मेज़बान - 1 Ashish Kumar Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मेज़बान - 1

(1)

किशोर की मीटिंग बहुत अच्छी गई थी। उसने अपनी सारी बातें बहुत अच्छी तरह से पेश की थीं। क्लाइंट्स ने अभी कुछ कहा नहीं था लेकिन उनके हाव भाव से लग रहा था कि उन्हें उसका प्रपोज़ल अच्छा लगा। कॉन्फ्रेंस रूम से निकलते हुए बॉस ने थंब्स अप देकर उसकी तारीफ की थी।

जब किशोर वापस अपनी सीट पर आया तो टीना ने कहा,

"स्माइल देखकर तो लग रहा है कि झंडे गाड़ दिए तुमने।"

ऑफिस में टीना के साथ उसकी सबसे अधिक ‌पटती थी। उसने कहा,

"झंडे गाड़े या नहीं वह तो बाद में पता चलेगा। पर उन लोगों को मेरा प्रपोज़ल अच्छा लगा।"

टीना ने कहा,

"फिर तो अपनी जीत पक्की समझो।"

किशोर मुस्कुरा दिया। घड़ी पर नज़र डाली। दोपहर के तीन बजे थे। उसने कहा,

"अगर कुछ खास काम ना हो तो ब्रेक लेते हैं। कैफेटेरिया में ले जाकर तुम्हें ट्रीट देता हूँ।"

टीना अपनी सीट से उठते हुए बोली,

"ब्रेक लेने के बारे में तो मैं भी सोच रही थी। चलते हैं। हमारे हिस्से में तो कैफेटेरिया की ट्रीट ही आएगी। असली पार्टी तो तुम अपनी शुभांगी के साथ ही करोगे।"

टीना ने अपनी बात कहकर आँख मारी। फिर हंसने लगी। किशोर खिसिया गया। उसने कहा,

"शटअप.... तुम भी कुछ भी कहती हो।"

उसके बाद बोला,

"अगर प्रपोज़ल स्वीकार हो गया तो प्रमोशन पक्का है। फिर तो पार्टी भी पक्की। उसमें टीना मैडम चीफ गेस्ट होंगी।"

"चलो फिर तब तक चीज़ सैंडविच से काम चलाती हूँ।"

शाम को किशोर घर पहुँचा। अपने लिए कॉफी बनाई। मग लेकर सोफे पर बैठ गया। कॉफी का सिप लेते हुए वह अपने फोन पर एक पसंदीदा ओटीटी प्लेटफार्म पर एक हॉरर सीरीज़ देखने लगा। उसे हॉरर इतना पसंद नहीं था। ऐसा नहीं था कि वह डरता हो। पर हॉरर के नाम पर सिर्फ डरावने चेहरे वाले भूत चुड़ैल देखना उसे उबा देता था। यह सीरीज़ तो वह बस शुभांगी के कहने पर देख रहा था। वह हॉरर की दीवानी थी। हॉरर देखकर डर भी जाती थी फिर भी देखती थी।

कुछ दिन पहले उसने एक हॉरर फिल्म देखी थी। रात को एक बजे फोन करके कहने लगी कि उसे बहुत डर लग रहा है। वह उसके पास आ जाए। वह थका हुआ था। गाड़ी चलाने का मन नहीं था। इसलिए डेढ़ घंटे तक उससे फोन पर बात करता रहा।

यह सीरीज़ भी उसे बोर कर रही थी। उसने देखना बंद कर दिया। पानी बरसने की आवाज़ आ रही थी।‌ वह बालकनी में जाकर खड़ा हो गया। बारिश उसे पसंद थी। बौछार में भींगते हुए उसे शुभांगी की याद आ गई। उसने उसे फोन मिलाया।‌ शुभांगी ने फोन उठाया तो पीछे से बहुत शोर सुनाई पड़ रहा था। शुभांगी ने उससे कहा कि वह उसे कॉलबैक करती है।

किशोर अंदर सोफे पर आकर बैठ गया। कुछ समय बाद शुभांगी की कॉल आई। अब शांति थी। उसने बताया कि उसकी एक कुलीग का बर्थडे था। उसके घर पर पार्टी चल रही थी। अभी वह उसके रूम से बात कर रही है। किशोर ने कहा,

"पानी बरस रहा है। तुम्हारी याद आ रही थी इसलिए फोन किया। पर तुम तो पार्टी में बिज़ी हो।"

"यार ऐसा मत कहो। नेहा की बर्थडे है। यू नो शी इज़ अ गुड फ्रेंड। वैसे मैं भी तुम्हें फोन करने वाली थी।"

किशोर ने चिढ़ाने के लिए कहा,

"क्यों हॉरर फिल्म देखकर डर गई।"

शुभांगी ने डांटा,

"चुप करो....मेरी बात सुनो। वो वीकेंड वाला प्लान कैंसिल कराना पड़ेगा।"

किशोर को यह बात अच्छी नहीं लगी। निराश होकर बोला,

"तुमने मूड खराब कर दिया। आज मीटिंग इतनी अच्छी गई थी। बहुत खुश था। सोचा था इस वीकेंड मज़ा करेंगे।"

"सॉरी यार..."

"क्या सॉरी.... अब बताओ क्यों कैंसिल कराना है ?"

"वो बिंदिया मौसी के बेटे की शनीवार को बर्थडे है। संडे को भी वह जल्दी निकलने नहीं देंगी। दोपहर तक ही लौट पाऊँगी।"

"ठीक है तुम सबके बर्थडे मनाओ। मैं अकेला तन्हाई के गाने गाऊँगा।"

"ऐसा मत कहो। अगली बार पक्का कहीं चलेंगे। नेहा बुला रही है। अब जा रही हूँ।"

शुभांगी ने फोन काट दिया। किशोर बहुत अपसेट हो गया था। उसने फोन सोफे पर पटक दिया। अपना मूड ठीक करने के लिए बाहर बालकनी में जाकर खड़ा हो गया। बारिश अभी थमी थी। ठंडी हवा अच्छी लग रही थी। कुछ देर में वह शांत हो गया। उसने सोचा कि चलो इस बार दोस्तों के साथ कुछ करते हैं। वह अंदर आया। अपना फोन उठाकर स्कूल फ्रेंड्स के ग्रुप में चेक करने लगा कि वहाँ क्या चल रहा है।

ग्रुप में मैसेज पढ़कर उसे पता चला कि उसके कुछ दोस्त किसी रिज़ॉर्ट में जाने की प्लानिंग कर रहे हैं। शनिवार की रात स्टे। संडे को चार बजे चेक आउट करना था। शनिवार का डिनर, संडे का ब्रेकफास्ट और लंच था। पैसे भी ठीक ठाक ले रहे थे। किशोर का दोस्त नमित भी जा रहा था। उसने नमित को फोन लगाया। नमित ने फोन उठाया तो उसने कहा,

"अकेले अकेले रिज़ॉर्ट में मस्ती करने जा रहे हो। मुझे पूछा भी नहीं।"

नमित ने डपटते हुए कहा,

"अब मुंह मत खुलवाओ। हमारे लिए वक्त कहाँ है तुम्हारे पास। तुम्हारा तो अपनी गर्लफ्रेंड के साथ प्रोग्राम पहले ही तय होता है।"

"ऐसी बात नहीं है यार। मैं भी तुम लोगों के साथ मस्ती करना चाहता हूँ। तभी तो शुभांगी को छोड़कर तुम्हारे साथ जाने का फैसला किया था। पर तुम लोगों का प्रोग्राम तो सेट है।"

नमित ने उससे कहा कि वह चाहे तो उसके लिए भी इंतज़ाम हो सकता है। पर उसे अपनी गाड़ी से आना पड़ेगा। किशोर मान गया। उसने कहा कि वह उसके लिए इंतज़ाम करवा दे। पैसे वह बाद में दे देगा।

नमित ने उसके लिए व्यवस्था कर दी थी। शनिवार को गिरीश अपनी कार में अपना बैग लेकर ही ऑफिस गया था। उसे पाँच बजे ऑफिस से निकलना था। दो बजे दोपहर से ही बारिश शुरू हो गई। पहले हल्की थी। पाँच बजते बजते बहुत तेज़ हो गई। लेकिन इससे किशोर के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। चलने से पहले उसने एक बार फिर नमित से बात की। उसने उसे रास्ता समझा दिया। उसने बताया कि एक बार एक्सप्रेस वे पर चढ़ने के बाद करीब चालीस किलोमीटर सीधे चले जाना है। उसके बाद एक एग्ज़िट वे मिलेगा। उस पर उतर कर करीब तीन किलोमीटर के बाद रिज़ॉर्ट मिल जाएगा।

किशोर एक्सप्रेस वे पर गाड़ी चलाते हुए गाने सुन रहा था। आज ऐसा लग रहा था कि जैसे बारिश रुकेगी ही नहीं। बरसात के कारण अंधेरा भी जल्दी हो गया था।

एक जगह गाड़ी रोककर किशोर ने फोन पर जीपीएस लोकेशन डालने का प्रयास किया तो नेटवर्क की समस्या आ रही थी। उसने सोचा कि आगे चलता है शायद नेटवर्क लग जाए। वह गाड़ी चलाते हुए आगे चला जा रहा था लेकिन एग्ज़िट वे दिखाई नहीं पड़ रहा था। उसे लगा कि कहीं पीछे तो नहीं छूट गया। वह  परेशान हो रहा था तभी कुछ ही आगे जाने पर उसे एग्ज़िट वे दिखाई पड़ा। उसने गाड़ी एग्ज़िट वे में उतार दी।

सड़क पर वह आगे बढ़ता जा रहा था लेकिन रिज़ार्ट नहीं मिल रहा था। कुछ और आगे जाने पर उसे यकीन हो गया कि उससे गलती हो गई है। जिस एग्ज़िट वे पर उसे उतरना था वह पीछे छूट गया है। उसने गाड़ी में बैठे हुए उसने बाहर नज़र दौड़ाई। दूर तक सुनसान सड़क काली नागिन जैसी पसरी थी।

बारिश बहुत ज़ोर से हो रही थी। उसे माहौल बड़ा भयावह लग रहा था।