मेज़बान - 2 Ashish Kumar Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मेज़बान - 2

(2)

किशोर इंजन बंद कर सोचने लगा कि अब क्या करे। कोई दिखाई भी नहीं पड़ रहा था जिससे कुछ पूछ सके। उसे लगा कि कार मोड़कर फिर से एक्सप्रेस वे पर चढ़ जाता है। वापस जाता है। अगर एग्ज़िट वे दिख गया तो ठीक नहीं तो वापस लौट जाएगा। उसने कार वापस मोड़ने के लिए स्टार्ट करनी चाही तो वह स्टार्ट नहीं हुई।

गुस्से में उसने स्टीयरिंग व्हील पर हाथ मारा। शुरुआत से गड़बड़ हो रही थी। पहले शुभांगी ने प्लान कैंसिल किया। उसके बाद दोस्तों के साथ प्लान बनाया तो यह सब मुश्किलें आ रही थीं। कुछ देर चुपचाप कार में बैठा रहा। कुछ शांत हुआ तो सोचा कि कब तक शांत बैठा रहेगा। कुछ करना चाहिए। एक बार फिर दोस्त को कॉल करने के लिए अपना फोन उठाया। पता चला कि फोन की बैटरी खत्म हो चुकी थी। उसे याद आया कि कल रात चार्जिंग पर लगाना भूल गया था। उसने ध्यान भी नहीं दिया कि कितनी बैटरी थी। अब फोन भी चार्ज नहीं हो सकता था। वह एक बार फिर स्टेयरिंग व्हील पर सर रखकर बैठ गया।

एक बार फिर उसने सोचा कि इस तरह काम नहीं चलेगा। उसे कार से उतरकर आसपास मदद लेने की कोशिश करनी होगी। बाहर पानी बहुत तेज़ था। पर इतनी गड़बड़ियों के बीच एक बात सही थी। कार की पिछली सीट पर बैग के साथ रेनकोट पड़ा था। वह कार का इस्तेमाल कम करता था। ना जाने कब उसने कार की बैक सीट पर रेनकोट रखा था। आज कार लेकर निकलते समय उसने देखा था। पर हटाया नहीं था। यह एक काम अब तक अच्छा हुआ था। उसने बैंकसीट से रेनकोट उठाया। उसे पहनकर कार से उतरकर कर खड़ा हो गया।

पानी तेज़ी से बरस रहा था। अंधेरा था। उसके पास कार में एक छोटी सी टॉर्च थी। उसने वह निकाली। उसे लेकर आगे बढ़ा। टॉर्च की रोशनी में संभल कर चलते हुए वह कुछ आगे गया तो उसे सड़क से अंदर की तरफ एक पगडंडी जाती हुई दिखाई दी। कच्चा रास्ता था इसलिए उसे और संभल कर चलना पड़ रहा था। चलते हुए वह करीब तीन सौ मीटर अंदर गया होगा तब जाकर उसे एक मकान दिखाई पड़ा। उसमें जल रही रौशनी का मतलब था कि वहाँ कोई रहता था। वह खुश हो गया कि अब मदद मिल जाएगी।

मकान के गेट पर एक प्लेट लगी थी। उस पर लिखा था 'प्रोफेसर पवन कुमार'। उसने गेट खोला और अंदर चला गया। गेट से पत्थरों का बना एक रास्ता बरामदे की तरफ जा रहा था। उसकी चार सीढियां चढ़कर मेन डोर था। वह कुछ देर पहली सीढ़ी पर खड़ा रहा। उसके रोनकोट पर जमा पानी निकल गया तो उसने रेनकोट उतार कर एक कोने में रख दिया। उसके बाद कॉलबेल दबा दी।

दरवाज़ा खुला। सामने खड़े व्यक्ति को देखकर किशोर ने कहा,

"हैलो प्रोफेसर कुमार...."

प्रोफेसर पवन कुमार के चेहरे पर आश्चर्य था। किशोर ने कहा,

"गेट पर लगी नेम प्लेट देखी थी। मेरा नाम किशोर व्यास है। मुझे मदद चाहिए।"

प्रोफेसर पवन कुमार दरवाज़े से निकल कर बरामदे में आ गए। उन्होंने कहा,

"वो तो मैं समझ गया मिस्टर व्यास। मेरे घर पर अक्सर लोग मदद के लिए आते हैं। है ही ऐसी जगह पर। बताइए क्या मदद चाहिए आपको ?"

किशोर ने अपने साथ घटी सारी बातें बता दीं। उसने कहा,

"अब मैं अपने दोस्त को कॉल कर मदद भी नहीं मांग सकता हूँ। क्या आप बता सकते हैं आसपास किसी मैकेनिक का पता जो मेरी कार ठीक कर दे।"

प्रोफेसर पवन कुमार ने कुछ सोचकर कहा,

"आसपास तो कोई मैकेनिक नहीं है। मेरे पास एक गैरेज का नंबर है। लेकिन इस समय वो किसी को नहीं भेजेंगे। इंद्र देव जैसे मेहरबान हैं उससे लगता तो नहीं है कि बारिश जल्दी रुकेगी।"

"प्रोफेसर कुमार प्लीज़ अगर एक बार आप गैरेज में फोन कर मेरी बात करा देते। मैं उन्हें अपनी समस्या बताऊँगा। शायद कुछ मदद कर दें।"

"उम्मीद कम है। फिर भी मैं आपकी बात करा देता पर मेरा लैंडलाइन खराब है।"

किशोर ने अचरज से देखा। प्रोफेसर पवन कुमार ने कहा,

"सही समझा आपने। मेरे पास मोबाइल नहीं है। मैं और मेरी पत्नी मधुरिमा कुछ अलग तरह के हैं। तभी तो रिटायर होने के बाद इस जगह पर मकान बनवाया है। जिससे सुकून के साथ रह सकें।"

किशोर मुस्कुरा दिया। उसे अजीब लग रहा था। वह तो सोच भी नहीं सकता था कि आज के ज़माने में कोई बिना मोबाइल के रह सकता है। वह भी इतनी एकांत जगह पर।

किशोर सोच रहा था कि अब क्या करे ? उसकी मुश्किल समझ कर प्रोफेसर पवन कुमार ने कहा,

"मिस्टर व्यास आज रात भर बारिश के आसार हैं। आप आज हमारे मेहमान बन जाइए।"

किशोर को कुछ अजीब लग रहा था। पर उसके पास कोई चारा नहीं था। अगर वह मना कर देता तो पूरी रात कार में बितानी पड़ती। उसने कहा,

"आपको बेवजह परेशानी होगी।"

"मेरी पत्नी को अच्छा लगेगा। उसे लोगों की मदद करना पसंद है। आप अंदर आ जाइए।"

प्रोफेसर पवन कुमार ने मेन डोर खोलकर किशोर को अंदर जाने को कहा।‌ किशोर ने अपने जूते बाहर ही उतार दिए। वह अंदर चला गया। प्रोफेसर पवन कुमार भी अंदर आ गए। किशोर ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई। बड़ा हॉल था। सुंदर तरीके से साज सज्जा की गई थी। प्रोफेसर पवन कुमार ने उसे बैठने को कहा। फिर खुद भी बैठते हुए बोले,

"मधुरिमा इंटीरियर डिजाइनर है। उसने ही सब सजाया है।"

किशोर ने तारीफ करते हुए कहा,

"बहुत सुंदर है। मधुरिमा जी अपना काम करती हैं या नौकरी है।"

"अपना काम था। मेरे रिटायरमेंट के बाद उसने भी बंद कर दिया।‌ अब हम दोनों यहाँ आराम की ज़िंदगी बिता रहे हैं।"

किशोर के मन में एक ‌कौतुहल जागा। उसने पूछा,

"प्रोफेसर कुमार इस जगह सबसे अलग थलग रहने में तकलीफ नहीं होती है।"

"अगर होती तो हम दोनों भी शहर में रहते। पर हमें अच्छा लगता है। वैसे जब ज़रूरत होती है आसानी से शहर चले जाते हैं। फिर हमारे जैसे कुछ और लोग भी यहाँ हैं। दूर दूर ही सही पर चार मकान और हैं।"

किशोर ने गौर किया कि मधुरिमा की इतनी बात हुई पर वह दिखाई नहीं पड़ी। उसने पूछा,

"मधुरिमा जी कहीं गई हैं ? दिख नहीं रही हैं।"

"ऊपर बेडरूम में है। आराम कर रही है। एक साल हो गया वह बीमार रहती है। बिस्तर पर आराम करती है।"

किशोर कुछ और कहता उससे पहले प्रोफेसर पवन कुमार ने कहा,

"जाकर एक बार देखता हूँ। उसे कुछ चाहिए तो नहीं।"

"बिल्कुल.... बल्की आपको तो उनके साथ होना चाहिए था। मेरी वजह से आप परेशान हो रहे हैं।"

"ऐसा कुछ नहीं है। मधुरिमा को लोगों की मदद करना अच्छा लगता है। आप आराम से बैठिए मैं अभी आता हूँ।"

प्रोफेसर पवन कुमार चले गए। किशोर को बुरा लगा। उसकी वजह से पवन कुमार अपनी पत्नी की देखभाल नहीं कर पा रहे थे। पर फिर भी ना जाने क्यों उसे यहाँ कुछ विचित्र सा लग रहा था। प्रोफेसर पवन कुमार वैसे तो सामान्य तरीके से बात कर रहे थे। लेकिन किशोर को लगा कि मधुरिमा की बात आने पर उनके भाव कुछ बदल गए थे।

कुछ देर में प्रोफेसर पवन कुमार वापस आ गए। उन्होंने कहा,

"मिस्टर व्यास, मैंने आपको इस मुश्किल में यहाँ रहने दिया यह सुनकर मधुरिमा को बहुत अच्छा लगा। अभी कुछ देर में मैं आपको उससे मिलाऊँगा।"

"मुझे उनसे मिलकर खुशी होगी। पर आप मुझे किशोर कहकर बुलाइए।"

"ठीक है किशोर बताओ क्या लोगे ?"

"आप परेशान ना होइए।"

"किशोर बारिश रुकने वाली नहीं है। इसलिए संकोच मत करो।"

किशोर को बात ठीक लगी। प्रोफेसर पवन कुमार ने कहा,

"मैं और मधुरिमा डिनर नहीं करते हैं। तुम्हारे लिए कॉफी और सैंडविच लेकर आता हूँ।"

प्रोफेसर पवन कुमार चले गए। एक बार फिर किशोर अकेला था। वह सोच रहा था कि सब बेकार हो गया। कुछ भी उसके प्लान के मुताबिक नहीं गया। उसने सोचा था कि दोस्तों के साथ मस्ती करेगा। रिज़ॉर्ट में लज़ीज़ डिनर करेगा। अब कॉफी और सैंडविच से काम चलाना पड़ेगा। पिछले दिनों उसने कितनी मेहनत की थी। अगर वह अपने दोस्तों के साथ अच्छा वक्त बिताता तो मूड फ्रेश हो जाता।

कुछ देर अकेले बैठे रहने के बाद वह उठकर हॉल में टहलने लगा। हॉल में एक कोने की तरफ उसका ध्यान गया। वहाँ एक प्लेटफार्म बना था। उस पर एक चेयर रखी थी। उसके पीछे एक बुक शेल्फ थी। उसे पढ़ने का शौक नहीं था। लेकिन कुछ और नहीं था।‌ इसलिए वह उधर ही चला गया। शेल्फ पर अंग्रेज़ी और हिंदी की किताबें थीं। वह इंटीरियर डिजाइनिंग की एक किताब उठाकर पन्ने उलटने लगा। कुछ देर बाद उसने उसे वापस रख दिया। एक दूसरी शेल्फ में रसायन विज्ञान की किताबें थीं। उसने अनुमान लगाया कि प्रोफेसर पवन कुमार रसायन शास्त्र पढ़ाते होंगे।