कालिदास के काव्य में सौंदर्य विधान एक समीक्षा
समीक्षक डॉ रामेश्वर प्रसाद गुप्ता
सेवानिवृत्त प्राध्यापक संस्कृत जिला दतिया
वसुधैवकुटुम्बक या विश्वबन्धुत्व के महनीय भावोपेत मनीषी महर्षियों एवं तेजस्वी तपस्वियो की इस मातृभूमि की संस्कृति के तीन विशिष्ट गुण सत्य शिव और सौंदर्य विश्व विख्यात है सौंदर्य समृद्धि को सुंदर और असुंदर सभी मानव चाहते हैं लेकिन जब वह सौंदर्य सत्य और शिव कल्याण समन्वित होता है तो उसका अलग ही मनोहारी एवं लोक कल्याणकारी रूप उजागर होता है तब वह विश्व कल्याण का कारक बनता है महाकवि कालिदास के काव्य में प्राकृतिक एवं मानवीय अंतर है सौंदर्य प्रकार से ही अपने उन में परम प्रभावी निरूपित है डॉ ललित किशोरी शर्मा महोदया ने महाकवि कालिदास के काव्य में सत्य से ऊपर सौंदर्य को हंसता मलक प्रस्तुत कर अपने शोध ग्रंथ को परम आदर्श स्थान प्रदान किया है यहां संक्षेप में इनके उक्त शोध ग्रंथ का सुकर सनीचर दृष्टभव्य है।
महाकवि कालिदास के द्वारा सौंदर्य की बड़ी निरपेक्ष परिभाषा प्रस्तुत की है यथा—
"प्रियेषु सौभाग्यफला हिचारुता"। कुमार सम्भव अर्थात प्रियजनों में सौभाग्य के रूप में जो फलीभूत है वह ही सौंदर्य है प्रिय को रिफ आने वाला ही निष्कलंक सौंदर्य होता है सौंदर्य ही उक्त परिभाषा को भी सार्थक माननीय कर ग्रंथ लेखिका डॉ शर्मा महोदया ने प्राकृतिक एवं मानवीय सौंदर्य को निकास पर खरा उतारने का सार्थक स्वयं किया है सौंदर्य के आकर्षण में मन की पवित्रता प्रधान है यह उल्लेख है कि —
"असंशयं क्षत्र परिग्रह क्षमा , यदार्यमस्याममिलासि मे मनः
सतां हि सन्देहयदेषु वस्तुषु प्रमाणमन्त : करण प्रवृत्तयः ॥
अभिज्ञान - शाकुन्तलम
उक्त के अनुसार मन की पवित्रता या श्रेष्ठता को सौन्दर्य के निष्कर्ष मानकर ग्रंथकर्मी ने कालिदास के काव्य में वर्णित सौंदर्य और रसानुभूति कराने में अपने चिंतन को सरल सुबोध भाषा के माध्यम से प्रत्यक्ष कर अपना वैदग्ध्य प्रकट किया है
सौन्दर्य सद्वृत्ति और सुमग या शुभ कृति में होता है। महाकवि कालिदास ने आद्योपान्त चरित्र की पवित्रता को सोमवार की नीव कहां है यह चरित्र पवित्रता का सौंदर्य राजाओं में भी अनिवार्य कहा गया है यथा रघुवंशी राजा पवित्र एवं परमकुलीन थे। उल्लेख है कि
" सोजहमाजन्म शुद्धानामाफलोदय कर्मणामं रघुवंशु यहा
कृति में त्याग , मित भाषण ,शुद्धमति आदि सदद्मयों का सोन्दर्य सहज ही निरूपित है यथा —
" त्यागाय . सम्मृतार्थानां सत्याय मितमाषिणम " । रघु
" तदन्वये शुद्धिमति प्रसूतः युद्दिमतर " रघु महा ।
मानवदेह में शक्ति संचयन का सौंदर्य वर्णनीय है यथा —
" व्यूटोरस्कोवृषस्कन्धः शालप्रांशुर्महामुज :
आत्मकर्म क्षमं देहंक्षात्रों धर्म दूवाक्षित: " रघु महा ।
डॉ श्रीमती ललित किशोरी जी ने सौंदर्य समन्वित उक्त सभी मानवीय सोया नो को अपनी कृति में प्रसंग आता है समुचित स्थान देकर पूर्ण पवित्र सौंदर्य को प्रत्यक्ष कराते हुए उसके प्रति आकर्षण उत्पन्न कर उसे पाने की उत्प्रेरणा प्रदान की है।
प्राकृतिक सौंदर्य इंग्लिश पढ़ में महाकवि कालिदास अनूठी एवं अद्वितीय है उनकी प्रकृति आत्मीयता से भरी हुई मानव समाज की श्रेष्ठ संगिनी परम सहायिका सदा सुमित्सु है शकुंतला की विदाई पर प्राकृत प्रकृति की उसके प्रति आत्मीयता परम कानून एक एवं मर्मस्पर्शी है यथा —
" उद्गलितदर्म कवलाः मृग्य: परिलक्त नर्तना मयुराः
अपसृतपाण्डुपया : मुञ्चनृयतरुणीव लताः ॥ अनि० शा॰
ग्रंथ कर्मी सम्माननीय डॉक्टर शर्मा महोदय ने प्रकृति के प्रायः सभी उद्योग गोपियों के सौंदर्य को प्रसंग प्रस्तुत कर मानव मात्र को प्रकृति की महान इयत्ता बताते हुए उसके प्रति सौंदर्य पूर्ण भागवती हेतु चेतन जगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी आपने मानव और प्रकृति के संदिग्ध को सामाजिक श्रेय के लिए अपरिहार्य निरूपित किया है ।
निष्कर्ष तो यही सत्य है कि डॉ श्रीमती ललित किशोरी शर्मा जी ने अपने ग्रंथ कालिदास के काम कर में सौंदर्य विधान में सौंदर्य के प्रति साहित्य स्वरूप का निरूपण कर एवं सत्य सेवा समन्वित सौंदर्य गुण से परिचय करा कर मानव तथा प्रकृति के अंतः हवाई वाहन सौंदर्य से सहज रूप से सनद संदिग्ध कराने का जो शब्द उपक्रम किया है वह परम पूजनीय है
अंतः में शिवा: सन्तु ते पन्धान: " ग्रहण प्रणेत्री को शुभकामनायें इतिशम् ।
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