियां गिनती जाए । । 4। ।
कालचक्र है बड़ा निराला
उसको यह सब कब भाया था
स्वर्णिम जीवन पथ अब देखो
अंधकार में बदल गया था।
मंगलाचार होने से पहले
दुर्दिन घर में घुस आया था ।
बिटिया की मांग सजने से पहले
मां का सिंदूर उजड़ गया था।। 5। ।
मौत का यू साया मंडराया
दुर्घटना बन गई बहाना ।
बिटिया की डोली सज न पाई
खुद अर्थी पर चढ़ गए पापा ।
क्रूर विधाता देख रहा था
मां भी अब लाचार हो गई।
डोली और क्रूर अर्थी के
बंधन में वह जकड़ गई थी ।। 6। ।
जीवन और मृत्यु के पथ पर
राह कहीं वह भटक गई थी।
स्वयं कष्ट में थी वह इतनी
उसको अपना होश नहीं था
किंकर्तव्यविमूढ़ बनी वह
जीवन पथ में उलझ गई थी । । 7।।
हां सब ने असत्य बोला था
मां को भ्रम मैं ही रखा था
प्रियतम उसके विदा हो गए
यह भी उससे छुपा रखा था।
उसका क्रूर भाग्य हंसता था
अंतिम दर्शन कर न सकी वह
प्रिय को विदा भी दे ना सकी वह।
आठ दिनों पर पता चला जब
सिसकी भरकर रो न सकी वह
अंग प्रत्यंग टूटा रखा था । । 8।।
दिल पर पत्थर रखकर सब ने
बिटिया की शादी की ठानी।
बिटिया बिलख बिलख कर रोए
मां को छोड़ नहीं जाऊंगी ।
यह मेरा कैसा जीवन है
इस पथ पर चलना मुश्किल है
प्यार भरे अंगना को तज कर
और कहीं अब ना जाऊंगी ।
भैया अश्रु नयन भर बोला
यह दीदी की कैसी शादी ।
मैया घर में नहीं दिख रही
पापा भी ले गए विदाई।। 9। ।
शादी की जब घड़ी निकट थी
हिंदू मुस्लिम दंगे भड़के
शादी की तैयारी में भी
द्वार द्वार पर लग गए कर्फ्यू ।
पल पल में थी घोर परीक्षा
घड़ी घड़ी यू बीती जाए ।
संकट की वह विकट घड़ी थी
मित्र बंधुवर सब घबराए। । 10।।
भारी दिल से की सब रस्मैं
बिटिया की हो रही विदाई।
तीनों भैया बिलख रो रहे
बहिना भी हो गई पराई ।
मैया कलप बिलख यो बोली
बेटी की हो रही विदाई
उठकर विदा करूं मैं कैसे
विधि ने इस लायक भी न छोड़ा। । 1 1।।
पापा की तू बहुत लाडली
दिल में याद संजो कर जाना
गम की शिला रखी है दिल पर
इसको मत कोई गम देना।
अकेली विदा करूं मैं कैसे ?
पापा तो ले गई विदाई।
पति ग्रह में इतना सुख पाए
मेरी याद ना तुझे तड़पाए ।
अपना आंचल खुशियों से भर कर
मुझको पूर्ण तृप्त कर देना।। 1 2।।
इति