Yu hu koi mil gaya tha - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

यूं ही कोई मिल गया था.. - 2

भाग 2

शाम को जब विशाल अपनी ड्यूटी से घर आया तो विहान निशा के साथ मिल कर पार्टी की तैयारी कर रहा था। विशाल को तो अंदाजा भी नहीं था की विहान बड़ी मुश्किल से पास हुआ है। वो ये सोच रहा था की निशा और विहान दोनो ही अच्छे नम्बरो से पास हो गए है। वो भी हाथ मुंह दो कर पार्टी से शामिल हो गया। परंतु जब विशाल ने दोनो के मार्क्स पूछे तो विहान ने झिझकते हुए अपने नंबर बताए। विशाल को बहुत ठेस पहुंची विहान के नंबर जान कर। विशाल ने दुखी होते हुए कहा," क्या कमी की मैने और पापा ने तुझे पढ़ाने में जो तू बस ले दे कर पास हुआ है? क्या तुझे नही पता ही हम कैसे परिवेश से आते है? मां और पिता जी ने कितना त्याग कर मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया है।

पर तू तो जैसे सब कुछ भूल गया। मैने कड़ी मेहनत की है तब आज इस मुकाम पर पहुंचा हूं और तू इस तरह पढ़ाई कर रहा है! उस पर ऐसा व्यवहार कर रहा है जैसे कुछ हुआ ही ना हो। " इतना कह कर विशाल वहां से उठ कर अंदर चला गया।

भाई की नाराजगी का असर कुछ देर ही हुआ विहान पर । तत्पश्चात वो पुनः सामान्य हो गया।

रिजल्ट के बाद निशा ने तो वही यूनिवर्सिटी में एमए में एडमिशन ले लिया। पर विहान कॉलेज दर कॉलेज भटकता रहा। इतने कम नंबर पर दाखिला मिलना बेहद मुश्किल था। नतीजन उसे प्राइवेट ही एडमिशन करवाना पड़ा। विशाल इतना ज्यादा नाराज था की बात तो कर लेता था विहान से पर पैसे देने बंद कर दिए। उसका मानना था की जब पैसे का महत्व समझेगा तभी सही रास्ते पर आएगा। अब जब पढ़ाई खत्म हो गई तो हॉस्टल भी छोड़ना पड़ा। वो विशाल के घर ही रहने लगा। संध्या भाभी तो उसे पूरा प्यार सम्मान देती पर विशाल उससे सीधे मुंह बात नही करता। पर हर बात उसे मंजूर थी । बस उसे निशा का साथ चाहिए था।

एमए पहले वर्ष के साथ ही विभूति जी ने निशा के लिए वर देखना शुरू कर दिया। रूतबे का असर था की दो महीने में ही अच्छे पद पर कार्यरत लड़के से शादी तय हो गई।

निशा व्याकुल सी दीदी के घर पहुंची। उसने सपने में भी नही सोचा था की इतनी जल्दी उसकी शादी पक्की हो जायेगी। दीदी के सामने विहान से बात करना संभव नहीं था इस मुद्दे पर। वो बोली,"दीदी मुझे कुछ किताबें लेनी है मैं विहान के साथ जा रही हूं।"

संध्या वैसे भी कही साथ आने जाने से नही रोकती थी,अब तो विवाह तय हो गया था तो कैसे रोकती? बोली,"ठीक है जा जल्दी आ जाना।"

निशा और विहान दोनो चल दिए बाहर की ओर। निशा का उतरा हुआ चेहरा देख कर विहान व्याकुल हो रहा था वजह जानने के लिए। उसे अंदाजा हो गया था की कोई न कोई बात जरूर है।

विहान ने बाइक का रुख गंगा घाट की ओर कर दिया। दोनो को वहां बहुत सुकून मिलता था। निशा जब भी परेशान होती थी यही आती थी।

बाइक घाट के नजदीक खड़ा कर जैसे ही विहान खड़ा हुआ। निशा ने पीछे से उसके कंधे को पकड़ लिया। कातर शब्दो में बोली, "विहान मुझे बचा लो मैं तुमसे अलग नही होना चाहती । मैं नही जी पाऊंगी तुससे दूर होके।"रोते हुए अपना सर कंधे से टीका दिया।

"क्या हुआ निशा? क्यों तुम मुझसे दूर होगी ? पूरी बात तो बताओ । मैं सब ठीक कर दूंगा।"विहान बोला।

निशा रोते हुए बोली,"पापा ने मेरी शादी तय कर दी है। अगले ही महीने है। क्या दीदी ने तुम्हे नही बताया? "

विहान ने ना में सिर हिलाया बोला,"मुझे कुछ मालूम नही। भाभी ने मुझसे कुछ नही बताया।"

पलट कर विहान ने निशा के आसूं अपने हाथो से पोंछे और बोला,"तुम परेशान मत हो। मेरे जिंदा रहते तुमसे कोई शादी नही कर सकता मैं भाभी से और तुम्हारे पापा से कल ही बात करूंगा।"

विहान के शब्दों से निशा के बैचेन मन को बड़ी राहत मिली। विहान का हाथ पकड़े वो गंगा तट की ओर बढ़ गई। घाट पर बैठ कर विहान के कंधे पर सर टिका लिया। पानी में पैर डाले घंटो बैठे रहे दोनो। आज किसी को भी घर जाने की जल्दी नही थी। निशा को जुदा होने का ख्याल ही बैचेन किए दे रहा था। वो इस पल को आत्मसात कर लेना चाहती थी। शाम गहराने लगी तो विहान निशा का हाथ पकड़े उठ खड़ा हुआ। निशा को उसके घर पहुंचा कर वादा किया की कल "मैं अंकल से बात करने आऊंगा।"

विहान घर आया। उसने भले ही निशा को दिलासा दिया था पर अंदर से वो भी बहुत घबरा था था। उसे उम्मीद नही थी इतनी जल्दी निशा को शादी तय हो जायेगी। उसने सोचा था की दो तीन साल में वो भी मेहनत कर भाई की तरह किसी अच्छी पोस्ट पर पहुंच जाएगा तो गर्व से निशा का हाथ पापा से मांगने को बोलेगा पर इस समय वो पापा या भैया से कोई भी उम्मीद नही कर सकता था। उम्मीद की एक किरण भाभी के रूप में दिखी।

वो घर आया तो संध्या किसी से फोन पर बात कर रही थी । वो पास के सोफे पर बैठ गया। संध्या ने "अच्छा फिर बाद में बात करती हूं" कह कर फोन रख दिया।

विहान संध्या के पास आकर बैठ गया । बिना लाग लपेट के बोला, "भाभी निशा की शादी तय हो गई आपने बताया भी नही।"

संध्या को विहान और निशा की भावनाओ का अंदाजा बखूबी था। वो भी चाहती थी की उसकी बहन ही उसकी देवरानी बने। पापा शायद विहान से पीछा छुड़ाने के लिए ही इतनी जल्दी निशा की शादी तय कर बैठे थे। उसके पापा जितना विशाल को पसंद करते थे, उतनी हिकारत भरी दृष्टि से विहान को देखते थे। वो जानती थी की उसके मना करने पर भी विहान पापा से बात करेगा। वो नही चाहती थी की वो कोई आश्वासन विहान को दे । जिससे जब पापा उसे जलील करें तो कम तकलीफ हो। पापा का अहंकारी स्वभाव इस मासूम का दिल चकनाचूर करेगा तो शायद ही कभी जुड़े। वो इस बात को बखूबी जानती थी। अपने मन चलते इन सब खयालों से बाहर निकल बोली,

"इसमें बताने वाली कोन सी बात थी। मुझे लगा तुम्हे पता होगा। "

आखों में आंसू भर कर बोला,"भाभी मैं निशा से प्यार करता हूं। उसके बिना नही जी सकता। आप प्लीज मेरी मदद करो।"

संध्या ने उसे बहलाते हुए कहा, आप चिंता न करो देवर जी मैं निशा से भी सुंदर देवरानी लाऊंगी। " कह कर विहान के गाल थपथपाएं।

विहान बोला,"नही भाभी मैं निशा से ही शादी करुंगा। आप अंकल जी से बात करके ये शादी रुकवा दो। वो आपकी बात नही टालेंगे।"

"नही विहान मैं पापा के हठ को अच्छे से जानती हूं। एक बार वो कोई फैसला ले लें तो फिर किसी के कहे नही रुकते। वो मेरी भी नही सुनेंगे।

बेहतर होगा तुम भी इस बात को यही खत्म करो।"इतना कह कर बड़ी कोशिश से अपने चेहरे पर कठोरता के भाव ले कर अंदर चली गई।

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