भाग – 3
बड़ी ही कशमकश में रात बीती। विशाल और संध्या से किसी भी तरह का सहयोग न मिलने से विहान टूट सा गया था। पर अपने निश्चय पर अडिग था । कोई साथ दे ना दे वो कल निशा के पापा से बात करने जरूर जायेगा।
बिना किसी से बताए विहान नहा धोकर तैयार होकर निशा के घर पहुंच गया। सभी नाश्ता करके बैठे ही थे। विहान ने विभूति जी के पांव छुए। बिना आंखो से न्यूज पेपर हटाए "ठीक है" कहा। निशा की मां ने बैठने को कहा और नौकर से चाय नाश्ता लेने को कहा।
विभूति जी का रुख भापते हुए विहान ने थोड़ा नाश्ता किया। अब बस चुपचाप बैठा था। बीच बीच में निशा की मां कुछ कुछ उससे पूछ रही थी। जिसका जवाब वो बड़े ही अदब से दे रहा था।
अपनी ओर से बेखबर देख विहान ने गला साफ किया और बोला,"अंकल मैं आपसे कुछ बात करना चाहता हूं। "
चौक कर विभूति जी ने पेपर बगल में रख दिया और बोले,"हां बोलो क्या कहना चाहते हो?"
विहान के स्वर उसका साथ छोड़ रहे थे।हिम्मत कर बोला,"अंकल मैं और निशा एक दूसरे को पसंद करते है,और शादी करना चाहते है।"
आने वाले तूफान के अंदेशे से निशा की मां कांप उठी।
विभूति जी का अनुमान सही साबित हुआ। वो "हूंह" करते हुए बोले,"अच्छा तो अब इतना ऊपर की सोचने लगे हो! माना संध्या की शादी तुम्हारे घर में कर दी । क्योंकि विशाल योग्य था। तो क्या तुम हमारी बराबरी में खुद को समझने लगे?तुम हो क्या कभी सोचा है? बीए तो फेल होते होते बचे ख्वाब निशा के देखते हो। अपने समाज में क्या परिचय करवाऊंगा? मेरा दामाद बीए थर्ड डिविजन है! सागर… निशा का होने वाला पति सेल्स टैक्स अफसर है। तुम्हारी औकात उसके जूते के बराबर भी नही है, और रही बात निशा की तो" वो जोर से चिग्घाड़ कर बोले,"निशा ओ निशा तू अपने पापा के खिलाफ जायेगी! मेरी आजादियो का यही सिला देगी! मेरी लाश देखनी हो तो ही मेरे खिलाफ जाना ।" कह कर चिल्लाने से बढ़ आए ब्लड प्रेशर से पसीने पसीने हो कर हाफने लगे। अचानक बदले माहौल ने सारे अरमानों पर तुषारापात कर दिया। निशा पापा की खातिर अपनी कुर्बानी देने को तैयार हो गई।
बीपी बढ़ने पर हार्ट अटैक के लिए डॉक्टर आगाह कर चुके थे।
"विहान मैं तुमसे कोई वास्ता नहीं रखना चाहती चले जाओ यहां से। तुम्हे मेरी कसम कभी मुझसे मिलने की कोशिश मत करना।"रोती निशा बोली और अंदर भाग गई।
विहान ठगा सा देखता रह गया। थके कदमों से उठा और बाहर निकल आया। घर आकर बिना किसी से कुछ कहे अपना कुछ जरूरी सामान लिया और अनजानी राह में चल पड़ा।
इतनी बेइज्जती सिर्फ उसके अधिकारी ना होने से हुई थी। उसका स्वभाव चरित्र प्यार की कोई कीमत नहीं थी। उसने तय कर लिया की चाहे जो कुछ भी करना पड़े वो सागर से ऊंची पोस्ट पर अवश्य हासिल करेगा। इसी सोच में उसने सीधा दिल्ली का रुख किया। वहां उसका एक बहुत अच्छा मित्र अभय रहता था। वो भी सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा था।उसके पिता बहुत बड़े बिजनेस मैन थे। उसी के पास विहान पहुंचा। अभय ने प्रेम से उसे अपने साथ रखा । उसकी सारी कहानी सुन कर समझाते हुए बोला,"दोस्त जब तक जिंदगी में कोई मुकाम हासिल ना कर लो समाज में कोई इज्जत नहीं होती। तुम खुद को साबित करो और सागर से बड़े अधिकारी बनो। इस प्रयास में तुम्हे मेरा हर प्रकार से सहयोग रहेगा।"
इसके पश्चात विहान ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। चोट खाने के बाद वो बस दिन रात पढ़ाई में लगा रहता। जैसा कि सदा ही होता है परिश्रम का फल मीठा होता है। पहले प्रयास में विहान का चयन तसिलदार के पद पर हुआ। परंतु वो सागर से ऊंची पोस्ट चाहता था। दूसरी बार फिर दिल लगा कर प्रयास किया। इस बार आश्चर्यजनक रूप से उसे ना सिर्फ भारतीय प्रशासनिक सेवा में सफलता मिली बल्कि उसकी रैंक भी आई। चारों तरफ से बधाईयां आने लगी। जब से घर छोड़ा था उसकी सुध ना घर वालो ने ली थी ना उसने अपनी कोई खबर दी थी। वो उसकी हरकत से इतने नाराज थे। विशाल ने जब न्यूज पेपर में पढ़ा तो उसका नंबर कही से पता कर उसे फोन किया। सब कुछ भूल कर घर आने को कहा। पर विहान ने सीधा मना तो नही किया पर देखता हूं कह कर बात टाल दी। विशाल और विभूतिजी ने तो कुछ भी कहा हो मां पिता जी से। उन्होंने भी उसे जिंदगी से निकाल दिया था। विहान तय करता है मां पिताजी से वो जरूर मिलने जायेगा क्योंकि वो उन्ही की वजह से है। पर और किसी से भी वास्ता नहीं रखेगा। अब अभय का परिवार ही उसका परिवार था। जब वो कुछ भी नही था तब जिन लोगों ने उसे सर आंखों पर बिठाया था वही उसका सच्चा परिवार है।
समय ने करवट लिया। दो वर्ष पश्चात एक ही शहर में वो डीएम बन कर गया और सागर भी सेल्स टैक्स अफसर बन कर आया। ससुर की सीख से वो भी बिना मोटे चढ़ावे के कोई काम नही करता। एक पत्रकार ने स्टिंग ऑपरेशन कर उसे घूस लेते रंगे हाथ पकड़वा दिया। पूरा करियर ही खत्म होने के कगार पर पहुंच गया। विभूति जी ने पता किया तो डीएम अपने स्तर से सागर को क्लीन चिट दिला सकता था। मिलने आए तो विहान के नाम का बोर्ड देखकर उसका जो अपमान किया था याद आगया। वो उल्टे पांव लौट आए। अब किसी तरह निशा को उसके होने वाले बच्चे का वास्ता देकर तैयार किया की अब बस वो ही विहान से सागर के लिए छमा याचना कर सकती है।
निशा के हर कदम सौ सौ किलो के हो रहे थे। जो अन्याय उसने और उसके परिवार ने किया था,उसके बाद उसने तय किया था की जीवन भर वो विहान के सामने नही आयेगी। विहान का क्या कसूर था? उससे निस्वार्थ प्यार करना? इन्ही विचारो में गुम वो विहान के ऑफिस पहुंच गई। अंदर जाने की हिम्मत नही हुई कि कही सब के सामने ही विहान उसका अपमान ना कर दे। वो एकांत का इंतजार करती सर टिका कर आंखे बंद कर बैठी रही । तभी विहान बाहर जाने को निकाला,अचानक निशा पर निगाह पड़ते ही ठिठक गया। इस अवस्था और तनाव ने जैसे उसकी सारी खूबसूरती को छीन लिया था। वो निशा को अंदर केबिन में ले जाने के लिए दो कदम आगे बड़ा । जैसे ही करीब पहुंचा उसे ध्यान आया ’नही.. नही ...ये मेरी निशा नही है ये तो किसी और कि हो चुकी है।’
इतना खयाल आते ही उसने बढ़ते कदम रोक लिया और वापस जाने लगा। तभी निशा ने चौक कर देखा और ” विहान विहान " पुकारती हुई उसके पीछे भागी।
विहान ठिठक कर रुका उसे अपने असिस्टेंट ने केबिन में लाने का इशारा कर खुद भी केबिन में लौट आया।
अंदर आकर निशा ने झिझकते - झिझकते सारी बात बताई। अपने उस समय के फैसले के लिए माफी भी मांगी। पर विहान ने कहा कि वो ये सब भूल कर बहुत आगे बढ़ चुका है।
अब विहान दोराहे पर खड़ा था एक तरफ कर्तव्य था तो दूसरी तरफ निशा का मायूस चेहरा… जिसकी चमक वापस लाना उसके हाथ में था।
असमंजस में विहान कुछ नहीं बोल पा रहा था। एक झटके में मना करता तो निशा यही समझती की वो बदला ले रहा है। निशा को उसकी पसंद की कॉफी पिलाया,फिर उसका फोन नंबर ले लिया और बोला देखता हूं क्या हो सकता है?निशा को सहारा दे बाहर तक लाकर उसकी गाड़ी में बिठा दिया। उदासी की चादर ओढ़े निशा उसकी और देखती चली गई।
विहान इतना परेशान हो गया कि अपने सारे काम छोड़ बंगले पर आ गया। नौकर से कह कर कि कोई डिस्टर्ब नही करे, अपना रूम बंद कर निढाल सा बिस्तर पर पड़ गया।पशोपेश में शाम के बाद रात हो आई।
बार – बार आंखो के आगे निशा का दोनो रूप आ जाता,एक खुशी से चहकता दूसरा आंसू भरी आंखो वाला उदास चेहरा। वो उसकी मुस्कान वापस लौटा सकता था। एक निर्णय कर लिया कि वो निशा की मदद करेगा। परंतु फिर उसे उन गरीब असहाय लोगों का ख्याल आया जिनका हक सागर ने मारा था। क्या पता आज कोई सजा न मिलने पर सागर कोई दूसरा घोटाला नही करेगा? क्या हर बार वो अन्याय का साथ देगा? नही... नही…. उसने ये शपथ एकेडमी में नही ली थी!
उसने सदा ही न्याय करने की काम खाई थी तो आज पहले ही पायदान से वो गलत का साथ कैसे दे सकता है?
सुबह की किरणों के साथ उसका मन भी सच्चाई के प्रकाश से रौशन हो रहा था।
मोबाइल उठा कर निशा का नंबर मिला कर पूछा,"हेलो निशा कैसी हो?
निशा ने "ठीक हूं" कहा।
पुनः विहान बोला,"निशा प्लीज तुम मेरे निर्णय को मेरा बदला मत समझना। मैने गरीबों की मदद और भ्रष्टाचार खत्म करने की शपथ ली है। उसे कैसे तोड़ सकता हूं? सागर माना इस बार बच जाता है तो क्या गारंटी वो फिर ये गलती नही करेगा। जो भी उचित कार्यवाही हो उसे होने दो। इसके अलावा जो भी मदद तुम्हे चाहिए तुम मुझे बे झिझक
बोल सकती हो। मैं जरूर करूंगा।" इतना कह कर विहान ने फोन रख दिया।